Categories
Places to Visit

सावन मास में इन मंदिरों में जाना न भूले

सावन का महीना शुरू हो गया है। हिंदू धर्म में सावन के महीने को महादेव का सबसे प्रिय महीना माना जाता है। सावन शुरू होते ही मंदिरों में भक्तों का तांता लगना शुरू हो जाता है। इस पूरे माह में शिव जी की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है, लोग व्रत रखते है, शिवलिंग पर दूध से अभिषेक करते है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सावन माह में महादेव की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करनी चाहिए। इससे शिव जी प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों के जीवन के सारे कष्टों को दूर कर देते हैं। इस माह में जो भी जातक सोमवार व्रत रखते हैं और शिवलिंग की आराधना करते हैं, भोले शंकर उनकी सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं। सावन के पूरे महीने शिव मंदिरों में भक्तों की खूब भीड़ लगी रहती है। शायद ही कोई मंदिर या शिवालय होगा जहाँ शिव के जयकारे न गूंजते हों। लेकिन क्या आप जानते है हमारे शहर उदयपुर में भी कई सारे ऐसे शिव मंदिर है जो प्रसिद्ध है, जहाँ लोग दूर-दूर से दर्शन करने व भ्रमण करने के लिए आते है। आइए जानते है-

1. महाकालेश्वर मंदिर

mahakaleshwar mandir
महाकालेश्वर मंदिर

उदयपुर का यह मंदिर विश्व भर में प्रसिद्ध है। महाकालेश्वर का यह मंदिर फतहसागर झील के किनारे स्थापित है। इस मंदिर का निर्माण बहुत ही सुन्दर रूप से किया गया है और इस मंदिर की कला-कृतियाँ बहुत ही लुभावनी है। यह मंदिर काफी बड़े क्षेत्रफल में फैला हुआ है, इस मंदिर से फतहसागर झील को आराम से देखा जा सकता है।

कहा जाता है कि यह मंदिर 900 साल पुराना हैं, महाकालेश्वर स्वयंभू (स्वयं प्रकट) हुए हैं। यहाँ भगवान शिव अपने भक्तों को अलग-अलग स्वरूप में दर्शन देते है। सवेरे दर्शन में बाल स्वरूप, मध्यान्ह दर्शन में युवा स्वरूप और सायंकाल दर्शन में वृद्ध स्वरूप लेते है। इन सारे स्वरूपों में भगवान शिव अलग-अलग रंग भी बदलते हैं। शिवरात्रि के दिन मंदिर में लघु रूद्र पूजा होती है। मंदिर में स्थित एक प्राचीन धूनी है, उस मंदिर पर ध्वजा का कार्यक्रम किया जाता है। यह ध्वजा गणपति, भैरव और माताजी की होती है। मंदिर के पास संत भोलेनाथ जी की एक जीवित समाधि भी है।

2. अमरख महादेव मंदिर –

अमरख महादेव मंदिर

हरी-भरी वादियों और पहाड़ियों के बीच बसा अमरख महादेव मंदिर, उदयपुर से करीब 15 किमी दूर अम्बेरी गाँव में स्थित है। यहाँ स्थित चतुर्मुख भगवान शिव की प्रतिमा इतनी निराली है कि मन मोह लेती है। यह मंदिर कई सारे पेड़-पौधों के साथ बहुत बड़ी जगह में फैला हुआ है। मंदिर के पास और भी कई सारे मंदिर है, जिसमें हनुमान जी और माताजी का मंदिर शामिल है। मंदिर के पास दो कुंड है, एक छोटा और एक बड़ा। जिस कुंड से पानी बहता है, उसे गंग कुंड के नाम से जाना जाता है। कहते है की यह कुंड भी गंगा नदी के समान ही है। मंदिर का इतिहास 1500 साल पुराना है पर आज भी इसकी सुंदरता और भव्यता में कोई कमी नहीं है।

