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Fairs and Festivals Everyone Should Attend in Chittorgarh

Not just the locals but even tourists are too enticed by the glory of Historical Chittorgarh. The charm and the splendor of the city have attracted people from other parts of the country as well. Although, the city of Chittor is magnificent whenever you visit it, there are some parts of the year in particular when one can witness the city in its complete glamour. It is when Chittor is celebrating the heritage it got from its ancestors i.e. festivals.

Here are the major fairs, festivals, and processions that you need to attend while you are in Chittorgarh.

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Maharana Pratap Jayanti

Source:

Maharana Pratap was a warrior and an epitome of bravery and heroism. He was the true patriot who initiated the first war of independence. Throughout his life, he kept fighting from enemies to save his motherland and his people. Pratap was born on May 9, 1540, in Kumbhalgarh and this very day is celebrated every year in Chittorgarh to respect and honor his patriotism, pride, valor, and bravery. The birth anniversary of Maharana is celebrated as a full-fledged festival in Chittorgarh every year on the 3rd day of Jyestha Shukla phase.

In his remembrance, several puja and processions take place on Maharana Pratap Jayanti every year. Several cultural programs and debates are also held.

 

Meera Mahotsav

Source: culturenorthindia

Meera Bai is very popular in the entire country for her faith and love for Lord Krishna. She was the foremost exponents of the Prema Bhakti (divine love) which also inspired her to become a poet. Meera Bai was a Rajput princess born in about 1498 in Metra, Rajasthan. Her father Ratan Singh was the youngest son of Rao Duda, ruler of Merta and founder of Jodhpur. Meera Bai was married to the ruler of Chittor, Bhoj Raj.

Every year, on Meera’s birth anniversary which is the Sharad Poornima, a 3-day celebration is organized by Meera Smrithi Sansathan (Meera Memorial Trust) along with the Chittorgarh district officials. Along with puja, discussions, dances, and fireworks, many famous musicians and singers get together on this day to sing bhajans in this celebration.

 

Teej

Source: Rajasthan

Teej is one of the major festivals in not just Chittor but entire Mewar region. It is dedicated to goddess Parvati, commemorating her union with Lord Shiva. On this day, Goddess Parvati is worshipped by her devotees. It also marks the advent of monsoon month of Shravan (August).

It is also known for being the festival of swings where swings are hung from the trees and decorated with flowers and other objects and young girls and women dressed in green clothes who sing songs in celebrations of the advent of monsoons.

 

Gangaur

Source: Jan Prahari Express

Gangaur is the most important and colorful festival of not just Chittorgarh but entire Rajasthan. It is celebrated with great fervor by the womenfolk who worship Gauri. The meaning of the word ‘Gangaur’ can be understood by breaking it down in two words where Gan means Shiva and gaur stands for Gauri or Parvati. Gauri symbolizes the marital bliss or Saubhagya. Gauri is the embodiment of perfection and conjugal love which is the reason why the unmarried women worship her in order to be blessed with a good husband, while the married women do it for the welfare, health and their happy married life. It is celebrated between March and April.

 

Jauhar Mela

Source: Chittorgarh

Chittorgarh fort hosts the biggest Rajput festival which is known as ‘Jauhar Mela’. The occasion is believed to commemorate Rani Padmini’s Jauhar which is the most famous one. It marks the bravery of Rajput ancestors and all the three Jauhars that happened at Chittorgarh. Jauhar is a Hindu custom of self-immolation where women commit suicide to avoid capture, enslavement or rape by any foreign invaders.

On this day, a huge number of Rajput including the descendants of most of the princely families holds a procession to celebrate Jauhar.

 

Rang Teras

Source: Patrika

Rang Teras is a tribal fair of Mewar celebrated on the 13th moon night of the month of Chaitra. This big colorful fair includes a huge gathering of tribal to rejoice the harvest of wheat. Rang Teras celebration is customary since the 15th century. It is a thanksgiving festival of farmers where they pay their honor to Mother Earth for providing them with food for the next year. As a part of Celebrations, young men in the village perform their gallant skills while dancing. It is also celebrated is Sri Krishna Temples all around North India and ISKCON Temples.

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बप्पा रावल : एक अद्वितीय मेवाड़ी योद्धा

बप्पा रावल मेवाड़ी राजवंश के सबसे प्रतापी योद्धा थे । वीरता में इनकी बराबरी भारत का कोई और योद्धा कर ही नहीं सकता। यही वो शासक एवं योद्धा है जिनके बारे में राजस्थानी लोकगीतों में कहा जाता है कि –

 सर्वप्रथम बप्पा रावल ने केसरिया फहराया ।

और तुम्हारे पावन रज को अपने शीश लगाया ।।

फिर तो वे ईरान और अफगान सभी थे जिते ।

ऐसे थे झपटे यवनो पर हों मेवाड़ी चीते ।।

सिंध में अरबों का शासन स्थापित हो जाने के बाद जिस वीर ने उनको न केवल पूर्व की ओर बढ़ने से सफलतापूर्वक रोका था, बल्कि उनको कई बार करारी हार भी दी थी, उसका नाम था बप्पा रावल। बप्पा रावल गहलोत राजपूत वंश के आठवें शासक थे और उनका बचपन का नाम राजकुमार कलभोज था। वे सन् 713 में पैदा हुए थे और लगभग 97 साल की उम्र में उनका देहान्त हुआ था। उन्होंने शासक बनने के बाद अपने वंश का नाम ग्रहण नहीं किया बल्कि मेवाड़ वंश के नाम से नया राजवंश चलाया था और चित्तौड़ को अपनी राजधानी बनाया ।

इस्लाम की स्थापना के तत्काल बाद अरबी मुस्लिमों ने फारस (ईरान) को जीतने के बाद भारत पर आक्रमण करने प्रारम्भ कर दिए थे। वे बहुत वर्षों तक पराजित होकर जीते रहे, लेकिन अन्ततः राजा दाहिर के कार्यकाल में सिंध को जीतने में सफल हो गए। उनकी आंधी सिंध से आगे भी भारत को लीलना चाहती थी, किन्तु बप्पा रावल एक सुद्रढ़ दीवार की तरह उनके रास्ते में खड़े हो गए। उन्होंने अजमेर और जैसलमेर जैसे छोटे राज्यों को भी अपने साथ मिला लिया और एक बलशाली शक्ति खड़ी की। उन्होंने अरबों को कई बार हराया और उनको सिंध के पश्चिमी तट तक सीमित रहने के लिए बाध्य कर दिया, जो आजकल बलूचिस्तान के नाम से जाना जाता है।

इतना ही नहीं उन्होंने आगे बढ़कर गजनी पर भी आक्रमण किया और वहां के शासक सलीम को बुरी तरह हराया। उन्होंने गजनी में अपना प्रतिनिधि नियुक्त कर दिया और तब चित्तौड़ लौटे। चित्तौड़ को अपना केन्द्र बनाकर उन्होंने आसपास के राज्यों को भी जीता और एक दृढ़ साम्राज्य का निर्माण किया। उन्होंने अपने राज्य में गांधार, खुरासान, तूरान और ईरान के हिस्सों को भी शामिल कर लिया था।

बप्पा बहुत  ही शक्तिशाली शासक थे। बप्पा का लालन-पालन ब्राह्मण परिवार के सान्निध्य में हुआ। उन्होंने अफगानिस्तान व पाकिस्तान तक अरबों को खदेड़ा था। बप्पा के सैन्य ठिकाने के कारण ही पाकिस्तान के शहर का नाम रावलपिंडी पड़ा।आठवीं सदी में मेवाड़ की स्थापना करने वाले बप्पा भारतीय सीमाओं से बाहर ही विदेशी आक्रमणों का प्रतिकार करना चाहते थे।  

हारीत ऋषि का आशीर्वाद

हारीत ऋषि का आशीर्वाद मिला बप्पा के जन्म के बारे में अद्भुत बातें प्रचलित हैं। बप्पा जिन गायों को चराते थे, उनमें से एक बहुत अधिक दूध देती थी। शाम को गाय जंगल से वापस लौटती थी तो उसके थनों में दूध नहीं रहता था। बप्पा दूध से जुड़े हुए रहस्य को जानने के लिए जंगल में उसके पीछे चल दिए। गाय निर्जन कंदरा में पहुंची और उसने हारीत ऋषि के यहां शिवलिंग अभिषेक के लिए दुग्धधार करने लगी। इसके बाद बप्पा हारीत ऋषि की सेवा में जुट गए। ऋषि के आशीर्वाद से बप्पा मेवाड़ के राजा बने |

रावल के संघर्ष की कहानी 

बप्पा रावल सिसोदिया राजवंश के संस्थापक थे जिनमें आगे चल कर महान राजा राणा कुम्भा, राणा सांगा, महाराणा प्रताप हुए। बप्पा रावल बप्पा या बापा वास्तव में व्यक्तिवाचक शब्द नहीं है, अपितु जिस तरह “बापू” शब्द महात्मा गांधी के लिए रूढ़ हो चुका है, उसी तरह आदरसूचक “बापा” शब्द भी मेवाड़ के एक नृपविशेष के लिए प्रयुक्त होता रहा है। सिसौदिया वंशी राजा कालभोज का ही दूसरा नाम बापा मानने में कुछ ऐतिहासिक असंगति नहीं होती। इसके प्रजासरंक्षण, देशरक्षण आदि कामों से प्रभावित होकर ही संभवत: जनता ने इसे बापा पदवी से विभूषित किया था। महाराणा कुंभा के समय में रचित एकलिंग महात्म्य में किसी प्राचीन ग्रंथ या प्रशस्ति के आधार पर बापा का समय संवत् 810 (सन् 753) ई. दिया है। एक दूसरे एकलिंग माहात्म्य से सिद्ध है कि यह बापा के राज्यत्याग का समय था। यदि बापा का राज्यकाल 30 साल का रखा जाए तो वह सन् 723 के लगभग गद्दी पर बैठा होगा। उससे पहले भी उसके वंश के कुछ प्रतापी राजा मेवाड़ में हो चुके थे, किंतु बापा का व्यक्तित्व उन सबसे बढ़कर था। चित्तौड़ का मजबूत दुर्ग उस समय तक मोरी वंश के राजाओं के हाथ में था। परंपरा से यह प्रसिद्ध है कि हारीत ऋषि की कृपा से बापा ने मानमोरी को मारकर इस दुर्ग को हस्तगत किया। टॉड को यहीं राजा मानका वि. सं. 770 (सन् 713 ई.) का एक शिलालेख मिला था जो सिद्ध करता है कि बापा और मानमोरी के समय में विशेष अंतर नहीं है।

Image courtesy: legends of mewar

चित्तौड़ पर अधिकार करना आसान न था। अनुमान है कि बापा की विशेष प्रसिद्धि अरबों से सफल युद्ध करने के कारण हुई। सन् 712 ई. में मुहम्मद कासिम से सिंधु को जीता। उसके बाद अरबों ने चारों ओर धावे करने शुरु किए। उन्होंने चावड़ों, मौर्यों, सैंधवों, कच्छेल्लों को हराया। मारवाड़, मालवा, मेवाड़, गुजरात आदि सब भूभागों में उनकी सेनाएँ छा गईं। इस भयंकर कालाग्नि से बचाने के लिए ईश्वर ने राजस्थान को कुछ महान व्यक्ति दिए जिनमें विशेष रूप से गुर्जर प्रतिहार सम्राट् नागभट प्रथम और बापा रावल के नाम उल्लेखनीय हैं। नागभट प्रथम ने अरबों को पश्चिमी राजस्थान और मालवे से मार भगाया। बापा ने यही कार्य मेवाड़ और उसके आसपास के प्रदेश के लिए किया। मौर्य (मोरी) शायद इसी अरब आक्रमण से जर्जर हो गए हों। बापा ने वह कार्य किया जो मोरी करने में असमर्थ थे और साथ ही चित्तौड़ पर भी अधिकार कर लिया। बापा रावल के मुस्लिम देशों पर विजय की अनेक दंतकथाएँ अरबों की पराजय की इस सच्ची घटना से उत्पन्न हुई होंगी।

बप्पा रावल ने अपने विशेष सिक्के जारी किए थे। इस सिक्के में सामने की ओर ऊपर के हिस्से में माला के नीचे श्री बोप्प लेख है। बाईं ओर त्रिशूल है और उसकी दाहिनी तरफ वेदी पर शिवलिंग बना है। इसके दाहिनी ओर नंदी शिवलिंग की ओर मुख किए बैठा है। शिवलिंग और नंदी के नीचे दंडवत् करते हुए एक पुरुष की आकृति है। पीछे की तरफ सूर्य और छत्र के चिह्न हैं। इन सबके नीचे दाहिनी ओर मुख किए एक गौ खड़ी है और उसी के पास दूध पीता हुआ बछड़ा है। ये सब चिह्न बपा रावल की शिवभक्ति और उसके जीवन की कुछ घटनाओं से संबद्ध हैं।

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गोरा-बादल | जानिए इन अविस्मरणीय राजपूत योद्धाओं के बारे में

मेवाड़ की पावन धरती ने कई महान एवं वीर, पराक्रमी योद्धाओं को जन्म दिया है। गोरा एवं बादल उन्ही वीर योद्धाओं में से एक है ,ये धरती हमेशा उनकी कृतज्ञ रहेगी! तो आइए जानते हैं उन दो महान योद्धाओं के बारे में जिनके लिए यह कहा जाता है कि जिनका शीश कट जाए फिर भी धड़ दुश्मनों से लड़ता रहे वो राजपूत

गोरा-बादलगोरा-बादल | जानिए इन अविस्मरणीय राजपूत योद्धाओं के बारे में

गोरा तत्कालीन चित्तौड़ के सेनापति थे एवं बादल उनके भतीजे थे। दोनो अत्यंत ही वीर एवं पराक्रमी योद्धा थे, उनके साहस, बल एवं पुरुषार्थ से सारे शत्रु डरते थे। गोरा एवं बादल इतिहास के उन गिने चुने लड़ाकों में से एक थे जिनके पास बाहुबल के साथ साथ तीव्र बुद्धि भी थी।

इनकी बुद्धि एवं वीरता ने उस असंभव कार्य को संभव कर दिखाया जिसे कोई और शायद ही कर पाता ।

ये ऐसे योद्धा थे जो दिल्ली जाकर खिलजी की कैद से राणा रतन सिंह को छुड़ा लाये थे ।  इस युद्ध में जब गोरा ने खिलजी के सेनापति को मारा था तब तक उनका खुद का शीश पहले ही कट चुका था, केवल धड़ शेष रहा था । यह सब कैसे संभव हुआ इसका वर्णन मैं मेवाड़ के राज कवि श्री श्री नरेन्द्र मिश्र की अत्यंत खूबसूरत कविता के छोटे से अंश से करता हूँ ।

बात उस समय की है जब खिलजी ने धोके से राणा रतन सिंह को कैद कर लिया था, जब राणा जी दिल्ली में खिलजी की कैद में थे तब रानी पद्मिनी गोरा के पास गयीं;  गोरा सिंह रानी पद्मिनी को वचन देते हुए कहते है कि –

जब तक गोरा के कंधे पर दुर्जय शीश रहेगा

महाकाल से भी राणा का मस्तक नही कटेगा ।।

तुम निशिन्त रहो महलो में देखो समर भवानी

और खिलजी देखेगा केसरिया तलवारो का पानी ।।

राणा के सकुशल आने तक गोरा नही मरेगा

एक पहर तक सर तटने पर भी धड़ युद्ध करेगा।।

एकलिंग की शपथ महाराणा वापस आएंगे

महाप्रलय के घोर प्रभंजक भी ना रोक पाएंगे ।।

 

यह शपथ लेकर महावीर गोरा, राणा जी को वापस चित्तौड़ लेन की योजना बनाने लगे ।

योजना के बन जाने पर वीर गोरा ने आदेश दिया कि –

गोरा का आदेश हुआ सजगये सातसौ डोले

और बांकुरे बादल से गोरा सेनापति बोले ।।

खबर भेज दो खिलजी पर पद्मिनी स्वंय आती है

अन्य सातसौ सतिया भी वो संग लिए आती है ।।

 

जब यह खबर खिलजी तक पहुँची तो वो खुशी के मारे नाचने लगा ,उसको लगा कि वो जीत गया है। लेकिन ऐसा नहीं था ,पालकियों में तो सशस्त्र सैनिक बैठे थे । एवं पालकी ढ़ोने वाले भी कुशल सैनिक थे ।।

और सातसौ सैनिक जो कि यम से भी भीड़ सकते थे

हर सैनिक सेनापति था लाखो से लड़ सकते थे ।।

एकएक कर बैठ गए, सज गई डोलियां पल में

मर मिटने की हौड़ लगी थी मेवाड़ी दल में ।।

हर डोली में एक वीर , चार उठाने वाले

पांचो ही शंकर की तरह समर भत वाले ।।

सैनिकों से भरी पालकियां दिल्ली पहुँच गई ।

जा पहुंची डोलियां एक दिन खिलजी की सरहद में

उस पर दूत भी जा पहुँचा खिलजी के रंग महल में।।

बोला शहंशाह पद्मिनी मल्लिका बनने आयी है

रानी अपने साथ हुस्न की कालिया भी लायी है ।।

एक मगर फरियाद फ़क़्त उसकी पूरी करवादो

राणा रतन सिंह से केवल एक बार मिलवादो ।।

 

गोरा-बादल | जानिए इन अविस्मरणीय राजपूत योद्धाओं के बारे में
Source: Manoj Chitra Katha

दूत की यह बात सुनकर मुगल उछल पड़ा , उसने तुरंत ही राणा जी से पद्मिनी को मिलवाने का हुक्म दे दिया । जब ये बात गोरा के दूत ने बाहर आकर बताई तब गोरा ने बादल से कहा कि –

बोले बेटा वक़्त आगया है कट मरने का

मातृ भूमि मेवाड़ धारा का दूध सफल करने का ।।

यह लोहार पद्मिनी वेश में बंदीगृह जाएगा

केवल दस डोलियां लिए गोरा पीछे ढायेगा ।।

यह बंधन काटेगा हम राणा को मुक्त करेंगे।

घुड़सवार कुछ उधर आड़ में ही तैयार रहेंगे।।

जैसे ही राणा आएं वो सब आंधी बन जाएँ।

और उन्हें चित्तोड़ दुर्ग पर वो सकुशल पहुंचाएं।।

 

गोरा की बुद्धि का यह उत्कृष्ट उदाहरण था । दिल्ली में जहाँ खिलजी की पूरी सेना खड़ी है, वहाँ ये चंद मेवाड़ी सिपाही अपनी योजना, बुद्धि एवं साहस से राणा को छुड़ाने में कामयाब हो जाते हैं। राणा के वहाँ से प्रस्थान करने से पूर्व वीर गोरा, अपने भतीजे बादल से कहते है कि –

राणा जाएं जिधर शत्रु को उधर न बढ़ने देना।

और एक यवन को भी उस पथ पावँ ना धरने देना।।

मेरे लाल लाडले बादल आन न जाने पाए

तिल तिल कट मरना मेवाड़ी मान न जाने पाए ।।

 

यह सुनकर बादल बोले कि –

ऐसा ही होगा काका राजपूती अमर रहेगी

बादल की मिट्टी में भी गौरव की गंध रहेगी ।।

 

बादल के ये वचन सुनकर गोरा ने उसे अपने हृदय से लगा लिया!!! लेकिन इस पूरी योजना का क्रियान्वय किस प्रकार हुआ इसका वर्णन महा कवि श्री श्री नरेंद्र मिश्र कि निम्न पंक्तिया करती है –

गोरा की चातुरी चली राणा के बंधन काटे

छांट छांट कर शाही पहरेदारो के सर काटे ।।

लिपट गए गोरा से राणा गलती पर पछताए

सेनापति की नमक हलाली देख नयन भर आये ।।

 

राणा ने पूर्व में जिस सेनापति का तिरस्कार किया था , संकट की घड़ी में आखिर वो ही काम आया ।यह देख कर राणा के नैन भर आए ।। लेकिन अब तक खिलजी के सेनापति को लग गया था कि कुछ गड़बड़ है ।

जब उसने लिया समझ पद्मिनी नहीँ आयी है।

मेवाड़ी सेना खिलजी की मौत साथ लायी  है ।।

 

तो उसने पहले से तैयार सैनिक दल को बुलाया और रण छेड़ दिया ।

दृष्टि फिरि गोरा की मानी राणा को समझाया

रण मतवाले को रोका जबरन चित्तोड़ पठाया ।।

 

उस समय राणा को सुरक्षित अपने देश पहुचना तथा शत्रु देश से निकलना अधिक महत्वपूर्ण था, राणा ने परिस्थिति को समझा और मेवाड़ की ओर प्रस्थान किया ।।

खिलजी ललकारा दुश्मन को भाग न जाने देना

रत्न सिंह का शीश काट कर ही वीरों दम लेना ।।

टूट पड़ों मेवाड़ी शेरों बादल सिंह ललकारा

हर हर महादेव का गरजा नभ भेदी जयकारा ।।

निकल डोलियों से मेवाड़ी बिजली लगी चमकने

काली का खप्पर भरने तलवारें लगी खटकने ।।

राणा के पथ पर शाही सेनापति तनिक बढ़ा था

पर उस पर तो गोरा हिमगिरि सा अड़ा खड़ा था।।

कहा ज़फर से एक कदम भी आगे बढ़ न सकोगे

यदि आदेश न माना तो कुत्ते की मौत मरोगे ।।

रत्न सिंह तो दूर न उनकी छाया तुम्हें मिलेगी

दिल्ली की भीषण सेना की होली अभी जलेगी ।।

यह कह के महाकाल बन गोरा रण में हुंकारा

लगा काटने शीश बही समर में रक्त की धारा ।।

खिलजी की असंख्य सेना से गोरा घिरे हुए थे

लेकिन मानो वे रण में मृत्युंजय बने हुए थे ।।

 

बादल की वीरता की हद यहा तक थी कि इसी लड़ाई में उनका पेट फट चुका था । अंतड़िया बाहर आ गई थी तो भी उन्होंने लड़ना बंद नही किया , अपनी पगड़ी पेट पर बांधकर लड़ाई लड़ी ।

रण में दोनों काका-भतीजे और वीर मेवाड़ी सैनिकों के इस रौद्र प्रदर्शन का वर्णन कवि नरेन्द्र मिश्र  इस प्रकार करते है-

पुण्य प्रकाशित होता है जैसे अग्रित पापों से

फूल खिला रहता असंख्य काटों के संतापों से ।।

 

वो मेवाड़ी शेर अकेला लाखों से लड़ता था

बढ़ा जिस तरफ वीर उधर ही विजय मंत्र पढता था ।।

इस भीषण रण से दहली थी दिल्ली की दीवारें

गोरा से टकरा कर टूटी खिलजी की तलवारें ।।

 

मगर क़यामत देख अंत में छल से काम लिया था

गोरा की जंघा पर अरि ने छिप कर वार किया था ।।

वहीँ गिरे वीर वर गोरा जफ़र सामने आया

शीश उतार दिया, धोखा देकर मन में हर्षाया ।।

गोरा-बादल | जानिए इन अविस्मरणीय राजपूत योद्धाओं के बारे में
Source: Roar Media

शीश कटने के बाद भी उन्होंने एक ही वार में मुग़ल सेनापति को मार गिराया था । इस अद्भुत दृश्य का वर्णन निम्न पंक्तियों में है ।।

मगर वाह रे मेवाड़ी गोरा का धड़ भी दौड़ा

किया जफ़र पर वार की जैसे सर पर गिरा हथौड़ा ।।

एक वार में ही शाही सेना पति चीर दिया था

जफ़र मोहम्मद को केवल धड़ ने निर्जीव किया था  ।।

ज्यों ही जफ़र कटा शाही सेना का साहस लरज़ा

काका का धड़ देख बादल सिंह महारुद्र सा गरजा ।।

अरे कायरो नीच बाँगड़ों छल से रण करते हो

किस बुते पर जवान मर्द बनने का दम भरते हो ।।

यह कह कर बादल उस क्षण बिजली बन करके टुटा था

मानो धरती पर अम्बर से अग्नि शिरा छुटा था ।।

ज्वाला मुखी फटा हो जैसे दरिया हो तूफानी

सदियां दोहराएंगी बादल की रण रंग कहानी ।।

अरि का भाला लगा पेट में आंते निकल पड़ी थीं

जख्मी बादल पर लाखो तलवारें खिंची खड़ी थी ।।

कसकर बाँध लिया आँतों को केशरिया पगड़ी से

रंचक डिगा न वह प्रलयंकर सम्मुख मृत्यु खड़ी से ।।

अब बादल तूफ़ान बन गया शक्ति बनी फौलादी

मानो खप्पर लेकर रण में लड़ती हो आजादी ।।

 

उधर वीरवर गोरा का धड़ अरिदल काट रहा था

और इधर बादल लाशों से भूतल पाट रहा था ।।

आगे पीछे दाएं बाएं जम कर लड़ी लड़ाई

उस दिन समर भूमि में लाखों बादल पड़े दिखाई ।।

मगर हुआ परिणाम वही की जो होना था

उनको तो कण कण अरियों के शोणित से धोना था ।।

मेवाड़ी सीमा में राणा सकुशल पहुच गए थे

गोरा बादल तिल तिल कटकर रण में खेत रहे थे ।।

 

एक एक कर मिटे सभी मेवाड़ी वीर सिपाही

रत्न सिंह पर लेकिन रंचक आँच न आने पायी ।।

गोरा बादल के शव पर भारत माता रोई थी

उसने अपनी दो प्यारी ज्वलंत मणियां खोयी थी ।।

 

धन्य धरा मेवाड़ धन्य गोरा बादल बलिदानी

जिनके बल से रहा पद्मिनी का सतीत्व अभिमानी ।।

जिसके कारन मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी |

दोहराता हूँ सुनो रक्त से लिखी हुई क़ुरबानी ||

 

तो ये थी मेवाड़ के अमर शहीद गोरा एवं बादल की गौरव गाथा 

ये है हमारे असली नायक जो की हमारे लिए हमेशा प्रेरणा के स्त्रोत है ।।

इनको पढ़ो, इनके बारे में जानो, इनके जैसे बनो जय मेवाड़।। जय हिंद ।।

 

स्त्रोत :

श्री श्री नरेन्द्र मिश्र

कवि श्री कुमार विश्वास

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Udaipur – Land of Minerals

Udaipur - Land of Minerals

Udaipur is a well known name famous for its Lakes, Palaces, Architecture, Temples, Natural beauty, Eco trails, Romantic evenings and its Golden History. But it’s a place lot more famous around the world not just for it’s beauty but also as place endowed with natural minerals.
Udaipur being Major Tourist Hub of the Country is also a Commercial Hub of the world with handicrafts and marble mining and processing as important occupation of people. Nature has endowed Udaipur with natural minerals. Our city tops in mining of natural minerals listed below:

  1. White marble
  2. Zinc
  3. Rock phosphate
  4. Talc (soapstone)
  5. Calcite
  6. Quartz
  7. Wollastonite
  8. Pyrophyllite & Sillimanite

Marble Industry:

