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Festivals History and Culture

महाराणा काल में गणगौर की सवारी का दृश्य | How Gangaur was celebrated in ancient times

हमारे देश में त्यौहार, समय अनुसार मनाये जाते हैं। उदयपुर के लोग राजाओं-महाराजाओं के काल से ही उत्सव-जलसे बड़े धूम-धाम से मनाते आए हैं। उन्ही त्योहारों में से एक है, गणगौर। गणगौर का त्यौहार चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की तीज पर आता है। आज हम आपको लेकर चल रहे हैं इतिहास के पन्नो में। क्या आपने कभी सोचा है कि महाराणा काल में गणगौर जैसा त्यौहार, जो कि आज भी इतना रंगीन और खुशनुमा है, उस वक़्त कैसे मनाया जाता था? इतिहास का विस्तृत पेश करती हुई गाथा वीर विनोद से आभार सहित कुछ अंश इस जश्न के, हम आपसे प्रस्तुत कर रहे हैं।

18 शताब्दी अर्थात महाराणा सज्जन सिंह जी  के काल में गणगौर के इस त्यौहार का विस्तृत वर्णन कुछ इस प्रकार किया गया है- “नवीन वर्ष आरम्भ होते ही सभी ज्योतिष-गण उत्तम वस्त्र और आभूषणों से सुसज्जित होकर, महाराणा की सेवा में उपस्थित होते है तथा शुभकामनाओं के साथ महाराणा को नवीन पंचाग भेंट करते है। गणगौर इसके अगले दिन मनाया जाता है। गणगौर के दिन सभी स्त्रियाँ सुन्दर वस्त्र और आभूषण पहनकर बाग़-बावड़ियों में जाती है। महाराणा के आदेश पर राज्य भर में जश्न होता है। ये जश्न किसी धूम-धाम से कम नहीं होता।

दिन के ठीक तीन बजे पहला नगाड़ा बजता है, उसके बाद दूसरा और फिर तीसरे नगाड़े पर महाराणा घोड़े पर विराजमान होते हैं। एकलिंगगढ़ पर 21 तोपों की सलामी दी जाती है। बड़ी पोल से त्रिपोलिया घाट तक दोनों तरफ़ लकड़ी के बड़े खूंटे लगा दिए जाते है और उन पर रस्सियाँ बाँध दी जाती है। इन खूटों के आसपास पुलिस के जवान पहरा देते हैं। इन पर बाँधी गयी रस्सी के भीतर राजकीय अधिकारियों के अलावा अन्य व्यक्ति नहीं आ सकता है। जब महाराणा की सवारी महल से रवाना होती है तब सवारी के बाद सबसे आगे मेवाड़ के राजकीय निशान से चिन्हित हाथी चलते हैं, उनके पीछे के हाथियों पर सरदार, पासवान और अन्य अधिकारी होते है।

सवारी में जंगी घुड़सवारों के साथ साथ अँग्रेज़ अफ़सर भी शरीक होते है। विदेशी बाजा बजता हुआ निकलता है और उसके पीछे निकलते है सोने चाँदी के हौदे जो ख़ास हाथी पर कसे हुए होते है। इसके साथ ही राज्य के बड़े-बड़े प्रतिष्ठित लोग, उमराव, सरदार और चारण घोड़ों पर आते है। इस कारवाँ के पीछे जरी व सोने-चाँदी से सुसज्जित घोड़े रहते है।”

महाराणा की सवारी का दृश्य कुछ इस प्रकार होता है


“मधुर, सुरीला बाजा बजता रहता है, उसके पीछे महाराणा अच्छी पोशाक, ‘अमर शाही’, ‘आरसी शाही’ और ‘स्वरूप शाही’ पगड़ियों में से एक किस्म की पगड़ी, जामा और नाना प्रकार के हीरे मोतियों के आभूषणों को धारण किये और कमर बंध व ढाल लगाए हुए घोड़े पर विद्यमान रहते है।

महाराणा के पीछे दूसरे सरदार, जागीरदार, पासवान व जंगी सैनिक रहते है और सबसे पीछे हाथी चलते है। सवारी के दोनों तरफ छड़ीदारो की बुलंद आवाज़ और आगे वीरता के दोहो का गायन करने वाले ढोलियो की आवाजें सवारी के आनंद को दोगुना कर देती है। इसी ठाठ बाट के साथ महाराणा धीरे-धीरे त्रिपोलिया घाट पर पहुंचते हैं और वह घोड़े से उतर कर नाव पर सवार होते हैं। इनमें से एक नाव के ऊँचे गोखड़े पर लगभग दो फुट ऊंचा सिंहासन रहता है, उस पर चार खम्बों वाली लकड़ी की एक छतरी होती है। सिंहासन और छतरी ज़र्दोजी और ज़री से सुशोभित होती है।  सिंहासन के चारो तरफ, नीचे के तख्तो पर शानदार पोशाकों व गहनों से सज्जित सरदार, चारण व पासवान अपने दर्जे के मुताबिक बैठते है और कितने ही अन्य लोग आसपास खड़े रहते है। महाराणा के पद के नीचे के सभ्यगण उसी के समीप जुड़ी हुई नाव में सवार होते है। नाव की सवारी धीरे-धीरे दक्षिण की तरफ बढ़ती है और बड़ी पाल तक जाने के बाद फिर लौट कर त्रिपोलिया घाट पर आती है। दक्षिण के तरफ बढ़ते हुए आतिशबाज़ी चलाने का हुक्म दिया जाता है, तालाब के किनारों तथा कश्तियो पर से तरह-तरह की रंग-बिरंगी आतिशबाज़िया होती है। ये सब देखने में बहुत आनंद आता है।

