Categories
History and Culture

मेवाड़ इतिहास के पांच रत्न

मेवाड़ वीरों की भूमि रही है। यहाँ पर बहुत सारे वीरों ने जन्म लिया है। इसका सबसे सर्वोत्तम उदाहरण है “महाराणा प्रताप”। इनके साथ में कुछ और भी व्यक्तित्व के धनी लोग थे, जिन्होंने मेवाड़ की वीर भूमि पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है। इन्ही में से कुछ पांच रत्नों की बात आज हम यहाँ कर रहे है।

1. पन्नाधाय

panna dhaay
पन्नाधाय

जनवरी 1535 की बात है। गुजरात के बादशाह बहादुर शाह ने चित्तौड़ पहुंचकर दुर्ग को घेर लिया था। हमले की खबर सुनकर चित्तौड़ की राजमाता कर्मवती ने अपने सभी राजपूत सामंतो को सन्देश भिजवा दिया कि-यह तुम्हारी मातृभूमि है, इसे मैं तुम्हे सौंपती हूँ, चाहो तो इसे रखो, चाहो तो दुश्मन को सौंप दो।

इस सन्देश से पूरे मेवाड़ में सनसनी फैल गई और सभी राजपूत सामंत मेवाड़ की रक्षा करने चित्तौड़ दुर्ग में जमा हो गए। रावत बाघ सिंह किले की रक्षात्मक मोर्चेबंदी करते हुए स्वयं प्रथम द्वार पाडन पोल पर युद्ध के लिए तैनात हुए। मार्च 1535 में बहादुर शाह के पुर्तगाली तोपचियों ने अंधाधुन गोले दाग कर किले की दीवारों को काफी नुकसान पहुंचाया तथा किले के नीचे सुरंग बनाकर उसमें विस्फोट कर किले की दीवारें उड़ा दी।

राजपूत सैनिक अपने शौर्यपूर्ण युद्ध के बावजूद तोपखाने के आगे टिक नहीं पाए और ऐसी स्थिति में जौहर और शाका का निर्णय लिया गया। राजमाता कर्मवती के नेतृत्व में 13000 वीरांगनाओं ने विजय स्तम्भ के सामने लकड़ी के अभाव में बारूद के ढेर पर बैठ कर जौहर व्रत का अनुष्ठान किया। जौहर व्रत संपन्न होने के बाद उसकी प्रज्वलित लपटों की छाया में राजपूतों ने केसरिया वस्त्र धारण कर शाका किया। वहीँ किले का द्वार खोल शत्रु सेना पर टूट पड़े। बहादुर शाह दिल्ली का मुग़ल बादशाह था। वो चित्तौड़ किले में पहुंचा और उसने भयंकर लूटपाट मचाई। चित्तौड़ विजय के बाद बहादुर शाह, हुमायूं से लड़ने के लिए रवाना हुए और मंदसौर के पास मुग़ल सेना से हुए युद्ध में हार गया। जिसकी खबर मिलते ही 7000 राजपूत सैनिकों ने आक्रमण कर पुनः दुर्ग पर कब्ज़ा कर लिया। विक्रमादित्य, जो रानी कर्मवती के पुत्र थे, पुनः उन्हें उनकी गद्दी पर बैठा दिया गया।

चित्तौड़ लौटते समय विक्रमादित्य ने देखा कि नगर नष्ट हो चुका है, अब चित्तौड़ के असली उत्तराधिकारी विक्रमादित्य थे। उनका एक छोटा भाई था, जो उस समय मात्र छः वर्ष का था। परन्तु उस समय एक दासी पुत्र बनबीर ने रीजेंट के अधिकार हथिया लिए थे। उसकी नियत और लक्ष्य चित्तौड़ की राजगद्दी हासिल करना था। उसी के चलते उसने विक्रमादित्य की हत्या कर दी थी। अब उसका एकमात्र लक्ष्य चित्तौड़ के वंशानुगत बालक उत्तराधिकारी उदय सिंह को मारना था।

बालक उदय की धाय माँ पन्नाधाय ने उसकी माँ राजमाता कर्मवती के जौहर द्वारा स्वर्गारोहण पर पालन पोषण का दायित्व संभाला था। वे स्वामी भक्तित्व अनुकरणीय लगन से उसकी सुरक्षा कर रही थी। तभी महल के एक तरफ से तेज चीखे सुनाई देने पर पन्नाधाय ने यह अनुमान लगा लिया था की शत्रु राजकुमार बालक उदय सिंह की तलाश में आ ही गया। उसने तुरंत बालक उदय सिंह को टोकरी में सुलाकर पत्तियों से ढक कर एक सेवक को उसे सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी सौंप दी और उस खाट पर उदय सिंह की जगह अपने बालक को सुला दिया। सत्ता पाने के नशे में चूर बनबीर ने वहां पहुँचते ही पन्ना के पुत्र को उदयसिंह समझकर तलवार से वही मार डाला।

पन्ना कई समय तक दुष्ट बनबीर के चंगुल में न आने के डर से इधर-उधर भटकती रही। फिर उन्हें कुम्भलगढ़ में शरण मिली। उदय सिंह किलेदार का भांजा बनकर बड़े हुए, तेरह वर्ष की उम्र में उनको मेवाड़ी उमरावों ने अपना राजा स्वीकार कर लिया और राज्याभिषेक कर दिया। इस तरह उदय सिंह मेवाड़ के वैधानिक महाराणा बन गए। स्वामिभक्ति एवं निःस्वार्थ भाव से पन्नाधाय ने अपने स्वामी के प्राणों की रक्षा के लिए अपने पुत्र का बलिदान दे दिया। एक माँ का इस प्रकार से अपने स्वामी की रक्षा के लिए पुत्र का बलिदान का उदाहरण इतिहास में कहीं भी नहीं मिलेगा।

 

2. भामाशाह

bhamashah
भामाशाह

भामाशाह महाराणा प्रताप के बचपन के ख़ास मित्र है। उनका जन्म ओसवाल जैन परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम भारमल था, जो रणथम्भौर के किलेदार थे। उन्हें बाद में महाराणा उदय सिंह के नेतृत्व में प्रधानमंत्री बना दिया था। भामाशाह ने अपने छोटे भाई ताराचंद के साथ मेवाड़ की बहुत सी लड़ाइयों में भाग लिया था। कहा जाता है कि जब महाराणा प्रताप अपने परिवार के साथ जंगलों में भटक रहे थे, तब भामाशाह ने अपनी सारी जमा पूंजी महाराणा को समर्पित कर दी थी। जिस समय मेवाड़ एवं महाराणा प्रताप को धन की अत्यधिक आवश्यकता थी, ऐसे कठिन समय में ताराचंद एवं भामाशाह ने महाराणा प्रताप को लाखों रुपए एवं सोने के सिक्के भेंट किए। इस धन से महाराणा ने एक सेना संगठित की तथा बाद में मुग़लों की सेना के शिविरों पर हमला किया। 11 जनवरी 1600 को इनकी मृत्यु किसी बीमारी के कारण हो गई थी। भामाशाह ने अपना पूरा जीवन लालच और स्वार्थ से ऊपर उठकर मेवाड़ पर बलिदान कर दिया।

