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अंधविश्वास का बुरा प्रभाव, दादी ने डाली पोते की जान खतरे में

अन्धविश्वास, जिसके नाम में ही उसका अर्थ है, अँधा, अज्ञानी, यानि किसी चीज को जाने पहचाने, बिना सोचे समझे, विचार किये बिना, उस पर आँखे बंद करके विश्वास कर लेना। अँधा मतलब वह व्यक्ति जिसे कुछ नहीं दिखाई देता उसी प्रकार अन्धविश्वास में डूबा हुआ व्यक्ति भी किसी भी बात पर बिना प्रतिक्रिया दिए हुए सोचे समझे बिना उस पर विश्वास कर लेता है। यह परंपरा अब बरसो से चली आ रही है और लोग इसके साथ आज दिन तक चल ही रहे है। कुछ मान्यताए ऐसी होती है न जो परिवार के बड़े बुजुर्ग करते आ रहे होते है और हम बचपन से उन्हें देखते आ रहे होते है तो हम उसी प्रकार उस परिस्थिति के अनुसार चल देते है और आज दिन तक चलते आ रहे है। जैसे की कही जाने से पहले अगर किसी ने छींक दिया या अगर बिल्ली ने रास्ता काट दिया तो आज भी हमारे दिमाग में एक पल के लिए यह आ ही जाता है की कही अब हमारा काम बिगड़ न जाए। अब तो हम पढ़े लिखे शिक्षित है पर आज भी हमारी मानसिकता कही न कही ऐसी है की अगर हमारे साथ ऐसी कुछ घटना होती है तो यही ख्याल दिमाग में आता है की कही मेरा काम बिगड़ न जाए।

अंधविश्वास अधिकतर कमजोर व्यक्तित्व, कमजोर मनोविज्ञान एवं कमजोर मानसिकता के लोगों में देखने को मिलता है। जीवन में असफल रहे लोग अधिकतर अंधविश्वास में विश्वास रखने लगते हैं एवं ऐसा मानते हैं कि इन अंधविश्वासों को मानने एवं इन पर चलने से ही शायद वह सफल हो जाएं। इसके साथ ही और न जाने कैसे कैसे अन्धविश्वास और कुप्रथाए है जो ग्रामीण इलाको में चलती आ रही है, जिसमें लोग भोपो और ढोंगी बाबाओ पर आँख मूंद के भरोसा कर लेते है। राजस्थान के कुछ ग्रामीण इलाको में आज भी ऐसे गाँव है, जहां अंधविश्वास ने अपना कोहराम बिछा रखा है अंधविश्वासो में ऐसे चकनाचूर हो गए है की किसी की तकलीफ का एहसास तक नहीं होता और नन्हे मुन्ने नवजात मासूमो तक को इस अन्धविश्वास ने नहीं छोड़ा।

कुछ ग्रामीण इलाको में अन्धविश्वास में पड़े लोगो ने चिमटे से दाग देना यह बिमारी का इलाज माना हैं, अब सवाल यह उठता है की किसी को चिमटे से दाग देकर किसी बीमारी को कैसे ठीक किया जा सकता है ? किसी वैज्ञानिक ने तो आज दिन तक इसका कोई वैज्ञानिक परिणाम नहीं बताया। 21वी सदी के राजस्थान की ऐसे कल्पना किसी ने की भी नहीं होगी। चिकित्सा व्यवस्थाओ को चाक चौबंद करने के दावों के बीच नन्हे मासूम बच्चो को अभी भी डाम लगा कर ठीक करने की ऐसी खबरें रूंह कँपा देती है।

उदयपुर स्थित एमबी हॉस्पिटल में आए दिन ऐसे मामले सामने आ रहे है, डाम लगाने से बीमारी ठीक हो जाने का अन्धविश्वास मासूमो की जान खतरे में डाल रहा है। भीलवाडा में भी एक ऐसी रूह कंपा देने वाली खबर सामने आई है जिसमे अपने 8 माह के पोते को सांस लेने में तकलीफ और सर्दी जुकाम सही नहीं होने पर दादी ने उसे चार जगह सात डाम लगा दिए। एक छोटे से नाजुक त्वचा वाले मासूम को चिमटे से दाग देना कहाँ तक सही है, ये और बीमारी को सही करेगा या हालत खराब। डाम लगाना, चिमटा दागना से बीमारी ठीक हो जाना ऐसा अंधविश्वास बच्चो की जान खतरे में डाल रहा है। आए दिन अस्पतालों में ऐसे मामले सामने आ रहे है ,जिसमे कई बच्चो की जान चली जाती है।

अंधविश्वास से बचने के लिए आवश्यकता है अपने मन, मस्तिष्क, सोच एवं मनोविज्ञान को मजबूत करने की। अक्सर लोग, अंधविश्वासी, सुनी-सुनाई बातों के आधार पर होते हैं। कभी बिल्ली के रास्ता काटने पर उस रास्ते से बाहर जाकर देखिए, आप पर किसी तरह का कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसी प्रकार अन्य अंधविश्वासों पर भी प्रयोग करके देखिए, आप अपने आप इन अंधविश्वासों से बाहर निकल आएंगे। अगर आपके साथ इन अंधविश्वासों पर प्रयोग करते समय कोई अनहोनी होती है, तो यह महज एक संयोग ही होगा। इसमें कोई सच्चाई नहीं होगी।

 

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उदयपुर में शुरू A.C. बसे पहुचाएंगी एयरपोर्ट

