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Bhartiya Lok Kala Mandal | Details, Timings and Charges

Bhartiya Lok Kala Mandal: A cultural institute dedicated towards preserving India’s artistic legacy. This institute strives to raise cultural awareness among individuals, encourage persons interested in performing any Indian art form, display items in a museum, hold numerous events, and much more.

History of Lok Kala Mandal

Padma Shri Devi Lal Samar founded the Bhartiya Lok Kala Mandal in the year 1952 to restore the regional folk culture in Rajasthan, Madhya Pradesh, Gujarat, and other areas. This institute was created to explore folk art forms and unearth them to make them visually available to those interested in learning art. This institute has also received international and national recognition for its puppet shows and other dance performances.

Key Highlights of Bhartiya Lok Kala Mandal

1.) Museum

bhartiya lok kala mandal museum udaipur

Credits: www.lokkalamandal.com

Bhartiya Lok Kala Museum is an innovative place that deserves to be seen. Over the past 44 years, this Museum has been displaying rural dresses, puppets, decorations, masks, folk musical instruments, dolls, paintings, folk deities, wall sculptures, ceremonial pots, woodwork artwork, and henna patterns.

2.) Cultural Dance Performances

Cultural Dance Performaces at Bhartiya Lok Kala Mandal

Credits: www.patrika.com

Every evening, a folk show is held in the studio theatre, featuring multiple traditional dance performances including Garba, Dandiya, Ghoomar, and others. These performances are made by highly experienced dancers. Moreover, it is a great venue to teach youngsters about local culture. It is, in some ways, a true celebration of Rajasthan’s rich cultural legacy; the folk singers and lively dancers exhibit the actual folk culture of Rajasthan to the audience.

3.) The Lok Kala Mandal Research Centre

This centre initiates research on diverse folk art traditions that are recorded in audio and video form for educational purposes.

4.) Institute for Rural Communication

This institute assists rural communities in developing rural connection lines and trains them on how to communicate via media.

5.) Govind Puppet Performing Centre

 

lok kala mandal govind puppet theatre

Credits: www.lokkalamandal.com

This Centre is dedicated to conducting puppet research and experimenting with various puppet show genres. Puppet performances are said to have originated over 2000 years ago, and The Lok Kala Mandal guarantees that one of the world’s oldest art forms is maintained and displayed at a global level.

Besides the above mentioned highlights, The Bhartiya Lok Kala Mandal also provides puppetry training on a regular basis to educate children, teachers, and other puppet admirers. Folk dance training is also offered on a regular basis at the centre where the subject experts teach traditional and tribal dances and music to young people, especially women, in order to preserve these art forms. These efforts help this establishment in sustaining puppetry as an art form for future generations.

Reasons behind creating Bhartiya Lok Kala Mandal

Rajasthan’s Mewar area is renowned for its diverse culture and art. Its local artefacts are, in fact, always praised and treasured around the world. Bhartiya Lok Kala Mandal took steps and created an institution to encourage local craftsmen and artists, as well as foster local arts and cultures, in order to preserve and grow this legacy.

Consequently, the Bhartiya Lok Kala Museum turned out to be a part of their objective, which was dedicated to showcasing Mewar’s exclusive and finest arts and crafts. The museum shows one-of-a-kind treasures amassed over the last 44 years and provides an overview of India’s conventional traditions.

training at bhartiya lok kala mandal

Credits: www.lokkalamandal.com

In a nutshell, the Bhartiya Lok Kala Mandal is the ideal destination to learn about and experience Rajasthani culture and art. Mentioned herewith are some of the major objectives of this institution:

  • Educating and providing information about India’s art and culture.
  • Organizing training sessions to teach the local art forms to the art lovers.
  • Popularizing traditional dance and culture.
  • Prioritizing the puppet shows.
  • Encouraging the Folk dancers and musicians.

Why should you come to Udaipur’s Bhartiya Lok Kala Mandal?

To watch the evening folk dance and puppet performance, as well as to learn about cultural items that are displayed in the Museum. You may also take assistance from this research section of the institute if you want to seek information about any Indian art form. If you are a dedicated learner, there are also learning institutions on the grounds that may assist you in teaching any art form, such as dancing or puppet shows.

lok kala mandal puppet show

Credits: www.yuvrajudaipurtaxi.com

Entry Fee of The Bhartiya Lok Kala Mandal

Entry Fees for Museum:
Rs.60/- for Indian Tourists
Rs.120/- for Foreign Tourists
Rs.25/- for students and Kids under 5 years.

Timings: 9:00 AM to 5:30 PM

Charges for Folk activities and Puppet Show:
Rs.120/- for Indian Tourists
Rs.180/- for Foreign Tourists
Rs.60/- for students and Kids under 5 years.

