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बड़ा भावमय- त्यागमय बेटियों का संसार


नाम ख़ुशी …. पांच साल की बच्ची…पहली कक्षा में पढ़ती है… अपने नाम के अर्थ को अभी नही समझती…इसके परिवार में फिलहाल किसी का कोई पता नहीं… कैसी हो बेटा ?…पूछने पर मुस्कुराती है…फिर अगले ही पल कभी नीचे  देखती देखती शुन्य में झाँकने लगती है…बीच बीच में कभी अपने सिर को भी खुजा लेती है… 1 से 20 तक इंग्लिश में गिनती आती है…. ट्विंकल- ट्विंकल लिटिल स्टार भी गाती है ये छोटी सी स्टार…ज़िन्दगी की राह पर अपने कदम बढाती …ख़ुशी .
इशिका… जब दो साल की थी तब दिल्ली के मोरी गेट फुटपाथ से समिति के निदेशक गिरिजा शंकर शर्मा इसे यहाँ लेकर आये. माँ- पिता- बहिन…सब यहीं मिले… नाम भी यहीं मिला……आज इशिका  बारह वर्ष की है..  सातवीं में पढ़ती है…क्लास की मोनिटर है…लडको की तरह बाल रखती है…चंचल है पर अंदाज़ पूरा लडको जैसा….

“क्या लिखूं कि वो परियों का रूप होती हैं…
कि कडकडाती ठण्ड में सुहानी धुप होती है….
वो होती हैं चिड़िया की चहचाहट की तरह…
या कोई निश्छल खिलखिलाहट होती हैं…”




ख़ुशी और इशिका जैसी कई बच्चियां इस दुनिया में है…. इनकी आँखें भी कभी गुडिया मांगने की इच्छा रखती होंगी… माँ की साडी का पल्लू पकड़कर पीछे पीछे भागने की इच्छा या फिर पापा से आँखें न मिलाते हुए एक “5 स्टार चोकलेट” की चाहत…. और भी बहुत कुछ…. पता चला कि उदयपुर से 50 किलोमीटर दूर झाडोल में एक निराश्रित बालघर चलता है जहाँ कई सारी बच्चियां आवासीय विद्यालय में रहती है…सोचा आज “World Girls child Day” की पूर्व-संध्या उन बच्चियों से ही मिला जाये….उनके साथ खुशियाँ बांटी जाये…जब उदयपुर से चले तो तो मन में भाव  थे कि किसी ऐसे स्कूल का दौरा होगा जहाँ बच्चे मैली-कुचैली आसमानी शर्ट और खाकी स्कर्ट पहने मिलेंगी…बाल बेतरतीब, बहती नाक….और भी बहुत कुछ दृश्य पहले ही संजो लिए थे… 1.5 घंटे की ड्राइव के बाद राजस्थान बाल कल्याण समिति का नामपट्ट दिखाई दे ही गया..केम्पस की शांति देखकर महसूस हुआ शायद देर हो गयी…स्कूल की छुट्टी हो गयी होगी.पर स्कूल तो चल रहा था. व्यवस्थापिका चंद्रिकाजी,प्रिंसिपल नीलम जी जैन ने हमारा स्वागत किया. आश्चर्य- केम्पस की सफाई, सलीके से जमे बच्चियों के जूते, अनुशाशन और…बच्चियों की यूनिफार्म…सभी कुछ हमारी उम्मीदों से पूरी तरह अलग…