उदयपुर शहर में सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विसेज लिमिटेड (यूसीटीएसएल) की ओर से जनता को सस्ती व सुलभ ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था उपलब्ध करवाने के लिए शहर में मिडी लो फ्लोर की 4 नई बसें एयरपोर्ट के लिए चलेंगी। इसमें दो AC और दो नॉन AC बसें होंगी। AC बसों में सिर्फ एयरपोर्ट जाने वाले यात्री ही बैठ सकेंगे। इनके रूट में कही से भी बैठने पर 100 रूपए का किराया ही लिया जाएगा। विदेशी यात्रियों के लिए इसका शुल्क 500 रुपए होगा। इसके अलावा नॉन AC बसों का किराया प्रति किलोमीटर के हिसाब से ही होगा।

इन बसों का परिवहन एवं सड़क सुरक्षा विभाग जयपुर से रूट स्वीकृत हो चुका है और अब परमिट के लिए जिला परिवहन कार्यालय में इसके कागज पहुँच चुके है। परमिट मिलते ही यह बसे चेतक से डबोक एयरपोर्ट मार्ग तक जाएगी। यूसीटीएसएल के चेयरमैन व महापौर गोविन्द सिंह टांक व सीईओ हिम्मतसिंह बारहठ एयरपोर्ट पर आने जाने वाली फ्लाइट के अनुसार ही इनका टाइम तय कर रहे है ताकि यात्रियों को फ्लाइट से उतरते ही बस मिल सके और अनावश्यक परेशानियों का सामना न करना पड़े। वही चेतक से एयरपोर्ट जाने वाले यात्री भी एक से डेढ़ घंटे पहले पहुँच सके। सहायक अभियंता यांत्रिकी व प्रभारी अधिकारी लखन लाल बैरवा ने बताया कि चारों नई बसें सिटी बस डीपो में ही खड़ी है। रूट स्वीकृत होने के बाद अभी इनकी परमिट की कार्यवाही चल रही है।

एयरपोर्ट जाने के लिए यहाँ-यहाँ रुकेगी बसें
पहाड़ी बस स्टैंड, कोर्ट चौराहा, चेतक सर्किल, ठोकर चौराहा, देहली गेट, देबरी चौराहा, प्रतापनगर चौराहा, जिंक चौराहा, सूरजपोल चौराहा, फतह स्कूल, कुम्हारो का भट्टा ,बी.एन.कॉलेज , सेवाश्रम चौराहा, राणा प्रताप नगर रेलवे स्टेशन, मांझी की सराय, ठोकर स्कूल,गिलास फैक्ट्री, M.B. हॉस्पिटल, सुंदरवास, आईटीआई कॉलेज, राजस्थान विद्यापीठ, गीतांजली कॉलेज,डबोक चौराहा, तुलसीदास जी की सराय, तुलसीनगर/बेड़वास, राजस्थान विद्यापीठ, धूणिमाता,पावर हाउस, गुडली चौराहा, पुराना आर.टी.ओ. रोड।

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अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस – 2022

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस प्रत्येक वर्ष 21 जून को मनाया जाता है। योग का अभ्यास एक बेहतर इंसान बनने के साथ एक तेज दिमाग, स्वस्थ दिल और एक सुकून भरे शरीर को पाने के तरीकों में से एक है। योग अपने अद्भुत स्वास्थ्य लाभों के लिए जाना जाता है। हमारे ऋषि-मुनि भी कह गए हैं, ‘पहला सुख निरोगी काया’। योग, मन, शरीर और आत्मा की एकता को सक्षम बनाता है। योग के विभिन्न रूपों से हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को अलग-अलग तरीकों से लाभ मिलता है। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस इस अनूठी कला का आनंद लेने के लिए मनाया जाता है।

हमारे दैनिक जीवन में योग को जन्म देने से हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आ सकता है। यह हमारे तनावपूर्ण जीवन के लिए एक बड़ी राहत प्रदान करता है। योग अभ्यास करने के मुख्य लाभों में से यह एक है कि यह तनाव कम करने में मदद करता है। आज कल की जो युवा पीढ़ी है जो हर छोटी-छोटी बातो का तनाव लेती रहती है जो किसी प्रकार की कठोर स्थिति से जीवन में आए तनाव से मुक्ति पाने के लिए वे आत्महत्या जैसे कदम उठाने को बाध्य हो जाते हैं।

दैनिक जीवन में योग को जन्म देने से हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आ सकता है। यह हमारे तनावपूर्ण जीवन के लिए एक बड़ी राहत प्रदान करता है योग एक व्यक्ति को ध्यान और साँस लेने के व्यायाम से तनाव कम करने में मदद करता है और एक व्यक्ति के मानसिक कल्याण में सुधार करता है। योग नियमित अभ्यास मानसिक स्पष्टता और शांति बनाता है जिससे मन को आराम मिलता है।

international yoga day
International day of yoga illustration

आंतरिक शांति
आंतरिक शांति जो मनुष्य को ऊपरी मन से खुश होने से ज्यादा उसे आतंरिक खुश रहने से ख़ुशी मिलती है पर वो शांति आज कल की व्यस्त जिंदगी और शहर के चकाचोंध में कही खो सी गई है। इंसान अंदर से खुश रहेगा तो वह स्वस्थ रहेगा। सिर्फ 10-20 मिनट का योग हर दिन आपके स्वास्थ्य को अच्छा रहने में मदद कर सकता है। बेहतर स्वास्थ्य का मतलब बेहतर जीवन है।

बीमारियों से बचाव
जिस प्रकार आजकल के लोगो का खान पान उस तरीके से तो इंसान कितनी सारी बीमारियों को साथ ले रहा है। योग गंभीर से गंभीर बीमारियों से हमारा बचाव करने में मददगार होता है। इतना ही नहीं अगर कोई व्यक्ति गंभीर बीमारी से पीड़ित है, तो योग उससे भी लड़ने की शक्ति देता है।

शरीर को लचीला बनाए
योग पूरे शरीर में ब्लड सर्कुलेशन को बेहतर बनाता है, जिससे सभी अंग सुचारू रूप से काम करते हैं।

