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What is Food Safety and Why Is It Important?

Introduction

Food is one of the most basic needs for the survival of humans. The nutrients we obtain from food give us the energy and nourishment we need to perform our everyday activities. Moreover, food also has a cultural significance and helps define a community’s identity. Food provides you with a variety of flavorful experiences. Hence, food safety is the responsibility of all participants in the food supply chain. You have an important role in food safety whether you are a food supplier, a food business owner, a manufacturer, or a customer.

Hence, in addition to enjoyment, everyone should have the right to food safety. This World Food Safety Day let us understand what exactly is Food Safety and why it is important.

What is Food Safety?

Food safety means how food is handled, prepared, and stored so as to minimize the danger of people getting sick from contaminated food.

Food safety is a worldwide issue that affects many aspects of daily life.

Food safety aims at preventing food from being contaminated. Food safety can be done in a variety of ways, including:

  • Cleaning and sanitizing all surfaces, equipment, and utensils properly.
  • Maintaining a high degree of personal hygiene, particularly when it comes to washing hands.
  • Considering temperature, atmosphere, and utensils while storing, cooling, and heating food.
  • Applying a proper pest control system.
  • Having a proper understanding of food allergies, food poisoning, and food intolerance.
importance of food safety
Credits: iStock

Why is Food Safety Important?

According to recent World Health Organization estimates, at least 600 million individuals across the globe get infected with foodborne diseases as a result of consuming contaminated food. Every year, at least 420,000 of these people lose their lives. As a result, economic development gets hampered and results in reduced production and increased medical costs.

Most of the food safety concerns are caused by pathogenic microorganisms such as bacteria, which cause food poisoning. They can stimulate watery diarrhoea, vomiting, stomach ache, and even paralyzing infections and chronic disorders, which can range from moderate to deadly. Food safety concerns have the potential to be fatal for both food industry owners and customers.

Foods that are simple to prepare and eat might quickly get contaminated. Perishable foods including eggs, poultry, fresh fruits, raw meat or deli meats, deli seafood salads, undercooked seafood, ground beef, raw sprouts, and raw milk products are just a few examples of foods that can cause common diseases. If preventative steps are not taken, these ingredients may get contaminated by intestinal pathogens such as bacteria, resulting in illness. Mentioned herewith are some of the important reasons why food safety is important:

importance of food safety
Credits: FoodDocs

1.) Avoid Food Poisoning

One of the most important objectives of food safety is to protect the consumers from foodborne infections or illnesses caused by consuming contaminated food. As a result of poor food safety, foodborne infections are a huge danger to food industries and harm people all over the world. However, you can ensure that the food you serve is safe and that the risk of infection is low by following correct food safety procedures.

2.) Reduce Food Wastage

Food items that are found to be contaminated to eat must be discarded. A food firm must reduce waste by employing adequate food safety standards. Food safety management systems are also designed to detect and prevent food damage even before they reach the manufacturing house, which might result in additional waste if processed further.

3.) Better Lifestyle

Consumer productivity is impacted by any foodborne illness. Although consumers will be able to operate normally once infected, in severe situations, they may require hospitalization. These incidences cause major disruptions in daily routines. However, they can be avoided by adopting correct food safety procedures in both the food production units as well as at home.

4.) Environment-friendly Food Production techniques

Food production techniques that safeguard both the customer and the environment are part of good food safety measures. Food safety regulation regulates practices such as minimizing synthetic fertilizers that can leak into food. Furthermore, food safety measures involve the provision of safe drinking water as well as the reduction of air, sewage, and other environmental contaminants that have a significant impact on the ecosystem.

5.) Globalization of Safe Food

All food safety regulations are intended to protect customers from foodborne illnesses. Following these food safety standards ensures that your products are as competitive as possible, particularly in the fast-paced globalization of the food sector. Effective food safety management systems help in developing a bigger distribution channel for your food business.

Conclusion

In the food safety concept, each member of the food supply chain has a duty to perform. In the process, all jobs are critical and useful. Your function cannot be replaced, whether you are a food company owner, a government employee, or a customer. Everyone is responsible for food safety. Moreover, by following proper food safety and hygiene measures, the food items are protected from contamination. It ensures that the food produced by a food company is safe for people to eat.

 

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माटी बचाने के लिए सद्गुरु निकले बाइक पर, पहुंचे उदयपुर

ईशा फाउंडेशन के सद्गुरु, यानि जग्गी वासुदेव बुधवार को उदयपुर शहर पहुंचे। शहर में उनका ज़ोरों-शोरों से स्वागत किया गया। मेवाड़ पूर्व राजपरिवार के सदस्य लक्ष्यराज सिंह जी ने सिटी पैलेस में सद्गुरु जी का भाव विभोर अभिनन्दन किया। दरबार हॉल में दोनों के बीच संवाद भी हुआ। सद्गुरु माटी बचाने के लिए 100 दिन की 30000 किमी यात्रा मिट्टी बचाओ अभियान (जर्नी टू सेव सॉइल) के तहत बाइक पर निकले।

सद्गुरु भविष्य में मिट्टी संकट के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए 25 देशों से गुजरते हुए अंतिम चरण में गुजरात के रास्ते भारत पहुंचे। उदयपुर से राजस्थान में उनका प्रवेश हुआ। इस अभियान के तहत वे दुनिया का ध्यान विलुप्त होती मिट्टी की ओर कर रहे हैं। लोगो को मिट्टी की सुरक्षा, पोषण और उसे बनाये रखने के लिए निति की मांग करने के लिए प्रेरित कर रहे है ताकि 193 देशों में मिट्टी की जैविक सामग्री को कम से कम 3-6% तक बढ़ाने और बनाये रखने की दिशा में नीतिगत बदलाव लाया जा सके।

