वीर प्रसूता मेवाड की धरती राजपूती प्रतिष्ठा, मर्यादा एवं गौरव का प्रतीक तथा सम्बल है। राजस्थान के दक्षिणी पूर्वी अंचल का यह राज्य अधिकांशतः अरावली की अभेद्य पर्वत श्रृंखला से परिवेष्टिता है। उपत्यकाओं के परकोटे सामरिक दृष्टिकोण के अत्यन्त उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है। >मेवाड अपनी समृद्धि, परम्परा, अधभूत शौर्य एवं अनूठी कलात्मक अनुदानों के कारण संसार के परिदृश्य में देदीप्यमान है। स्वाधिनता एवं भारतीय संस्कृति की अभिरक्षा के लिए इस वंश ने जो अनुपम त्याग और अपूर्व बलिदान दिये सदा स्मरण किये जाते रहेंगे। मेवाड की वीर प्रसूता धरती में रावल बप्पा, महाराणा सांगा, महाराण प्रताप जैसे सूरवीर, यशस्वी, कर्मठ, राष्ट्रभक्त व स्वतंत्रता प्रेमी विभूतियों ने जन्म लेकर न केवल मेवाड वरन संपूर्ण भारत को गौरान्वित किया है। स्वतन्त्रता की अखल जगाने वाले प्रताप आज भी जन-जन के हृदय में बसे हुये, सभी स्वाभिमानियों के प्रेरक बने हुए है। मेवाड का गुहिल वंश संसार के प्राचीनतम राज वंशों में माना जाता है। मान्यता है कि सिसोदिया क्षत्रिय भगवान राम के कनिष्ठ पुत्र लव के वंशज हैं। श्री गौरीशंकर ओझा की पुस्तक “मेवाड़ राज्य का इतिहास” एक ऐसी पुस्तक है जिसे मेवाड़ के सभी शासकों के नाम एवं क्रम के लिए सर्वाधिक प्रमाणिक माना जाता है.
- रावल बप्पा ( काल भोज ) – 734 ई० मेवाड राज्य के गहलौत शासन के सूत्रधार।
- रावल खुमान – 753 ई०
- मत्तट – 773 – 793 ई०
- भर्तभट्त – 793 – 813 ई०
- रावल सिंह – 813 – 828 ई०
- खुमाण सिंह – 828 – 853 ई०
- महायक – 853 – 878 ई०
- खुमाण तृतीय – 878 – 903 ई०
- भर्तभट्ट द्वितीय – 903 – 951 ई०
- अल्लट – 951 – 971 ई०
- नरवाहन – 971 – 973 ई०
- शालिवाहन – 973 – 977 ई०
- शक्ति कुमार – 977 – 993 ई०
- अम्बा प्रसाद – 993 – 1007 ई०
- शुची वरमा – 1007- 1021 ई०
- नर वर्मा – 1021 – 1035 ई०
- कीर्ति वर्मा – 1035 – 1051 ई०
- योगराज – 1051 – 1068 ई०
- वैरठ – 1068 – 1088 ई०
- हंस पाल – 1088 – 1103 ई०
- वैरी सिंह – 1103 – 1107 ई०
- विजय सिंह – 1107 – 1127 ई०
- अरि सिंह – 1127 – 1138 ई०
- चौड सिंह – 1138 – 1148 ई०
- विक्रम सिंह – 1148 – 1158 ई०
- रण सिंह ( कर्ण सिंह ) – 1158 – 1168 ई०
- क्षेम सिंह – 1168 – 1172 ई०
- सामंत सिंह – 1172 – 1179 ई०
(क्षेम सिंह के दो पुत्र सामंत और कुमार सिंह। ज्येष्ठ पुत्र सामंत मेवाड की गद्दी पर सात वर्ष रहे क्योंकि जालौर के कीतू चौहान मेवाड पर अधिकार कर लिया। सामंत सिंह अहाड की पहाडियों पर चले गये। इन्होने बडौदे पर आक्रमण कर वहां का राज्य हस्तगत कर लिया। लेकिन इसी समय इनके भाई कुमार सिंह पुनः मेवाड पर अधिकार कर लिया। )
- कुमार सिंह – 1179 – 1191 ई०
- मंथन सिंह – 1191 – 1211 ई०
- पद्म सिंह – 1211 – 1213 ई०
- जैत्र सिंह – 1213 – 1261 ई०
- तेज सिंह -1261 – 1273 ई०
- समर सिंह – 1273 – 1301 ई०
(समर सिंह का एक पुत्र रतन सिंह मेवाड राज्य का उत्तराधिकारी हुआ और दूसरा पुत्र कुम्भकरण नेपाल चला गया। नेपाल के राज वंश के शासक कुम्भकरण के ही वंशज हैं। )
35. रतन सिंह ( 1301-1303 ई० ) – इनके कार्यकाल में अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौडगढ पर अधिकार कर लिया। प्रथम जौहर पदमिनी रानी ने सैकडों महिलाओं के साथ किया। गोरा – बादल का प्रतिरोध और युद्ध भी प्रसिद्ध रहा।
36. अजय सिंह ( 1303 – 1326 ई० ) – हमीर राज्य के उत्तराधिकारी थे किन्तु अवयस्क थे। इसलिए अजय सिंह गद्दी पर बैठे।