हमारे ऋषियों और आयुर्वेद द्वारा दी गयी क्रियाओं और चिकित्सों का लाभ उठाएं इसी से तनाव कम होगा और देश की प्रगति भी होगी और युवाओं की मौतें भी नहीं होंगी और यह बीमारियाँ पूरी तरह ख़त्म हो जायेंगी और देश के युवा निरोग रहेंगे और तनाव भी ख़त्म हो जाएगा। 21 जून को मनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस प्राचीन भारतीय कला के लिए एक अनुष्ठान है।

इस रोज की भाग दौड़ मर्रे वाली जिंदगी में अगर खुश रहना है तो दिन में सिर्फ थोड़ा समय निकल कर 15 से 20 मिनट योगा करना ही चाहिए जो हमारे शरीर के साथ हमारे मन को भी स्वस्थ रखेगा। जीवन के तनाव को कम करने में मदद करेगा, चेहरे पर निखार लाएगा, फ्लेक्सिबल बॉडी बनाएगा जो हमे जल्दी बूढ़ा नहीं बनाएगा। मन को दिमाग को शांत रखेगा कई सारी गंभीर बिमारियों को आने से रोकेगा, रोग प्रतिरोध क्षमता को बढ़ाएगा।

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आरएनटी अस्पताल में मजबूत हो रही हेल्थ सर्विस

उदयपुर आरएनटी मेडिकल कॉलेज के 3 अस्पतालों (एमबी, जनाना और सुपर स्पेशिएलिटी ) में 300 से ज्यादा सीसीटीवी कैमरे लगाए गए है। जनरल वार्ड से लेकर ऑक्सीजन प्लांट,आईसीयू वार्ड, ओपीडी, आईपीडी, कोविड वार्डो तक मरीजों और स्टाफ की हर छोटी से बड़ी गतिविधियां स्क्रीन पर है। सर्वर रूम में प्रिंसिपल कार्यालय से नोडल अधिकारी 3 पारियों में 24 घंटे निगरानी कर रहे जबकि एनालिस्ट कम प्रोग्रामर एक शिफ्ट में। इन सीसीटीवी लगाने का मकसद मरीजों और तीमारदारों के लिए व्यवस्था के साथ स्टाफ के कामकाज पर नजर रखना है ताकि कोई गड़बड़ी या असुविधाजनक गतिविधि और चोरियां के साथ स्टाफ की हरकते होने पर उन पर कार्यवाही की जा सकती है। इसके साथ ही और सुरक्षा बढ़ाने के लिए हॉल, गैलरी, पोर्च, प्रवेश द्वार और पार्किंग तक 100 से भी ज्यादा और कैमरे लगाए जाएंगे। कोविड काल में 180 कैमरे लगाए गए थे व्यवस्था में सुधार होने पर 120 कैमेरे और बढ़ाए है।

आरएनटी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ लाखन पोसवाल का कहना है की कोरोना के दूसरे चरणों में मरीजों की संख्या ज्यादा होने से आपाधापी जैसे हालात हो रहे थे। वजह यह थी की आईसीयू में तीमारदारों के जाने की मनाही थी और कई सारी शिकायते भी मिल रही थी की स्टाफ ध्यान नहीं दे रहा है इसलिए मारीजों और कर्मचारियों की निगरानी के लिए सिसिटीवी कैमरे लगाए थे। कैमरे लगाने से सफलता मिली तो कैमरे बढ़ाने के साथ कंट्रोल रूम को स्थायी किया है।

सीसीटीवी से कायम अनुशासन
सीटीवी सर्विलैंस से आईसीयू में भर्ती मरीज,गार्ड की मौजूदगी, स्टाफ की ड्यूटी, समय की पालना आदि में अनुशासन कायम हुआ है। इसके साथ ही अस्पताल परिसर में चोरियों की शिकायत अब थमने लगी है और स्टाफ को लेकर शिकायत भी घटने लगी है। प्रिंसिपल कार्यालय में सीसीटीवी की नोडल अधिकारी डॉ रिचा पुरोहित ने बताया की कोविड के दूसरे चरण में ऑक्सीजन प्लांट,आईसीयू आदि पर निगरानी रखी गई है। सोशल मीडिया ग्रुप पर हर घंटे में प्लांट के प्रेशर मीटर की रीडिंग, मरीज के पास मॉनिटर पर हेल्थ पैरामीटर (पेशेंट का नांम, बीपी – प्लस, ऑक्सीजन सेचुरेशन आदि) की शीट मंगवाई थी। अब मरीज के बेड के आसपास रिश्तेदारों की भीड़, नर्सरी या डॉक्टरो के नजर नहीं आने पर वार्ड इंचार्ज या अधीक्षक को फ़ोन कर व्यवस्था करवा रहे है। आरएनटी में 2018 से सीसीटीवी से निगरानी है, लेकिन तब कमरे कम थे, जिस वजह से रोज चोरी के मामले सामने आ रहे थे। कैमरे बढ़ने से अब चोरी के मामले बिलकुल भी नहीं आ रहे है।

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माटी बचाने के लिए सद्गुरु निकले बाइक पर, पहुंचे उदयपुर

ईशा फाउंडेशन के सद्गुरु, यानि जग्गी वासुदेव बुधवार को उदयपुर शहर पहुंचे। शहर में उनका ज़ोरों-शोरों से स्वागत किया गया। मेवाड़ पूर्व राजपरिवार के सदस्य लक्ष्यराज सिंह जी ने सिटी पैलेस में सद्गुरु जी का भाव विभोर अभिनन्दन किया। दरबार हॉल में दोनों के बीच संवाद भी हुआ। सद्गुरु माटी बचाने के लिए 100 दिन की 30000 किमी यात्रा मिट्टी बचाओ अभियान (जर्नी टू सेव सॉइल) के तहत बाइक पर निकले।