लक्ष्यराज जी ने संवाद के दौरान पूछा की कोरोना के दो साल आपदा भरे थे, लोग आज भी मानसिक परेशानी में है, इससे कैसे उबर सकते है? सद्गुरु जी ने कहा की जो लोग इस महामारी में अपनों को खोकर मानसिक परेशानियों से जूझ रहे है, उन्हें नई सोच, नई ऊर्जा के साथ उनके सपनों को साकार करने के लिए फिर से उठ खड़ा होना होगा। यही जीवन की नई उमंग है। सवाल जवाब के चलते सद्गुरु जी ने ये भी कहा की वैश्विक स्तर पर बड़ी नीति लाकर ही परिस्थिति का संरक्षण किया जा सकता है। मिट्टी माताओं की माँ है और माटी को माँ मानकर मानवता के साथ इसे संरक्षित करना होगा। इसी से भावी पीढ़ी बेशुमार मुश्किलों से बच पाएगी।

सद्गुरु जी कौन है?
सद्गुरु का असली नाम सद्गुरु जग्गी वासुदेव है। उनके बचपन का नाम जगदीश है। सद्गुरु का जन्म 3 सितंबर 1957 को मैसूर, कर्नाटक में हुआ। जग्गी वासुदेव एक लेखक भी हैं जिन्होंने 100 से भी ज्यादा पुस्तकें लिखी है। इन्हें भारत सरकार की तरफ से 2017 में पद्म विभूषण अवार्ड से भी सम्मानित किया गया। जग्गी वासुदेव की एक लाभ रहित संस्था भी है जिसका नाम ईशा फाउंडेशन है। यह संस्था मानव सेवा तथा योग सिखाने का काम कर रही है। यह संस्था विश्व के कई देशों में काम करती है जिसमें प्रमुख रुप से अमेरिका, सिंगापुर, इंग्लैंड, लेबनान, और ऑस्ट्रेलिया में योग सिखाने का काम कर रही है।

सद्‌गुरु ने आपने अपने आश्रम में आदियोगी की इतनी विशाल मूर्ति बनवाई है। जो भी वहां जाता है, वह उस मूर्ति को देखकर अभिभूत हो जाता है। आदियोगी भगवान शिव की 112 फुट की प्रतिमा को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने दुनिया की सबसे बड़ी आवक्ष प्रतिमा के रूप में दर्ज किया है। इस बात की जानकारी गिनीज बुक ने अपनी वेबसाइट के जरिए साझा की है। ‘आदियोगी’ के नाम से बनी शिव की अर्धमूर्ति की ऊंचाई 112.4 फीट है, 24.99 मीटर चौड़ी और 147 फीट लंबी है।

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साहस और वीरता के प्रतीक – महाराणा प्रताप जयंती 2022

उदयपुर शहर योद्धाओं की भूमि है, जहां कई सारे वीरों का जन्म हुआ है। उन सब वीरों में से एक वीर महाराण प्रताप भी है जिन्होंने अपनी आखिरी सांस तक स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी। उनके प्रयास के कारण आज मेवाड़ नगरी एक स्वतंत्र भूमि है।

आज दिनांक 2 जून को हम महाराणा प्रताप जयंती के रूप में स्वतंत्रता का जश्न मनाएंगे। वीर प्रताप मेवाड़ के ऐसे हिंदू शासक, जिन्हें भारत के राजपूत शासकों में बहादुरी का सबसे अच्छा उदाहरण माना जाता है और जिनसे सभी मेवाड़ लोग प्रेरित होते हैं। महाराणा प्रताप जयंती प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है।

हिंदू पंचांग के अनुसार वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का जन्म विक्रम संवत् 1597, ज्येष्ठ माह शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि को हुआ था। और इस साल, अंग्रेज़ी कैलेंडर के अनुसार, यह तिथि 2 जून 2022, गुरुवार को है। महाराणा प्रताप ने अपनी शिक्षा प्राप्त कर बहुत कम उम्र में हथियारों और उनके उपयोग के कौशल में महारत हासिल की। उन्होंने इस दौरान घुड़सवारी भी सीखी।

उनके पिता महाराणा उदय सिंह द्वितीय और माता रानी जयवंता बाई थीं। वे 25 भाइयों और 20 बहनों में सबसे बड़े थे और मेवाड़ के 54वें शासक थे। वे सिसोदिया राजपूत वंश के थे। 17 साल की उम्र में उनका विवाह राजकुमारी अजबदे ​​से हुआ था।

maharana pratap jayanti 2022

Credits: IndiaToday

महाराणा प्रताप में बचपन से ही वह जुनून था जो एक क्षत्रिय राजा में होना चाहिए। उन्होंने मुगल बादशाह अकबर की गुलामी करना नहीं स्वीकार किया। इसके लिए उन्होंने कई सालों तक बहुत संघर्ष किया। राजस्थान के कई परिवार अकबर की शक्ति के आगे घुटने टेक चुके थे, किन्तु महाराणा प्रताप अपने वंश को कायम रखने के लिये संघर्ष करते रहे और अकबर के सामने आत्मसर्मपण नहीं किया जंगल-जंगल भटकते हुए तृण-मूल व घास-पात की रोटियों में गुजर-बसर कर पत्नी व बच्चे को विकराल परिस्थितियों में अपने साथ रखते हुए भी उन्होंने कभी धैर्य नहीं खोया।

1568 में, जब महाराणा सिर्फ 27 वर्ष के थे, मुगल सम्राट अकबर ने चित्तौड़ पर विजय प्राप्त की। महाराणा उदय सिंह, उनके पिता, ने चित्तौड़ छोड़ने का फैसला किया और गोगुंदा चले गए। इसे अवसर मानकर उनके सौतेले भाई जगमल ने गद्दी छीन ली। जब जगमल मामलों का प्रबंधन करने में असमर्थ था तो वह महाराणा प्रताप से बदला लेने के विचार के साथ अकबर की सेना में शामिल हो गया।

महाराणा प्रताप को अपने जीवन में कई संघर्षों का सामना करना पड़ा। वे जीवन भर अकबर से लड़ते रहे। अकबर ने महाराणा प्रताप से जीतने के लिए कई तरह के प्रयास किए लेकिन वह हमेशा असफल रहा।