 

3. राणा पूंजा

rana punja
राणा पूंजा

राणा पूंजा भील जनजाति के थे। वे महाराणा प्रताप के विश्वसनीय सैनिक थे। पूंजा ने महाराणा प्रताप हल्दी घाटी युद्ध में मुग़ल सेना से लड़ाई लड़ी थी। पूंजा एवं उनके साथी, भील जनजाति ने महाराणा प्रताप युद्ध में अपना एक बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान दिया था। आज भी इतिहास के पन्नो में एक तरफ महाराणा प्रताप तो दूसरी तरफ राणा पूंजा का नाम भी आता है। स्वयं महाराणा प्रताप ने पूंजा के नाम के आगे “राणा” की उपाधि लगाईं थी। संपूर्ण मेवाड़ पूंजा के त्याग के कारण भील जनजाति का अत्यधिक ऋणी है। मेवाड़ के इतिहास में इनके त्याग के फलस्वरूप जब भी कोई नया महाराणा राजगद्दी का उत्तराधिकारी बनता था तो एक भील अपने खून से नए महाराणा का राजतिलक किया करता था। उसके बाद ही नए महाराणा को मान्यता मिलती थी। इसके साथ ही राणा पूंजा एवं भील जाति के लोगों के त्याग एवं बलिदान की भावना का सम्मान करते हुए, मेवाड़ के राजवंश ने अपने राजचिन्हों अथवा मेवाड़ के झंडो में एक राजपूत के साथ-साथ एक भील को भी शस्त्रों के साथ खड़ा दिखाया है, जो भील समुदाय के लिए अत्यंत सम्मान की बात थी। भील समुदाय के योगदान मेवाड़ के लिए अविस्मरणीय रहेंगे।

 

4. झाला मन्ना

JHALA MANNA
झाला मन्ना

झाला मन्ना बड़ी सादड़ी से थे। झाला मन्ना हल्दी घाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से मुगलों के विरुद्ध लड़े थे। झाला ने हल्दीघाटी युद्ध में अपना पूरा बहादुरी के साथ त्याग समर्पण बलिदान दिया था। जब राणा पूंजा हल्दी घाटी युद्ध में घायल हो गए थे तथा जब उनको युद्ध क्षेत्र से बाहर ले जाया गया था, तब झाला मन्ना ने स्वयं को महाराणा प्रताप के भाँती मेवाड़ के राजमुकुट एवं महाराणा प्रताप के प्रतीक चिन्हों से सजाया एवं निरंतर लड़ाई जारी रखी। झाला मन्ना की चाल कामयाब रही और शत्रुओं ने झाला मन्ना को ही महाराणा प्रताप समझ लिया और उन पर आक्रमण करने के लिए टूट पड़े। इसी भीषण युद्ध को करते-करते झाला मन्ना वीरगति को प्राप्त हुए। वीरगति को प्राप्त होने से पहले ही झाला मन्ना मुगल सेना को पूर्व की ओर पीछे धकेल चुके थे। इनके इसी बलिदान की वजह से महाराणा प्रताप मेवाड़ को मुक्त करवा पाए।

 

5. हकीम खां सूर

Hakim khan suri
  हकीम खां सूर

इनको हकीम सोज खां अफगान के नाम से भी जाना जाता है। ये एक अफगानी मुस्लिम पठान थे, जो महाराणा प्रताप के प्रमुख सैनिक थे। वे महाराणा प्रताप के तोपखाने के प्रमुख हुआ करते थे। हकीम खां हल्दी घाटी के युद्ध में अकबर की सेना के खिलाफ प्रताप की सेना के सेनापति के रूप में रहे। इन्होने महाराणा प्रताप युद्ध में वीरता से युद्ध किया और युद्ध क्षेत्र में ही इनकी मृत्यु हो गई। हकीम खां, सूर वंश शेरशाह सूरी के वंशज थे। ये एक मात्र ऐसे व्यक्ति थे जो मुग़लो के खिलाफ मुसलमान होते हुए भी महाराणा प्रताप की तरफ से लड़े। हकीम खां वीरता, बहादुरी, त्याग, ईमानदारी के अतुलनीय उदाहरण है।

आपको यह लेख कैसा लगा आप हमारी ईमेल आईडी पर बता सकते है- KRATIKASHAH12345@GMAIL.COM

Categories
News

शहर के 5 प्रमुख मार्गों में नो व्हीकल जोन

शहर के 5 प्रमुख मार्गों को हर शनिवार और रविवार शाम 5 से रात 10 बजे तक नो व्हीकल जोन बनाने का सुझाव आया है। इन मार्गों में शामिल जगदीश चौक, घंटाघर, चांदपोल, भट्टियानी चौराहा और रंग निवास क्षेत्र है। इन पांचो जगहों के क्षेत्रवासियों का कहना है कि प्रतिदिन यातायात की परेशानी से यहाँ स्थित सभी क्षेत्रवासियों को असुविधा हो रही है। वीकेंड के समय यह समस्या और बढ़ जाती है, जब पर्यटको की भी आवक होती है। इन क्षेत्रों में तंग गलियों और लोगों की आवाजाही के बीच ऑटो-कारों के चलते आए दिन जाम लगे रहते थे। इस समस्या से निजात पाने के लिए यह तय किया गया की आमजन के सहयोग से इन सभी क्षेत्रों में शनिवार और रविवार वाहनों के आवागमन पर प्रतिबन्ध लगाएंगे। नो व्हीकल जोन के समय में, प्रतिबन्ध क्षेत्र के लिए उन 5 जगहों पर वाहन और एम्बुलेंस को भी तैनात किया जाएगा।
जन चेतना रैली निकालकर लोगों को इसके फायदे बताऐंगे। इस बैठक में शामिल समिति अध्यक्ष दिनेश मकवाना, विनोद पानेरी, गोपाल नागर, राजेश वैष्णव, प्रदीप सैन आदि मौजूद थे।

Categories
Places to Visit

सावन मास में इन मंदिरों में जाना न भूले

सावन का महीना शुरू हो गया है। हिंदू धर्म में सावन के महीने को महादेव का सबसे प्रिय महीना माना जाता है। सावन शुरू होते ही मंदिरों में भक्तों का तांता लगना शुरू हो जाता है। इस पूरे माह में शिव जी की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है, लोग व्रत रखते है, शिवलिंग पर दूध से अभिषेक करते है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सावन माह में महादेव की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करनी चाहिए। इससे शिव जी प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों के जीवन के सारे कष्टों को दूर कर देते हैं। इस माह में जो भी जातक सोमवार व्रत रखते हैं और शिवलिंग की आराधना करते हैं, भोले शंकर उनकी सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं। सावन के पूरे महीने शिव मंदिरों में भक्तों की खूब भीड़ लगी रहती है। शायद ही कोई मंदिर या शिवालय होगा जहाँ शिव के जयकारे न गूंजते हों। लेकिन क्या आप जानते है हमारे शहर उदयपुर में भी कई सारे ऐसे शिव मंदिर है जो प्रसिद्ध है, जहाँ लोग दूर-दूर से दर्शन करने व भ्रमण करने के लिए आते है। आइए जानते है-