सद्गुरु भविष्य में मिट्टी संकट के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए 25 देशों से गुजरते हुए अंतिम चरण में गुजरात के रास्ते भारत पहुंचे। उदयपुर से राजस्थान में उनका प्रवेश हुआ। इस अभियान के तहत वे दुनिया का ध्यान विलुप्त होती मिट्टी की ओर कर रहे हैं। लोगो को मिट्टी की सुरक्षा, पोषण और उसे बनाये रखने के लिए निति की मांग करने के लिए प्रेरित कर रहे है ताकि 193 देशों में मिट्टी की जैविक सामग्री को कम से कम 3-6% तक बढ़ाने और बनाये रखने की दिशा में नीतिगत बदलाव लाया जा सके।

लक्ष्यराज जी ने संवाद के दौरान पूछा की कोरोना के दो साल आपदा भरे थे, लोग आज भी मानसिक परेशानी में है, इससे कैसे उबर सकते है? सद्गुरु जी ने कहा की जो लोग इस महामारी में अपनों को खोकर मानसिक परेशानियों से जूझ रहे है, उन्हें नई सोच, नई ऊर्जा के साथ उनके सपनों को साकार करने के लिए फिर से उठ खड़ा होना होगा। यही जीवन की नई उमंग है। सवाल जवाब के चलते सद्गुरु जी ने ये भी कहा की वैश्विक स्तर पर बड़ी नीति लाकर ही परिस्थिति का संरक्षण किया जा सकता है। मिट्टी माताओं की माँ है और माटी को माँ मानकर मानवता के साथ इसे संरक्षित करना होगा। इसी से भावी पीढ़ी बेशुमार मुश्किलों से बच पाएगी।

सद्गुरु जी कौन है?
सद्गुरु का असली नाम सद्गुरु जग्गी वासुदेव है। उनके बचपन का नाम जगदीश है। सद्गुरु का जन्म 3 सितंबर 1957 को मैसूर, कर्नाटक में हुआ। जग्गी वासुदेव एक लेखक भी हैं जिन्होंने 100 से भी ज्यादा पुस्तकें लिखी है। इन्हें भारत सरकार की तरफ से 2017 में पद्म विभूषण अवार्ड से भी सम्मानित किया गया। जग्गी वासुदेव की एक लाभ रहित संस्था भी है जिसका नाम ईशा फाउंडेशन है। यह संस्था मानव सेवा तथा योग सिखाने का काम कर रही है। यह संस्था विश्व के कई देशों में काम करती है जिसमें प्रमुख रुप से अमेरिका, सिंगापुर, इंग्लैंड, लेबनान, और ऑस्ट्रेलिया में योग सिखाने का काम कर रही है।

सद्‌गुरु ने आपने अपने आश्रम में आदियोगी की इतनी विशाल मूर्ति बनवाई है। जो भी वहां जाता है, वह उस मूर्ति को देखकर अभिभूत हो जाता है। आदियोगी भगवान शिव की 112 फुट की प्रतिमा को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने दुनिया की सबसे बड़ी आवक्ष प्रतिमा के रूप में दर्ज किया है। इस बात की जानकारी गिनीज बुक ने अपनी वेबसाइट के जरिए साझा की है। ‘आदियोगी’ के नाम से बनी शिव की अर्धमूर्ति की ऊंचाई 112.4 फीट है, 24.99 मीटर चौड़ी और 147 फीट लंबी है।

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History and Culture

साहस और वीरता के प्रतीक – महाराणा प्रताप जयंती 2022

उदयपुर शहर योद्धाओं की भूमि है, जहां कई सारे वीरों का जन्म हुआ है। उन सब वीरों में से एक वीर महाराण प्रताप भी है जिन्होंने अपनी आखिरी सांस तक स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी। उनके प्रयास के कारण आज मेवाड़ नगरी एक स्वतंत्र भूमि है।

आज दिनांक 2 जून को हम महाराणा प्रताप जयंती के रूप में स्वतंत्रता का जश्न मनाएंगे। वीर प्रताप मेवाड़ के ऐसे हिंदू शासक, जिन्हें भारत के राजपूत शासकों में बहादुरी का सबसे अच्छा उदाहरण माना जाता है और जिनसे सभी मेवाड़ लोग प्रेरित होते हैं। महाराणा प्रताप जयंती प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है।

हिंदू पंचांग के अनुसार वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का जन्म विक्रम संवत् 1597, ज्येष्ठ माह शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि को हुआ था। और इस साल, अंग्रेज़ी कैलेंडर के अनुसार, यह तिथि 2 जून 2022, गुरुवार को है। महाराणा प्रताप ने अपनी शिक्षा प्राप्त कर बहुत कम उम्र में हथियारों और उनके उपयोग के कौशल में महारत हासिल की। उन्होंने इस दौरान घुड़सवारी भी सीखी।

उनके पिता महाराणा उदय सिंह द्वितीय और माता रानी जयवंता बाई थीं। वे 25 भाइयों और 20 बहनों में सबसे बड़े थे और मेवाड़ के 54वें शासक थे। वे सिसोदिया राजपूत वंश के थे। 17 साल की उम्र में उनका विवाह राजकुमारी अजबदे ​​से हुआ था।

maharana pratap jayanti 2022

Credits: IndiaToday

महाराणा प्रताप में बचपन से ही वह जुनून था जो एक क्षत्रिय राजा में होना चाहिए। उन्होंने मुगल बादशाह अकबर की गुलामी करना नहीं स्वीकार किया। इसके लिए उन्होंने कई सालों तक बहुत संघर्ष किया। राजस्थान के कई परिवार अकबर की शक्ति के आगे घुटने टेक चुके थे, किन्तु महाराणा प्रताप अपने वंश को कायम रखने के लिये संघर्ष करते रहे और अकबर के सामने आत्मसर्मपण नहीं किया जंगल-जंगल भटकते हुए तृण-मूल व घास-पात की रोटियों में गुजर-बसर कर पत्नी व बच्चे को विकराल परिस्थितियों में अपने साथ रखते हुए भी उन्होंने कभी धैर्य नहीं खोया।