हल्दी घाटी युद्ध

हल्दीघाटी युद्ध भारतीय इतिहास में एक ऐतिहासिक घटना है, राजपूत और मुगल राज्यों के वार्षिक में। यह वह लड़ाई थी जिसमें महाराणा प्रताप के प्रिय घोड़े चेतक ने कई बहादुर चालें निभाईं, लेकिन अंत में कुछ गंभीर चोटों के कारण उसकी मृत्यु हो गई ।

इस लड़ाई में  प्रताप को आसपास के क्षेत्रों की भील जनजातियों का भी समर्थन प्राप्त था। महाराणा प्रताप के सबसे प्रिय और प्रसिद्ध नीलवर्ण ईरानी मूल के घोड़े का नाम चेतक था। युद्ध में बुरी तरह घायल हो जाने पर भी महाराणा प्रताप को सुरक्षित रणभूमि से निकाल लाने में सफल वह एक बरसाती नाला उलांघ कर अन्ततः वीरगति को प्राप्त हुआ।

इस लड़ाई में भील जनजाति के महान योगदान को आज तक याद किया जाता है और उन्हें उनके किये गए योगदान के लिए मेवाड़ शासन के राजपूतों द्वारा सम्मान दिया जाता है। इस युद्ध का मुगल सेना पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। इस लड़ाई को मुगल बादशाहों पर जीत का पहला मील का पत्थर माना जाता है।

राजपुताना के इतिहास में एक ऐतिहासिक घटना हल्दीघाटी की लड़ाई केवल चार घंटे तक चली। इस छोटी सी अवधि में प्रताप के आदमियों ने मैदान पर कई बहादुर कारनामे किए। इस युद्ध में मेवाड़ के वीर महाराणा प्रताप विजय हुए थे, जैसे ही साम्राज्य का ध्यान कहीं और स्थानांतरित हुआ, प्रताप और उनकी सेना बाहर आ गई और अपने प्रभुत्व के पश्चिमी क्षेत्रों को हटा लिया। यह युद्ध तो केवल एक दिन चला परन्तु इसमें 17,000 लोग मारे गए। मेवाड़ को जीतने के लिये अकबर ने सभी प्रयास किये किन्तु विफल रहा।

घोड़ा चेतक

महाराणा प्रताप की वीरता के साथ साथ उनके घोड़े चेतक की वीरता भी विश्व विख्यात है। चेतक बहुत ही समझदार और वीर घोड़ा था जिसने अपनी जान दांव पर लगाकर 26 फुट गहरे दरिया से कूदकर महाराणा प्रताप की रक्षा की थी। हल्दीघाटी में आज भी चेतक का मंदिर बना हुआ है। युद्ध में चेतक ने अपनी अद्वितीय स्वामिभक्ति, बुद्धिमत्ता एवं वीरता का परिचय दिया था।

एक ऐसे वीर की धरती पर जन्म लेना हम सभी के लिए गौरव और सम्मान की बात है। महाराणा प्रताप संयम, दृढ़ता, एकाग्रता, और वीरता के प्रतीक हैं। अपने परिवार और अपनी धरती पर जब भी बात आती, उन्होंने कभी भी अपने पैर पीछे नहीं किए। महाराणा प्रताप जाते हुए हम सभी को ये ही सिखा कर गए हैं की जब बात हमारे वतन की हो, तब हमें एक जुट होकर दुश्मन और परेशानी का सामना करना चाहिए।

आज के इस शुभ अवसर को हम इसी साहस, धैर्य, और सम्मान की मूर्ति, वीर शिरोमणि और दृढ संकल्पी महाराणा प्रताप की गौरव गाथा गाते हुए हर्षोल्लास से मनाते हैं।

 

 

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मजबूत बनेगा उदयपुर, इसके कई सारे प्रोजेक्टस होंगे पुरे।

उदयपुर अब मज़बूत बनने वाला है, साथ ही ख़ुशी और समृद्धि भी बढ़ने वाली है। असल में उदयपुर में कुछ प्रोजेक्ट थे, कई वक्त से कई सारी जगहो पर काम चल रहा है जो उदयपुर की दुर्दशा को बदलने वाले है। कुछ प्रोजेक्ट्स पर तेजी से अभी भी काम चल रहा है। उदयपुर शहर की पहचान ही पर्यटन के लिए की जाती है। यहाँ तक कि कोरोना काल तक में भी पर्यटकों ने यहाँ की सैर करना नहीं छोड़ा।

उदयपुर स्थित कुम्हारों का भट्टा और सेवाश्रम फ्लाईओवर का काम पूरा होगा, इसके साथ ही अहमदबाद हाईवे की तरफ ग्रेट सेपरेटर, इंटरनेशनल फ्लाइटे भी शुरू होगी। रनवे का काम भी पूरा हो चुका है। गुलाब बाग में बर्ड पार्क बन चुका है और ट्रैन भी चलना शुरू होने वाली है। केवड़े की नाल में बोटेनिकल पार्क, माछला मगरा में लव कुश वाटिका, कालका माता नर्सरी में प्रदेश का पहला एग्रो फारेस्ट रिसर्च सेंटर जो आदिवासी ग्रामीणों की कमाई और वन क्षेत्र बढ़ाने में उपयोगी है, सभी का काम पूरा होने में है। अहमदाबाद उदयपुर ब्रॉडगेज का काम भी पूरा हो चुका है। यह रेलमार्ग उदयपुर से अहमदाबाद के जरिये दक्षिण भारत के कन्याकुमारी तक इसकी पहुँच है।

उदयपुर पर्यटन विभाग की उपनिदेशक शिखा सक्सेना बताती है की उदयपुर में हर साल 10 लाख से भी ज्यादा देशी पर्यटक आते है अगर ट्रैन शुरू हो जाएगी तो केरल, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र आदि के पर्यटकों की संख्या बढ़ जाएगी। उदयपुर के लिए अंतर्राष्ट्रीय उड़ाने कामगारों के खाड़ी देशों में आने जाने के लिए और टूरिस्ट संख्या में इज़ाफ़े के लिए काफी फायदेमंद साबित होगी।

