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दादू की याद में ‘Rangaanjali’

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‘दादू’ !! आज भी इसी नाम से पूरा उदयपुर श्री हेमंत पंड्या ‘दादू’ को याद करता है। प्रख्यात रंगकर्मी, अभिनेता, निर्देशक, बांसुरी वादक और न जाने क्या-क्या। जीवन के कई रंग थे ‘दादू’ में। शायद तभी इसे ‘रंगांजलि’ नाम दिया गया। सन् 2005 में ‘दादू’ के ही शिष्यों के द्वारा शुरू किया ये थिएटर फेस्टिवल इस साल अपने 10 बरस पुरे करने जा रहा है। ‘रंगांजलि’ पूरी तरह से ‘दादू’ और उनके किये गए कार्यो को समर्पित है। अच्छी बात ये है कि फेस्टिवल किसी भी तरह से आर्थिक लाभ के लिए नहीं किया जाता है। ये उनके शिष्यों द्वारा उन्हें ट्रिब्यूट देने की एक छोटी सी कोशिश है।

हर वर्ष की तरह इस बार भी ‘नादब्रम्ह’ संस्था उदयपुर वासियों के लिए ‘रंगांजलि’ आयोजित करवा रहा है। इस साल ‘रंगांजलि’ में प्रभा दीक्षित लिखित कहानी ‘अन्दर आना मना है’ का नाटकीय रूप में मंचन किया जायेगा। इस नाटक को शहर के ही जाने-माने रंगकर्मी श्री शिवराज सोनवाल डायरेक्ट कर रहे है। ये नाटक इसी महीने की 10 तारीख़ को शिल्पग्राम के ‘दर्पण सभागार’ में खेला जायेगा। इस नाटक का ये तीसरा शो होगा इससे पहले यही टीम संगीत नाटक अकादमी के ‘रंग प्रतिभा थिएटर फेस्ट’ और जवाहर कला केंद्र, जयपुर में अपनी प्रस्तुति दे चुकी है। ‘नादब्रम्ह’ संस्था तीन बार ‘ॐ शिवपुरी’ थिएटर फेस्ट जा चुकी है। इस टीम से निकले थिएटर आर्टिस्ट आज की तारीख़ में दिल्ली, मुंबई में उदयपुर का नाम रोशन कर रहे है। इस बार ‘रंगांजलि’ के 10वे अवसर पर शहर के रंगकर्मी थोड़े भावुक ज़रूर है पर उत्साह में किसी भी प्रकार की कमी नहीं दिख रही है, और यही उत्साह उनके द्वारा दी जानी परफॉरमेंस में आप सभी शहर वासियों को भावनात्मक रूप से जोड़ने का प्रयास करेगा, जैसा ‘दादू’ के साथ देखने को मिलता था।

आइये एक नज़र डालते है ‘रंगांजलि’ के अब तक के सफ़र पर :-

2005 – मन-मरिचिका

2008 – रहोगी तुम वही, रोटी का जाल, हवालात

2009 – शब्द-बीज

2010 – मुग़लों ने सल्तनत बख़्श दी, तीतर

2011 – कोर्ट मार्शल

2012 – मन मरिचिका, माँ मुझे टेगौर बना दो

2014 – कोर्ट मार्शल

2015 – आख़िर इस मर्ज़ की दवा क्या है?

2016 – संक्रमण, सबसे सस्ता गोश्त

2017 – अन्दर आना मना है !

10, सितम्बर शाम 7 बजे

दर्पण सभागार, शिल्पग्राम, उदयपुर

Invitation Card

2 Comments

  1. सुभाष जोशी

    हेमन्त जी जियाजी को सादर नमन। कल तक तो ध्यान था। आज नाटक देखने नहीं आ सके। बहुत दुख हुआ। उन्हें सादर श्रद्धांजलि।

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