1. महाकालेश्वर मंदिर

mahakaleshwar mandir
महाकालेश्वर मंदिर

उदयपुर का यह मंदिर विश्व भर में प्रसिद्ध है। महाकालेश्वर का यह मंदिर फतहसागर झील के किनारे स्थापित है। इस मंदिर का निर्माण बहुत ही सुन्दर रूप से किया गया है और इस मंदिर की कला-कृतियाँ बहुत ही लुभावनी है। यह मंदिर काफी बड़े क्षेत्रफल में फैला हुआ है, इस मंदिर से फतहसागर झील को आराम से देखा जा सकता है।

कहा जाता है कि यह मंदिर 900 साल पुराना हैं, महाकालेश्वर स्वयंभू (स्वयं प्रकट) हुए हैं। यहाँ भगवान शिव अपने भक्तों को अलग-अलग स्वरूप में दर्शन देते है। सवेरे दर्शन में बाल स्वरूप, मध्यान्ह दर्शन में युवा स्वरूप और सायंकाल दर्शन में वृद्ध स्वरूप लेते है। इन सारे स्वरूपों में भगवान शिव अलग-अलग रंग भी बदलते हैं। शिवरात्रि के दिन मंदिर में लघु रूद्र पूजा होती है। मंदिर में स्थित एक प्राचीन धूनी है, उस मंदिर पर ध्वजा का कार्यक्रम किया जाता है। यह ध्वजा गणपति, भैरव और माताजी की होती है। मंदिर के पास संत भोलेनाथ जी की एक जीवित समाधि भी है।

2. अमरख महादेव मंदिर –

अमरख महादेव मंदिर

हरी-भरी वादियों और पहाड़ियों के बीच बसा अमरख महादेव मंदिर, उदयपुर से करीब 15 किमी दूर अम्बेरी गाँव में स्थित है। यहाँ स्थित चतुर्मुख भगवान शिव की प्रतिमा इतनी निराली है कि मन मोह लेती है। यह मंदिर कई सारे पेड़-पौधों के साथ बहुत बड़ी जगह में फैला हुआ है। मंदिर के पास और भी कई सारे मंदिर है, जिसमें हनुमान जी और माताजी का मंदिर शामिल है। मंदिर के पास दो कुंड है, एक छोटा और एक बड़ा। जिस कुंड से पानी बहता है, उसे गंग कुंड के नाम से जाना जाता है। कहते है की यह कुंड भी गंगा नदी के समान ही है। मंदिर का इतिहास 1500 साल पुराना है पर आज भी इसकी सुंदरता और भव्यता में कोई कमी नहीं है।

कहा जाता है कि प्राचीन समय में अमरीश नाम के एक राजा थे। उन्होंने सभी सांसारिक सुखों को छोड़ कर शिव जी की पूजा करने का निश्चय किया और वे यहाँ आ गए। हर दिन शिवलिंग पर जल चढ़ाने के लिए वे रोज गंगा नदी से पानी लाते थे। गंगा उनकी स्वामिभक्ति देख इतना प्रसन्न हुई की वे राजा के साथ उसी मंदिर में चली गईं और वही स्थापित हो गईं। तब से उस कुंड को गंगा नदी के समान ही माना जाता है।

इस पानी में मछली, कछुए और साँप भी है। इस कुंड के पानी की एक अलग विशेषता बताई जाती है कि भीषण से भी भीषण काल आ जाए पर यह पानी कभी भी सूखता नहीं है। साथ ही इस मंदिर का पानी कभी घटता और बढ़ता भी नहीं है। मंदिर में पत्थर पर हस्तकलाओं द्वारा कई आकृतियों से मंदिर को रूप प्रदान किया गया है। मंदिर परिसर में कई सारे हवन कुंड भी हैं, जहां श्रद्धालु भक्ति भाव से हवन और यज्ञ करते है। यह मंदिर राजा हरिश्चंद्र के पूर्वज राजा महर्षि अमरीश ने बनवाया था।

मंदिर की प्रतिमा के चार मुख है – 1.पूर्व दिशा – सूर्यमुख  2.उत्तर दिशा -इंद्र मुख  3.पश्चिम दिशा -विष्णु मुख  4. उत्तर दिशा- शिव मुख। शिव मुख के ही तीन अभिनेत्र है और उसे मुख पर गणपति, माँ गौरा और कार्तिकेय विराजमान है। यह विश्व की एकमात्र ऐसी प्रतिमा है जिसमें ये तीनों विराजमान है बाकि मंदिरों में सभी प्रतिमाएं दूर-दूर स्थापित होती है।

3.गुप्तेश्वर महादेव मंदिर

guptesshwar mahadev
गुप्तेश्वर महादेव मंदिर

गुप्तेश्वर महादेव उदयपुर शहर से 10 किमी दूर तितरड़ी गाँव में स्थित है। गुप्तेश्वर महादेव पहाड़ियों के बीच एक गुफ़ा में बसें हैं, जहाँ सिर्फ पैदल ही जा सकते है। मंदिर में एक शिवलिंग है, जो आदिकाल से यहाँ स्थित है और यह स्वयंभू शिवलिंग है। यह मंदिर काफी अद्भुत है। यह मंदिर पहाड़ियों पर स्थित है और पूरी तरह गुफा के अंदर बना हुआ है। इस मंदिर की गुफा तक पहुँचने के लिए करीब 1300 मीटर ऊँची पहाड़ी की चढ़ाई करनी पड़ती है।

कहते है कि 1962 में गुरुदेव ब्रज बिहारी जी महाराज ने गुप्तेश्वर जी की प्रतिमा स्थापित करवाई थी। गुरुदेव ब्रज बिहारी जी 1951 में उदयपुर आए थे। गुरुदेव को सपने में आभास होता था की कोई स्थान है, जो उन्हें अपनी तरफ खींच रहा है।

उदयपुर आने के बाद उन्होंने कई जगहों पर भ्रमण किया तब उन्हें पता चला की यहाँ कोई ऐसी गुफा है। यहाँ आने पर उन्हें ऐसा एहसास हुआ कि वो यहाँ पहले भी आ चुके है,उसके बाद गुरूजी वहीं रहने लगे।

कार्तिक पूर्णिमा कि रात को उन्हें ऐसा आभास हुआ की उन्हें कोई बुला रहा है, उन्हें लगा कि गुफा में जाना चाहिए। वो अंदर गए, वहां उन्हें एक धूनी दिखाई दी तब उन्हें यह संकेत मिल चुका था की पहले से कुछ महात्माओं ने यहाँ खूब भजन कर रखा है। गुरूजी ने तभी धूनी को चेतन कर दिया और कठोर तप करने लगे। उसके बाद ही गुरु जी ने यहाँ महादेव जी की मूर्ति स्थापित की और उसके बाद से ही मेले का आयोजन किया जाने लगा। इस गुफा का रास्ता प्राकृतिक है, यह गुफा इस तरह से बनी है जो सर्दियों में गरम रहती है और गर्मियों में ठंडी रहती है।