उदयपुर में पुलिस का दूसरा ट्रेनिंग सेंटर बनने का भी काम चल रहा है, जहां 500 से भी अधिक जवान प्रशिक्षण ले सकेंगे। साथ ही शहर के महाराणा प्रताप खेलगांव में एथलीटों के लिए 400 मीटर का पहला सिंथेटिक ट्रैक बनेगा, कानपुर खेड़ा में प्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा क्रिकेट स्टेडियम बनाने के लिए लेवलीकरण का 90% काम पूरा हो चुका है। खेलगांव में ही 5 हजार क्षमता वाला मल्टी स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स इस साल के आखिर तक मिल जाएगा। यहीं पर 25 और 50 मीटर की शूटिंग रेंज बनाने के लिए बजट जारी हो चुका है।

पर्यटक आंकड़े-

रिकॉर्ड 85000 पर्यटक अप्रैल में उदयपुर सैर करने आए थे जबकि अप्रैल तो ऑफ सीजन होता है।
100580 पर्यटक अगस्त 2021 में उदयपुर आए जो हर साल अगस्त मास से 35-50% ज्यादा रहा है।
अक्टूबर नवंबर और दिसंबर 2021 में 4.55 लाख पर्यटक आए। यह आंकड़ा पूरे साल आने वाले कुल देसी पर्यटक का लगभग आधा था।
दिसंबर महीने में आंकड़ा 1.80 लाख तक पहुंचा।

कई शहरों में से उदयपुर अव्वल –
1. मार्बल इंडस्ट्री- उदयपुर शहर में एशिया की सबसे बड़ी मार्बल- ग्रेनाइट मंडी है, यहां पर कोटा, राजसमंद, मकराना, जालोर, किशनगढ़, चित्तौडगढ़ आदि से मार्बल आता है। यहां से ग्रीन-सफ़ेद गुलाबी मार्बल भारत सहित पड़ोसी देश बांग्लादेश,श्रीलंका, नेपाल, भूटान, चीन सहित अन्य कई 30 देशों में जाता है। इसकी वजह से 25000 से ज्यादा श्रमिकों को रोजगार मिला है और इसका 5000 करोड़ रुपए का सालाना टर्नओवर है।

2. खनिज सम्पदा- हिंदुस्तान जिंक भारत की सबसे बड़ी व दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी लीड माइनर है। यहां पर आरक्षित खनिज 288 मिलियन मीट्रिक टन है। चांदी उत्पादन क्षमता 800 मीट्रिक टन, जस्ता 890000 लाख व सीसा 205000 मीट्रिक टन है। प्राथमिक जस्ता उद्योग में पुरे देश में हमारी 78 प्रतिशत तक की भागीदारी है। मार्च 2022 में 2481 करोड़ रुपए शुद्ध लाभ था और देश में सर्वाधिक चांदी का उत्पादन हुआ है जो 800 मीट्रिक टन है।

3. वन उपज- शहर में हरियाली जंगल इलाका भी काफी फैला हुआ है। 17724 वर्ग किमी में फैले जिले के 23% यानी 2753 हिस्सों में जंगल है, जो प्रदेश में सर्वाधिक है। संभाग के प्रतापगढ़ जिले में 1033 वर्ग किमी जंगल के साथ दूसरे स्थान पर है। चित्तौड़, बांसवाड़ा, राजसमंद व डूंगरपुर में भी जंगल है।

4. मेडिकल हब- प्रदेश में सबसे ज्यादा डॉक्टर उदयपुर में ही है। यहाँ सबसे ज्यादा 6 मेडिकल कॉलेज है। उदयपुर में कुल 2500 डॉक्टर और 10000 नर्स सहित 40000 लोग हेल्थ सेक्टर में जुड़े है। यहां पर एमबीबीएस की 1100 सीटें है, पीजी की 600 सीटे है। मेडिकल एजुकेशन हब 35000 करोड़ रुपए का है। प्राइवेट अस्पतालों का कारोबार कुल 1500 करोड़ रुपए का है।

5. शादी समारोह- शहर में डेस्टिनेशन वेडिंग का काफी प्रचलन है इसे 18 पहले रवीना टंडन ने उदयपुर में शादी करके इसका चलन शुरू किया था, उसके बाद से इसमें काफी उन्नति हो रही है। यहां पर अब सालभर में 500 से भी ज्यादा डेस्टिनेशन वेडिंग हो रही है। यहां पर कई सारे शाही विवाह भी हो रहे है। होटलों में 6-6 माह पहले से एडवान्स बूकिंग हो जाती है। इसका 1100 करोड़ रुपए का टर्नओवर होता है। यहां शादियों में 50 लाख से एक करोड़ का खर्च होता है।

6. खेल भूमि- शहर के कई सारे खिलाड़ी भी अपना दम दिखा रहे है। सोनल कलाल राजस्थान की पहली महिला है जिसका चयन इंडियन-ए-टीम में हुआ। इसके साथ ही पुष्पेंद्र, मानवी सोनी, गौरव साहू और आत्मिक गुप्ता ने स्वर्ण और रजत पाकर देश का मान बढ़ाया है।

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गुलाब बाग में फिर से शुरू होगी ट्रैन

उदयपुर स्थित गुलाब बाग में बर्ड पार्क बनने के बाद अब 15 अगस्त से फिर ट्रैन चलना शुरू हो जाएंगी। ये अरावली एक्सप्रेस ट्रैन 6 साल बाद फिर से चलना शुरू होगी। यहां पर ट्रैक बिछना शुरू हो चुका है। इस ट्रैन में दो डिब्बे होंगे, यह मिनी ट्रैन बच्चों और पर्यटकों को धीमी रफ़्तार के साथ पुरे गुलाब बाग घुमाएगी। इसके साथ ही बर्ड पार्क स्थित परिंदो को भी निहार सकेंगे। अभी इसका लगभग 80 फिसदी काम पूरा हो चुका है। ट्रैन के लिए 2665 मीटर (2.66 किमी ) की ट्रैक बिछेगी जिसका कार्य जुलाई तक पूरा होने की संभावना है।