37. महाराणा हमीर सिंह ( 1326 – 1364 ई० ) – हमीर ने अपनी शौर्य, पराक्रम एवं कूटनीति से मेवाड राज्य को तुगलक से छीन कर उसकी खोई प्रतिष्ठा पुनः स्थापित की और अपना नाम अमर किया महाराणा की उपाधि धारण की । इसी समय से ही मेवाड नरेश महाराणा उपाधि धारण करते आ रहे हैं।
38. महाराणा क्षेत्र सिंह ( 1364 – 1382 ई० )
39. महाराणा लाखासिंह ( 1382 – 1421 ई० ) – योग्य शासक तथा राज्य के विस्तार करने में अहम योगदान। इनके पक्ष में ज्येष्ठ पुत्र चुडा ने विवाह न करने की भीष्म प्रतिज्ञा की और पिता से हुई संतान मोकल को राज्य का उत्तराधिकारी मानकर जीवन भर उसकी रक्षा की।
40. महाराणा मोकल ( 1421 – 1433 ई० )
41. महाराणा कुम्भा ( 1433 – 1469 ई० ) – इन्होने न केवल अपने राज्य का विस्तार किया बल्कि योग्य प्रशासक, सहिष्णु, किलों और मन्दिरों के निर्माण के रुप में ही जाने जाते हैं। कुम्भलगढ़ इन्ही की देन है. इनके पुत्र उदा ने इनकी हत्या करके मेवाड के गद्दी पर अधिकार जमा लिया।
42. महाराणा उदा ( उदय सिंह ) ( 1468 – 1473 ई० ) – महाराणा कुम्भा के द्वितीय पुत्र रायमल, जो ईडर में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे थे, आक्रमण करके उदय सिंह को पराजित कर सिंहासन की प्रतिष्ठा बचा ली। अन्यथा उदा पांच वर्षों तक मेवाड का विनाश करता रहा।
43. महाराणा रायमल ( 1473 – 1509 ई० ) – सबसे पहले महाराणा रायमल के मांडू के सुल्तान गयासुद्दीन को पराजित किया और पानगढ, चित्तौड्गढ और कुम्भलगढ किलों पर पुनः अधिकार कर लिया पूरे मेवाड को पुनर्स्थापित कर लिया। इसे इतना शक्तिशाली बना दिया कि कुछ समय के लिये बाह्य आक्रमण के लिये सुरक्षित हो गया। लेकिन इनके पुत्र संग्राम सिंह, पृथ्वीराज और जयमल में उत्तराधिकारी हेतु कलह हुआ और अंततः दो पुत्र मारे गये। अन्त में संग्राम सिंह गद्दी पर गये।
44. महाराणा सांगा ( संग्राम सिंह ) ( 1509 – 1527 ई० ) – महाराणा सांगा उन मेवाडी महाराणाओं में एक था जिसका नाम मेवाड के ही वही, भारत के इतिहास में गौरव के साथ लिया जाता है। महाराणा सांगा एक साम्राज्यवादी व महत्वाकांक्षी शासक थे, जो संपूर्ण भारत पर अपना अधिकार करना चाहते थे। इनके समय में मेवाड की सीमा का दूर – दूर तक विस्तार हुआ। महाराणा हिन्दु रक्षक, भारतीय संस्कृति के रखवाले, अद्वितीय योद्धा, कर्मठ, राजनीतीज्ञ, कुश्ल शासक, शरणागत रक्षक, मातृभूमि के प्रति समर्पित, शूरवीर, दूरदर्शी थे। इनका इतिहास स्वर्णिम है। जिसके कारण आज मेवाड के उच्चतम शिरोमणि शासकों में इन्हे जाना जाता है।
45. महाराणा रतन सिंह ( 1528 – 1531 ई० )
46. महाराणा विक्रमादित्य ( 1531 – 1534ई० ) – यह अयोग्य सिद्ध हुआ और गुजरात के बहादुर शाह ने दो बार आक्रमण कर मेवाड को नुकसान पहुंचाया इस दौरान 1300 महारानियों के साथ कर्मावती सती हो गई। विक्रमादित्य की हत्या दासीपुत्र बनवीर ने करके 1534 – 1537 तक मेवाड पर शासन किया। लेकिन इसे मान्यता नहीं मिली। इसी समय सिसोदिया वंश के उदय सिंह को पन्नाधाय ने अपने पुत्र की जान देकर भी बचा लिया और मेवाड के इतिहास में प्रसिद्ध हो गई।
47. महाराणा उदय सिंह ( 1537 – 1572 ई० ) – मेवाड़ की राजधानी चित्तोड़गढ़ से उदयपुर लेकर आये. गिर्वा की पहाड़ियों के बीच उदयपुर शहर इन्ही की देन है. इन्होने अपने जीते जी गद्दी ज्येष्ठपुत्र जगमाल को दे दी, किन्तु उसे सरदारों ने नहीं माना, फलस्वरूप छोटे बेटे प्रताप को गद्दी मिली.