4. कुकड़ेश्वर महादेव मंदिर

कुकड़ेश्वर महादेव मंदिर

उदयपुर से 22 किमी दूर यह मंदिर स्थित है। इस इलाके से गुजरने पर ग्रामीण संस्कृति को देखा जा सकता है। मंदिर जाते समय रास्ते में कई सारी सुन्दर पहाड़ियां देखने को मिलेगी। मंदिर के रास्ते में एक 400 साल पुराना जलाशय भी है जो मानव निर्मित है। यह जलाशय लखावली गाँव में स्थित है। मंदिर जाते समय रास्ते में जो पहाड़ियां आती है, इन्ही पहाड़ियों में महाराणा प्रताप ने युद्ध किए थे और मुगलों को परास्त किया था।

मंदिर का नाम कुकड़ेश्वर है, इसके पीछे भी एक कहानी है। कहते है कि जब मेवाड़ पर मुग़लों ने हमला किया था तब महाराणा प्रताप कुछ समय के लिए यहाँ रुके थे। जब महराणा प्रताप विश्राम कर रहे थे तब उनके कान में मुर्गे की बांग सुनाई दी और आक्रमण का सामना करने के लिए सतर्क हो गए। मुर्गे की बांग कहाँ से आई थी इसका कोई तथ्य आज भी नहीं मिला, लेकिन यहाँ के लोगो का मानना है कि यह स्वयं शिवजी थे जिन्होंने मुर्गे की आवाज में बांग देकर महाराणा प्रताप को संकेत दे कर सतर्क किया था।

5. झामेश्वर महादेव मंदिर

झामेश्वर महादेव मंदिर

यह मंदिर उदयपुर से 25 किमी दूर है। कहते है की ये मंदिर उदयपुर की स्थापना से भी पहले का है। यहाँ लोग दूर दराज से आस्था रख कर दर्शन करने आते है। यहाँ महादेव जी का चमत्कार बहुत प्रसिद्ध है। कोई भी व्यक्ति यहाँ अपनी मनोकामना के साथ आता है और महादेव जी के आगे दो पर्ची रखता है। एक में हाँ दूसरे में ना की पर्ची। जिस पर्ची पर फूल आकर गिरता है वहीं मान्यता होती है और वहीं काम सिद्ध होता है।

झामेश्वर जी की पहाड़ियों पर स्थित ऐतिहासिक कालका माता मंदिर भी है। कहा जाता है की महाराणा उदय सिंह जी ने कालका माता मंदिर से ही उदयपुर की स्थापना की थी। उदय सिंह जी जब भी कुछ कार्य का निर्माण करने जाते तो किसी अनहोनी की वजह से वो बना बनाया निर्माण अपने आप ही गिर जाता।

तब किसी ने उदय सिंह जी को सलाह दी कि अगर आपको उदयपुर शहर बसाना है तो कालका माता मंदिर से एक खरगोश निकलेगा और उस खरगोश का शिकार कीजिए। शिकार के बाद जहाँ भी वो खरगोश गिरेगा बस वहीं से आप उदयपुर की स्थापना शुरू कीजिए, यह करने से आपके सभी कार्य बनने लगेंगे । उदय सिंह जी न ऐसा ही किया और इस तरह उदयपुर शहर का निर्माण हुआ।

यह है उदयपुर के कुछ प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर जहाँ लोग श्रद्धा विश्वास और भक्ति के साथ आते है और अपनी मनोकामनाओं को पूर्ण करते है। मंदिर दर्शन के साथ यहाँ कई सारे लोग घूमने-फिरने भी आते है। अब सावन चल रहे है, तो आप भी अवश्य ही इन मंदिरों में भक्ति भाव से जाए और महादेव से अपनी हर मनोकामनाए पूर्ण करवाए और भगवान के दर्शन का लाभ उठाए।

आपको यह लेख कैसा लगा हमारी ईमेल आईडी पर जरूर बताए – kratikashah12345@gmail.com

 

Categories
Festivals

नाग पंचमी: क्यों मनाया जाता है यह त्योहार ?

नाग पंचमी यह हिन्दुओं का एक मुख्य त्योहार है। हिंदू पंचांग के अनुसार, नाग पंचमी सावन महीने में शुक्ल पंचमी को मनाई जाती है। इस दिन लोग नागों या सर्पों की पूजा करते है, उन्हें दूध चढ़ाते है। भारत में सर्पों को हमेशा से एक अदम्य सम्मान दिया गया है, लोग उन्हें देवताओं के समान सम्मान देते है। विभिन्न प्रकार के त्योहारों और धार्मिक कार्यक्रमों में उनकी पूजा की जाती है।

नाग पंचमी के नाम से प्रसिद्ध यह नाग पूजा का त्योहार लगभग भारत के हर राज्य में मनाया जाता है लेकिन उसे मनाने के तरीके अलग-अलग हो सकते है। अलग-अलग राज्यों में इसके नाम जरूर अलग हो सकते है पर इसे मनाया एक ही दिन जाता है।

कई सारे लोगों को नाग पूजा बेतुकी लग सकती है लेकिन इसका सम्बन्ध अतीत की कई सारी कहानियों से है। आइए जानते है, इन प्राणियों की पूजा के गौरवशाली अतीत की गहराई के बारे में।

सालों पहले एक अस्तिका नाम के ऋषि थे, जिन्होंने राजा जन्मेजय द्वारा किए गए एक सर्प यज्ञ अनुष्ठान को रोकने की कसम खाई थी। राजा जन्मेजय ने यह यज्ञ अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए किया था क्योंकि नागों के राजा तक्षक ने राजा के पिता को मार डाला था। लेकिन श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन अस्तिका ने यज्ञ को रोक दिया था और इसी कारण से नाग पंचमी का निर्माण हुआ था।

इस त्योहार से सम्बंधित और भी कई सारी कहानी और किस्से है, जो हिन्दू पुराण साहित्य में मिलते है।

किसी राज्य में एक किसान रहता था। वह बहुत मेहनती था। उसके दो पुत्र और एक पुत्री थी। परिवार का पालन पोषण करने के लिए वह हल जोतता था। एक दिन गलती से हल जोतते समय उससे नागिन के तीन बच्चे कुचले गए। जब नागिन ने यह देखा तो वह रोने लगी और उसे बहुत क्रोध आया, तब उसने अपने बच्चों के हत्यारे से बदला लेने के बारे में सोचा। उसके बाद रात को वह नागिन किसान से बदला लेने के लिए उसके घर पहुंची और वहाँ जाकर उसने किसान, दोनों पुत्र और उसकी पत्नि को डस लिया।

अगले दिन नागिन किसान की बेटी को डसने के लिए किसान के घर पहुंची तो वहाँ जाकर उसने जो देखा, उसकी हैरानी की कोई सीमा नहीं रही। असल में किसान की बेटी नें नागिन के सामने दूध का कटोरा रख दिया और नागिन से हाथ जोड़कर माफी मांगी। किसान की बेटी का यह व्यवहार देख कर नागिन प्रसन्न हुई और उसने किसान के परिवार को फिर से जीवित कर दिया। ऐसा कहा जाता है कि जिस दिन ये घटना हुई उस दिन श्रावण शुक्ल पंचमी थी, जिसके चलते इस दिन को नाग पंचमी के रूप में जाना जाने लगा और नाग देवता व नागों की पूजा का आरंभ हुआ।

नागों का भारतीय इतिहास के साथ हमेशा से ही गहरा सम्बन्ध रहा है। महाराष्ट्र के नागपुर का नाम भी नाग शब्द से ही लिया गया है। पश्चिमी भारत में नाग पंचमी को ‘क्षेत्रपाल’ नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसका अर्थ है “क्षेत्र का रक्षक”। कई सारी जगहों में साँपों को भुजंग भी कहा जाता है, इसी नाम पर एक शहर है उसका नाम भुज पड़ा है।

पूर्वी और पूर्वोत्तर राज्यों में मनसा नाम की सर्प देवी की पूजा की जाती है, जिन्हे ब्राह्मण ऋषि जरत्कारु की पत्नी कहा जाता है। इसलिए इस दिन देवी मनसा की मूर्ति जमीन में स्थापित कि जाती है और अत्यंत सम्मान और ईमानदारी से पूजा भी करते है।

गरुड़ और महान नाग के बीच लड़ाई को चिन्हित करने के लिए न केवल भारत, बल्कि नेपाल भी इस त्योहार को मनाता है। कहा जाता है की काठमांडू के चंगु नारायण मंदिर में शक्तिशाली पक्षी का एक मंदिर है जिसे स्वयं गरूड़ने स्थापित किया था। यह भी माना जाता है की नाग पंचमी के दिन उस पक्षी को पसीना आता है और उस पसीने का उपयोग कुष्ठ रोग को ठीक करने के लिए किया जाता है।

इन जीवों की पूजा से जुड़ी कई सारी कहानियां है। कुछ ज्योतिष से सम्बंधित कुछ इतिहास से सम्बंधित है। कुछ लोककथाओं पौराणिक कथाओं से सम्बंधित है। जो भी हो पर हमें इस अनोखे त्योहार को पूरे देश में हर साल बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाने का एक कारण अवश्य मिला है।

Categories
News

बड़ीसादड़ी-मावली ट्रैन का शुभारम्भ

बड़ीसादड़ी-मावली ट्रैन का शुभारम्भ रविवार को हो चुका है। इस ट्रैक का लोकार्पण रविवार को रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने किया। बड़ीसादड़ी से उदयपुर की पहली ट्रैन को झंडी दिखाने के साथ ही फेरे बढ़ाने की घोषणा की गई। रेल मंत्री ने बड़ीसादड़ी-उदयपुर ट्रैन के दिन में दो फेरे करने की घोषणा की है। इसके साथ ही समारोह में रीवा-उदयपुर वीकली स्पेशल और सिउड़ी-सियालदह ट्रैन की भी शुरुआत की गई। कार्यक्रम के दौरान रेल मंत्री ने दो और ट्रेनों को झंडी दिखाई। इस दौरान भिंडर रेलवे स्टेशन पर स्वागत करने भारी मात्रा में जन सैलाब की मौजूदगी रही। सांसद सीपी जोशी ने कहा कि बड़ीसादड़ी-नीमच रेल लाइन तीन साल संघर्ष के बाद मिली है। अगर इसी का कार्य एक साल में हो जाए तो उदयपुर का जुड़ाव सीधा नीमच के रास्ते मुंबई से हो जाएगा।
कार्यक्रम में मौजूद –
बड़ीसादड़ी स्टेशन पर कार्यक्रम में विधानसभा प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया, उदयपुर ग्रामीण विधायक फूल सिंह मीणा, चित्तौडगढ़ के सांसद सीपी जोशी, पूर्व सांसद श्रीचंद कृपलानी, बड़ीसादड़ी विधायक ललित कुमार ओस्तवाल इसके साथ दूसरे और भी कई सारे अथितिगण मौजूद थे।
अंतर्राष्ट्रीय रेल मार्ग का जिम्मा सौंपा –
सिटीजन सोसाइटी ने रेल मंत्री को उदयपुर आने का न्योता देते हुए उदयपुर-सिंगापुर अंतरराष्ट्रीय रेल मार्ग के विज़न के लिए दस्तावेज सौंप दिए है।अध्यक्ष क्षितिज कुम्भट, सदस्य तुषार मेहता, सुनील लड्ढा भी वह मौजूद थे। उन्होंने वर्ष 2001 में स्वाधीनता सैनानी हुकुमराज मेहता की ओर से तैयार लंदन-सिंगापुर-कोलकत्ता रेललाइन विज़न की जानकारी दी। उदयपुर से सिंगापुर के बीच बुलेट ट्रैन से जोड़ने का आग्रह किया।

इसके साथ ही डबोक एयरपोर्ट पर रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने मेवाड़ी में बात की, साथ ही उन्हीने ट्विटर पर उदयपुर के लिए मेवाड़ी भाषा में लिखा कि “महाराणा प्रताप री, भामाशाह री, स्वतंत्रता संग्राम री, मीरा री धरती, असि त्याग तपस्या री वीरभूमि उदयपुर ने म्हारो घणो-घणो नमन।

Categories
People Social

उदयपुर का नाम लहराया विनम्र ने, हासिल की AIR 11

मेहनत एक ऐसा शब्द है, जिसके बारे में केवल वही इंसान जानता है, जिसने असल में मेहनत की होती है। मेहनत करना भी एक कला है, इसे हर कोई नहीं कर सकता है। किसी भी कार्य को करने के लिए मेहनत लगती है और मेहनत ऐसी होनी चाहिए जो हर असंभव को संभव कर दे।
ऐसे ही हम बात करते है “चार्टर्ड अकाउंटेंट” जिसे आमतौर में छोटे से शब्द CA नाम से भी जाना जाता है। यह एक ऐसा प्रोफेशनल है, जो अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में काम करते है। एकाउंटेंसी और ऑडिटिंग, CA के दो सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। इसके अलावा CA का काम वित्तीय लेखा-जोखा तैयार करना, वित्तीय सलाह देना।

कहते है की CA की परीक्षा बहुत ही कठिन होती है, दिन रात मेहनत करने के बाद भी पास होना मुश्किल है। ऐसे ही मेहनत का एक जीता जागता परिणाम हमारें शहर उदयपुर के “विनम्र काबरा” है। जो इस परीक्षा में सफल तो हुए ही है पर साथ में उच्च स्कोर भी हासिल किया है। उदयपुर शहर का नाम गौरवान्वित किया है। विनम्र ने उदयपुर की रैंकिंग में टॉप किया है और आल इंडिया में 11वीं रैंक हासिल की है, जो हमारे शहर के लिए बहुत ही गर्व की बात है।

