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स्वच्छ सर्वेक्षण 2018: नगर निगम ने खुद को दिये 1017/1400, आप कितने नंबर देंगे?

udaipur nagar nigam2014 में शुरू हुए स्वच्छ भारत अभियान में इस साल उदयपुर नगर निगम ने खुद को 1400 में से 1017 नंबर दिये है।पिछले साल देश भर में 310वे स्थान पर रहा उदयपुर, इस बार निगम उम्मीद कर रहा है कि रैंकिंग में ज़बरदस्त सुधार नज़र आएगा। ट्रांसपोर्ट एंड कलेक्शन और ओडीएफ़ के चलते इस बार रैंकिंग सुधरने की उम्मीद है। लेकिन आपको बता दें भले उदयपुर ओडीएफ़ ज़िला घोषित हो चूका हो लेकिन अभी भी कई घर ऐसे है जहाँ शोचालय तक नहीं बने है बावजूद इसके उसे ओडीएफ़ घोषित किया हुआ है। अब बात ये है कि निगम किस बेस पर खुद को ओडीएफ़ से जोड़कर नंबर दे रहा है जबकि हकीक़त कुछ और ही है! कचरा कलेक्शन का काम शुरू तो हो गया है लेकिन अभी भी प्रोसेसिंग और डिस्पोजल के प्लांट का लगना बाकी है। सनेट्री फील्ड साईट भी नहीं है।

odf udaipur
photo courtesy: udaipurtimes

खैर ये तो निगम की बात हो गई पर आप लोग भी उदयपुर नगर निगम को नंबर दे सकते है। बस आपको दिये गए इस लिंक को क्लिक करना है और वहाँ अपने आप को सिटिज़न फीडबैक वाले सेक्शन में रजिस्टर करवाना है। उसके बाद आपके सामने कुछ प्रश्न आएँगे उनके उत्तर देकर आप नगर निगम को फीडबैक दे सकते है। ये रही वो लिंक https://swachhsurvekshan2018.org/

लेकिन हम चाहते है कि आप कमेंट बॉक्स में इस विषय पर अपने विचार प्रकट करें ताकि हम आप सब मिलकर एक अच्छी बहस कर सकें। एक अच्छी बहस शायद हमारे शहर के लिये फ़ायदा कर जाए। 🙂

(ऊपर दिये गए फैक्ट्स राजस्थान पत्रिका और दैनिक भास्कर से लिये गए है।)

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Udaipur Speaks

धूल खाती आँखें सपने कैसे देखे?

बड़े-बुज़ुर्ग कहते है.. “सपने देखने चाहिए वो भी खुली आँखों से”, अब दिक्कत ये है, सपने देखने के लिए आँखें खोलो तो धूल चली जाती है। फिर करना ये पड़ता है कि चश्मा पहनकर मंजिले खोजनी पड़ती है। यही हाल है मेरा। सुबह फेसवाश लगा कर निकलो तो ऑफिस पहुँचते-पहुँचते फिर से चेहरे पर 2 इंच मोटी धूल और मिट्टी की परत जमा हो जाती है।

पर भाई किस की गलती निकाले ? धूल-मिट्टी है बैठी तो रहेगी नी…उड़ेगी ही, ट्रेवल ही करेगी, शायद ये भी वांडरर होती होगी तब ही। आजकल वैसे भी ट्रेंड में है ये सब और भाई टूरिस्ट सिटी में नहीं करेगी तो क्या गाँव-खेड़े में करेगी? तुम भी यार बात करते हो….

धूल भरी रोड

अच्छा हाँ… ये कार वाले ना मेरी परेशानी नहीं समझेंगे । ये तो मेरे जैसे उन दुःखी लोगो की कहानी है जो सुबह-सुबह मुँह धोकर बाइक-स्कूटी पर निकलते है और ऑफिस, दूकान, मुकाम पर पहुँचते है तो सुनने को मिलता है, “ कारे हांपड़ी ने नि आयो कई? कमु-कम मुंडो तो धोई ने आतो !!”

अब आप ही बताओ इंसान दुखी होगा के नी… ये कार वाले तो शीशे बंद कर देते है । हम क्या बंद करे..?

सोचा प्रशासन से मदद मांगता हूँ, पर वो हर बार एक ही चीज़ देते है.. भरोसा। अब ये समझ नहीं आता इस भरोसे का इस्तेमाल करूँ तो करूँ कैसे ? अब कोई दूसरा मुझसे पूछता है तो मैं भी उसे प्रशासन का दिया हुआ भरोसा फॉरवर्ड कर देता हूँ … शादी में आए कपड़ो की तरह।

हेलमेट पहनते है तब मुँह तो बच जाता है पर गर्दन के नीचे ऐसा लगता जैसे अभी-अभी अखाड़े से लौटे हो। बहुत दुःख है भाई जीवन में…

धूल भरी सड़के
Source : Dainik Bhaskar

अगर आपको भी मेरी प्रॉब्लम अपनी प्रॉब्लम लगती है और आपके पास कोई इससे जुड़ा कोई सुझाव हो तो बताओ भाई, कमेंट्स करो, कैसे निपटे इन सड़कों पर उड़ती धूल-मिट्टी से? क्योंकि अब मेरे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है।

व्हाट्सएप पर कृपा वाले मेसेज फॉरवर्ड करने से कुछ कृपा नहीं आने वाली साथियों, ऐसे मेसेज फॉरवर्ड करोगे तो शायद उदयपुर प्रशासन तक बात पहुँच जाए, और हम जैसो पर दया आ जाए।

 

– एक दुःखी राहगीर