48. महाराणा प्रताप ( 1572 -1597 ई० ) – इनका जन्म 9 मई 1540 ई० मे हुआ था। राज्य की बागडोर संभालते समय उनके पास न राजधानी थी न राजा का वैभव, बस था तो स्वाभिमान, गौरव, साहस और पुरुषार्थ। उन्होने तय किया कि सोने चांदी की थाली में नहीं खाऐंगे, कोमल शैया पर नही सोयेंगे, अर्थात हर तरह विलासिता का त्याग करेंगें। धीरे – धीरे प्रताप ने अपनी स्थिति सुधारना प्रारम्भ किया। इस दौरान मान सिंह अकबर का संधि प्रस्ताव लेकर आये जिसमें उन्हे प्रताप के द्वारा अपमानित होना पडा।
परिणाम यह हुआ कि 21 जून 1576 ई० को हल्दीघाटी नामक स्थान पर अकबर और प्रताप का भीषण युद्ध हुआ। जिसमें 14 हजार राजपूत मारे गये। परिणाम यह हुआ कि वर्षों प्रताप जंगल की खाक छानते रहे, जहां घास की रोटी खाई और निरन्तर अकबर सैनिको का आक्रमण झेला, लेकिन हार नहीं मानी। ऐसे समय भीलों ने इनकी बहुत सहायता की।अन्त में भामा शाह ने अपने जीवन में अर्जित पूरी सम्पत्ति प्रताप को देदी। जिसकी सहायता से प्रताप चित्तौडगढ को छोडकर अपने सारे किले 1588 ई० में मुगलों से छिन लिया। 19 जनवरी 1597 में चावंड में प्रताप का निधन हो गया।
49. महाराणा अमर सिंह -(1597 – 1620 ई० ) – प्रारम्भ में मुगल सेना के आक्रमण न होने से अमर सिंह ने राज्य में सुव्यवस्था बनाया। जहांगीर के द्वारा करवाये गयें कई आक्रमण विफ़ल हुए। अंत में खुर्रम ने मेवाड पर अधिकार कर लिया। हारकर बाद में इन्होनें अपमानजनक संधि की जो उनके चरित्र पर बहुत बडा दाग है। वे मेवाड के अंतिम स्वतन्त्र शासक है।
50. महाराणा कर्ण सिद्ध ( 1620 – 1628 ई० ) – इन्होनें मुगल शासकों से संबंध बनाये रखा और आन्तरिक व्यवस्था सुधारने तथा निर्माण पर ध्यान दिया।
51.महाराणा जगत सिंह ( 1628 – 1652 ई० )
52. महाराणा राजसिंह ( 1652 – 1680 ई० ) – यह मेवाड के उत्थान का काल था। इन्होने औरंगजेब से कई बार लोहा लेकर युद्ध में मात दी। इनका शौर्य पराक्रम और स्वाभिमान महाराणा प्रताप जैसे था। इनकों राजस्थान के राजपूतों का एक गठबंधन, राजनितिक एवं सामाजिक स्तर पर बनाने में सफ़लता अर्जित हुई। जिससे मुगल संगठित लोहा लिया जा सके। महाराणा के प्रयास से अंबेर, मारवाड और मेवाड में गठबंधन बन गया। वे मानते हैं कि बिना सामाजिक गठबंधन के राजनीतिक गठबंधन अपूर्ण और अधूरा रहेगा। अतः इन्होने मारवाह और आमेर से खानपान एवं वैवाहिक संबंध जोडने का निर्णय ले लिया। राजसमन्द झील एवं राजनगर इन्होने ही बसाया.
53. महाराणा जय सिंह ( 1680 – 1698 ई० ) – जयसमंद झील का निर्माण करवाया.