कहा जाता है कि प्राचीन समय में अमरीश नाम के एक राजा थे। उन्होंने सभी सांसारिक सुखों को छोड़ कर शिव जी की पूजा करने का निश्चय किया और वे यहाँ आ गए। हर दिन शिवलिंग पर जल चढ़ाने के लिए वे रोज गंगा नदी से पानी लाते थे। गंगा उनकी स्वामिभक्ति देख इतना प्रसन्न हुई की वे राजा के साथ उसी मंदिर में चली गईं और वही स्थापित हो गईं। तब से उस कुंड को गंगा नदी के समान ही माना जाता है।

इस पानी में मछली, कछुए और साँप भी है। इस कुंड के पानी की एक अलग विशेषता बताई जाती है कि भीषण से भी भीषण काल आ जाए पर यह पानी कभी भी सूखता नहीं है। साथ ही इस मंदिर का पानी कभी घटता और बढ़ता भी नहीं है। मंदिर में पत्थर पर हस्तकलाओं द्वारा कई आकृतियों से मंदिर को रूप प्रदान किया गया है। मंदिर परिसर में कई सारे हवन कुंड भी हैं, जहां श्रद्धालु भक्ति भाव से हवन और यज्ञ करते है। यह मंदिर राजा हरिश्चंद्र के पूर्वज राजा महर्षि अमरीश ने बनवाया था।

मंदिर की प्रतिमा के चार मुख है – 1.पूर्व दिशा – सूर्यमुख  2.उत्तर दिशा -इंद्र मुख  3.पश्चिम दिशा -विष्णु मुख  4. उत्तर दिशा- शिव मुख। शिव मुख के ही तीन अभिनेत्र है और उसे मुख पर गणपति, माँ गौरा और कार्तिकेय विराजमान है। यह विश्व की एकमात्र ऐसी प्रतिमा है जिसमें ये तीनों विराजमान है बाकि मंदिरों में सभी प्रतिमाएं दूर-दूर स्थापित होती है।

3.गुप्तेश्वर महादेव मंदिर

guptesshwar mahadev
गुप्तेश्वर महादेव मंदिर

गुप्तेश्वर महादेव उदयपुर शहर से 10 किमी दूर तितरड़ी गाँव में स्थित है। गुप्तेश्वर महादेव पहाड़ियों के बीच एक गुफ़ा में बसें हैं, जहाँ सिर्फ पैदल ही जा सकते है। मंदिर में एक शिवलिंग है, जो आदिकाल से यहाँ स्थित है और यह स्वयंभू शिवलिंग है। यह मंदिर काफी अद्भुत है। यह मंदिर पहाड़ियों पर स्थित है और पूरी तरह गुफा के अंदर बना हुआ है। इस मंदिर की गुफा तक पहुँचने के लिए करीब 1300 मीटर ऊँची पहाड़ी की चढ़ाई करनी पड़ती है।

कहते है कि 1962 में गुरुदेव ब्रज बिहारी जी महाराज ने गुप्तेश्वर जी की प्रतिमा स्थापित करवाई थी। गुरुदेव ब्रज बिहारी जी 1951 में उदयपुर आए थे। गुरुदेव को सपने में आभास होता था की कोई स्थान है, जो उन्हें अपनी तरफ खींच रहा है।

उदयपुर आने के बाद उन्होंने कई जगहों पर भ्रमण किया तब उन्हें पता चला की यहाँ कोई ऐसी गुफा है। यहाँ आने पर उन्हें ऐसा एहसास हुआ कि वो यहाँ पहले भी आ चुके है,उसके बाद गुरूजी वहीं रहने लगे।

कार्तिक पूर्णिमा कि रात को उन्हें ऐसा आभास हुआ की उन्हें कोई बुला रहा है, उन्हें लगा कि गुफा में जाना चाहिए। वो अंदर गए, वहां उन्हें एक धूनी दिखाई दी तब उन्हें यह संकेत मिल चुका था की पहले से कुछ महात्माओं ने यहाँ खूब भजन कर रखा है। गुरूजी ने तभी धूनी को चेतन कर दिया और कठोर तप करने लगे। उसके बाद ही गुरु जी ने यहाँ महादेव जी की मूर्ति स्थापित की और उसके बाद से ही मेले का आयोजन किया जाने लगा। इस गुफा का रास्ता प्राकृतिक है, यह गुफा इस तरह से बनी है जो सर्दियों में गरम रहती है और गर्मियों में ठंडी रहती है।