1568 में, जब महाराणा सिर्फ 27 वर्ष के थे, मुगल सम्राट अकबर ने चित्तौड़ पर विजय प्राप्त की। महाराणा उदय सिंह, उनके पिता, ने चित्तौड़ छोड़ने का फैसला किया और गोगुंदा चले गए। इसे अवसर मानकर उनके सौतेले भाई जगमल ने गद्दी छीन ली। जब जगमल मामलों का प्रबंधन करने में असमर्थ था तो वह महाराणा प्रताप से बदला लेने के विचार के साथ अकबर की सेना में शामिल हो गया।

महाराणा प्रताप को अपने जीवन में कई संघर्षों का सामना करना पड़ा। वे जीवन भर अकबर से लड़ते रहे। अकबर ने महाराणा प्रताप से जीतने के लिए कई तरह के प्रयास किए लेकिन वह हमेशा असफल रहा।

हल्दी घाटी युद्ध

हल्दीघाटी युद्ध भारतीय इतिहास में एक ऐतिहासिक घटना है, राजपूत और मुगल राज्यों के वार्षिक में। यह वह लड़ाई थी जिसमें महाराणा प्रताप के प्रिय घोड़े चेतक ने कई बहादुर चालें निभाईं, लेकिन अंत में कुछ गंभीर चोटों के कारण उसकी मृत्यु हो गई ।

इस लड़ाई में  प्रताप को आसपास के क्षेत्रों की भील जनजातियों का भी समर्थन प्राप्त था। महाराणा प्रताप के सबसे प्रिय और प्रसिद्ध नीलवर्ण ईरानी मूल के घोड़े का नाम चेतक था। युद्ध में बुरी तरह घायल हो जाने पर भी महाराणा प्रताप को सुरक्षित रणभूमि से निकाल लाने में सफल वह एक बरसाती नाला उलांघ कर अन्ततः वीरगति को प्राप्त हुआ।

इस लड़ाई में भील जनजाति के महान योगदान को आज तक याद किया जाता है और उन्हें उनके किये गए योगदान के लिए मेवाड़ शासन के राजपूतों द्वारा सम्मान दिया जाता है। इस युद्ध का मुगल सेना पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। इस लड़ाई को मुगल बादशाहों पर जीत का पहला मील का पत्थर माना जाता है।

राजपुताना के इतिहास में एक ऐतिहासिक घटना हल्दीघाटी की लड़ाई केवल चार घंटे तक चली। इस छोटी सी अवधि में प्रताप के आदमियों ने मैदान पर कई बहादुर कारनामे किए। इस युद्ध में मेवाड़ के वीर महाराणा प्रताप विजय हुए थे, जैसे ही साम्राज्य का ध्यान कहीं और स्थानांतरित हुआ, प्रताप और उनकी सेना बाहर आ गई और अपने प्रभुत्व के पश्चिमी क्षेत्रों को हटा लिया। यह युद्ध तो केवल एक दिन चला परन्तु इसमें 17,000 लोग मारे गए। मेवाड़ को जीतने के लिये अकबर ने सभी प्रयास किये किन्तु विफल रहा।

घोड़ा चेतक

महाराणा प्रताप की वीरता के साथ साथ उनके घोड़े चेतक की वीरता भी विश्व विख्यात है। चेतक बहुत ही समझदार और वीर घोड़ा था जिसने अपनी जान दांव पर लगाकर 26 फुट गहरे दरिया से कूदकर महाराणा प्रताप की रक्षा की थी। हल्दीघाटी में आज भी चेतक का मंदिर बना हुआ है। युद्ध में चेतक ने अपनी अद्वितीय स्वामिभक्ति, बुद्धिमत्ता एवं वीरता का परिचय दिया था।

एक ऐसे वीर की धरती पर जन्म लेना हम सभी के लिए गौरव और सम्मान की बात है। महाराणा प्रताप संयम, दृढ़ता, एकाग्रता, और वीरता के प्रतीक हैं। अपने परिवार और अपनी धरती पर जब भी बात आती, उन्होंने कभी भी अपने पैर पीछे नहीं किए। महाराणा प्रताप जाते हुए हम सभी को ये ही सिखा कर गए हैं की जब बात हमारे वतन की हो, तब हमें एक जुट होकर दुश्मन और परेशानी का सामना करना चाहिए।

आज के इस शुभ अवसर को हम इसी साहस, धैर्य, और सम्मान की मूर्ति, वीर शिरोमणि और दृढ संकल्पी महाराणा प्रताप की गौरव गाथा गाते हुए हर्षोल्लास से मनाते हैं।

 

 

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मजबूत बनेगा उदयपुर, इसके कई सारे प्रोजेक्टस होंगे पुरे।

उदयपुर अब मज़बूत बनने वाला है, साथ ही ख़ुशी और समृद्धि भी बढ़ने वाली है। असल में उदयपुर में कुछ प्रोजेक्ट थे, कई वक्त से कई सारी जगहो पर काम चल रहा है जो उदयपुर की दुर्दशा को बदलने वाले है। कुछ प्रोजेक्ट्स पर तेजी से अभी भी काम चल रहा है। उदयपुर शहर की पहचान ही पर्यटन के लिए की जाती है। यहाँ तक कि कोरोना काल तक में भी पर्यटकों ने यहाँ की सैर करना नहीं छोड़ा।

