ghantaghar
Source: My Udaipur City

कुछ ख़ास है ये इमारत – घंटाघर (GhantaGhar)

हर शहर का अपना एक इतिहास होता है  । ये अपने अन्दर बहुत कुछ समेटे होता है । वहाँ की ज़मीन, उस ज़मीन पर रह रहे वहाँ के लोग, उनकी बनाई हुई चीज़े, उनकी सोच, उनका पहनावा और भी बहुत कुछ । ये सारी बातें उस शहर के इतिहास को ज़िंदा रखती है, उस शहर को बचाए रखती है ।

सुना है शहर का नक़्शा बदल गया महफ़ूज़

तो चल के हम भी ज़रा अपने घर को देखते हैं

                                                                                     – अहमद महफ़ूज़

 

अहमद महफ़ूज़ साहब का ये शेर उदयपुर पर बिलकुल सही बैठता है । उदयपुर का इतिहास बहुत बड़ा है । और इस पर कितनी ही किताबें लिखी जा चुकी है, इंटरनेट, विकिपीडिया हर जगह आपको उदयपुर के बारे में पढने को मिल जायेगा । पर अब भी ऐसीं कुछ किस्से-कहानियाँ है जो अनछुई है, जिस पर कुछ लिखा नहीं गया है या बहुत कम लिखा है और लिखा भी गया है तो अभी तक लोगो की पहॅुच से दूर है ।

ऐसी ही एक इमारत बारे में हम आपको बताने जा रहे है जो उदयपुर शहर के बीचों-बीच खड़ी है वो भी 130 सालों’ से, वो है ‘घंटाघर’ या ‘क्लॉक-टावर’ । हाँ बिलकुल, इसी साल ये अपने 130 बरस पूरे कर रही है । जब इसके बारे में गूगल किया तो बड़ी ही इंटरेस्टिंग बात पता चली । इसमें लगी घड़ी ‘लंदन’ से लाई हुई थी । पर इसके अलावा हमें ज्यादा कुछ मिला नहीं । तो हम भी निकल पड़े खोजबीन करने ।

‘घंटाघर’ के बनने के पीछे एक कहानी छिपी है, जिसे ज्यादातर लोग नहीं जानते है । पर ये आपको वह आसपास की दुकानों में बैठे बुज़ुर्ग लोगो से पता चल जाएगी । हालाकिं वे अब कम संख्या में ही बचे है । हमने उन्ही में से एक जिनका नाम चतुर्भुज था, उनसे बात करी । बहुत शांत, गंभीर साथ ही साथ थोड़े मजाकियां भी । उन्होंने मुझे वो सब बातें बताई जो शायद आपको इंटरनेट पर कतई न मिले । कुछ पॉइंट्स शेयर कर रहा हूँ जो थोड़े उन्होंने बताये कुछ कहीं और से पता चली :-

History of Ghantaghar

  • ये करीब 130 बरस पुरानी है ।
  • ये सज्जन सिंह जी मेवाड़ के टाइम पर बनी ।
  • इसके बनने के पीछे का कारण बोहरा और महाजनो के बीच हुआ विवाद है, तत्कालीन महाराणा ने दोनों समुदाय को सज़ा के रूप में 5000-5000 रुपयों का हर्जाना भरवाया ।
  • इसीलिए ये भी कहा जाता है कि ये नजराने-जुर्माने की रक़म से बनी है ।
  • इसमें लगी घड़ी ‘लन्दन’ से लाई हुई थी ।
  • आज ‘घंटाघर’ के सामने जहाँ पार्किंग होती है वहाँ पहले एक बाज़ार हुआ करता था जिसे इमरजेंसी के दौरान तोड़ दिया गया ।
  • ‘घंटाघर’ के ठीक नीचे एक शानदार बाज़ार लगता था जहां 9 दुकाने होती थी, इस वजह से उसे ‘नौ-हठिया’ कहा गया । ये दुकाने ज़मीन से कुछ नीचे होने के कारण अक्सर बारिश में पानी से भर जाती थी ।
  • ‘घंटाघर’ पुलिस-चौकी शहर की सबसे पुरानी पुलिस-चौकी है, इससे पहले वहाँ लोग रहा करते थे । इसी चौकी के ठीक नीचे आज जो सोने-चांदी की दुकानें है तब यहाँ घोड़े बांधे जाते थे।