54. महाराणा अमर सिंह द्वितीय ( 1698 – 1710 ई० ) – इसके समय मेवाड की प्रतिष्ठा बढी और उन्होनें कृषि पर ध्यान देकर किसानों को सम्पन्न बना दिया।
55. महाराणा संग्राम सिंह ( 1710 – 1734 ई० ) – महाराणा संग्राम सिंह दृढ और अडिग, न्यायप्रिय, निष्पक्ष, सिद्धांतप्रिय, अनुशासित, आदर्शवादी थे। इन्होने 18 बार युद्ध किया तथा मेवाड राज्य की प्रतिष्ठा और सीमाओं को न केवल सुरक्षित रखा वरन उनमें वृध्दि भी की।
56. महाराणा जगत सिंह द्वितीय ( 1734 – 1751 ई० ) – ये एक अदूरदर्शी और विलासी शासक थे। इन्होने जलमहल बनवाया। शहजादा खुर्रम (शाहजहाँ) को अपना “पगड़ी बदल” भाई बनाया और उन्हें अपने यहाँ पनाह दी.
57. महाराणा प्रताप सिंह द्वितीय ( 1751 – 1754 ई० )
58. महाराणा राजसिंह द्वितीय ( 1754 – 1761 ई० )
59. महाराणा अरिसिंह द्वितीय ( 1761 – 1773 ई० )
60. महाराणा हमीर सिंह द्वितीय ( 1773 – 1778 ई० ) – इनके कार्यकाल में सिंधिया और होल्कर ने मेवाड राज्य को लूटपाट करके तहस – नहस कर दिया।
61. महाराणा भीमसिंह ( 1778 – 1828 ई० ) – इनके कार्यकाल में भी मेवाड आपसी गृहकलह से दुर्बल होता चला गया। 13 जनवरी 1818 को ईस्ट इंडिया कम्पनी और मेवाड राज्य में समझौता हो गया। अर्थात मेवाड राज्य ईस्ट इंडिया के साथ चला गया।मेवाड के पूर्वजों की पीढी में बप्पारावल, कुम्भा, महाराणा सांगा, महाराणा प्रताप जैसे तेजस्वी, वीर पुरुषों का प्रशासन मेवाड राज्य को मिल चुका था। प्रताप के बाद अधिकांश पीढियों में वह क्षमता नहीं थी जिसकी अपेक्षा मेवाड को थी। महाराजा भीमसिंह योग्य व्यक्ति थे\ निर्णय भी अच्छा लेते थे परन्तु उनके क्रियान्वयन पर ध्यान नही देते थे। इनमें व्यवहारिकता का आभाव था।ब्रिटिश एजेन्ट के मार्गदर्शन, निर्देशन एवं सघन पर्यवेक्षण से मेवाड राज्य प्रगति पथ पर अग्रसर होता चला गया।
62. महाराणा जवान सिंह ( 1828 – 1838 ई० ) – निःसन्तान। सरदार सिंह को गोद लिया ।
63. महाराणा सरदार सिंह ( 1838 – 1842 ई० ) – निःसन्तान। भाई स्वरुप सिंह को गद्दी दी.
64. महाराणा स्वरुप सिंह ( 1842 – 1861 ई० ) – इनके समय 1857 की क्रान्ति हुई। इन्होने विद्रोह कुचलने में अंग्रेजों की मदद की।
65. महाराणा शंभू सिंह ( 1861 – 1874 ई० ) – 1868 में घोर अकाल पडा। अंग्रेजों का हस्तक्षेप बढा।
66 . महाराणा सज्जन सिंह ( 1874 – 1884 ई० ) – बागोर के महाराज शक्ति सिंह के कुंवर सज्जन सिंह को महाराणा का उत्तराधिकार मिला। इन्होनें राज्य की दशा सुधारनें में उल्लेखनीय योगदान दिया।
67. महाराणा फ़तह सिंह ( 1883 – 1930 ई० ) – सज्जन सिंह के निधन पर शिवरति शाखा के गजसिंह के अनुज एवं दत्तक पुत्र फ़तेहसिंह को महाराणा बनाया गया। फ़तहसिंह कुटनीतिज्ञ, साहसी स्वाभिमानी और दूरदर्शी थे। संत प्रवृति के व्यक्तित्व थे. इनके कार्यकाल में ही किंग जार्ज पंचम ने दिल्ली को देश की राजधानी घोषित करके दिल्ली दरबार लगाया. महाराणा दरबार में नहीं गए .