विनम्र काबरा

विनम्र अपनी यात्रा के दौरान पहले भी टॉप रैंकों में रह चुके है। उन्होंने CA-CPT परीक्षा में AIR-3 हासिल की थी और CA इंटरमीडिएट परीक्षा में AIR- 24 हासिल की थी। ICAI की ओर से आयोजित CA फाइनल परीक्षा में कई सारे विद्यार्थि भाग लेते है, इसमें से कुछ ही पास हो पाते है। परीक्षा में उदयपुर सेंटर के कुल 647 परीक्षार्थियों ने भाग लिया जिसमें से 175 उतीर्ण रहे।

विनम्र पढाई में बचपन से ही होशियार रहे है। उन्होंने अपने स्कूल वक्त में भी अच्छे परिणाम दिए है, उन्होंने 12वीं कक्षा में भी 97% हासिल किए थे। विनम्र ने अपनी सफलता का श्रेय भगवान, अपने परिवार और बडाला कोचिंग क्लास को दिया है।

क्या सफलता पाना आसान है ? सफलता पाने के लिए खून पसीना एक करना पड़ता है। दिन भर की मेहनत और रात भर जाग-जाग कर पढ़ना, हर व्यक्ति के बस की बात नहीं है। जो कड़ी मेहनत करता है, निश्चय ही सफलता को उसके पास आना ही पड़ता है। सफलता कोई ऐसी चीज नहीं है, जो एक दिन में हासिल हो जाए।

एक अंग्रेज़ी कहावत है “Practice makes a man perfect”. इसका अर्थ है कि अभ्यास ही मनुष्य को उत्तम बनाता है।  यह कहावत एक दम सही है, की मनुष्य एक दिन में महान नहीं बनता है, उसके पीछे कई सालो की मेहनत, कठिन प्रयास, कड़ी मेहनत, दृढ- निश्चयी, धैर्य और लगन होती है। मनुष्य को पूरी तरह आलस्य त्याग देना पड़ता है।
अगर सफलता के शिखर पर पहुँचना है, तो कड़ी मेहनत करनी ही होगी। विनम्र का नाम आज इसलिए लहरा रहा है, क्योंकी इसके पीछे उनकी कई सालों की मेहनत है। इसी प्रकार हमें भी जीवन में मेहनत करनी ही चाहिए।

Categories
News

उदयपुर का महाराणा प्रताप एयरपोर्ट इस साल भी टॉप पर

शहर उदयपुर, उपलब्धि के मामले में आए दिन चर्चा में है, अब शहर ने अपने नाम पर एक और खिताब जुड़वा लिया है। शहर का महाराणा प्रताप एयरपोर्ट अब देश का टॉप एयरपोर्ट बन गया है। उदयपुर ने ग्राहक संतुष्टि के मामले में यह उपलब्धि हासिल की है। इसने जनवरी से जून 2022 के सर्वे रिपोर्ट्स में पहला स्थान पाया है। इस से पहले भी शहर ने एयरपोर्ट सूची में, वर्ष 2020 और वर्ष 2021 में प्रथम स्थान पाया था। महाराण प्रताप एयरपोर्ट अब देश का टॉप एयरपोर्ट बन गया है।

भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण की ओर से निर्धारित सर्विस क्वालिटी मापदंडों के अनुसार, साल में दो बार ग्राहक संतुष्टि सर्वे करवाया जाता है। उदयपुर अथॉरिटी ने देशभर के कुल 55 एयरपोर्ट का सर्वे कराया। इसमें उदयपुर व रायपुर को सबसे अधिक अंक मिले जो 4.99 थे। इस सूची में दूसरा स्थान पोर्टब्लेयर और तीसरा स्थान संयुक्त रूप से जामनगर, भोपाल व जम्मू एयरपोर्ट को मिला। इस सूची में जोधपुर को 10वां स्थान मिला है। किशनगढ़ को 28वां, बीकानेर को 37वां स्थान और जैसलमेर को 40वां स्थान।

महाराणा प्रताप एयरपोर्ट, निदेशक नंदिता भट्ट का कहना है कि ये केवल उदयपुर एयरपोर्ट की ही नहीं बल्कि पूरी टीम की उपलब्धि है। इसे हासिल करने के लिए शहरवासियों ने यहां के प्रशासन, नगर निगम आदि का भी पूरा सहयोग रहा है। कोविड के बाद कहीं तरह की चुनौतियां थी, लेकिन पैसेंजर्स का विश्वास फिर से हासिल किया। इसी का नातिज़ा यह है कि उन्होनें एयरपोर्ट को हर स्तर पर नंबर 1 रखा।

इस सर्वे में कईं मापदंड थे जो इस प्रकार है

  • बैंक
  • ATM
  • ट्रॉली सुविधा
  • WI-FI
  • बिजनेस
  • शिष्टाचार
  • निरिक्षण
  • चेक इन लाइन
  • इंटरनेट एक्सेस
  • इंटरनेट सुविधा
  • सुरक्षा कर्मचारी
  • खाने की सुविधा
  • सुरक्षा और संरक्षा
  • एक्सेसिटीव लाउंज
  • वॉशरूम सुविधा
  • खरीदारी की सुविधा
  • परिवर्तकों की उपलब्धता
  • हवाई अड्डे की स्वच्छता
  • बैगेज डिलीवरी की स्पीड
  • एयरपोर्ट का वातावरण
  • सुरक्षा निरिक्षण में समय से प्रतीक्षा की उपलब्धता

देश के टॉप 10 एयरपोर्ट और उनके स्कोर-
1. उदयपुर व रायपुर – 4.99
2. पोर्ट ब्लेयर – 4.98
3. जामनगर,भोपाल,जम्मू – 4.96
4. मदुरै, तिरुपति – 4.93
5. राजकोट,देहरादून – 4.92
6. भुंतर, गया- 4.90
7. विजयवाड़ा- 4.88
8. गग्गल, पोरबंदर – 4.86
9. जोधपुर- 4.82
10. राजमुंद्री- 4.81

Categories
Social

प्रदेश में बालिका शिक्षा के हालात अब भी चिंताजनक क्यों है ?