4. कुकड़ेश्वर महादेव मंदिर

कुकड़ेश्वर महादेव मंदिर

उदयपुर से 22 किमी दूर यह मंदिर स्थित है। इस इलाके से गुजरने पर ग्रामीण संस्कृति को देखा जा सकता है। मंदिर जाते समय रास्ते में कई सारी सुन्दर पहाड़ियां देखने को मिलेगी। मंदिर के रास्ते में एक 400 साल पुराना जलाशय भी है जो मानव निर्मित है। यह जलाशय लखावली गाँव में स्थित है। मंदिर जाते समय रास्ते में जो पहाड़ियां आती है, इन्ही पहाड़ियों में महाराणा प्रताप ने युद्ध किए थे और मुगलों को परास्त किया था।

मंदिर का नाम कुकड़ेश्वर है, इसके पीछे भी एक कहानी है। कहते है कि जब मेवाड़ पर मुग़लों ने हमला किया था तब महाराणा प्रताप कुछ समय के लिए यहाँ रुके थे। जब महराणा प्रताप विश्राम कर रहे थे तब उनके कान में मुर्गे की बांग सुनाई दी और आक्रमण का सामना करने के लिए सतर्क हो गए। मुर्गे की बांग कहाँ से आई थी इसका कोई तथ्य आज भी नहीं मिला, लेकिन यहाँ के लोगो का मानना है कि यह स्वयं शिवजी थे जिन्होंने मुर्गे की आवाज में बांग देकर महाराणा प्रताप को संकेत दे कर सतर्क किया था।

5. झामेश्वर महादेव मंदिर

झामेश्वर महादेव मंदिर

यह मंदिर उदयपुर से 25 किमी दूर है। कहते है की ये मंदिर उदयपुर की स्थापना से भी पहले का है। यहाँ लोग दूर दराज से आस्था रख कर दर्शन करने आते है। यहाँ महादेव जी का चमत्कार बहुत प्रसिद्ध है। कोई भी व्यक्ति यहाँ अपनी मनोकामना के साथ आता है और महादेव जी के आगे दो पर्ची रखता है। एक में हाँ दूसरे में ना की पर्ची। जिस पर्ची पर फूल आकर गिरता है वहीं मान्यता होती है और वहीं काम सिद्ध होता है।

झामेश्वर जी की पहाड़ियों पर स्थित ऐतिहासिक कालका माता मंदिर भी है। कहा जाता है की महाराणा उदय सिंह जी ने कालका माता मंदिर से ही उदयपुर की स्थापना की थी। उदय सिंह जी जब भी कुछ कार्य का निर्माण करने जाते तो किसी अनहोनी की वजह से वो बना बनाया निर्माण अपने आप ही गिर जाता।

तब किसी ने उदय सिंह जी को सलाह दी कि अगर आपको उदयपुर शहर बसाना है तो कालका माता मंदिर से एक खरगोश निकलेगा और उस खरगोश का शिकार कीजिए। शिकार के बाद जहाँ भी वो खरगोश गिरेगा बस वहीं से आप उदयपुर की स्थापना शुरू कीजिए, यह करने से आपके सभी कार्य बनने लगेंगे । उदय सिंह जी न ऐसा ही किया और इस तरह उदयपुर शहर का निर्माण हुआ।

यह है उदयपुर के कुछ प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर जहाँ लोग श्रद्धा विश्वास और भक्ति के साथ आते है और अपनी मनोकामनाओं को पूर्ण करते है। मंदिर दर्शन के साथ यहाँ कई सारे लोग घूमने-फिरने भी आते है। अब सावन चल रहे है, तो आप भी अवश्य ही इन मंदिरों में भक्ति भाव से जाए और महादेव से अपनी हर मनोकामनाए पूर्ण करवाए और भगवान के दर्शन का लाभ उठाए।

आपको यह लेख कैसा लगा हमारी ईमेल आईडी पर जरूर बताए – kratikashah12345@gmail.com

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *