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पिपलिया जी – वह गाँव जहाँ कभी फूल खिला करते थे, अब चारो-ओर काँच के टुकड़े मिला करते हैं।
एक इंसान अपनी ज़रूरतें/इच्छाएं पूरी करने के लिए जब दायरा बढ़ाता है, तब-तब इस धरती पर कांड होता है. कभी बहुत ही साफ़-सुथरा जन्नत सा एहसास दिलाने वाला 'पिपलिया जी'…