नगर निगम की समिति के अध्यक्ष मनोहर चौधरी ने बताया कि अभी गिट्टी बिछाई जा रही है। इस बार कार्य तकनिकी विशषज्ञों की देख रेख में किया जा रहा है ताकि ट्रैन पहले की तरह बार-बार पटरी से न उतरे। गुलाब बाग की मिट्टी काली और चिकनी होने की वजह से ट्रैन का पटरियों से उतरने का खतरा बना रहता था। इस बार पुरे ट्रैक में 3-3 फिट अंदर तक खोदकर कंक्रीट वाली विशेष मिटटी डाली गई है। ट्रैन का 15 अगस्त तक शुरू होने की पूरी सम्भावना है। गत 12 मई को गुलाब बाग में बर्ड पार्क का लोकार्पण हुआ था।

3 साल पहले टेंडर
नगर निगम के पिछले बोर्ड ने करीब तीन साल पहले इसके लिए टेंडर किये थे। इसका रूट बदलना था क्योंकि इसमें करीब 200 पेड़ काटने की जरुरत पड़ रही थी। वर्क आर्डर निकला, लेकिन काम शुरू होने से पहले इसके लिए स्टे आर्डर आ गया था फिर बोर्ड ने पुराने ट्रैक पर ही ट्रैन चलाने का निर्णय लिया। थोड़े समय बाद कोरोना आ गया और लॉक डाउन लगने की वजह से कार्य में रुकावट आ गई थी इस वजह से कार्य देरी से प्रारम्भ हुआ।

ट्रैक की लम्बाई
ट्रैक की लम्बाई 165 मीटर बढ़ेगी। सरस्वती लाइब्रेरी के पास पुराना लव कुश स्टेशन है इसके साथ ही समोर बाग की ओर अभी बंद पड़े गेट के पास नया स्टेशन बनेगा। ट्रैन कमल तलाई के पास अमरूदों की बाड़ी से समोर बाग स्टेशन जाएगी फिर कमल तलाई होते हुए पुराने वाले ट्रैक से बर्ड पार्क हो कर लव कुश स्टेशन जाएगी। ट्रैन के साथ बोटिंग के लिए भी नगर निगम ने 26 लाख दर से शिवा कोर्परेशन को 20 साल का ठेका दिया है।

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1993-2015 तक संघर्ष उदयपुर के साथ, झील प्राधिकरण जयपुर में क्यों?

पूरी दुनिया में मशहूर उदयपुर नगर झीलों के लिए सुप्रसिद्ध शहर हैं। यहाँ कई सारी झीलें स्थित हैं, इसलिए इसे झीलों की नगरी भी कहा जाता है। यहां पर फतेहसागर, पिछोला, स्वरुपसागर, कुमहारी तालाब, दूधतलाई, गोवर्धन सागर, रंगसागर, उदयसागर, रूपसागर, बड़ी, जयसमन्द, राजसमंद जैसी आदि झीलें हैं जिनके आस-पास ही पूरा नगर बसा हैं। ये झीलें कई शताब्दियों से उदयपुर की जीवनरेखा हैं, जो एक-दूसरें से जुड़ी हुई हैं।

अगर किसी प्रदेश में इतनी सारी झीले हैं, तो उसके संरक्षण व विकास के लिए प्राधिकरण भी होना जरुरी है। उदयपुर संभाग में प्रदेश की सबसे ज्यादा 35 झील-जलाशय है। 1993-1994 में करीब 29 साल पहले उदयपुर से ही झील संरक्षण और प्राधिकरण की मांग उठी थी जिसकी स्थापना भी उदयपुर में ही होनी थी और ड्राफ्ट भी माँगा गया था। 1996 में प्रदेश सरकार की एडमिनिस्ट्रेटिव एंड रिफार्म कमिटी ने इस ड्राफ्ट को स्वीकार किया, लेकिन प्राधिकरण की स्थापना नहीं हुई।  हालाँकि यह मामला हाई कोर्ट तक भी पहुंचा और 2007 में झील विकास के प्राधिकरण की स्थापना के निर्देश भी दिए। इसकी लम्बी लड़ाई के बाद 2015 में राजस्थान झील विकास प्राधिकरण अस्तित्व में आया लेकिन इसका मुख्यालय तो जयपुर में खोल दिया जबकि जयपुर संभाग में तो केवल 8 झीले-जलाशय ही हैं। हालाँकि इस प्राधिकरण के अधिनियम के ड्राफ्ट में साफ़-साफ़ उल्लेख है कि मुख्यालय किसी और जिले में भी खोला जा सकता है। 

उदयपुर से जयपुर की सड़क मार्ग दूरी करीब 400 किमी है

उदयपुर से जयपुर की सड़क मार्ग दूरी करीब 400 किमी हैंऐसे में प्राधिकरण जयपुर होने की वजह से उदयपुर की झीलों पर इनकी नजऱ नहीं रहेगी। गन्दगी-बदहाली, मलिनता, दुर्गंंध, अतिक्रमण, अवैध गतिविधि और अवैध निर्माण से दम तोड़ रहे और ख़राब दुर्दशा का यही बड़ा कारण है इन पर प्राधिकरण बने तो इस पर काफी हद तक अंकुश लग जाएगा। उदयपुर में जलाशयों के प्राधिकरण व संरक्षण-संवर्धन का काम कलेक्टर के हाथों में हैं पर कलेक्टर के पास अन्य गतिविधियां होने की वजह से उनका उतना फोकस नहीं है जितना होना चाहिए।

प्रमुख 85 झीलों के जलाशय कुछ इस प्रकार है- 

  • उदयपुर-35
  • कोटा-14
  • अजमेर-12 
  • जयपुर-8 
  • भरतपुर-6 
  • जोधपुर-6
  • बीकानेर-4  

उदयपुर में क्यों होना चाहिए प्राधिकरण ?