68. महाराणा भूपाल सिंह (1930 – 1955 ई० ) – इनके समय में भारत को स्वतन्त्रता मिली और भारत या पाक मिलने की स्वतंत्रता। भोपाल के नवाब और जोधपुर के महाराज हनुवंत सिंह पाक में मिलना चाहते थे और मेवाड को भी उसमें मिलाना चाहते थे। इस पर उन्होनें कहा कि मेवाड भारत के साथ था और अब भी वहीं रहेगा। यह कह कर वे इतिहास में अमर हो गये। स्वतंत्र भारत के वृहद राजस्थान संघ के भूपाल सिंह प्रमुख बनाये गये।
69. महाराणा भगवत सिंह ( 1955 – 1984 ई० )
70. श्रीजी अरविन्दसिंह एवं महाराणा महेन्द्र सिंह (1984 ई० से निरंतर..)
इस तरह 556 ई० में जिस गुहिल वंश की स्थापना हुई बाद में वही सिसोदिया वंश के नाम से जाना गया । जिसमें कई प्रतापी राजा हुए, जिन्होने इस वंश की मानमर्यादा, इज्जत और सम्मान को न केवल बढाया बल्कि इतिहास के गौरवशाली अध्याय में अपना नाम जोडा । यह वंश कई उतार-चढाव और स्वर्णिम अध्याय रचते हुए आज भी अपने गौरव और श्रेष्ठ परम्परा के लिये जाना पहचाना जाता है। धन्य है वह मेवाड और धन्य सिसोदिया वंश जिसमें ऐसे ऐसे अद्वीतिय देशभक्त दिये।
(साभार – मेवाड़ राजवंश का इतिहास – गौरीशंकर ओझा)
Post Contribution by : Arya Manu
149 replies on “मेवाड़ राजवंश का संक्षिप्त इतिहास”
Jo Dhardh rakhe Dharm Ko , Tahi Rakhe Kartar !!
Nice info provided. Great work 🙂
a very gud knowledge for civil services aspirates too.. gud work udaipurbolg team
a very gud knowledge for civil services aspirants too
nice work done udaipurblog team
Thank You Sir 🙂
?? ?????? ?? ??? ??
Gani khamma . jay mewar
nice imformation…………good work…..!!!!!
Jai Mewar, Jai Hindua Suraj “Maharan Pratap “
sir.ji. sneh purvak namaskar. aap jo mahatvpurvak jankari di. us ke liye manpurvak aabhar. kya aap bata sakte ho ke akhand bharat kab haga. qki bhharat ke har rajy me eetne hindutv wadi sanghtnaye hai. vah kya kar rahe hai. kis bat ki pratiksha kar rahe hai.
I need daily update on “Maharana Pratap Ji”.
jai maharana g
Khamma Khamma Rana Pratap………
Very very Thank you sir ji for write this udaipur blog. Bs itna btaiye ki kya abhi unke vansaj hai wha pe.
Yeah they do its now continued by : Shri Arvind Singh Ji Mewar
bahut badhiya samrajya tha
Thanks sir
jai Maharanaji.
zindgee ek ganit hai jisme
dosto ko joda jata hai +
dusmano ko ghataya jata hai_
sukho ko gunna kiya jata hai *
dukho ko bhag kiya jata hai
mujhe kishi ek jati dharm ke inshan nahi balki
sabhi dharm jati v ling ke inshan chahiye
jo meri leval ke hishab se ek inshaniyat ka rista bana sake
me sadi suda hu or is riste ke alawa sabhi ristey me nibha sakta hu
yah ek Samaj Sevak Soch Hai
RS SISODIYA 09828415115
Maharana partap ko sat sat namn
Vo maharana partap kte vo ek ese veer the jo itihas ke panho me amar ho gye ve aaj b har inshan ke dil me amr h
J maharana partap!!
Jai maharana Udai Singhji, Jai ho aisi maharani ki jo jauhar ke liye sada tayar rahiti thi. Jai maharan Pratapji ki , jinki biography ko padhkar aaj bhi khoon ubbal uthta he, apne Rajpoot hone parv garv hota he.
jay mahararna partap
Inhi purvajo ki den hai hum
Inhi ke shaurya ki wajah se hum yaha pe hai.
Jai mevad
very intresting to know about indian history
Need a correction in Maharana Peatap’s segment, actually Maharana Pratap was the eldest son of Maharana Udai Singh not Jagmal, as you mentioned.
yes abhishek u r right
Need a correction in Maharana Pratap’s segment, actually Maharana Pratap was the eldest son of Maharana Udai Singh not Jagmal, as you mentioned.
Jagmal was younger than Maharana Pratap.
its a awosem……jai rajputana
info given about maharana uday singh, father of maharana pratap seems to be not true, basically info about jagmal.