उदयपुर स्थित कुम्हारों का भट्टा और सेवाश्रम फ्लाईओवर का काम पूरा होगा, इसके साथ ही अहमदबाद हाईवे की तरफ ग्रेट सेपरेटर, इंटरनेशनल फ्लाइटे भी शुरू होगी। रनवे का काम भी पूरा हो चुका है। गुलाब बाग में बर्ड पार्क बन चुका है और ट्रैन भी चलना शुरू होने वाली है। केवड़े की नाल में बोटेनिकल पार्क, माछला मगरा में लव कुश वाटिका, कालका माता नर्सरी में प्रदेश का पहला एग्रो फारेस्ट रिसर्च सेंटर जो आदिवासी ग्रामीणों की कमाई और वन क्षेत्र बढ़ाने में उपयोगी है, सभी का काम पूरा होने में है। अहमदाबाद उदयपुर ब्रॉडगेज का काम भी पूरा हो चुका है। यह रेलमार्ग उदयपुर से अहमदाबाद के जरिये दक्षिण भारत के कन्याकुमारी तक इसकी पहुँच है।

उदयपुर पर्यटन विभाग की उपनिदेशक शिखा सक्सेना बताती है की उदयपुर में हर साल 10 लाख से भी ज्यादा देशी पर्यटक आते है अगर ट्रैन शुरू हो जाएगी तो केरल, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र आदि के पर्यटकों की संख्या बढ़ जाएगी। उदयपुर के लिए अंतर्राष्ट्रीय उड़ाने कामगारों के खाड़ी देशों में आने जाने के लिए और टूरिस्ट संख्या में इज़ाफ़े के लिए काफी फायदेमंद साबित होगी।

उदयपुर में पुलिस का दूसरा ट्रेनिंग सेंटर बनने का भी काम चल रहा है, जहां 500 से भी अधिक जवान प्रशिक्षण ले सकेंगे। साथ ही शहर के महाराणा प्रताप खेलगांव में एथलीटों के लिए 400 मीटर का पहला सिंथेटिक ट्रैक बनेगा, कानपुर खेड़ा में प्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा क्रिकेट स्टेडियम बनाने के लिए लेवलीकरण का 90% काम पूरा हो चुका है। खेलगांव में ही 5 हजार क्षमता वाला मल्टी स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स इस साल के आखिर तक मिल जाएगा। यहीं पर 25 और 50 मीटर की शूटिंग रेंज बनाने के लिए बजट जारी हो चुका है।

पर्यटक आंकड़े-

रिकॉर्ड 85000 पर्यटक अप्रैल में उदयपुर सैर करने आए थे जबकि अप्रैल तो ऑफ सीजन होता है।
100580 पर्यटक अगस्त 2021 में उदयपुर आए जो हर साल अगस्त मास से 35-50% ज्यादा रहा है।
अक्टूबर नवंबर और दिसंबर 2021 में 4.55 लाख पर्यटक आए। यह आंकड़ा पूरे साल आने वाले कुल देसी पर्यटक का लगभग आधा था।
दिसंबर महीने में आंकड़ा 1.80 लाख तक पहुंचा।

कई शहरों में से उदयपुर अव्वल –
1. मार्बल इंडस्ट्री- उदयपुर शहर में एशिया की सबसे बड़ी मार्बल- ग्रेनाइट मंडी है, यहां पर कोटा, राजसमंद, मकराना, जालोर, किशनगढ़, चित्तौडगढ़ आदि से मार्बल आता है। यहां से ग्रीन-सफ़ेद गुलाबी मार्बल भारत सहित पड़ोसी देश बांग्लादेश,श्रीलंका, नेपाल, भूटान, चीन सहित अन्य कई 30 देशों में जाता है। इसकी वजह से 25000 से ज्यादा श्रमिकों को रोजगार मिला है और इसका 5000 करोड़ रुपए का सालाना टर्नओवर है।

2. खनिज सम्पदा- हिंदुस्तान जिंक भारत की सबसे बड़ी व दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी लीड माइनर है। यहां पर आरक्षित खनिज 288 मिलियन मीट्रिक टन है। चांदी उत्पादन क्षमता 800 मीट्रिक टन, जस्ता 890000 लाख व सीसा 205000 मीट्रिक टन है। प्राथमिक जस्ता उद्योग में पुरे देश में हमारी 78 प्रतिशत तक की भागीदारी है। मार्च 2022 में 2481 करोड़ रुपए शुद्ध लाभ था और देश में सर्वाधिक चांदी का उत्पादन हुआ है जो 800 मीट्रिक टन है।

3. वन उपज- शहर में हरियाली जंगल इलाका भी काफी फैला हुआ है। 17724 वर्ग किमी में फैले जिले के 23% यानी 2753 हिस्सों में जंगल है, जो प्रदेश में सर्वाधिक है। संभाग के प्रतापगढ़ जिले में 1033 वर्ग किमी जंगल के साथ दूसरे स्थान पर है। चित्तौड़, बांसवाड़ा, राजसमंद व डूंगरपुर में भी जंगल है।

4. मेडिकल हब- प्रदेश में सबसे ज्यादा डॉक्टर उदयपुर में ही है। यहाँ सबसे ज्यादा 6 मेडिकल कॉलेज है। उदयपुर में कुल 2500 डॉक्टर और 10000 नर्स सहित 40000 लोग हेल्थ सेक्टर में जुड़े है। यहां पर एमबीबीएस की 1100 सीटें है, पीजी की 600 सीटे है। मेडिकल एजुकेशन हब 35000 करोड़ रुपए का है। प्राइवेट अस्पतालों का कारोबार कुल 1500 करोड़ रुपए का है।

5. शादी समारोह- शहर में डेस्टिनेशन वेडिंग का काफी प्रचलन है इसे 18 पहले रवीना टंडन ने उदयपुर में शादी करके इसका चलन शुरू किया था, उसके बाद से इसमें काफी उन्नति हो रही है। यहां पर अब सालभर में 500 से भी ज्यादा डेस्टिनेशन वेडिंग हो रही है। यहां पर कई सारे शाही विवाह भी हो रहे है। होटलों में 6-6 माह पहले से एडवान्स बूकिंग हो जाती है। इसका 1100 करोड़ रुपए का टर्नओवर होता है। यहां शादियों में 50 लाख से एक करोड़ का खर्च होता है।

