उदयपुर अरावली पर्वतमाला की गोद में बसा हुआ है, इस शहर में महलों, झीलों, ऐतिहासिक इमारतों, के आलावा कई प्राचीन गुफाएं भी है, जिनसे अधिक्तर पर्यटक अपरिचित हैं। प्रकृति ने इन गुफाओ का निर्माण प्राचीन काल में अरावली पर्वत माला के साथ ही किया था। हम उदैपुरिये खुशकिस्मत हैं की हमारे शहर पर प्रकृति ने इतने उपहार बरसाए हैं।
वेसे तो इस शहर मैं अनेक छोटी-बड़ी गुफाएं हैं, लेकिन कुछ विशेष गुफाएं है जो की हम उदयपुर वालो के हृदय के बेहद करीब है, इनमें से अधिक्तर गुफाओ में पुराने समय में ही कुछ खास मंदिरों की स्थापना की गई है, आईये जानते है इनके बारे में –
गुप्तेश्वर महादेव गुफा
यह उदयपुर की सबसे प्राचीन एवं प्रमूख गुफा है, आध्यात्म की दृष्टि से भी इसका प्रमूख स्थान है, इसे “उदयपुर का अमरनाथ” भी कहा जाता है। यह प्राचीन गुफा उदयपुर के बिलिया गाँव में ओड़ा पर्वत के शिखर पर स्थित है, जो की तितरडी के पास है| यहाँ भगवान शिव का प्राचीन मंदिर है, उपर पहाड़ पर यह मंदिर बड़े ही विस्तृत क्षेत्र में फैला हुआ है, इस गुफा की एक खासियत यह भी हें की इस तक चढ़ाई का रास्ता टेढ़ा-मेढ़ा हैं जो की आगन्तुको को अति आनंदित करता है!
यह एक गहरी गुफा है जिसके दुसरे छोर पर शिवलिंग हें, इस गुफा में प्रवेश करते समय हमें हजारों चमकादड़े गुफा की दीवारों पर उल्टी लटकती हुई दिख जाती हैं, साथ ही पत्थर के प्राकृतिक सर्प भी दीवारों पर दिख जाते हैं। इस मंदिर से अक्सर अखंड मंत्रोचार की आवाज़े आती रहती हैं कुछ विशेष अवसरों पर पूरा पहाड़ सुन्दरकाण्ड, भजनों व मंत्रो से गुंजायमान रहता हैं। हर माह यहाँ 48 घंटो का अनवरत जाप होता है।
इस गुफा का भ्रमण करने से एक विशिष्ट आध्यात्मिक आनंद का अनुभव होता है तथा यहाँ के सम्पूर्ण मंदिर परिसर में छाई शांति हमें खुद में एक उर्जा का अनुभव करवाती हैं। इस गुफा के अंदर एक और छोटी गुफा है जो की एक रहस्यमयी गुफा है, यह दूसरी गुफा इतनी बड़ी और लम्बी है की इसके दुसरे छोर पर आज तक कोई नहीं पहुच सका हैं, बड़े बुजुर्ग कहते हें की यह दूसरी गुफा काशी तक जाती हैं।
इस मंदिर का एक आश्चर्यजनक प्रभाव यह है की जब हम पहाड़ की चढाई से थककर गुफा में पहुचते हैं तो गुफा में कुछ ही क्षण बिताने पर हम फिर से खुद को उर्जावान महसूस करते हैं। यहाँ शांत वातावरण, शुद्ध एवं ठंडी हवा के झोके हमें चिंता मुक्त कर देते हैं, साथ ही सारी मानसिक थकान भी दूर हो जाती हैं। यहाँ पहाड़ से देखने पर पूरा उदयपुर दिखाई देता हैं, यहाँ एक सुन्दर बगीचा और एक भव्य हनुमान मंदिर भी हैं। इस गुफा में हर पूर्णिमा की रात को भजन संध्या होती हैं जो कि एक संगीतमय रात्रि जागरण होता हैं।
मायरा कि गुफा –
यह गुफा उदयपुर में गोगुंदा के निकट स्थित हैं। इसके आस-पास घना जंगल हैं, क्षेत्रफल कि दृष्टि से यह मेवाड़ कि सबसे बड़ी गुफा हैं। बारिश के मौसम में यहाँ लगातार झरने देखने को मिलते है। इस गुफा कि संरचना भूलभुलैयाँ कि तरह है। इस गुफा में लंबी, टेढी-मेढी, संकरी गलिया हैं। हल्दिघाटि के युद्ध के दौरान यहाँ महाराणा का निवास स्थान था। इसकि जटिल संरचना के कारण ही महाराणा प्रताप ने इसे अपने शस्त्रागार के रूप में चुना था।
