My Udaipur City

यो म्हारो उदियापुर है…!

My Udaipur City

यो म्हारो उदियापुर है…!

उदयपुर में एक खास किस्म की नफासत है जो दिल्ली, जयपुर या किसी और शहर में नहीं मिलती. केवल इमारतें या बाग-बगीचें ही नहीं,बल्कि उदयपुरी जुबां भी ऐसी है कि कोई बोले तो लगता है कानों में शहद घोल दिया हो. केवल राह चलते लोग ही नहीं बल्कि इस शहर में तो सब्जी बेचने वाले हो या सोना-चांदी बेचने वाले  सब इसी खास जुबान में ही बात करते है. “रिपिया कई रुखड़ा पे लागे जो थारे ठेला री अणि  हुगली साग ने पांच रिपिया पाव लूँ.. तीन में देनी वे तो देई जा भाया…!” जब बनी ठनी छोटी चाची जी सब्जी वाले से कुछ इस तरह भाव-ताव करती है तो फक्र महसूस होता है  अपनी मेवाडी पर. कई बार तो परकोटे के भीतर माहौल कुछ ऐसा हो जाता है कि अजनबी यही सोचकर कुछ बोलने से डरते है कि वह सबसे अलग दिखने लगेंगे.
केवल उदयपुर के मूल निवासियों या राजपूतों ने ही नहीं बल्कि शहर की इस तहज़ीब भरी जुबां को अन्य समुदायों ने भी अपने जीवन में समाहित किया है.. “म्हारा गाबा लाव्जो मम्मी, मुं हाप्डी रियो हूँ ” ये शब्द सुने मैंने “बड़ी होली” मोहल्ले में रहने वाले एक ईसाई बच्चे के मुह से. यकीन मानिए,इतना सुनने  के बाद कोई नहीं कह सकता कि ये ईसाई है. उस बच्चे के मुह से मेवाडी लफ्ज़ इस खूबसूरती और नरमाई लिए निकल रहे थे कि लगा मानो, वो मेवाडी तहज़ीब का चलता फिरता आइना हो.
उदयपुर के कूंचों में आप मेवाडी ज़बान सुन सकते हैं. मशहूर मांड गायिका मांगी बाई के मुह से “पधारो म्हारे देस” सुनने के लिए दस दस कोस के लोग लालायित रहते है. यहाँ के हर लोक कलाकार, कवि सभी में कहीं न कहीं मेवाडी अंदाज़ ज़रूर झलकता है. और तब  ” पूरी  छोड़ ने आधी खानी, पण मेवाड़ छोड़ने कठेई नि जानी” कहावत सार्थक हो उठती है. . कवि “डाडम चंद डाडम” जब अपनी पूरी रंगत में आकर किसी मंच से गाते हैं- “मारी बाई रे कर्यावर में रिपिया घना लागी गिया.. इ पंच तो घी यूँ डकारी गिया जू राबड़ी पि रिया वे…” तो माहौल में ठहाका गूँज उठता है.

बात राबड़ी की निकली तो दूर तलक जायेगी…

बचपन में सुना करते थे कि अगर सुबह सुबह एक बड़ा कटोरा भरके देसी मक्की की राब पी ली जाये तो दोपहर तक भूख नहीं लगती. जो लोग गाँव से ताल्लुक रखते है, उन्हें वो दृश्य ज़रूर याद आता होगा, जब आँगन के एक कोने में या छत पर जल रहे चूल्हे पर राबड़ी के  तोलिये (काली बड़ी मटकी,जिसे चूल्हे पर चढ़ाया जाता था)से भीनी भीनी खुशबु उठा करती थी और घर के बुज़ुर्ग चिल्लाते थे.. “अरे बराबर हिलाते रहना, नहीं तो स्वाद नि आएगा.” और देसी लफ़्ज़ों में कहे तो “राब औजी जाई रे भूरिया” ..
वो भी गजब के  ठाठ थे राबड़ी के, जिसके बिना किसी भी समय का भोजन अधूरा माना जाता था. मक्की की उस देसी राब का स्वाद अब बमुश्किल मिल पाता है. होटलों में राब के नाम पर उबले मक्की के दलिये को गरम छाछ में डालकर परोस देते है.
“दाल बाटी चूरमा- म्हारा काका सुरमा “
चूल्हे पर चढ़ी राब और निचे गरम गरम अंगारों पर सिकती बाटी. नाम सुनने भर से मुह में पानी आ जाता है. पहले देसी उपलों के गरम अंगारों पर सेको, फिर गरम राख में दबा दो.. बीस-पच्चीस मिनट बाद बहार निकाल कर.. हाथ से थोड़ी दबाकर छोड़ दो घी में..  जी हाँ, कुछ ऐसे ही नज़ारे होते थे चंद बरसों पहले.. अब तो बाफला का ज़माना है. उबालो-सेको-परोसो.. का ज़माना जो आ गया है. अब घर घर में ओवन है, बाटी-कुकर है. चलिए कोई नहीं. स्वाद वो मिले न मिले..बाटी मिल रही है, ये ही क्या कम है !!
अब शहर में कही भी उस मेवाडी अंदाज़ का दाल-बाटी-चूरमा नसीब नहीं. एक-आध रेस्टोरेंट था तो उन्होंने भी क्वालिटी से समझौता कर लिया. कही समाज के खानों में बाटी मिल जाये तो खुद को खुशकिस्मत समझते हैं. और हाँ, बाटी चुपड़ने के बाद बचे हुए घी में हाथ से बने चूरमे का स्वाद… कुछ याद आया आपको !
आधी रात को उठकर जब पानी की तलब लगती है तो दादी का चिर परिचित अंदाज़ सुनने को मिलता है.. “बाटी पेट में पानी मांग री है”  चेहरे पर मुस्कान आ जाती है.

