“पिताजी ने कहा था कि जब बड़ा होगा तो मैं तुझसे कुछ भी नहीं कहूँगा। तब जो मर्ज़ी आए वह करना। मैंने सोचा था बस एक बार बड़ा हो जाऊँं फिर देखना दिन भर खेलता रहूँगा, पतंग उड़ाता फिरूंगा। कोई पढ़ाई की बात भी करेगा तो उसे एक लात मारूँगा, कुल्हे के आसपास कहीं।” – मानव कॉल (ठीक तुम्हारे पीछे)
मुझे उम्मीद है हम सभी ने बचपन में ऐसे सपने ज़रूर देखे होंगे, कुछ इससे मिलते-झूलते, कुछ इससे भी बड़े। फिर हम बड़े होते जाते है, ‘बचपन’ और बचपन की आँखों में पाले गए ये ‘सपने’ कहीं खो से जाते है। ‘बचपन’ की जगह एक ‘जवानी’ ले लेती है, जो पूरी तरह से हमारे अन्दर के बच्चे को निगल चूकी होती है। और रही बात ‘सपनों’ की तो उनकी जगह ‘जिम्मेदारियाँ’ ले लेती है, जिसकी वजह से खुले आसमान में उड़ने के ख्व़ाब पाले ये कंधे इनके बोझ-तले झुक जाते है।
‘चिल्ड्रेन्स डे’ पर बच्चो को एक दिन में ढेर सारी खुशियाँ देने से अच्छा होगा हम उन्हें साल भर ऐसा वातावरण प्रदान करे, ऐसी सोच देंवे, उन्हें उस आज़ादी की ओर बढ़ाए, जिनकी उन्हें सच में ज़रूरत है। उन्हें बस किताबी ज्ञान तक ही सीमित न रहने दे, उन्हें अच्छा आल-राउंडर बनाए। अपनी ख्वाईशें उन पर नहीं थोपे, क्योंकि वो ‘आप’ जैसा कभी नहीं हो सकता, उसकी अलग ज़िन्दगी है, सोच है, अलग ढंग से दुनिया को देखने और समझने का तरीका है। उसे अपनी सोच बनाने के लिए प्रोत्साहित करें। आप ख़ुद को उनकी जगह रखकर अपने बचपन को याद करना, शायद आप समझ जाएँगे मैं क्या कहना चाह रहा हूँ।
साथ ही साथ कोशिश ये भी करनी चाहिए कि हमारे अन्दर गुम हो चुके उस बच्चे को भी खोज निकाले। फिर देखिए आपकी ज़िन्दगी कैसे बदलती है।
‘कैलाश सत्यार्थी’ का एक फेमस कोट है, “Childhood means simplicity. Look at the world with the child’s eye – it is very beautiful.(बचपन सादगी है। दुनिया को एक बच्चे के नज़रिए से देखिए, ये बहुत ख़ूबसूरत नज़र आएगी।)”
ये एक कोशिश थी हम लोगो की, बच्चो की तरफ़ से कुछ कहने की। उम्मीद करते है आप तक सही ढंग से पहुची हो। ज़िन्दगी कोई रियलिटी शो नहीं है, या कोई इम्तेहान नहीं है। ज़िन्दगी जीने को परीक्षा मत बनाइये, उसे जीने की कोशिश कीजिये बजाए जीतने की।
बच्चो के सपनो को उड़ान दो, उनकी आज़ादी में उनका साथी बनो, रुकावट नहीं।
जो लहरों से आगे नज़र देख पाती तो तुम जान लेते मैं क्या सोचता हूँ,
वो आवाज़ तुमको भी जो भेद जाती तो तुम जान लेते मैं क्या सोचता हूँ।
ज़िद का तुम्हारे जो पर्दा सरकता तो खिड़कियों से आगे भी तुम देख पाते,
आँखों से आदतों की जो पलकें हटाते तो तुम जान लेते मैं क्या सोचता हूँ।
मेरी तरह खुद पर होता ज़रा भरोसा तो कुछ दूर तुम भी साथ-साथ आते,
रंग मेरी आँखों का बांटते ज़रा सा तो कुछ दूर तुम भी साथ-साथ आते।
नशा आसमान का जो चूमता तुम्हें भी, हसरतें तुम्हारी नया जन्म पातीं,
खुद दुसरे जनम में मेरी उड़ान छूने कुछ दूर तुम भी साथ-साथ आते।।