प्रदेश के सातो संभाग में कुल 85 प्रमुख झीले-जलाशय हैं। इनमे से सबसे ज्यादा 41 प्रतिशत झीले उदयपुर संभाग में है बाकि 59 प्रतिशत प्रदेश के 6 संभागो में है। अधिकतर बड़े-बड़े बांध भी उदयपुर में है और बन भी रहे हैं। सबसे ज्यादा जरुरत भी यही है क्योंकि यहाँ का पानी जोधपुर और जयपुर तक पहुंचने की तैयारी में है, इसका मतलब राजस्थान के आधे से ज्यादा आबादी को पानी उदयपुर संभाग ही पहुंचाता है। ज्यादा झीले है तो उसकी रखरखाव की भी जरुरत ज्यादा ही होती है।  उदयपुर से जयपुर की दुरी करीब 400 किमी की है, अगर कुछ शिकायत है तो इसकी शिकायत लेकर जयपुर जाना मुश्किल है और ना ही इस प्राधिकरण के मुखिया झील जलाशयों की दुर्दशा देखने इतने दूर से आते है। 

 

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Bhartiya Lok Kala Mandal | Details, Timings and Charges

Bhartiya Lok Kala Mandal: A cultural institute dedicated towards preserving India’s artistic legacy. This institute strives to raise cultural awareness among individuals, encourage persons interested in performing any Indian art form, display items in a museum, hold numerous events, and much more.

History of Lok Kala Mandal

Padma Shri Devi Lal Samar founded the Bhartiya Lok Kala Mandal in the year 1952 to restore the regional folk culture in Rajasthan, Madhya Pradesh, Gujarat, and other areas. This institute was created to explore folk art forms and unearth them to make them visually available to those interested in learning art. This institute has also received international and national recognition for its puppet shows and other dance performances.

Key Highlights of Bhartiya Lok Kala Mandal

1.) Museum

bhartiya lok kala mandal museum udaipur

Credits: www.lokkalamandal.com

Bhartiya Lok Kala Museum is an innovative place that deserves to be seen. Over the past 44 years, this Museum has been displaying rural dresses, puppets, decorations, masks, folk musical instruments, dolls, paintings, folk deities, wall sculptures, ceremonial pots, woodwork artwork, and henna patterns.

2.) Cultural Dance Performances

Cultural Dance Performaces at Bhartiya Lok Kala Mandal

Credits: www.patrika.com

Every evening, a folk show is held in the studio theatre, featuring multiple traditional dance performances including Garba, Dandiya, Ghoomar, and others. These performances are made by highly experienced dancers. Moreover, it is a great venue to teach youngsters about local culture. It is, in some ways, a true celebration of Rajasthan’s rich cultural legacy; the folk singers and lively dancers exhibit the actual folk culture of Rajasthan to the audience.

3.) The Lok Kala Mandal Research Centre

This centre initiates research on diverse folk art traditions that are recorded in audio and video form for educational purposes.

4.) Institute for Rural Communication

This institute assists rural communities in developing rural connection lines and trains them on how to communicate via media.

5.) Govind Puppet Performing Centre

 

lok kala mandal govind puppet theatre

Credits: www.lokkalamandal.com

This Centre is dedicated to conducting puppet research and experimenting with various puppet show genres. Puppet performances are said to have originated over 2000 years ago, and The Lok Kala Mandal guarantees that one of the world’s oldest art forms is maintained and displayed at a global level.

Besides the above mentioned highlights, The Bhartiya Lok Kala Mandal also provides puppetry training on a regular basis to educate children, teachers, and other puppet admirers. Folk dance training is also offered on a regular basis at the centre where the subject experts teach traditional and tribal dances and music to young people, especially women, in order to preserve these art forms. These efforts help this establishment in sustaining puppetry as an art form for future generations.

Reasons behind creating Bhartiya Lok Kala Mandal

Rajasthan’s Mewar area is renowned for its diverse culture and art. Its local artefacts are, in fact, always praised and treasured around the world. Bhartiya Lok Kala Mandal took steps and created an institution to encourage local craftsmen and artists, as well as foster local arts and cultures, in order to preserve and grow this legacy.

Consequently, the Bhartiya Lok Kala Museum turned out to be a part of their objective, which was dedicated to showcasing Mewar’s exclusive and finest arts and crafts. The museum shows one-of-a-kind treasures amassed over the last 44 years and provides an overview of India’s conventional traditions.

training at bhartiya lok kala mandal

Credits: www.lokkalamandal.com

In a nutshell, the Bhartiya Lok Kala Mandal is the ideal destination to learn about and experience Rajasthani culture and art. Mentioned herewith are some of the major objectives of this institution:

  • Educating and providing information about India’s art and culture.
  • Organizing training sessions to teach the local art forms to the art lovers.
  • Popularizing traditional dance and culture.
  • Prioritizing the puppet shows.
  • Encouraging the Folk dancers and musicians.

Why should you come to Udaipur’s Bhartiya Lok Kala Mandal?

To watch the evening folk dance and puppet performance, as well as to learn about cultural items that are displayed in the Museum. You may also take assistance from this research section of the institute if you want to seek information about any Indian art form. If you are a dedicated learner, there are also learning institutions on the grounds that may assist you in teaching any art form, such as dancing or puppet shows.

lok kala mandal puppet show

Credits: www.yuvrajudaipurtaxi.com

Entry Fee of The Bhartiya Lok Kala Mandal

Entry Fees for Museum:
Rs.60/- for Indian Tourists
Rs.120/- for Foreign Tourists
Rs.25/- for students and Kids under 5 years.

Timings: 9:00 AM to 5:30 PM

Charges for Folk activities and Puppet Show:
Rs.120/- for Indian Tourists
Rs.180/- for Foreign Tourists
Rs.60/- for students and Kids under 5 years.