शिक्षा एक महत्वपूर्ण उपकरण है, जो हर किसी के जीवन में बहुत जरुरी है। शिक्षा की वजह से ही व्यक्ति में आत्मविश्वास आता है व शिक्षा ही हमारे व्यक्तित्व निर्माण का कार्य भी करती है। और अगर बात करें स्कूली शिक्षा की तो यह हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और यही तो हमारे जीवन की बुनियाद है। सभी माँ-बाप अपने बच्चों को सफल होते हुए देखना चाहते है, जो सिर्फ और सिर्फ शिक्षा के माध्यम से ही संभव है। शिक्षा अपने स्तर पर विशेष महत्व रखती है। शिक्षा कठिन समय में चुनौतियों से सामना करना सिखाती है और जीवन में बहुत सारी सम्भावनाओं को खोजने में मदद करती है। यह समाज में सभी व्यक्ति के लिए समानता की भावना लाती है। शिक्षा स्त्री और पुरुषों दोनों के लिए समान रुप से आवश्यक है, क्योंकि स्वास्थ्य और शिक्षित समाज का निर्माण दोनो द्वारा मिलकर ही किया जाता हैं।

शिक्षा एक लड़की को आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनने में मदद करती है ताकि वह अपने अधिकारों और महिलाओं के सशक्तिकरण को पहचान सके जिससे उसे लिंग असमानता की समस्या से लड़ने में मदद मिले। पहले के समय में लड़कियों की शिक्षा को कभी भी आवश्यक नहीं माना गया था लेकिन समय गुज़रने के साथ लोगों ने लड़कियों की शिक्षा का महत्व महसूस किया है। अब महिलाएं जीवन के सभी क्षेत्रों में पुरुषों के साथ प्रतिस्पर्धा कर रही हैं लेकिन फिर भी कुछ ऐसे लोग हैं, जो लड़कियों की शिक्षा का विरोध करते हैं क्योंकि उनका मानना ​​है कि लड़की का काम घर तक सीमित है और उन्हें लगता है कि लड़कियों की शिक्षा पर खर्च करना पैसा व्यर्थ करना है। यह विचार गलत है क्योंकि लड़कियों की शिक्षा समाज में बदलाव ला सकती है।

भारत सरकार द्वारा देश में महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा और देश में महिलाओं की स्थिति में सुधार करने के लिए बेटियों के लिए कई सरकारी योजना शुरू की है। बेटियों को पढ़ाने के लिए सरकार इतने कदम उठा रही है, कितने जागरूकता अभियान चला रही है, कितने योजनाएँ चला रही है, सरकारी स्कूलों की फीस नहीं भरनी है, RTE जैसी सुविधा उपलब्ध करवा रही है। उसके बावजूद भी बेटी शिक्षा के यह हालात क्यों है? हमारे शहर उदयपुर में भी ऐसे हालात क्यों है ? क्यों बेटियों की शिक्षा अधिकार को लेकर अब भी हर परिवार जागरूक नहीं है ?

प्रदेश में शिक्षा का नया सत्र शुरू हो गया है। हर साल की तरह इस साल भी बच्चों को स्कूलों से जोड़ने के लिए सरकार कई सारे अभियान चलाएगी। सरकार इसके लिए कई सारे विशेष कार्यक्रम भी तैयार करेगी। लेकिन हाल ही में जारी हुई नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे-5 (2019-2021) की रिपॉर्ट के अनुसार प्रदेश में बालिका की शिक्षा बेहद ही चिंताजनक है। उदयपुर शहर का बालिका की शिक्षा में प्रदेश में 15वां नंबर है। प्रदेश में 6 साल या उस से अधिक आयु की सिर्फ 63.5 लडकियां ही स्कूल से जुड़ पाई है यानी 36.5 फीसदी ऐसी बालिकाएँ है, जिन्होंने अब तक स्कूल देखे ही नहीं है। अचरज इस बात का है की गाँव की 41% लडकियां स्कूल नहीं जा रही पर यह क्या शहरी क्षेत्र की भी 23% लडकियां स्कूल से अब तक जुड़ नहीं पाई हैं। और अगर बात करें देश की तो 71.8% फीसदी बालिकाएं ही स्कूल जा रही है।

बेटियों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार हर साल करोड़ों के पुरूस्कार देती है-
1. गार्गी पुरूस्कार -2428.25 लाख रुपए
2. बालिका प्रोत्साहन – 3745.95 लाख रुपए
3. आपकी बेटी योजना – 437.61 लाख रुपए
4. इंदिरा प्रियदर्शिनी अवार्ड – 2395.41 लाख रुपए
5. विदेश में स्नातक की शिक्षा सुविधा – 50 लाख रुपए
6. मुख्यमंत्री हमारी बेटियां योजना – 340.23 लाख रुपए
7. आर्थिक पिछड़ा वर्ग की बेटियों की स्कूटी – 350 लाख रुपए
8. शारीरिक अक्षमता युक्त बालिकाओं के लिए आर्थिक सबलता पुरूस्कार – 74.30 लाख रुपए
9. मूक बाधिर व दृष्टिहीन बालिकाओं की लिए आर्थिक सबलता पुरूस्कार – 6.39 लाख रुपए

बालिका शिक्षा में आया सुधार –
रिपोर्ट्स के अनुसार अगर देखा जाए तो बालिका शिक्षा में राजस्थान की स्थिति पहले से बेहतर हुई है। पिछले साल के मुताबिक़ अगर देखा जाए तो 6 फीसदी बालिकाएं ज्यादा स्कूल जा रही है। प्रदेश में 2015- 2016 में 57.2 फीसदी बालिकाएं स्कूल जा रही थी तो अब 63.5 बालिकाएं स्कूल जा रही है।

किसी भी देश के सुधार के लिए शिक्षा का योगदान काफी महत्वपूर्ण है चाहें वो लड़का हो या लड़की। शिक्षा सबके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, बिना शिक्षा के किसी का भी विकास सम्भव नही है। लड़कियों की शिक्षा हेतु प्रेरित किया जाना चाहिए, क्योंकि समाज में आज भी कही कुछ वर्ग ऐसे है, जो इसे महत्वपूर्ण नहीं समझते है। इसके लिए सरकार भी कई अलग-अलग तरह के कार्यक्रम चला रही है ताकि बालिका शिक्षा स्तर को सुधारा जा सके। लड़कियों को अगर बेहतर शिक्षा दी जाती है तो लड़कियां भी देश के विकास मे अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकेगी। किसी भी देश के विकास मे लड़का और लड़की को शिक्षा के अवसर समान रूप से मिलना चाहिए। आज के आर्थिक संकट में शिक्षा लड़कियों के लिए एक वरदान साबित हो रही हैं।

Categories
News

दुनिया के बेहतरीन शहरों में से उदयपुर 10वें नंबर पर

शहर के लिए यह काफी सुखद खबर होगी कि उदयपुर शहर को पूरे भारत के बेहतरीन शहरों में शामिल किया गया है। शहर ने बेहतरीन शहरों की सूची में शामिल होकर उदयपुर का नाम रोशन किया है। ट्रेवल मैगजीन “ट्रेवल एंड लेजर रीडर्स” ने दुनिया के 10 शहरों में उदयपुर को 10वीं रैंक दी है।

पूरे भारत में इस लिस्ट में केवल दो ही शहरों को चुना गया है, एक उदयपुर तो दूसरा जयपुर को। जयपुर शहर को 8वीं  रैंक दी गई है। इससे पहले भी उदयपुर ने कई बार बेस्ट जगहों में शहर का नाम रोशन किया है। उदयपुर की शांत झीले, पर्वत पहाड़, हेरिटेज, खानपान लोगों को अपनी तरफ आकर्षित कर ही लेता है। इस से पहले भी एशिया महाद्वीप में घुमनें के लिए सबसे बेहतरीन शहरों में उदयपुर का नाम था। 