6. खेल भूमि- शहर के कई सारे खिलाड़ी भी अपना दम दिखा रहे है। सोनल कलाल राजस्थान की पहली महिला है जिसका चयन इंडियन-ए-टीम में हुआ। इसके साथ ही पुष्पेंद्र, मानवी सोनी, गौरव साहू और आत्मिक गुप्ता ने स्वर्ण और रजत पाकर देश का मान बढ़ाया है।

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गुलाब बाग में फिर से शुरू होगी ट्रैन

उदयपुर स्थित गुलाब बाग में बर्ड पार्क बनने के बाद अब 15 अगस्त से फिर ट्रैन चलना शुरू हो जाएंगी। ये अरावली एक्सप्रेस ट्रैन 6 साल बाद फिर से चलना शुरू होगी। यहां पर ट्रैक बिछना शुरू हो चुका है। इस ट्रैन में दो डिब्बे होंगे, यह मिनी ट्रैन बच्चों और पर्यटकों को धीमी रफ़्तार के साथ पुरे गुलाब बाग घुमाएगी। इसके साथ ही बर्ड पार्क स्थित परिंदो को भी निहार सकेंगे। अभी इसका लगभग 80 फिसदी काम पूरा हो चुका है। ट्रैन के लिए 2665 मीटर (2.66 किमी ) की ट्रैक बिछेगी जिसका कार्य जुलाई तक पूरा होने की संभावना है।

नगर निगम की समिति के अध्यक्ष मनोहर चौधरी ने बताया कि अभी गिट्टी बिछाई जा रही है। इस बार कार्य तकनिकी विशषज्ञों की देख रेख में किया जा रहा है ताकि ट्रैन पहले की तरह बार-बार पटरी से न उतरे। गुलाब बाग की मिट्टी काली और चिकनी होने की वजह से ट्रैन का पटरियों से उतरने का खतरा बना रहता था। इस बार पुरे ट्रैक में 3-3 फिट अंदर तक खोदकर कंक्रीट वाली विशेष मिटटी डाली गई है। ट्रैन का 15 अगस्त तक शुरू होने की पूरी सम्भावना है। गत 12 मई को गुलाब बाग में बर्ड पार्क का लोकार्पण हुआ था।

3 साल पहले टेंडर
नगर निगम के पिछले बोर्ड ने करीब तीन साल पहले इसके लिए टेंडर किये थे। इसका रूट बदलना था क्योंकि इसमें करीब 200 पेड़ काटने की जरुरत पड़ रही थी। वर्क आर्डर निकला, लेकिन काम शुरू होने से पहले इसके लिए स्टे आर्डर आ गया था फिर बोर्ड ने पुराने ट्रैक पर ही ट्रैन चलाने का निर्णय लिया। थोड़े समय बाद कोरोना आ गया और लॉक डाउन लगने की वजह से कार्य में रुकावट आ गई थी इस वजह से कार्य देरी से प्रारम्भ हुआ।

ट्रैक की लम्बाई
ट्रैक की लम्बाई 165 मीटर बढ़ेगी। सरस्वती लाइब्रेरी के पास पुराना लव कुश स्टेशन है इसके साथ ही समोर बाग की ओर अभी बंद पड़े गेट के पास नया स्टेशन बनेगा। ट्रैन कमल तलाई के पास अमरूदों की बाड़ी से समोर बाग स्टेशन जाएगी फिर कमल तलाई होते हुए पुराने वाले ट्रैक से बर्ड पार्क हो कर लव कुश स्टेशन जाएगी। ट्रैन के साथ बोटिंग के लिए भी नगर निगम ने 26 लाख दर से शिवा कोर्परेशन को 20 साल का ठेका दिया है।

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1993-2015 तक संघर्ष उदयपुर के साथ, झील प्राधिकरण जयपुर में क्यों?

पूरी दुनिया में मशहूर उदयपुर नगर झीलों के लिए सुप्रसिद्ध शहर हैं। यहाँ कई सारी झीलें स्थित हैं, इसलिए इसे झीलों की नगरी भी कहा जाता है। यहां पर फतेहसागर, पिछोला, स्वरुपसागर, कुमहारी तालाब, दूधतलाई, गोवर्धन सागर, रंगसागर, उदयसागर, रूपसागर, बड़ी, जयसमन्द, राजसमंद जैसी आदि झीलें हैं जिनके आस-पास ही पूरा नगर बसा हैं। ये झीलें कई शताब्दियों से उदयपुर की जीवनरेखा हैं, जो एक-दूसरें से जुड़ी हुई हैं।

अगर किसी प्रदेश में इतनी सारी झीले हैं, तो उसके संरक्षण व विकास के लिए प्राधिकरण भी होना जरुरी है। उदयपुर संभाग में प्रदेश की सबसे ज्यादा 35 झील-जलाशय है। 1993-1994 में करीब 29 साल पहले उदयपुर से ही झील संरक्षण और प्राधिकरण की मांग उठी थी जिसकी स्थापना भी उदयपुर में ही होनी थी और ड्राफ्ट भी माँगा गया था। 1996 में प्रदेश सरकार की एडमिनिस्ट्रेटिव एंड रिफार्म कमिटी ने इस ड्राफ्ट को स्वीकार किया, लेकिन प्राधिकरण की स्थापना नहीं हुई।  हालाँकि यह मामला हाई कोर्ट तक भी पहुंचा और 2007 में झील विकास के प्राधिकरण की स्थापना के निर्देश भी दिए। इसकी लम्बी लड़ाई के बाद 2015 में राजस्थान झील विकास प्राधिकरण अस्तित्व में आया लेकिन इसका मुख्यालय तो जयपुर में खोल दिया जबकि जयपुर संभाग में तो केवल 8 झीले-जलाशय ही हैं। हालाँकि इस प्राधिकरण के अधिनियम के ड्राफ्ट में साफ़-साफ़ उल्लेख है कि मुख्यालय किसी और जिले में भी खोला जा सकता है। 