     
शुरूआती जानकारी लेने के बाद प्रिंसिपल नीलम जी, वार्डन मंजू जी और नीलू जी के साथ शुरू हुआ स्कूल को विजिट करने का दौर… कक्षा में बच्चियों ने खड़े होकर एक स्वर में “good afternoon sir” कहते हुए हमारा स्वागत किया.मन में ख़ुशी भी थी और हूक भी उठी… क्यों ईश्वर ने इन छोटी छोटी बच्चियों के सर से इतना जल्दी परिजनों का साया उठा लिया…क्या ये ईश्वर कि इन मासूमो के साथ क्रूरता नहीं ??? किसी ने अपने पिता के होने के अहसास को नहीं संजोया तो कोई माँ के आँचल की ममता को आत्मसात नहीं कर पायी. सहसा नज़र पड़ी- दो बच्चियां..शक्ल एक सी..पता चला- जुडवा है.मीनू और तनु. पापा रहे नहीं और माँ ने कोई और घर देख लिया…बच्चियां  नियति के भरोसे. इनका चाचा इन्हें यहाँ छोड़ गया. तब से अब तक…दो साल हो गए…कोई मिलने नहीं आया.. दोनों सात साल की है. तीसरी कक्षा में पढ़ती है. नीलम जी बता रही थी कि बड़ी होनहार है दोनों… अपने सारे काम आप ही कर लेती है. अपने बर्तन खुद साफ़ करती है..कपडे खुद धोने की कोशिश…और अपना बिस्तर भी खुद तह करती है…और हाँ मौका मिलने पर कभी कभी दोनों में झगडा भी…. मैं सोच में पड़ जाता हूँ …क्या समय ने इन्हें सब सिखा दिया है ?? जवाब देने के लिए शायद मस्तिष्क तैयार नहीं है…

रेखा… 14 साल की. झाडोल के ही गोगामारी गाँव की रहने वाली . पिताजी शराब के शौक़ीन और एक दिन नशे में ऐसे सोये कि फिर कभी नहीं उठे. माँ उदयपुर जाकर मजदूरी करे या रेखा को संभाले…सो रेखा अब इसी विद्यालय में रहती है. त्योहारों पर इसकी माँ इसे लेने आती है…
गीता खराडी( 4 वर्ष ) का मानना है कि उसके मम्मी-पापा खूब सारे पैसे कमाने गुजरात गए है..एक दिन आयेंगे और उसे ले जायेंगे..उस मासूम को नहीं पता कि उसका परिवार एक सड़क हादसे की भेंट चढ़ चूका है और खून का कोई रिश्तेदार उसको अपनाने को तैयार नहीं…
237 बच्चियां… और लगभग उतनी ही कहानियाँ…पर सबका मूल एक…


“ये बच्चियां पढाई के अलावा और क्या क्या करती हैं..?? यश की आवाज़ मेरी तन्द्रा को अचानक तोडती है. वार्डन नीलू जी ख़ुशी ख़ुशी उनकी खेलकूद-सांस्कृतिक आदि गतिविधियों के बारे में बताती है. मैं गीत सुनाने की फरमाईश करता हूँ.. एक फुसफुसाहट होती है और स्वर गूंजने लगते है…..

“बापू हमारे…. स्वर्ग सिधारे…
छोड़ चलें हमको…. किसके सहारे…”

किंकर्तव्यमूड होकर मैं और यश सोचने को मजबूर हो जाते है कि गांधीजी के बहाने ये बच्चियां किस दर्द को बयाँ कर रही है….
लाख लाख शुक्रिया अदा करता हु राजस्थान बाल कल्याण समिति के निदेशक श्री गिरिजा शंकर शर्मा जी को..जिनका यह भागीरथ प्रयास इन बच्चियों के जीवन में सतरंगी रंग लाने की सार्थक पहल कर रहे हैं. तो क्या हुआ, ‘गर केंद्र सरकार ने पिछले सत्र में मदद भेजने में देर की और शर्मा जी ने अपनी “ऍफ़.डी” तोड़कर जमा पूँजी को इन बच्चियों के वस्त्र लाने में खर्च करने के लिए दो पल भी नहीं सोचा. नीलम जी बताती है कि एक बार उनकी वार्षिक रिपोर्ट दिल्ली में अटक गयी. अफसर बोले कि आप काम इतना अच्छा करते हो फिर रिपोर्ट किसी “एक्सपर्ट” से क्यों नहीं बनवाते..?? शर्माजी उनको जवाब देते है…एक्सपर्ट को देने वाले पैसो से किसी बच्ची का जीवन नहीं सुधार दूंगा??

