किसी भी देश का आदर्श नागरिक वह व्यक्ति होता है जो जागरूक हो, अपने कर्तव्यों को लेकर। कोई भी सरकार या तंत्र भी तभी आदर्श माना जाता है जब वो अपने नागरिक या उपभोक्ता के अधिकारों का सम्मान और रक्षा करें। लेकिन जब दोनों के बीच की केमेस्ट्री गड़बड़ा जाती है तब ऐसी ख़बरों का जन्म होता है। ये बात कहीं गीता में नहीं लिखी है लेकिन ऐसा हमारा मानना है।
बात है सन् 2014 की। लेकिन आप सोच रहे होंगे कि 2014 की बात अब क्यों बताई जा रही है? तो उसकी वजह हमारी ‘न्याय-प्रणाली’ है पर ये दूसरा विषय है।
कहानी कुछ यूँ है कि अभिषेक भंसाली (बेदला रोड निवासी), सन् 2014 की सर्दियों में अजमेर से उदयपुर हॉलिडे स्पेशल के ए.सी. चेयर कार में सफ़र शुरू करने वाले थे। रेलवे टिकेट ऑनलाइन करवाया हुआ था। लेकिन ज्यों ही वो अपनी सीट नंबर 66 पर गए तो उन्हें सीट टूटी हुई मिली। कुछ देर एडजस्ट करने के बाद उन्होंने टीटी से सीट बदलवाने की गुजारिश की तो टीटी ने इग्नोर कर दिया। कुछ देर बाद फिर से बोलने पर भी करवाई नहीं की तो अभिषेक भंसाली ने टीटी से कंप्लेंट रजिस्टर माँगा तब टीटी ने जवाब दिया कि अगले स्टेशन पर उतरकर कंप्लेंट कर देना। सीट बैठने लायक नहीं होने की वजह से अभिषेक भंसाली को पुरे सफ़र के दौरान खड़े रहना पड़ा।
उसके बाद जो हुआ उससे हम सभी को कुछ सीखना चाहिए। अभिषेक भंसाली ने जिला उपभोक्ता मंच पर अपनी शिकायत दर्ज करवाई। जिला उपभोक्ता मंच ने रेलवे से 4000 रुपये पेनेल्टी के रूप में अभिषेक को देने को कहा। हालाँकि अभिषेक सिर्फ इतने से खुश नहीं हुए और वो इस केस को राज्य उपभोक्ता मंच लेकर गए। मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए राज्य उपभोक्ता मंच ने उत्तर-पश्चिम रेलवे को राशि 4000 से बढ़ाकर 24,000 रुपये करने को कहा।
यह बात हमें माननी चाहिए कि भले अभिषेक भंसाली को न्याय मिलने में देरी हुई लेकिन उन्हें अपने अधिकार पता थे। उन्हें ये भी पता था, अपने अधिकारों की रक्षा कैसे की जाती है। ये आपके हमारे लिए एक सबक है जिसे सिखने की ज़रूरत है। हम अक्सर ऐसी बातों को जाने देते है और बेवजह परेशां होते रहते है।
एक बात ध्यान रखने योग्य है। हम लोगो से तंत्र है, तंत्र से हम लोग नहीं। 🙂