Jay eklingji
Aapne jis tarah se kam kiya hai wo kabile- dad hai.rajputo ki aan- ban-aur shan hai sisodiya rajvansh.jo na juka hai na. Jukega.har har mahadev
great the rajput&rajputan
good knowledge
Sisodia is great
prithwiraj chauhan
jay hind ye padhakar bhut khusihui
Jai pratap..sir ji accha laga.apne rajasthan ko jan kr.
information about jagmal is wrong, jyesth putra nhi the chhote the
meri soch me har ek hindusthani ko rajpoot bankar hi zindgee zina chahiye ,hamare desh me rajpooto ka bahut badda yogdan raha hai, aaj har ek inshan apni jati v pahachan aishe batate h ki mano unhone koi bahut bada nam hashil kar rakha ho, magar apne ganv desh ke bare me koi kuch nahi bolega, isiliye mera manana hai ki rajpoot ek jati nahi balki is desh rajya ka nam hai, inshan kai trah ke hote hai jaise ek sahi or ek galat dono ek sath rahate hai , sahi inshan ko galat banakar jina chahiye ya galat ko sahi banakar zinna chahiye, ye bat to hum sabhi jante hai ki galat ko bhi sahi banakar zinna chahiye n ki sahi ko galat banakar zinna chahiye, isiliye agar har ek hindushai ko rajpoot bankar zinna
,,
jai mata giri
RANJIT SINGH SISODIYA=09828415115
Humein garv hai aise shoorveer sisodia rajputon par jinhone apne vansh ke maan-samman aur ees desh ki raksha hetu nirantar prayasrat rahe. mughaliya saltnat chahe jitne baar bhi rajputo se loha lene ki koshish ki oolte oonsabko apne mooh ki khani padi. dhanya hai mewar ka wo asthan jahan par maharana pratap ka janm huaa. aur dhanya hai mewar ke shashak Rana Udai Singh aur maharani jaivantabai jinhone aise matru-pitru aur desh bhakt Maharana Pratap ko janm diyein. hum sabhi bhartiya nagrikon ko chahiye hi hum bhi maharana pratap ke aadarshon par chalein aur aisa kaam kar jaayein jis se ki apne pariwar ke saath saath apne kool ka bhi bahut naam ho.
hum tahedil se shukra guzar hain Sony Entertainment ka jinhone humsabhi ko Dharti ka veer putra Maharana Pratap serial dikha kar ke humein kritarth kiya hai. aur sabse bada shukra guzar hoon Zee tv ke show Dance India Dance se apni chhavi banane wale Faisal Khan ka jinhone ek muslim hote hue bhi ek hindu rajput maharana pratap ke chitran ho bakhubi nibhaya hai we love you Faisal khan.
apne isme jagmaal ko jyasth or partap ko chotha bataya hai jo ki galat hai
क्या “पीथल और पाथल” में कवि श्री कन्हैया लाल सेठिया द्वारा किया गया वर्णन सही है या एक कपोल कल्पना ? यदि सही है तो ऐसे किसी पत्र या वार्तालाप के प्रमाण “आईने अकबरी” या “अकबरनामा” में तो अवश्य मिलने चाहिएँ। यदि किसी महानुभाव को जानकारी हो तो कृपया सभी से बांटें।
ajj jo nbhi ye khta h ki wo kisi se darta nhi.
to samjna ki,
ya to wo jhoot bol raha h.
ya fir wo rajput h.
hme garv h
hame rajput hone par.
ajj jo bhi ye khta h ki wo kisi se darta nhi.
to samjna ki,
ya to wo jhoot bol raha h.
ya fir wo rajput h.
Maharana partap great king
mevad ke raja ki jay
bharat desh jaha maharana partap jaise yodha paida hue suna hai unki talwar 40kg ki thi bharat ka nagrik hone par mujhe garv hai
maharana pratap story was too good he is so brave
Mevar aisa rajy ar mharana prtap jaise yodhya ( knight ) bharat ke ithas ke gaurav hai
Jay Rajputana
jai maharana jai rajputana maharana pratap g aap ke charno mai ke dhul jo mil jaye
rana sanga & maharana pratap is the best
I respect all Rajput , Maharana Pratap was really Great King of india
I also heard abt haldighati yudh maharana pratap’s wear weapon more than his weight… Aprx 140kg (total)
Jai ekling ji…
Jai Rajputana….
great information sir ….proud to be maharana pratap’s son ..jai mewar …
nice
JAI MAHARANA PRATAP
Wooooowww Awsmm History Yaar 🙂
Jai maharana partap
veer bhumi rajasthan
amar rahe maharana partap or amar rahe hamare des k vo veer jinhone apne des ki saan bachayi hai
The great Rajputan
raja rajvada rajput
jai maharana partap jai mewad jai rajputana
jai mata di.
very very proud rana pratap
Sat sat naman . Jai mewar.