Timings: 12:00 PM to 1:00 PM, 6:00 PM to 7:00 PM, 7:15 PM to 8:15 PM

So, when in Udaipur, it becomes a must to visit this gem of a place.

 

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बारिश से पहले नहीं तैयार होगा सेवाश्रम का फ्लाईओवर

उदयपुर स्थित सेवाश्रम चौराहा का फ्लाईओवर अब तक तैयार नहीं हुआ है जिसका काम अप्रैल तक ख़त्म होने की सम्भावना थी। पर अब तक इसका बहुत काम बाकी है और कार्य की गति देख कर तो यह साफ-साफ पता चल रहा है कि यह काम बारिश से पहले नहीं हो सकता है। शहर की आधी ऊपर जनता यही होकर गुज़रती है, लेकिन काम के पूरा न होने की वजह से परेशान हो रही है। यहां के व्यापारी भी इसी उम्मीद में बैठे है की अब तक तो चौराहा का काम पूरा हो जाना चाहिए। पर हकीकत तो यही है की इस काम में बहुत समय लगना है। इस वजह से यहाँ आए दिन जाम लगने की परेशानी लगी रहती हैं।

यूआईटी सर्कल का 20 करोड़ का प्रोजेक्ट-

पिछले ही दिनों यूआईटी ने डिजिटल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) के लिए कार्य का ऑर्डर दिया है उसके बाद वहां का सर्वे शुरू कर दिया है। यूआईटी ने ज़ोर दिया है की देल्हीगेट स्थित जो फ्लाईओवर में पब्लिक यूटिलिटी की जो भी लाइन है, वो इस प्रोजेक्ट के बीच आ रही है उनको भी पूरा किया जाए ताकि बाद में जब कार्य शुरू हो तब समस्या नहीं आए। इस वजह से अभी सेवाश्रम का काम थोड़ा धीमा हो गया है। यूआईटी ने इस कार्य के लिए करीब 20 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। रोड की कुल लम्बाई 430 मीटर है और इसकी चौड़ाई 13.2 मीटर है और 5.5 मीटर इसकी ऊंचाई है। इस फर्म को यह रिपोर्ट 45 दिन में तैयार करके देनी हैं। युआईटी ने यह तर्क भी दिया है की पीएचडी की लाइनों की वजह से कई समस्याए आ रही है।

काम अप्रैल में पूरा होना था-
असल में इसका काम अप्रैल में पूरा होना था। यूआईटी के तकनीकी इंजीनियर यूटिलिटी सर्विस को इसके देरी होने का कारण बता रहे है। उनके सामने जलदाय विभाग की और से बीच में आ रही पाइप लाइनों को शिफ्ट करने के लिए राशि भी दे रहे है,यूआईटी ने तो काम पूरा करने की राशि भी देदी पर काम पूरा नहीं कर रहे है।

परेशानियाँ-
इस क्षेत्र से गुज़रने वाले और यहां रहने वाले लोगो को परेशानियाँ आ रही है। जाम में फंसने के अलावा जाम में वाहनों के धुंए से परेशान हो रहे हैं। यही नहीं जहां खुदाई हो रही है, वहां के लोग और वहां से गुज़रने वाले लोग दिनभर मिटटी के उड़ने से परशान हो रहे है।

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क्या उदयपुर शहर में भी आ गया है वीरप्पन ?

भारत की पुलिस को इस आदमी ने जितना दौड़ाया था, उतना शायद किसी ने नहीं दौड़ाया। वीरप्पन के नाम से प्रसिद्ध कूज मुनिस्वामी वीरप्पन दक्षिण भारत का कुख्यात चन्दन तस्कर था जो 1970 से पुलिस और फाॅर्स के लिए चुनौती बना रहा। चन्दन के हर पेड़ पर उसकी तिरछी नज़र रहती थी। 18 वर्ष की उम्र में वह एक अवैध रूप से शिकार करने वाले गिरोह का सदस्य बन गया जिसका एक वक्त चंदन तस्कर वीरप्पन के नाम से तमिलनाडु जंगल में ख़ौफ़ पसर जाया करता था जो 2004 में मारा गया। वीरप्पन के बाद जंगलों से ख़ौफ़ तो खत्म हो गया लेकिन तस्करी का खेल कई गुना बड़ा हो गया।

क्या कोई वीरप्पन हमारे शहर में भी आ गया है ?

उदयपुर शहर की विश्व प्रसिद्ध झील फतहसागर के किनारे बनी काले किवाड़ के आगे मेवाड़ दर्शन दीर्घा पार्क में आए दिन चन्दन के पेड़ के चोरी होने की ख़बरे आ रही थी। कला दीर्घा पार्क में चन्दन के कुल 66 पेड़ थे। चोर इसी जगह से कई पेड़ आधुनिक हथियारों से काटकर लेकर गए थे और कुछ पेड़ो पर आरी से निशान बनाकर चेतावनी भी दे गए थे की ये पेड़ काटकर भी ले जाएंगे और नतीजा यह था की चोर उसमे से कुछ पेड़ आखिरकार लेकर ही गए। कुछ पेड़ो को तो इतना तक काट दिया था की हल्का सा धक्का देते ही वे निचे गिर पड़ेंगे।

ये पेड़ वीरप्पन जैसे अनगिनत तस्करों को शरण दे रहे हैं। दरअसल चोर चन्दन के पके पेड़ लेकर जाते है, जानकर बताते है की चन्दन की खुशबू पेड़ की जड़ से लेकर ऊपर तक के 4-5 फीट तक के तने में रहती है। इसके लिए चोर पेड़ो के ऊपरी हिस्से को आसपास के पेड़ या जालियो से बाँध देते है। इसके बाद ज़मीन से चार से पांच फीट का हिस्सा काटकर अलग कर देते है। चोरो की नज़र अब कटे पेड़ो की जड़ो पर भी है इसलिए कई चबूतरों तक को तोड़ दिया गया है।

इस ख़बर के बाद चेते नगर निगम ने चन्दन के पेड़ को सुरक्षित करने के लिए करीब-करीब सभी पेड़ो के चारो और लोहे के एंगल लगा दिए है। नगर निगम इन पर भी ध्यान नहीं देता तो चंदन तस्कर सभी पेड़ो को गायब कर देंगे। चन्दन तस्करो की निगाहें तो अभी भी पेड़ पर जमी है। जिले में लगातार चन्दन के पेड़ घटते जा रहे है , क्या विभाग की और से चन्दन तस्करी रोकने के लिए और कड़े प्रकरण करने की आवश्यकता नहीं है?  क्या पार्क में चौकीदार बढ़ाने की जरुरत नहीं है ? क्या पार्क में सीसीटीवी कैमरे की जरुरत नहीं?

कितने साल में तैयार होता है एक पेड़ ?

  •  15 साल में तैयार होता है एक पेड़ ।
  • हर साल चंदन का तना बढ़ता है – 12 से.मी ।
  • 12 से 15 साल के पेड़ की ऊंचाई होती है – 5 फीट (तने का व्यास करीब 80 से.मी.) ।
  • 15 साल के पेड़ से मिलती है लकड़ी – 20 से 35 किलो (लसदार) ।
  • मौजूदा लकड़ी की कीमत 6000 से 12,000 रुपए प्रतिकिलो।( 6000 रुपए प्रतिकिलो के मान से 20 किलो लकड़ी की कीमत ही बाजार में 1 लाख 20 हजार रुपए होती है) ।
  • चंदन चार तरह का होता है सफेद, लाल, मयूर और नाग चंदन।

एक चन्दन के पेड़ की कीमत करीब 10 लाख होती है, करीब 10 पेड़ किसी को भी करोड़पति बना सकते है। सवाल हजारों पेड़ों की तस्करी का हो तो अंदाजा लगाइए कितनी बड़ी रकम का खेल होगा। ये धंधा इतने शातिर तरीके से किया जाता है कि इसमें सिर्फ छोटे मोहरे ही फंसते हैं। बड़े खिलाड़ी कानून के चंगुल से दूर रहते हैं। हालात नहीं सुधरे तो आशंका ये भी है कि अगले 15-20 साल में चन्दन के पेड़ की प्रजाति पूरी तरह खत्म हो सकती है।

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महीनों बाद उदयपुर में मिले 13 संक्रमित।

कोरोनावायरस सामान्य सर्दी से कोविड-19 तक श्वसन संक्रमण का कारण बनते हैं। हाल ही के वर्षों में कोरोनावायरस ने  कई प्रकोप पैदा किया है, जैसे कि गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम और मध्य पूर्व श्वसन सिंड्रोम। लेकिन इन वायरस ने उतने लोगों को प्रभावित नहीं किया है, जितना कोविड-19 ने किया है।

चीन के वूहान शहर से उत्पन्न होने वाला 2019 नोवेल कोरोनावायरस इसी समूह के वायरसों का एक उदाहरण है, जिसका संक्रमण सन् 2019-20 काल में शुरू हुआ था। WHO ने इसका नाम कोविड -19 नाम रखा।

उदयपुर जिले में कई महीनों बाद फिर शहर में एक्टिव केस आए हैं। रविवार को इनकी संख्या 10 थी, दूसरे दिन इनकी संख्या 3 थी, कुल इसके अभी 13 मरीज़ है। चिकित्सा एवं स्वास्थय विभाग के अनुसार कोरोना अब फिर से बढ़ने लगा है, रोज़ कोरोना के कई केस फिर से सामने आने लगे हैं।

तीन दिन से तो 3-3 मरीज रोज़ संक्रमित आ रहे हैं। 13 में से एक संक्रमित का उपचार अब अस्पताल में किया जा रहा है। बाकि के सभी अभी होम आइसोलेट हैं। गत 20 मई को भी 3 संक्रमित मिले थे। डॉ. दिनेश खराड़ी ने बताया था की कुल 187 नमूनों की जांच की गई, जिसमे से 3 संक्रमित शहरी क्षेत्र में मिले है।

अब तक कुल पॉजिटिव मरीजों की संख्या 74297 हो चुकी है, इनमे से 73514 लोग ठीक होकर डिस्चार्ज हो चुके है। फिलहाल होम आइसोलेशन और एक्टिव मरीजों की संख्या 8-8 है।कोरोना से 775 लोग काल का ग्रास बन चुके है। गत 17 मई तक 17 संक्रमित मिले थे, फिर 18 से 23 मई तक 6 दिनों में 13 मरीज मिले थे ऐसे में 1 से 23 मई तक 23 संक्रमित सामने आ चुके है। इस से पहले अप्रैल में 15 संक्रमित मिले थे।

कोरोना वायरस से पीडित जनो के लक्षण, अनावरण होने के 2 से 14 दिनो के बाद दिखाई देते हैं | यह लक्षण अधिकतर सौम्य होते है और सामन्य रूप मे इनकी उपेक्षा कि जाती है | कुछ लोगो के संक्रमित होने के बावजूद इनमे कोई लक्षण दिखाई नही देते है। कोई लक्षण ना दिखने पर भी ये संक्रमण हो सकते है।

कोरोना वायरस इंफेक्शन के लक्षण क्या हैं?
कोरोनावायरस की वजह से रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट यानी श्वसन तंत्र में हल्का इंफेक्शन हो जाता है जैसा कि आमतौर पर कॉमन कोल्ड यानी सर्दी-जुकाम में देखने को मिलता है। हालांकि इस बीमारी के लक्षण बेहद कॉमन हैं और कोई व्यक्ति कोरोना वायरस से पीड़ित न हो तब भी उसमें ऐसे लक्षण दिख सकते हैं। जैसे-

  • नाक बहना
  • सिर में तेज दर्द
  • सूखी खांसी
  • गले में खराश
  • उल्टी-दस्त
  • थकान – बदन दर्द
  • सांस लेने में तकलीफ
  • सूंघने की क्षमता
  • ब्रॉन्काइटिस
  • निमोनिया