“मैं मेवाड़ हूँ.”
मोतीमगरी पर ठाठ से विराजे महाराणा प्रताप सिंह जी, चेटक सर्किल पर रौब से तीन टांग पर खड़ा उनका घोडा चेटक… जगदीश मंदिर की सीढियाँ  चढ़ता फिरंगी और अंदर जगन्नाथ भगवान के सामने फाग गाती शहर की महिलाएं.. गणगौर घाट के त्रिपोलिया दरवाज़े से झांकती पिछोला.. नेहरु गार्डन में मटके से पानी पिलाती औरत की मूर्ति, सहेलियों की बाड़ी मे छतरी के ऊपर लगी चिड़िया के मुह से गिरता फिरता पानी.. गुलाब बाग में चलती छुक छुक रेल, सुखाडिया सर्किल पर इतनी बड़ी गेहूं की बाली… लेक पेलेस की पानी पर तैरती छाया, दूर किसी पहाड़ से शहर को आशीर्वाद देती नीमच माता… जी हाँ ये हमारा उदयपुर है.
शहर की इमारतों का क्या कहना.. मेवाड़ के इतिहास की ही तरह ये भी भव्य है..अपने में एक बड़ा सा इतिहास समेटे हुए. पिछोला किनारे से देखने पर शहर का मध्य कालीन स्वरुप दिखता है. यूँ तो उदयपुर को कहीं से भी देखो,ये अलग ही लगता है पर पिछोला के नज़ारे का कोई तोड़ नहीं. एक तरफ गर्व से सीना ताने खड़ा सिटी पेलेस.. तो दूसरी तरफ होटलों में तब्दील हो चुकी ढेर सारी हवेलियाँ. जाने कितने राजपूतों के आन-बाण शान पर खड़ा है ये शहर..
शाम के समय मोती मगरी पर “साउंड और लाईट शो” चलता है. यहीं पर स्थित मोती महल में प्रताप अपने कठिनाई भरे दिनों में कुछ दिन ठहरे थे. खंडहरों पर जब रौशनी होती है और स्वर गूंजता है…”मैं मेवाड़ हूँ” तो यकीन मानिये आपका रोम रोम खड़ा हो जाता है. कुम्भा, सांगा, प्रताप, मीरा, पन्ना, पद्मिनी… जाने कितने नाम गिनाये… तभी माहौल में महाराणा सांगा का इतिहास गूँजता है. कहते ही उनका जन्म तो ही मुग़लों को खदेड़ने के लिए हुआ था. उनकी लहराती बड़ी बड़ी मूंछें,गहरे अर्थ लिए शरीर के अस्सी घाव, लंबा और बलिष्ठ बदन उनके व्यक्तित्व को और अधिक प्रभावशील बना देता था. और तभी मुझे मेरठ  के मशहूर वीर रस कवि “हरी ओम पवार” के वे शब्द याद आते है… ” अगर भारत के इतिहास से राजस्थान निकाल दिया जाये, तो इतिहास आधा हो जाता है.. पर राजस्थान से अगर मेवाड़ को निकाल दिया जाये, तो कुछ नहीं बचता !”

इसी बीच घूमते घूमते आप देल्ही गेट पहुच जाये और “भोला ” की जलेबी का स्वाद लेते लेते अगर आपको ये शब्द सुनने को मिल जाये.. ” का रे भाया..घनो हपड हापड जलेबियाँ चेपी रियो हे.. कम खाजे नि तो खर्-विया खावा लाग जायगा.” तो यकीन मानिये आप ने शहर को जी लिया… वैसे उदयपुर निहायत ही खूबसूरत शहर है, और जब हम इसकी जुबान, खान पान की  बात छेड़ देते है तो बहुत कुछ आकर्षक चीज़ें हमसे छूट जाती है..

 

10 Comments

  1. Bhagwat Singh Ranawat

    vaah kahi likhiyu hai udaipur ra bara ma ,, inare dekh na aaj lage ki english or dusri jo bhasha ri sikhan ri hod hai va khatam hui gai
    pan aaj tak udaipur ra bara ma kani loga ra muh mu burai nahi suni

    bas achai hi sunba ma mili hai

    ka ki udaipur mai ek evi mithash hai sa ki en mai rehan walo bas ani mai hi raam or bas jave hai

    • Lalit Sharma

      ???? ?? ?? ????? ??? ????????? ????? ?????? …..?????? ?????? ????? ??? ?????? ??? ??……..

  2. Gulzar

    bahut khub likha h aapne mewar (Udaipur) k baare m… sach me udaipur is like heaven.. ek baat aur.. jo udaipur ek baar aaya h vo phir se aane ki tamanna humesha apne dil me rakhta h.. i am proud to be of udaipur…

  3. Ankit Rathore

    ?????? ?????? ??? ?? 🙂

  4. sp jain

    e hai hanchi mewari rajasthani

    aapnhe marwadi ne rajasthani ni kenho hai

    kai hamajya ki ni.

  5. hemendra singh panwar

    bhut sahi aur likhte rahiya bas amazing writing

  6. Kishan Singh Jhala

    vaah kahi likhiyu hai udaipur ra bara ma ,, inare dekh na aaj lage ki english or dusri jo bhasha ri sikhan ri hod hai va khatam hui gai
    pan aaj tak udaipur ra bara ma kani loga ra muh mu burai nahi suni

    bas achai hi sunba ma mili hai

    ka ki udaipur mai ek evi mithash hai sa ki en mai rehan walo bas ani mai hi raam or bas jave hai Jai Udaipur , Jai Mewar Aasiyo Maharo Udaipur

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *