कई विद्वानों और बुद्धिमान व्यक्तियों ने एक ‘शब्द’ को अपने तरीके से परिभाषित किया है। पर आखिर में शब्द क्या है, महज भावनाएं ही तो है। बस किसी को उन भावनाओं को पिरोना आ गया और कोई अब भी सीख रहा है। और इसी शब्दों को एक सुन्दर से लेख में पिरो के लिखने की कला को ही तो लेखन या लिखना कहते है।
लिखना, एक ऐसी कला है जो आपके अंदर की भावनाओं को सुन्दर और सुचारु रूप से व्यक्त करती है। इसी कला का प्रदर्शन झीलों की नगरी उदयपुर में भरपूर मात्रा में देखा और पढ़ा गया है। यहाँ के एक लेखक है श्याम सुन्दर भट्ट जिन्होंने कई प्रसिद्धः किताबें लिखी है और अपने शहर का नाम रौशन किया है। आइये जानते कुछ उनकी जीवन शैली और उनकी किताबों के बारे में।
निजी जीवन
- श्याम सुन्दर भट्ट जी भूगोल शिक्षक है।
- उनका जन्म रेलमगरा के पास एक गांव में हुआ।
- स्कूल, कॉलेज और करीब ग्यारह साल तक की नौकरी उदयपुर और उदयपुर के आस पास के प्रांतो में की।
- ग्यारह साढ़े ग्यारह साल की नौकरी के बाद 3साल फिजी में रह कर काम किया।
- ये बात साल 1979-80 की है जब उन्होंने भारत वापिस आ के बांसवाड़ा के एक स्कूल में काम किया। वह ही उन्हें मेवाड़ पर लिखी गई एक प्रसिद्ध किताब मिली। उसे पढ़ कर इन्हे लगा की मेवाड़ में रह के भी वे कितना कम जानते है अपनी ही भूमि के बारे में।
- किताबे पढ़ने और लिखने में कम रूचि होने के कारण उन्होंने दुसरो को मेवाड़ पे नयी किताबे लिखने के लिए आग्रह किआ पर वहाँ से भी उन्हें हतोत्साहित हो के लौटना पड़ा।
- लेकिन मेवाड़ की धरती पर जहा जहा प्रताप ने पैर रखे वो उनके दिमाग में घूम रही थी।
- राजस्थान के विभिन्न माध्यमिक तथा उच्च माध्यमिक के शिक्षक एवं प्रधानाचार्य व प्रधानाध्यापक भी रहे है।
- उसके कुछ वर्ष पश्च्यात ही उदयपुर में उन्हें शिक्षा विभाग का उप निदेशक बना दिया गया। इतना ही नहीं उन्हें गुलाब बाग़ में स्थित सरस्वती भवन लाइब्रेरी का प्रभारी भी बनाया गया।
- यही के एक साहित्यकार की मदद से खुद से लिखना शुरू किया। मेवाड़ पर और 30-40 किताबे पढ़ी और उनका पहला उपन्यास 52 साल की उम्र छपा।
- राजस्थान शासन द्वारा सम्मानित तथा राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा पुरुस्कृत भी है।
किताबें
- अब तक श्याम सुन्दर भट्ट जी के द्वारा लिखी गई 23 किताबे और उपन्यास छप चुके है।
- कई अलग-अलग शैलियों में पुस्तके लिखी हैं लेकिन अधिकांश प्रकाशित पुस्तकें इतिहास शैली की हैं। उनके द्वारा लिखी हुई पुस्तकें बड़े बड़े पुब्लिकेशन्स से छपी हुई है।
- इन्होने के सांस्कृतिक भूगोल कोष भी लिखा है जिसमे वेदिक साहित्य जैसे महाभारत या रामयण अथवा नदियों सागरों और कई पुराणों के नाम भी अर्जित है।
पुस्तकों के नाम
- दर्प
- महाराणा संग्रामसिंह
- कालजयी श्री परशुराम
- चेतक घोड़े का सवार
- अपराजेय
- मेवाड़ का सूर्यपुत्र
- धरती का सूरज
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति
- बंद मुट्ठियों के सपने
- सिंधुपति महाराज श्री चचदेव
- शक्तिपुत्र
- महर्षि श्री हारीत एवं श्री बप्पारावल
- सिंधुपुत्र महाराज श्री दाहर
- सांस्कृतिक भूगोल कोष
पिछले तीस सालों में लिखने पढ़ने से दूर भागने वाले एक भूगोल के शिक्षक ने मेवाड़ के पन्नों में नए सुनहरे पंख लगाए है। आज 82 साल की उम्र में भी वे किताबें लिख रहे है और अपनी शहर की भूमि से पूरी दुनिया को अवगत करा रहे है। आपका योगदान सर्वतः सराहनीय है।