इस स्कूल में सब कुछ है…खुशियाँ है…गम भी है.. एक परिवार है..तो बच्चियों की प्यार भरी तकरार भी…टीचर जी कभी स्केल से पिटाई भी करती है..तो वार्डन माँ की याद आने पर गले से भी लगा लेती है…
व्यवस्थित कक्षा कक्ष और छात्रावास के कमरे है तो साफ़-सुथरे शौचालय भी…रसोई में बाहर हवा फेकने वाला पंखा लगा है तो करीने से लगे पौधे..बहुत अच्छे लगते है. सफाई और अनुशाशन तो दिल जीत लेते है. यहाँ इतना अच्छा शायद इसलिए लगता है क्योकि यहाँ “लक्ष्मियाँ” बसती है.

बड़ा भावमय त्यागमय बेटियों का संसार…
प्रेम पगा नित मन मगर, नयन अश्रुओं की धार…

इस स्कूल में फिलहाल कंप्यूटर शिक्षा की कमी है.  237 बच्चियों के बीच कम से कम आठ कंप्यूटर तो होने ही चाहिए. उम्मीद है कि udaipurblog.com के इन सामाजिक सरोकारों में आप readers भी जुड़ेंगे. शायद तब बच्चियों की खुशियाँ और चहकने लगेंगी.
शाम हो रही थी…हमें उदयपुर लौटना था. अँधेरा छा रहा था. पर अभी अभी उजाले की इतनी किरणें एक साथ देखी थी कि अँधेरे का भय नहीं था. हमारी बाईक स्टार्ट हो चुकी थी…कई जोड़ी आँखें निर्मिमेष हमें दूर तक निहार रही थी…….

ना रोना तू कभी बेटी , सदा ही हंस के तुम जीना….
लगे ‘गर चोट तुमको, उसको भी चुपचाप सहना…

चलते चलते…..
राजस्थान बाल कल्याण समिति फिलहाल राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात के आदिवासी क्षेत्रों में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से 52  शिक्षा संकुल चला रही है. 1981 में 11 बच्चों के साथ शुरू हुआ सफ़र निर्विवाद रूप से बहुत बड़ा रूप ले चूका है. समिति के संस्थापक श्री जीवतराम शर्मा 80  पार हो चुके है. आधे शारीर में लकवा है पर चेह्कते हुए कहते है- अभी बहुत काम करना है… i am retired but not tired. इन्हें ख़ुशी मिलती है जब इनका पढाया हुआ बच्चा कही ऊँचे मुकाम पर होता है और इन्हें पहचान लेता है.
मेरा सर श्रृद्धा से झुक जाता है.

(बच्चियों के नाम परिवर्तित किये गए है)

Article by : Arya Manu , Contribution by : Yash Sharma

By Guest Author @UdaipurBlog

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10 replies on “बड़ा भावमय- त्यागमय बेटियों का संसार”

This is such a heart touching article.
Thank you so much of getting people awared of the Rajasthan Bal Kalyan Samiti.
Only eight computers are not at all enough for 237 girls. I hope our Udaipurites will step ahead & donate little help & happiness.
May God bless those angels.

After Reading this article I had Tears in my eyes.
I am proud of all the people behind this work specially Arya manu

Thanks For making People realize we are not Burden anymore but a Blessing 🙂

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Manu betta….
main hamesha kehti hu na k tu kabhi nahi sudhar sakta….
aaj kehti hu… hamesha aise hi rehna…

ek tu hi hai zinda bacha haimere frndz me…jiske emotions shayad abhi tk us hadd tak zinda hai….
salute u n ur blogteam ..
keep it up

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