Timings: 12:00 PM to 1:00 PM, 6:00 PM to 7:00 PM, 7:15 PM to 8:15 PM

So, when in Udaipur, it becomes a must to visit this gem of a place.

 

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आख़िर कैसे गरबा (Garba) और डांडिया-रास (Dandiya Rasa) एक होते हुए भी अलग है..!!

“तारा विना ‘श्याम’ मने एकलो लागे … रास रामवा ने व्हेलो आवजे …!!!”

अब आने वाले नौ दिनो तक शहर की ‘गोपियाँ’ ऐसे ही अपने-अपने ‘श्याम’ के लिए सज-धज कर ये गीत गाती और इंतज़ार करती दिखेंगी। वैसे श्याम भी कम नहीं है अपने शहर के… उनका भी क्रेज देखने लायक होता है। वो भी अलग ही टशन में दिखते है। वैसे उनका ध्यान नाचने में ज़रा कम ही होता है। न जाने कितने दिलों को मिलाया है इस नवरात्री ने। कब गरबा खेलते-खेलते..डांडिया रास करते-करते कोई रास आ जाए कुछ कह नहीं सकते। मन बावला जो होता है।

अच्छा ये लिखते-लिखते ख्याल आया कि गरबा और डांडिया रास कितने अलग है ये एक दुसरे से? लिखना कुछ था पर मन इसी बात पर अटक गया..बताया तो था, मन बावला जो होता है। कब किस पर अटक जाए कौन कब रास आ जाए किसे पता?

खैर हमनें भी सोचा कि अब इसी पर खोजबीन शुरू की जाए…खोजते हुए कई पॉइंट्स, फैक्ट्स निकल आए। वही सब आप को बता दे रहे है-

 

गरबा क्या है? –

India Navratri Festiva
Photo credit : Ajit Solanki

गरबा एक गुजराती फ़ोक डांस है जो यहीं से फेमस होता हुआ पुरे उत्तर भारत और महाराष्ट्र में पहुँच गया। ‘गरबा’ संस्कृत शब्द ‘गर्भ’ और ‘दीप’ से निकला है।

दरअसल एक मिट्टी के बर्तन में ‘जौ’ और ‘तिल’ की घास उगाई जाती है, इसे एक पटिये पर रख एक जगह स्थापित करते है, उसी बर्तन को गरबा कहा गया है। इसे किसी खुले स्थान में रखा जाता है साथ ही इसके साथ एक दीपक भी जलाया जाता है। इसके इर्द-गिर्द एक गोला बनाकर डांस किया जाता है। उसे गरबा डांस कहते है। हालाँकि ‘गरबा बर्तन’ बनाना गुजरात में ही देखने को मिलेगा। अन्य दूसरी जगह जहाँ गरबे किए जाते है वहाँ बीच में अम्बा माँ की तस्वीर या मूर्ति रख और दीपक जलाकर गरबा किया जाता है। स्थापित करने के दसवें दिन गरबा का विसर्जन किया जाता है।

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photo credit : discover India

 

गरबा डांस –

कभी सोचा है कि गरबा केवल सर्किल में ही क्यूँ किया जाता है?garba-ras

इसके पीछे एक ज्ञान छिपा है वो ये है कि “ मनुष्य जीवन भी एक वृत्त(साइक्लिक स्ट्रक्चर) के समान है, इंसान जन्म लेता है …अपना जीवन जीता है… मर जाता है…फिर जन्म लेता है…। मतलब वो जहाँ से शुरू करता है वहीँ वापस आ जाता है। बीच में रखा ‘गर्भ दीप’ ये बताता है कि हर इंसान के मन में एक देव तत्व छुपा हुआ रहता है। हम सभी के मन में देवी का निवास होता है, बस ज़रुरत है तो उसे खोजने की। इसी वजह से इसके चारो और डांस किया जाता है। बीच में रखा गरबा एक जगह रहता है जो बताता है, देवी शास्वत सत्य है और हम सब यहाँ अनिश्चित(टेम्पररी) रूप से रह रहे है।

garba ground in gujrat

 

तो फिर ‘डांडिया रास’ क्या है? –dandiya dance

ये भी गुजराती फ़ोक डांस ही है, पर गरबे से थोडा अलग है। ‘डांडिया रास’ भगवान् श्री कृष्ण से जुड़ा है। रास शब्द संस्कृत के ‘रसा’ से आया है। ये डांस गुजरात और राजस्थान में किया जाता है, ख़ासकर दक्षिण राजस्थान और पश्चिम मध्य-प्रदेश और पुरे गुजरात में। इसमें गरबा डांस के उलट पुरुष और स्त्री साथ मिलकर एक या दो सजे हुए डांडियों से डांस करते है।