Mining Udaipur

Udaipur stands 1st in the world for mining and processing of white marble. It is the Asia’s largest market for white, green, pink and other marble. All these Marble mines udaipurmarble’s are exclusively mined, processed and exported around the World. Udaipur and Rajasthan comes first in marble mining and tops the list in this segment in the country. The marble industry is well set and established over hear with proper infrastructure and technological support for mining and processing. It is the largest sector giving employment to many people of the city and those immigrants from small villages. The business is very vast; the mines and processing units are extended in the adjoining areas namely Sukher, Rajsamand, Rajnagar, Kesrayaji, Chittor , Kishangarh etc. In total there are approximately 5,000 small and big units working in field of mining, processing, exporting and trading of marble.
The marble being produced is sold in all the states and across borders with R.K marble as largest producer of marble in the world with 60,000 square meter per day has earned the company a place in Guinness Book of World Records.
Though mining was once banned in the Aravalli region but the association of so many people with this industry as an employment agent cannot be denied and government had to cancel their order because of this.

Zinc:

zinc udaipurThe only company producing zinc is Hindustan Zinc. Formerly it was managed and run by Government of India and is now a part of big public company called Vedanta Group. Their Head offices are located amidst the city and the plants or projects run in outskirts of the city. It is one of the Largest producer of Zinc in the Country which accounts to 7,54,000 Tonnes P.A. It’s a Big organization and provides employment to hundreds of people. Their mines operate in Dariba near Udaipur where the Products Zinc Concentrate and Lead Concentrate which has a Ore product capacity 0.30 milion tonnes per annum.

Rock Phosphate:

Rock phosphate is another such mineral been mined and processed by RSMML. The major activity of RSMML is the mining of Rock phosphate ore. It operates one of the largest and fully mechanised mines in the country at Jhamarkotra, 26 Kms. from Udaipur.
In India the economy being predominantly based on agriculture, the fertilizer production plays a pivotal role. Only about 35% to 40% of the requirement of raw material for phosphatic fertilizer production are being met through indigenous sources and the rest is met through import in the form of rock phosphate, phosphoric acid & direct fertilizers. In such a situation Jhamarkotra plays an important role by contributing 98% of rock phosphate production of India.


White Industrial Minerals:

The minerals Talc , Dolomite, Calcite, China Clay are of same category, composition and use and mainly used as fillers, strengthening agents , whiteners for manufacturing in paints , plastics , paper , detergents , Talc Udaipurcosmetics etc. These minerals come under the category of white industrial minerals. These minerals are mined in neighboring villages and been processed into fine powder to be used for industrial purposes all around the world. The demand for these minerals is very high all around the world with high consumptions from Europe and Middle East nations. Udaipur is the lead producer of these minerals Wolkem India is a leading name in the mining and processing of Calcite and Wallastonite across the World and Golcha Group is the top name when someone thinks about Soapstone (Talc). Whereas Shri Kailash Khanij Udhyog is the only miner and producer of mineral Pyrophyllite and Sillimanite in this region. Both these minerals are widely used in refractories and other industrial applications around the World.

Mewar Industrial Area in Udaipur is full of Grinding Units these Minerals and New Industrial Areas are developed to accommodate the growth of these Industries. Around 500 units are involved into Mining, Grinding and Processing of these Minerals in and around Udaipur city.

impact udaipur

Impact on Nature and Societal Perspective:

Mining and Mineral Industries are also a cause to natural hazard, degrading land resources and natural surroundings. Although mining in Aravalli range has been banned but illegal mining is still going on in these regions and causing problems to natural surroundings. But these industries are so prominent as they give employment to a lot of people, the benefits arising out of them cannot be ignored too. So many people from all economic strata are associated with these industries and if the industry is banned and shut down then surely too much of unemployment, which the state cannot afford. As long as it keeps on giving employment to people the industry will survive and so do the people.

UdaipurBlog team is Thankful to Mr. Ashok Chohan of  Shri Kailash Khanij Udhyog for his Valuable insights About the Mineral Industry.