इस गुफा में गुसने के तीन रास्ते है, लेकिन इसकि बाहरी संरचना कुछ इस प्रकार है कि बाहर से देखने पर इसका प्रवेश द्वार नज़र नहीं आता। इस गुफा के एक कमरे में महाराणा प्रताप अपने प्रिय घोड़े चेतक को बाँधा करते थे। इस कमरे के पास माता हिंगलाद का मंदिर भी है। यह राजस्थान के ही नहीं अपितु संपूर्ण भारत के सबसे अनछुए स्थानों में से एक है। अगर आप एक साहसिक भ्रमण पर जाना चाहते है तो यह आपके लिए एक सर्वोत्तम स्थान हैं।
झामेश्वर महादेव मंदिर गुफा –
यह गुफा उदयपुर में झामर-कोटडा नामक स्थान पर है। यह एक बड़ी गुफा है, इसके आस-पास पानी व हरियाली हैं। यह पूर्ण रूप से प्रकृति कि गोद में स्थित है। इसके आस-पास का वातावरण बहुत शांत एवं खुशनुमा हैं। लंबे-लंबे पैडो, पक्षियों कि आवाज़ों के साथ यहाँ सैकड़ों बंदर भी देखने को मिलते हैं। इस गुफा के अंत में एक प्राचीन प्राकृतिक शिवलिंग हैं, जिसकी खोज आज से करीब 600 वर्ष पहले हुई थी। यह मंदिर परिसर एक विस्तृत क्षेत्र में फैला है, हर दिन यहाँ कई श्रद्धालुओ व पर्यटको का आवागमन होता हैं।
उभैश्वर महादेव गुफा –
यह गुफा उदयपुर की बहुचर्चित एवं सर्वप्रसिद्ध गुफा हैं। उभैश्वर जी जाने का रास्ता मल्लातलाई चौक के दाई तरफ कुछ दूरी पर स्थित रामपुर चौक से जाता है। यह गुफा एवं मंदिर एक ऊँचे पहाड़ की चोटी पर स्थित हैं, यहाँ तक जाने के रास्ते में एक जोखिम भरी खड़ी व गुमावदार चढाई आती हैं। जो की बड़ी खतरनाक है, कयोंकि उस रास्ते पर एक तरफ पहाड है तो दूसरी तरफ खाई है। साथ ही यहाँ जंगली जानवरों का खतरा भी रहता है।
अतः हमें वहाँ जाते समय रास्ते में सावधानी पूर्वक जाना चाहिए। अगर हम वर्षा ऋतु में वहाँ जाते है तो हमें प्रकृति की विशेष सुंदर छटा निहारने का विशिष्ट सौभाग्य प्राप्त होता हैं। ऊपर पहाड से नीचे देखने पर हमें कोई घर, कोई इमारत दिखाई नहीं देती, चारोतरफ दुर -दुर तक सिर्फ पहाड ही पहाड दिखते हैं। पहाड पर एक सुंदर सरोवर हैं जो “कमल तलाई” नाम से विख्यात है।
यहाँ सुंदर श्वेत कमल खिलते है यहाँ से बहता हुआ पानी आगे जाकर झरने के रुप में गिरता है, जो की और आगे जाकर सिसारमा नदी में मिलता हैं। इसी तलाई से थोड़ा आगे एक बड़ी व लंबी गुफा स्थित हैं। जो की उभैश्वर महादेव मंदिर गुफा के नाम से विख्यात हैं। इस गुफा में शिव पूजन के समय सिर्फ कमल तलाई से प्राप्त पुष्प ही अर्पण किए जाते है।
तिलकेश्वर महादेव गुफा –
यह प्राचीन गुफा उदयपुर में गोगुंदा हाई-वे के किनारे स्थित एक गाँव बैरन में स्थित हैं। यह एक दुर्गम गुफा है, इसमें प्रवेश के लिए हमें एक चेन के सहारे नीचे गुफा में उतरना पडता हैं। जहाँ नीचे एक झरना एवं जलाशय हैं इस गुफा में एक प्राचीन शिव मंदिर है जिसके बारे मे कहा जाता है कि, यहीं पर महाराणा प्रताप ने शक्ति सिंह का राजतिलक किया था। यहाँ पास ही में एक खाई है जिसके किनारे अधिक्तर पर्यटक फोटो खिचवाते हैं। यहाँ आसपास कई मनोरम दृश्य हैं ।
पातालेश्वर गुफा-
यह गुफा उदयपुर में टाइगर हील से लगभग तीन किलोमीटर दूर, बडगाँव में नहर के पास स्थित हैं। इस गुफा की विशेषता यह है की ना तो यह गुफा पहाड़ पर स्थित हैं ना ही इसके आस-पास कोई पहाड़ हैं। यह गुफा जमीन में पाताल की दिशा में बनी है, इसीलिए इसका नाम पातालेश्वर रखा गया। इस अंधेरी गुफा में भी एक प्राकृतिक शिवलिंग है जिसकी सुरक्षा एवं देखभाल की जिम्मेदारी एक अघोरी ने अपने कंधो पर ले रखि हैं। इस गुफा के अंदर भी एक खुफिया सुरंग है जिसका दुसरा छोर आज भी एक रहस्य हैं।