इस बिल्डिंग का स्ट्रक्चर अपने आप में यूनिक है, इसके अलावा शहर में और भी पब्लिक-वॉच है पर ऐसी बनावट और डिजाईन के नहीं मिलेंगे।

History of Ghantaghar

  • इसकी ऊँचाई कुछ 50 फीट की बताते है और इसके चारो तरफ चार घड़ियाँ है जो चारो दिशाओं में एक जैसा समय दिखाती है ।
  • ये शहर की पहली पब्लिक-वाच थी । इससे पहले उदयपुर के लोग ‘जल-घड़ियाँ’ इस्तेमाल करते थे, हालांकि वो ऊँचे तबके के लोगो के पास ही हुआ करती थी ।
  • इसके अन्दर ‘सगस जी बावजी’ का मंदिर भी बना हुआ है ।

History of Ghantaghar

 

History of Ghantaghar

  • फेसबुक पर हमें गोविन्द जी माथुर लिखते है, ‘ घंटा-घर के नीचे जो मार्केट लगता था उसे ‘छोटी बोहरवाड़ी’ कहा जाता था । यहाँ मौजूद कॉस्मेटिक्स और मणिहारी की दुकानें लड़कियों और महिलाओं के लिये आकर्षण का केंद्र हुआ करती थी ।
  • देवानंद साहब की ‘गाइड’ पिक्चर का फेमस गाना ‘कांटो से खींच के ये आँचल’ यहीं फिल्माया गया था ।

ये कुछ जानकारियाँ थी जो हम चाहते थे कि आप तक पहुचें । आप इसे पढ़े, जाने और जो नहीं जानते है उन्हें भी बताएं । अगर आप भी ऐसा मानते है की ऐसे ही उदयपुर की अनजानी-अनछुई जगहों, किस्सों-कहानियों को उदयपुरवालों के सामने लाया जाए तो आप कमेंट्स कर के हमें बताये । आप लोगो के ध्यान में अगर ऐसी कोई जानकारी हो तो हमें कमेंट्स में लिख भेजिए, हम उसे उदयपुर के सामने लेकर आयेंगे ।

15 Comments

  1. Karan Singh Jat

    Thank you for iske piche ki sotry batane ke liye i liked historical bato ko janene ke liye

  2. विजय सिंह

    शायद यहीं पर एक सवा हाथ का जूता (देशी चमड़े का) भी लटका रहता था जो अपराधियो या गुनाह करने वालों के लिए था।

  3. Rishabh Jain

    I’m also interested in this activity

  4. Bhawani singh

    धन्यवाद
    ओर
    Love u udaipur

  5. इरफान

    वाह शानदार और दिल को छू लेनी वाली जानकारी देने के लिए धन्यवाद।।

  6. Kanhaiyalal prajapat

    Ganga ghar ke pass ganesh gati he vaha pr me cycle pr beth kar gati Apr kar di 2005 me

  7. विष्णु शंकर पंड्या

    वाह क्या खूब जानकारी दी मेने भी कई बार इन अनछुई इमारत के बारे में गोर किया पर आज के चमक दमक में ये कहानियां ही गायब है । पुराने दौर का उदयपुर कभी देखने को मिलता है तो एक अलग ही मजा होता है ।
    धन्यवाद

  8. Rakesh soni

    Old is gold. Aap kahe se bhi time deko dek jata tha Isliye is ke bare me kaha gaya hai ghantaghar ki char gadi chro me janjeer padi.

  9. Lokesh Dadheech

    I am also interested in history of udaipur. Kya aap hadi rani hotel ke pass wale ek mahal ka itihas bata sakte he

    • Shubham Ameta

      जी बिलकुल, शुक्रिया 🙂

  10. राजेश कुमार सोनी

    Very good information. Thanks pl complete this following incomplete poem
    घन्टाघर की चार घडी, चारो मे जन्जीर पडी, जब जब घन्टा बजता है, खडा़ मुसाफिर हँसता है………….

  11. Jigyasu

    अतिउत्तम… जानकारी बहुत ही श्रेष्ठ हैं !!!
    कृपया सुभाषा के साथ स्वभाषा का अधिक प्रयोग करे, अपने वाक्यों में सोने पे सुहागा लगेगा…. अर्थात शुद्ध हिंदी के शब्दों का अधिक समावेश करे…
    (मेरी बात को अन्यार्थ में ना ले)
    प्रयास प्रशंशनीय हैं
    धन्यवाद

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