पर्यटन विभाग कि उपनिदेशक शिखा सक्सेना का कहना है कि ट्रेवल मैगजीन के सर्वे में उदयपुर को फिर से चुना गया है। इस बार टॉप टेन में 10 जगह बनाई है। इसका श्रेय टूरिज्म से जुड़े हुए हर व्यक्ति को जाता है। उदयपुर की मेहमान नवाजी ही ऐसी है कि दुनिया का हर आदमी यहां खिंचा चला आता है। इन तमगों से इस साल पर्यटन सीजन अच्छा रहने की उम्मीद है। 

10 रैंकों की सूची इस प्रकार है-

  • ओक्साका,मेक्सिको
  • सैन मिगुएल, मेक्सिको 
  • उबुद, इंडोनेशिया 
  • फ्लोरेंस, इटली 
  • इस्तांबुल, तुर्की 
  • मेक्सिको सिटी, मेक्सिको 
  • चियांग माई, थाईलैंड 
  • जयपुर, भारत
  • ओसाका, जापान 
  • उदयपुर, भारत    

उदयपुर का नाम और भी कई सारी जगहों में शामिल है-

  • टूर एंड ट्रेवल कम्पनी ट्रेवल ट्राइंगल ने देश के बेस्ट सोलो फीमेल ट्रेवेल डेस्टिनेशन में उदयपुर को प्रदेश में सबसे सुरक्षित माना है।
  • ट्रेवेल एन्ड लेजर ने दुनिया के 20 शानदार शहरों में उदयपुर को दूसरा और जयपुर को 17वां स्थान दिया है।
  • अंतर्राष्ट्रीय वेडिंग प्लानिंग कंपनी दी नॉट ने यूनिक वेडिंग डेस्टिनेशन के लिए 11 देशों की सूचीं में भारत से केवल उदयपुर को चुना । 
  • इंटर माइल्स ने बेहतरीन 10 देशों में उदयपुर को 5वां सुन्दर शहर बताया। 
  • प्लेनेट डी की ट्रेवल लिस्ट दीं “16 मोस्ट सिटीज ऑन अर्थ” में उदयपुर को चौथा स्थान दिया गया। 
  • एमएसएन की लिस्ट में पूरी दुनिया के बेहतरीन 60 डेस्टिनेशन में भारत से एकमात्र उदयपुर को 11वां स्थान दिया। 
  • नेशनल जियोग्राफी व दी वॉल स्ट्रीट जर्नल ने 21 दिन की यात्रा में दुनिया के 8 देशों में से भारत से उदयपुर को चुना।
Categories
News

UIT 101 करोड़ रुपए करेगा खर्च

शहर में नगर विकास प्रन्यास द्वारा 101 करोड़ रुपए से भी ज़्यादा के कई निर्माण कार्य शुरू होंगे। बुधवार को कलेक्टर और UIT अध्यक्ष ताराचंद मीणा की अध्यक्षता में एक सामान्य बैठक हुई, जिसमें कई सारे महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए। इस बैठक में तय किया गया कि UIT के विभिन्न क्षेत्रों में घर-घर कचरा संग्रहण, न्यास रूपांतरित आवासीय कॉलोनियों की सड़कों, नालियों की सफाई, न्यास क्षेत्राधिकार के मुख्य मार्गों तथा बरसाती नालों की सफाई का कार्य नियमित रूप से नगर निगम के माध्यम से करवाया जाएगा । जिसमें MOU निष्पादित कर 4 करोड़ रूपए की प्रशासनिक एवं वित्तीय स्वीकृति जारी की गई है।

इसके साथ ही UIT की सीमा में आने वाली 167 कॉलोनियों की साफ़ सफाई अब नगर निगम के जिम्मे हो गई है। इसके बदले UIT निगम को एक साल के चार करोड़ रुपए देगा। शहर में साइबर पुलिस स्टेशन खोलने के लिए जमीं का आवंटन भी किया गया जिससे रानी रोड पर भारी वाहनों के दबाव को कम किया जा सके जिसमें DTO द्वारा निर्देश दिए जाएंगे।

कलेक्टर ने न्यास द्वारा किए जाने वाले विकास कार्यों के लिए 52 बिंदुओं पर चर्चा की है। मौके पर मौजूद सचिव बालमुकुंद असावा, एसइ के.आर. मीणा व विपिन जैन, वरिष्ठ नगर नियोजक अरविन्द सिंह कानावत सहित अधिकारी उपस्थित थे।

प्रोजेक्ट के लिए मंजूर कि गई राशि-

  • फतहसागर झील स्थित नेहरू गार्डन के निर्माण के लिए 5.96 लाख खर्च किए जाएंगे।
  • कई सारे कार्य शहर की सौंदर्यीकरण और जीर्णोद्धार के लिए पुरे किए जाएंगे, जिसके लिए 26.8 करोड़ रूपए मंजूर किए है।
  • ढीकली तालाब से अपरस्ट्रीम में राजस्व नाले के निर्माण के लिए 8.90 करोड़ रुपए।
  • रानी रोड को मॉडल रोड बनाने के लिए 12 करोड़ रूपए की तकनीकी मंजूरी दी गई।
  • महाराणा भूपाल स्टेडियम में खेलों के विकास कार्यों के लिए 174.99 लाख की स्वीकृति जारी।
  • स्मार्ट सिटी के लिए 15 करोड़ रुपए की मंजूरी दी गई।

सार्वजनिक कार्यों के लिए भूमि आवंटित-

  • मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थय अधिकारी कार्यालय निर्माण के लिए
  • साइबर पुलिस स्टेशन
  • प्राथमिक स्वास्थय केंद्र दरोली
  • ग्राम सेवा सहकारी समिति गुडली के गोदान निर्माण
  • वैद्यनाथ महादेव वृहत कृषि बहुउद्देशीय

चंडीगढ़ जैसे मॉडल की तैयारी –

कलेक्टर ने खेल गाँव की पहाड़ियों पर जल्द पौधरोपण करवाने के निर्देश दिए और कहा की मानसून के दौरान ही चंडीगढ़ की तरह स्थानीय प्रजातियों के फूलदार पौधे लगाए जाए। सुचना केंद्र के ऑडिटोरियम और पुस्तकालय के जीर्णोद्धार तथा शहर में महान विभूतियों की प्रतिमाओं के क्षतिग्रस्त पेडस्टल में सुधार के लिए भी निर्देश दिए गए।

हाईवे जैसी सड़कों की क्वालिटी –
कलेक्टर ने कहा की हमारी बनाई गई सड़क पर वाइट लाइन 15 दिनों से ज्यादा क्यों नहीं दिखती ? नेशनल हाईवे वाली क्वालिटी की वाइट लाइन करवाई जाए। खेल गाँव में एक और हॉकी एस्ट्रोटर्फ बनाने पर भी चर्चा हुई।