डांडिया रास को एक और कहानी से जोड़ा जाता है जो कि माँ दुर्गा की है। इस कहानी के अनुसार माँ दुर्गा और महिषासुर के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया था। ये नौ दिनों तक चला। इस वजह से इसमें यूज़ होने वाले डांडिये को ‘तलवार’ से भी जोड़कर देखा जाता है।dandiya ahmedabad

ऐसा बताते है… जब अफ्रीकन गुलाम(स्लेव्ज़) सौराष्ट्र बंदरगाह पर आये थे तब उन्होंने ये डांस देखा। इन अफ्रीकन गुलामो ने इसे अफ्रीकन ड्रम(जेम्बे) पर करना शुरू किया। चूँकि ये लोग मुस्लिम थे तो इन्होने इस ट्रेडिशन सौराष्ट्र में मुस्लिम तरीके से अपनाया।

 

कितने अलग है डांडिया और गरबा एक दुसरे से? –

  • गरबा डांस ‘डांडिया आरती’ से पहले किया जाता है, डांडिया आरती के बाद डांडिया रास खेला जाता है।
  • गरबा केवल महिलाओं द्वारा किया जाता था(हालाँकि अब ऐसा नहीं है) जबकि डांडिया संयुक्त रूप से किया जाता है।
  • डांडिया रास डांडिया आरती के बाद शुरू होता है, उससे पहले तक गरबा ही खेला है।
  • गरबा तीन तरह से खेला जाता है, एक ताली गरबा, २ ताली गरबा और तीन तली गरबा। आज से 10-15 साल पहले तक तीन ताली गरबा ही किया जाता था, ये थोडा कॉम्प्लेक्स था। वेस्टर्न गरबा दो ताली/एक ताली गरबा और डांडिया रास से मिलकर बना है जो आजकल काफी पोपुलर है।
  • डांडिया रास में बजने वाले गीत मुख्यतया श्री कृष्ण और राधा के ऊपर होते है जबकि गरबा में बजने वाले गीत अम्बा माँ के ऊपर बने होते है।
  • गरबा गुजरात और महाराष्ट्र में ज्यादा खेला जाता है जबकि डांडिया राजस्थान और मध्यप्रदेश में ज्यादा खेला जाता है।
  • दोनों ही डांस फॉर्म्स में औरतें रंगबिरंगी पौशाके पहनती है, जिनमे चनिया चोली, ब्राइट कलर से बने घाघरे, कमरबंध, बाजुबंध, मांग टिक्का आदि होते है।Dandiya-Garba
  • गरबा और डांडिया खेलने वाले आदमी गोल छोटा कुर्ता, कफनी पायजामा, पगड़ी और मोजरी पहनते है।
  • डांडिया के मुकाबले गरबा भारत के बहार ज्यादा फेमस है। ये फोक डांस अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन सहित दुनिया की 20 से भी ज्यादा युनिवरर्सिटीज़ में खेला जाता है।
  • ब्रम्हा ने महिषासुर को वरदान दिया था कि उसे कोई आदमी नहीं मार पाएगा, जब उसका धरती पर अत्याचार बढ़ गया तब उसका संहार माँ दुर्गा ने किया।
  • साउथ इंडिया में नवरात्री के त्यौहार को ‘गोलू’ बोला जाता है।

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गरबा और डांडिया रास भले ही हिन्दू मान्यता से जुड़ा हुआ है पर इस त्यौहार को मानाने के लिए आपका हिन्दू होना ज़रूरी नहीं है। इस डांस को किसी भी धर्म के लोग कर सकते है। इसकी ख़ासियत यही है कि ये अलग-अलग जगहों और धर्मो के लोगो को एक साथ लेकर आता है और नृत्य की भावना से सोहाद्र और प्रेम-भाव जगाता है।

ऊपर दिए गए फैक्ट्स और पॉइंट्स सिर्फ इनके बारे में बताने के लिए थे, आसान भाषा में ये थ्योरी थी पढ़ लो और जान लो। नाचना तो कल से है ही, प्रैक्टिकल में तो माहिर ही अपन। अंत में माँ दुर्गा और श्री कृष्ण को याद करते हुए उदयपुर ब्लॉग की तरफ़ से आप सबको नवरात्री की ढेर सारी बधाइयाँ। ये पर्व आपके और आपके परिवार में खुशियाँ लाये। भारतवर्ष को आगे बढ़ाये।

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Festivals

Gavari – A Dance Drama of Bhils

Gavari Performance
Photo Credit: traditionalindianmusic.co.uk

Vibrant, vigorous and graceful! Folk dances of Rajasthan performed gracefully by the colorful crowd punctuate Rajasthan’s barrenness, turning even the deserts into fertile basin of limitless colors and variations of the amazing folks living here. One of these rich festivals is GAVARI, which is a distinct art form found in the cultural heritage of the Bhils who express the devotion and faith to Lord Shiva and his wife Parvati through Folk Dance, Music and Folklores. It also symbolizes human love for forests, animals and people. Quite unique and impressive, isn’t it?