Jai rajputana
The Rajput of RAjshtan jai mewar
The RAjput Of RAJSThAN jai MEwAR
Very nice
MAHRANA PARTAP WAS REALLY HERO OF MEWAR. I RESPECT TO MAHARANA PARTAP.AND all people will try to life in hero like maharana partap
Is. Baat me koi sak Nhi k jis trah Rajasthan pure bharat me apni veerta k liye mashoor tha.
ussi trah mewar sampurn Rajasthan me tha.
dhanya h rana sanga or maharana pratap jinhone k bhi muglo or mullo k age sar jhukaya nhi
Jai Mewar
Jai rajputana jai maharana pratap
maharana pratap ka prakram
I proud of mewar….jai rajputana….jai ho maharana Pratap….he is a real hero of rajisthan…nd I proud of me…for I born on this rajputana city…..
क्या अापके पास राजपूतों के इतिहास की पीडीएफ या नोटस मिल सकते है यदि आपके पास इनसे संबंधित कुछ भी नोटस है तो प्लीज मुझे मेरी आईडी पर मेल कर दे ।
ma bauth lucky hu ki mera purvaj . gyani maha dani maha parakarmi, suruy kul diwakar, ksahtariya vans ujjagar,bappa rawal vanshaj mewar naresh maharaj diraj mahrana pratap singh tha
Jai ho sisodiya( saini rajput ) vans ki
Maharana pratap jis grass ke roti khay the uska name kya hai?
Is. Baat me koi sak Nhi k jis trah Rajasthan pure bharat me apni veerta k liye mashoor tha.
ussi trah mewar sampurn Rajasthan me tha.
dhanya h rana sanga or maharana pratap jinhone k bhi muglo or mullo k age sar jhukaya nhi jai mewar
Mahan-Rana Pratap was the last surya of India
no is wrong .
veer rajput shivaji was the last suruy of bharat.
Sir aap ne likha ki haldi ghati yudh 21 june ko huya pr kaye book mein mein 18 june likha h….which one is ryt ??
I appreciated this information….
.
No One can be brave as like as Maharana Pratap…
.
Jai Raputana…
Aese shory. Sahas. Or. Himat k. Liye Maharana pratap ko. Koti. Koti pranam
Jai ho Rajputa
Shi he rajputo ka khun bhne ke liye hi hota he jay rajputana
MhARANA partap the veer yhoda i like you
Maharana Pratap was the great warrior of India, I proud of him.
Shat shat naman aise shoorveer ko ……mitii ka laal maharaana pratap…
I am proud up rajput king
Jay maharana jay akjinji
Jay maharana jay akjinji jay mewad jay sisodiya
Jay mharana pratap jay Hindustan in Sur Biro ki blidan se Hindu bache hai.
I most like maharana pratap
Jay maharana partap
jay jay maharana pratap
aapne maharana pratap ki information di
“”danyawad””
hello
amazing information ….
thank you …
Jai Mevad
Jai Ekling Ji
Jai Maharana
Jai Hind
jay rajputana
Aapne maharanapratap ke itihas ke bsre mai jankari di eske liye pako dhanyswad Rajendra singh shishodiya
Jai Maharana Pratap Bharat ka veer putra Sat Sat naman. Realy your life story is too much inspiring.
Sabhi rajputooo ne muglo k aage sirrrrr juka diya……..ek maharana pratap me unka dutekarrr mukabla.kiya tha kabhi nhi harrre…….jai maharana pratap
Maharna prtap …uday Singh 2 ke …bde bete the ….or jagmaal or shakti Singh chote bete the unke .. ..uper wrong diya hua h prtap k bare m
sahi bola bhai ji
jai ho maharana pratap ke
Dhanyvad
Aapne shree maharana Pratap Singh ji ke bare me jankari hum Rajputon Ki san the maharanapratap
Jay Maharana Pratap
Jay Rajputana
Jay hind
Jai Mewad jai Maharana ji jai Rajputana..
Jai rajputana
We are the most lucky people in the world to have such a great Mewar empire….Maharana Pratap ki jai…jai Eklingji……Hamare veero ko kabhi mat bhulna bharatvasiyo…kyunki yeh sab hi humari dharohar hai…..in mahan aatmao ko shat shat naman….jai Mewar
Maharana pratap ki jai aj unki he badaulat hm log bharat m azad h Werna aj hm mullo k gulam hote
Maharana amar Singh Ji k bare m sahi Ni btaya h Apne unhone bhi Apna wishesh koshal dekaya h ranbhumi m muglo ki 50 bdi bdi senao pr unhone adhikaar kr liya tha Jb tk wo rahe aurangzeb kuch Ni beegad paya mevad ka.
