हम सभी ने अपने-अपने शिक्षकों अथवा घर के बड़े बुजुर्गों से महाराज चतुर सिंह के बारे में तो सुना ही होगा, व उनके दोहे एवं शेर भी सुने होंगे । आईये जानते हैं उन महान मेवाड़ी कवि संत चतुर सिंह जी बावजी के बारे में ।
महाराज चतुर सिंह जी बावजी मेवाड़ के लोक संत के रूप में जाने जाते हैं, इन्हें चतर सिंह जी बावजी भी कहते हैं । इनका जन्म 9 फरवरी 1880 को हुआ था , अर्थात (विक्रम संवत सन 1936 माघ शुक्ला चतुर्दशी)। योगीवर्य महाराज चतुरसिंह जी मेवाड़ की भक्ति परम्परा के एक परमहंस व्यक्तित्व थे । इस संत ने लोकवाणी मेवाड़ी के माध्यम से अपने अद्भुत विचारों को साहित्य द्वारा जन-जन के लिए सुलभ बनाया। इनके लेखन की विशेषता यह थी की यह अत्यंत गूढ़ से गूढ़ बातों को आसान शब्दो में बयां कर देते थे।
बावजी का जन्म एक राजपरिवार में हुआ था, इनकी माता रानी कृष्ण कँवर एवं पिता श्री सूरत सिंह थे। इनका जन्म स्थान कर्जली उदयपुर था । इनके गुरु ठाकुर गुमान सिंह जी सारंगदेवोत थे, जो कि लक्ष्मणपुरा से थे।
चतुर सिंह जी बावजी ने लगभग 21 छोटे बड़े ग्रंथो की रचना की। जिनमे से मेवाड़ी बोली में लिखी गईं गीता पर गंगा-जलि एवं चंद्र शेखर स्त्रोत विश्व प्रसिद्ध हैं। –
- अलख पचीसी
- तू ही अष्टक
- अनुभव प्रकाश
- चतुर प्रकाश
- हनुमत्पंचक
- अंबिका अष्टक
- शेष चरित्र
- चतुर चिंतामणि: दोहावाली/पदावली
- समान बत्तीसी
- शिव महिम्न स्त्रोत
- चंद्रशेखर स्त्रोत
- श्री गीता जी
- मानव मित्र राम चरित्र
- परमार्थे विचार 7 भाग
- 15. ह्रदय रहस्य
- बालकारी वार
- बालकारी पोथी
- लेख संग्रह
- सांख्यकारिका
- तत्व समास
- योग सूत्र
चंद्रधारक चंद्रधारक चंद्रधारक पालजे, चंद्रधारक चंद्रधारक चंद्रधारक राखजे ।।
रत्न पर्वत धनुष कीधो मुठ रूपागिर कर्यो,करयौ वासक नाग डोरो बाण अग्नि विष्णु रो ।।
बालन्हान्यो त्रिपुर पल में देवता वंदन करे , चन्द्रधारक आसरे मु काल मारो कई करें ।।
चंद्रधारक चंद्रधारक चंद्रधारक पालजे, चंद्रधारक चंद्रधारक चंद्रधारक राखजे ।।
मादा हाथी री मनोहर ओढ राखी खाल ने,विष्णु ब्रम्हा चरण कमला में जणीरे धोग दे।।
जटा गंगा री तरंगा सु सदा भीजि रहे, चन्द्रधारक आसरे मु काल मारो कई करें ।।
उनकी रचनाओं में ईश्वर ज्ञान और लोक व्यवहार का सुन्दर मिश्रण है। कठिन से कठिन ज्ञान तत्व को हमारे जीवन के दैनिक व्यवारों के उदाहरणों से समझाते हुए सुन्दर लोक भाषा में इस चतुराई से ढाला है कि उनके गीत, उनमें बताई गई बात एक दम गले उतर कर हृदय में जम जाती हैं, मनुष्य का मस्तिष्क उसे पकड़ लेता है।
एक बात और है। बावजी चतुर सिंहजी के गीत और दोहे जीवन की हर घड़ी, विवाह-शादी, समारोह, आदि अवसरों पर गाये-सूनाये जाने योग्य है। उन्हें सुनने, सुनाने वाले के मन भी शान्ती, शुध्दता और नई रोशनी मिलती है।
आप सभी सज्जनों से निवेदन हैं कि इस महान् सन्त कवि बावजी चतुर सिंहजी की कविताओं को पढ़े अन्य बालक बालिकाओं और लोगों को पढ़ावे और समाज में अधिक से अधिक प्रचार कर लोगों के मन और मस्तिष्क को नया ज्ञान, पृकाश, ओर नया आनन्द दे।
प्रस्तुत है बावजी की कुछ रचनाएँ ।।
कोई केवे मु करु न कोई केवे राम ।
न्यारा न्यारा कोई नि मु न मारो राम ।।
रेंट फरे चरख्योफरे पण फरवा में फेर।
वो तो वाड हर्यो करे ,वी छूता रो ढेर ।।
धरम रा गेला री गम नी है, जीशूँ अतरी लड़ा लड़ी है ।।
शंकर, बद्ध, मुहम्मद, ईशा, शघलां साँची की’ है ।
अरथ सबांरो एक मिल्यो है, पण बोली बदली है।।
आप आपरो मत आछो पण, आछो आप नहीं है।
आप आपरा मत री निंदा, आप आप शूं व्ही है।।
नारी नारी ने जाणे, पर नर सू अणजाण ।
जाण व्हियां पे नी जणे, उद्या अलख पहचाण ।।
कृष्ण कूख तें प्रकट भे, तेज लच्छ हिमतेस।
ब्रहम्मलीन हैं चतुर गुरु, चतुर कुँवर सुरतेस॥
मानो के मत मानो, केणो मारो काम।
कीका डांगी रे आँगणे, रमता देखिया राम॥
पर घर पग नी मैलणो, बना मान मनवार। अंजन आवै देखनै, सिंगल रो सतकार॥
ऊँध सूधने छोड़ने, करणो काम पछाण। कर ऊँधो सूँधो घड़ो, तरती भरती दाँण॥
भावै लख भगवंत जश, भावे गाळाँ भाँड। द्वात कलम रो दोष नी, मन व्हे’ ज्यो ही मांड ।।
पगे पगरखी गांवरी, ऊँची धोती पैर। कांधे ज्ञान पछेवड़ो, चतुर चमक चहुँफेर॥
जय महाराज चतुर सिंह बावजी की ।।