उदयपुर से जयपुर की सड़क मार्ग दूरी करीब 400 किमी है

उदयपुर से जयपुर की सड़क मार्ग दूरी करीब 400 किमी हैंऐसे में प्राधिकरण जयपुर होने की वजह से उदयपुर की झीलों पर इनकी नजऱ नहीं रहेगी। गन्दगी-बदहाली, मलिनता, दुर्गंंध, अतिक्रमण, अवैध गतिविधि और अवैध निर्माण से दम तोड़ रहे और ख़राब दुर्दशा का यही बड़ा कारण है इन पर प्राधिकरण बने तो इस पर काफी हद तक अंकुश लग जाएगा। उदयपुर में जलाशयों के प्राधिकरण व संरक्षण-संवर्धन का काम कलेक्टर के हाथों में हैं पर कलेक्टर के पास अन्य गतिविधियां होने की वजह से उनका उतना फोकस नहीं है जितना होना चाहिए।

प्रमुख 85 झीलों के जलाशय कुछ इस प्रकार है- 

  • उदयपुर-35
  • कोटा-14
  • अजमेर-12 
  • जयपुर-8 
  • भरतपुर-6 
  • जोधपुर-6
  • बीकानेर-4  

उदयपुर में क्यों होना चाहिए प्राधिकरण ?

प्रदेश के सातो संभाग में कुल 85 प्रमुख झीले-जलाशय हैं। इनमे से सबसे ज्यादा 41 प्रतिशत झीले उदयपुर संभाग में है बाकि 59 प्रतिशत प्रदेश के 6 संभागो में है। अधिकतर बड़े-बड़े बांध भी उदयपुर में है और बन भी रहे हैं। सबसे ज्यादा जरुरत भी यही है क्योंकि यहाँ का पानी जोधपुर और जयपुर तक पहुंचने की तैयारी में है, इसका मतलब राजस्थान के आधे से ज्यादा आबादी को पानी उदयपुर संभाग ही पहुंचाता है। ज्यादा झीले है तो उसकी रखरखाव की भी जरुरत ज्यादा ही होती है।  उदयपुर से जयपुर की दुरी करीब 400 किमी की है, अगर कुछ शिकायत है तो इसकी शिकायत लेकर जयपुर जाना मुश्किल है और ना ही इस प्राधिकरण के मुखिया झील जलाशयों की दुर्दशा देखने इतने दूर से आते है। 

 

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बारिश से पहले नहीं तैयार होगा सेवाश्रम का फ्लाईओवर

उदयपुर स्थित सेवाश्रम चौराहा का फ्लाईओवर अब तक तैयार नहीं हुआ है जिसका काम अप्रैल तक ख़त्म होने की सम्भावना थी। पर अब तक इसका बहुत काम बाकी है और कार्य की गति देख कर तो यह साफ-साफ पता चल रहा है कि यह काम बारिश से पहले नहीं हो सकता है। शहर की आधी ऊपर जनता यही होकर गुज़रती है, लेकिन काम के पूरा न होने की वजह से परेशान हो रही है। यहां के व्यापारी भी इसी उम्मीद में बैठे है की अब तक तो चौराहा का काम पूरा हो जाना चाहिए। पर हकीकत तो यही है की इस काम में बहुत समय लगना है। इस वजह से यहाँ आए दिन जाम लगने की परेशानी लगी रहती हैं।

यूआईटी सर्कल का 20 करोड़ का प्रोजेक्ट-

पिछले ही दिनों यूआईटी ने डिजिटल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) के लिए कार्य का ऑर्डर दिया है उसके बाद वहां का सर्वे शुरू कर दिया है। यूआईटी ने ज़ोर दिया है की देल्हीगेट स्थित जो फ्लाईओवर में पब्लिक यूटिलिटी की जो भी लाइन है, वो इस प्रोजेक्ट के बीच आ रही है उनको भी पूरा किया जाए ताकि बाद में जब कार्य शुरू हो तब समस्या नहीं आए। इस वजह से अभी सेवाश्रम का काम थोड़ा धीमा हो गया है। यूआईटी ने इस कार्य के लिए करीब 20 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। रोड की कुल लम्बाई 430 मीटर है और इसकी चौड़ाई 13.2 मीटर है और 5.5 मीटर इसकी ऊंचाई है। इस फर्म को यह रिपोर्ट 45 दिन में तैयार करके देनी हैं। युआईटी ने यह तर्क भी दिया है की पीएचडी की लाइनों की वजह से कई समस्याए आ रही है।

काम अप्रैल में पूरा होना था-
असल में इसका काम अप्रैल में पूरा होना था। यूआईटी के तकनीकी इंजीनियर यूटिलिटी सर्विस को इसके देरी होने का कारण बता रहे है। उनके सामने जलदाय विभाग की और से बीच में आ रही पाइप लाइनों को शिफ्ट करने के लिए राशि भी दे रहे है,यूआईटी ने तो काम पूरा करने की राशि भी देदी पर काम पूरा नहीं कर रहे है।

परेशानियाँ-
इस क्षेत्र से गुज़रने वाले और यहां रहने वाले लोगो को परेशानियाँ आ रही है। जाम में फंसने के अलावा जाम में वाहनों के धुंए से परेशान हो रहे हैं। यही नहीं जहां खुदाई हो रही है, वहां के लोग और वहां से गुज़रने वाले लोग दिनभर मिटटी के उड़ने से परशान हो रहे है।