Unke bad ki pidiyo k bare m mje Ni pta pr wo bhi EK bht ache or pratap jese he rana sidh hue the
जय सेवालाल जय राणाजी
हुकुम रावल एक उपाधि हे जिसको कोई भी महान राजा धारण कर सकता हे जैसे सिसोदिया राणा कि उपाधि धारण करते थे
सिसोदिया पहले गोहिल थे बाद में सिसोदिया हो गए ओर
बप्पा रावल का वंश गहलौत ओर गोहिल था
गहलौत कि शाखा
. अहाडिया गहलौत
अहाड नामक स्थान पर बसने के कारण यह नाम हुआ।
2. असिला गहलौत
सौराष्ट्र में बप्पा के पुत्र ने असिलगढ का निर्माण अपने नाम असिल पर किया जिससे इसका नाम असिला पडा।
3. पीपरा गहलौत
बप्पा के एक पुत्र मारवाड के पीपरा पर आधिपत्य पर पीपरा गहलौत वंश चलाया।
4. मागलिक गहलौत
लोदल के शासक मंगल के नाम पर यह वंश चला।
5. नेपाल के गहलोत
रतन सिंह के भाई कुंभकरन ने नेपाल में आधिपत्य किया अतः नेपाल का राजपरिवार भी मेवाड़ की शाखा है।
6. सखनियां गहलौत
रतन सिंह के भाई श्रवण कुमार ने सौराष्ट्र में इस वंश की स्थापना की।
7. सिसौद गहलौत
कर्णसिंह के पुत्र को सिसौद की जागीर मिली और सिसौद के नाम पर सिसौदिया गहलौत कहलाया
सिसौदिया वंश की उपशाखाएं
चन्द्रावत सिसौदिया
यह 1275 ई. में अस्तित्व में आई। चन्द्रा के नाम पर इस वंश का नाम चन्द्रावत पडा।
भोंसला सिसौदिया
इस वंश की स्थापना सज्जन सिंह ने सतारा में की थी।
चूडावत सिसौदिया
चूडा के नाम पर यह वंश चला। इसकी कुल 30 शाखाएं हैं।[
शक्तावत
राणावात
ओर भी हे
jai hoo mewad ka jish bhumi ne ase saputara jeane……..jai mewad , jai rajasthan , jai rajputana…….
Ham bhi Sher Singh Rana h ….Moka milega to Jarur Dharm. Ki Rakha karenge …jai Bhawani ……Jai Rajputana!
Jai Rajputana
Ak bano nek nano……
Jai mewad
Jai maharana pratap….. jai rajputana
Jai RAjpuTaNa…………….
पद्मिनी की सुंदरता पर जिसका मन ललचाया था।।। ले करके सेना ख़िलजी चित्तोड़ पे चढ़ कर आया था।।। जीत नहीं पाया था जब वो तलवारो और तीरो से।।। खेल रचया धोके का तब चित्तौड़ी वीरो से।। मेवाड़ी रणबांकुलो ने दी आहुति प्राण की।।। सतियो ने जोहर व्रत कर जान बचाई आन की।।।
जान बचाई आन की।।।
सीर पर अपने कफ़न बांधकर शत्रु को ललकारा था।। और नहीं कुछ प्यारा प्यारा आजादी का नारा है।।।
हर हर हर हर हर महादेव।।। जय चित्तोड़।। जय एकलिंग दिवान।। जय मेवाड़।।
Rahul badal from chittorgarh
जय महाराणा प्रताप
Jai Marana pratap jai mewar
jai marana pratap ke jai ho
जय हो ऐसे महानं वीर योद्धाओ की
सुडा वंश के राकेश सुडा
Jai mewar
jai ho veer maharana pratap ki
Jay Maharana Pratap .
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नमन करता हूँ मैं मेवाङी सरदारो को और नमन करता हूँ हमारे इतिहासकारो को जिन्होने हमे ऐसी देशभक्ती जगाने वाली घटनाऐ बतायी ।।
।। रोहित सिसोदिया जोधपुर ।।
Jay ho dada bapu maha rana pratap ane sisodiya vansh na kuldevi ane kulldev no….
jai mewar jai rajputana
Maharana Pratap Is my idol
garb hota h hme apne asp pr k hm maharana ki family se belong krte hai bhaiyo garb se kho jay maharana pratap ki…..
jai maharana jai ho rajputana
Nice gk ….jai maharana .jai mewar
JAI MAHARANA PRATAPSINGH JAI RAJPUTANA
jai mewar jai maharana pratap rajputana
There is a mistake in Jagat Singh II’s biography. Shahjahan, or Khurram, came much before his time. It should be under Jagat Singh I.
Jai MAHARANA PRATAP…….
Jai Rajputana
Jay Maharana pratapsingh sat sat naman he Sab veero ne jay mevar Jay Rajputana
Prtap is a very good man kisne muglo ki adhinta saweekar nii ki thi