Rajasthan encompasses numerous tribes having distinct identities in term of costumes, dialects, beliefs and arts. People have nurtured a splendid tradition of folk songs and folk dances of which Gavari is unique in itself which is celebrated by Bhils. The Bhils are the original inhabitants and tribal of Mewar- Vagad area of southern Rajasthan which was gradually conquered and inhabited by Rajput kings and other northern settlers around 3rd to 4th century BC.

After the monsoons, in the months of September and October the forty-days-festival “GAVARI” is celebrated by Bhil tribe in Udaipur, Rajsamand and Chittor districts of Rajasthan. Whole male folk, even children participate in this dance-drama symbolizing a healthy environment and it intends to ensure the well-being to the community and the village. While only Bhils perform them, other castes attends the performances and offer donations. During this period, people do not eat any green vegetables, stay away from alcohol and avoid being non-vegetarian. They sleep on grounds and avoid taking bath (except on Dev-Jhulani Ekadasi).

gavari mewarGavri Mewar – via: gavari.wordpress.com

There is no definite origin of gavari. Some beliefs say the story of demon Bhasmasur who worshiped Lord Shiva, who pleased with bhashmasur’s devotion, granted him a strange wish that whenever he keeps his hand on anyone’s heads that person will die burning in fire. Thereafter, Bhasmasur started misusing the grant by killing innocent people on earth. Lord Vishnu to resolve the problem transformed himself into a beautiful woman named Mohini – the dancer and went to Bhasmasur. Bhasmasur fascinated by her beauty started imitating her dance and kept his hand on his head to copy mohini, thereby departed his life.

Bhasmasur’s soul asked forgiveness from lord Shiva and appealed Lord to keep him alive in minds of people in return of his great devotion. Lord Shiva thereafter declared that, for paying homage to a great devotee like Bhasmasur, Gavri will be celebrated every year. Since then this fest is organized in the region of Mewar by the Bhil Community.

According to another belief, Lord Shiva had been ruler of Mewar ever since times unknown.  Eklingji, a place about 17 km. away from Udaipur, was believed to be his holy abode. Once, Goddess Parvati, his spouse, had gone to visit her father’s home for a long period of a month and a quarter. Deeply in love with his wife, the long separation ran Shiva into deep melancholic mood. To amuse him, the devotees Ganas (who were Bhils) devised an entertainment program made up of dancing, singing and theatrical activities. The event eventually became ritualistic and took form of Gavari, which is now an integral part of socio-cultural and religious life of the Bhils.

In this folk play there are four kinds of characters – dev, humans, demons and animals. The RAI and BURIYA are the two main mythological characters to form the GAVARI, Bhil ritual performance. In GAVARI dance-drama group, there are two RAIs in form of PARVATI (GORJA) and MOHINI goddesses in female costumes who always stays or sits in the centre of the performing circle. The BHURIYA as Bhashmasur – keeps a wooden mask of black surrounding bull tail hair on his face and carrying a wooden stick or “Chhari“, always walks in opposite direction to other performers. The other priests as Bhairon and goddess Mata, stays with RAI as a guard to her.

Mostly in the day time they perform GAVARI in the village where they enact different mythological and social episodes with MADAL and THALI as their main musical instruments. People go from village to village, especially to the villages where their daughters and sisters reside after getting married.

gawri udaipur
Photo by: Pramod Soni

Any open space can serve as a stage. For five to six hours each day; the troupe performs a series of episodes. On two occasions the festivity lasts all night. Like many Indian rituals, these scenes blend secular, folk, and Hindu epic characters with references to local daily life. Despite some comic scenes, the Gavari ritual is generally solemn, ending with the appearance of gods and goddess, and often including trance among both performers and audience.

In Gavari, the last day of performance, rituals the Bhil Gavari players also dance and perform in the night as night awakening rituals. With other legends, they also perform the “Hiraniya Bhoot” or ghost performance in which two artists plays the role of ghost in which they covered the body with the grass.

Gavari is played so skillfully by these tribal people that it produces the impact of an eye catching scene, the magical effect of which makes the viewers stop and stay on to watch it and get engaged until the episode reaches its end. Gavari, not only holds its audience spellbound for whole day long, but also refreshes and energizes performers as well. Gavari is thus a valuable cultural inheritance bestowed by the tribal from one generation to the other and from one century to the following one.

Featured Photo Credit: mountainridge.in