इस अवसर पर बहुत से लोग सवारी को देखने दूर-दूर से आते है, क्योंकि उदयपुर के गणगौर के जलसे की दूसरे  राजपुतानों में बड़ी तारीफ़ होती है। तालाब के किनारे देखने वाले लोगो की बड़ी भीड़ रहती है, इतनी की भीतर घुसना भी बहुत कठिन हो जाता है। इसके बाद महल से गणगौर माता की सवारी निकलती है, जिस के साथ नाना प्रकार की सुन्दर पोशाकों और सोने-चाँदी के गहनों से सुसज्जित दासियो के झुंड साथ चलते है। एक स्त्री के सिर पर लगभग 3 फुट ऊंची, सोने चाँदी के गहनों से शोभायमान, लकड़ी की बनी हुई गणगौर माता की मूर्ति रखी होती है। सवारी के आगे और पीछे, सवारी के लाज़मी हाथी घोड़ों पर पंडित व ज्योतिष लोग विद्यमान रहते हैं।

त्रिपोलिया घाट पर सवारी के पहुंचते ही महाराणा अपने सिंहासन से खड़े होकर गणगौर माता को प्रणाम करते है, फिर गणगौर माता को फर्श युक्त वेदिका पर रखकर, पंडित व ज्योतिषी लोग पूजन करके महाराणा साहिब को पुनः देते है। इसके बाद दासियाँ गणगौर माता के दोनों तरफ बराबर खड़े हो कर, प्रणाम के तौर पर झुकती हुई, “लहुरे” (एक तरह का गाना) गाती है। यह जलसा देखने लायक होता है। यहाँ राज्य में लकड़ी की बनी गणगौर की बड़ी मूर्ति के अलावा मिट्टी की बनी हुई गणगौर और दूसरे भगवानों की छोटी मूर्तियां भी देखी जा सकती है। बाकी शहर में दूसरे भगवान और गणगौर की मूर्तियां साथ ही निकाली जाती है।

राजपूताना की कुल रियासतों में इस त्यौहार को एक बड़े उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। इस देश में ऐसी कहावत है कि दशहरा राजपूतों के लिए और गणगौर स्त्रियों के लिए बड़ा त्यौहार है। यहाँ महादेव को ईसर (ईश्वर) और पार्वती को गणगौर कहते हैं। फिर गणगौर माता को जिस तरह जुलुस के साथ लाते हैं, उसी तरह फिर से महल में पहुंचाया जाता है। इसके बाद उसी फर्श पर दसियों द्वारा घूमर नृत्य और गाना-बजाना होता है। स्थानीय निवासी लोग भी नावों में सवार होकर इस जलसे को देखने के लिए आते हैं। आखिर में महाराणा रूप घाट पर नाव से उतर कर तामजान में सवार हो महल में पधार जाते है जहां कीमती गलीचे- मखमल का फर्श, ज़रदोज़ी के शामियाने व सोने चाँदी से बने हुए सिंहासन व कुर्सियां इनका इंतजार कर रही होती है और इस तरह यह जलसा पूरे 4 या उससे भी ज़्यादा दिन के लिए इसी तरह चलता रहता है”

उपरोक्त दृश्य की परिकल्पना मात्र ही आनंदमय लगती है। उस ज़माने की बात ही कुछ और थी। उम्मीद है आपको ये सब पढ़कर अच्छा लगा होगा। हम आगे भी कुछ ऐसे त्योहारों के बारे में आपको बताएँगे। कैसी लगी आपको हमारी ये पेशकश, हमें कमेंट्स में लिखकर ज़रूर बताएं। तब तक के लिए खम्मा घणी।

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[Pictures] Mewar Festival – a lively Celebration

Mewar_Festival_2012_Gangaur

Colors of tradition spread out everywhere, Sparkling water of Pichola, Rajasthani women and girls elegantly dressed up, and beautifully decorated idols of Gangaur glittering in the beautiful light. Such was the charm of Mewar Festival at Gangaur Ghat. It felt as if everything around is tinted in rainbow – colorful and vibrant. As the folk tales say, these 16 days of Gangaur were the days when Parvati Ji stayed at her father’s home. These were the days of celebration, days to worship Gauri for a perfect husband and his well being. Today, Gauri Ji was given farewell amidst a big festival – the Mewar Festival.

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Mewar_Festival_2012_Gangaur_Udaipur

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Look of Mewar

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The celebration started with a procession, in which women carried the idols of Isar and Gangaur all the way from Clock Tower to the Gangaur Ghat. Then the Royal boat of Palace was taken out from Bansi Ghat to Gangaur Ghat which was the centre of attraction of the evening. Colorful boat in the glowing water of Pichola was truly worth watching. Then the artists showed various shades of culture in the cultural programme that followed.The Show started by the performance of renowned Maand Singer of Udaipur – “Maangi bai”; Tune of ‘Padharo Mahare Desh’ filled the air and traditional dance forms like ‘Ghoomar’ and ‘Kalbeliya’ took hold of the breath. On the whole, the whole festival served as an eye candy with its striking colors and glorious culture.

 

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The best decorated award were won by the Rajmali Samaj who won the first prize and an amount of Rs. 11000. The second was the Kahar Bhoi Samaj while Maru Kumawat Samaj bagged the third spot.

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I was so untouched from one of the best festivals of Rajasthan and that too purely dedicated to womenfolk. For those who are still untouched with its allure, UdaipurBlog have the best of pictures of this celebration. And for those who captured the view in their eyes, these photos will recall those amazing moments.

Photos By Mujtaba Rg & Yash Sharma