Mini Forest in Udaipur

तनाव को हराने के लिए शहरवासियों बना रहें हैं ‘मिनी फारेस्ट’

उदयपुर में इन दिनों ‘मिनी फारेस्ट’ का चलन ज़ोरों पर है। शहर के अंदर और आस-पास खली पड़ी ज़मीनों, फार्महाउस जैसे जगहों पर शहरवासी मियावाकी पद्धति से लोकल और देशी प्रजातियों के पेड़-पौधे लगा कर शहर के लिए एक छोटा सा इकोसिस्टम बना रहें हैं।

जापानी बॉटनिस्ट डॉ अकीरा मियावाकी के द्वारा विकसित इस पद्धति में छोटी और सीमित जगहों पर ज्यादा से ज्यादा लोकल पेड़ और पौधे लगाकर छोटे जंगल तैयार किये जाते हैं। शहर में लोग इसी पद्धति के साथ सार्वजनिक स्थानों और पर्सनल फार्म हाउसेस में ऐसे मिनी फारेस्ट विकसित कर रहे हैं।

उदयपुर में मिनी फॉरेस्ट का चलन साल-भर पहले यानि मई 2019 से शुरू हुआ था जब यहाँ के एक वरिष्ठ नागरिक अब्बास अली बंदुकवाला ने जिला शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थान (DIET) के गोवर्धन विलास स्थित कार्यालय में इसे विकसित करने की योजना बनाई थी।

बंदुकवाला ने अपनी दोहिती के जन्म पर दावत या समारोहों में पैसे खर्च करने के बजाय पेड़ लगाने का निर्णय लिया। उन्होंने इसके लिए एक विशेषज्ञ से संपर्क किया, जिसने उन्हें जंगल स्थापित करने के लिए एक सार्वजनिक स्थान ढूंढने में मदद की।

उनका कहना है की वें अपनी निजी ज़मीन पर मिनी फारेस्ट विकसित कर सकते थे, लेकिन तब उसका आनंद केवल उनके परिवार तक ही सीमित रहता। सार्वजनिक संपत्ति पर ऐसे जंगल बना कर अन्य लोग भी इससे प्रेरित हुए जिन्होंने बाद में अपनी निजी ज़मीनों और खली पड़े फार्म हाउस पर अरावली रेंज में उगने वाले पेड़ और पौधों की प्रजातियाँ उगाईं।

इन ‘मिनी फारेस्ट ’के मालिकों का कहना है की ये न केवल पर्वावरण के लिए फायदेमंद हैं बल्कि जीवन में तनाव कम करने में भी मददगार हैं।

उदयपुर के एक बिजनेसमैन जतिन सुहालका, जिनका डबोक में एक फार्महाउस है, उन्होंने भी अपने फार्म पर ऐसा ही एक मिनी फारेस्ट विकसित किया है। अपने छोटे-से फारेस्ट में समय बिताना जतिन को बेहद “डिलाइटफुल एक्सपीरियंस” लगता है और इसलिए वें यहाँ ज्यादा से ज्यादा समय बिताना पसंद करतें हैं।

जतिन के इस मिनी फारेस्ट में करीब 350 से अधिक देशी पेड़-पौधों की मिश्रित किस्में हैं। 2019 से शुरू किये उनके इस जंगल के कई पौधे अब तक 20 फीट तक ऊंचे हो गए हैं। उन्होंने इसमें महुआ, आम, कचनार, कीकर और अरावली में पाए जाने वाले और भी कई किस्मों के पौधे लगाएं हैं।

वहीं शहर के एक और नेचर लवर, विनू हिरन भी अपने मिनी जंगल से काफ़ी खुश हैं। उनका कहना है की किसी के लिए भी अपना एक प्राइवेट हरा-भरा जंगल होना बहुत ही सुखद एहसास है।

उदयपुर की एक संस्था, पुकार फाउंडेशन, जो स्थानीय वनस्पतियों के रोपण और रखरखाव को बढ़ावा देने के लिए काम कर रही है, वह भी ऐसे मिनी फारेस्ट बनाने की इच्छा रखने वाले लोगों की मदद कर रही है।

पुकार के एक टीम मेंबर, भुवनेश ओझा के मुताबिक एक मिनी फॉरेस्ट बनाने के लिए 20×20 वर्ग फीट की न्यूनतम होल्डिंग पर देशी पेड़ों की 40 किस्में उगा सकतें हैं।

उदयपुर के लोगों द्वारा की गई यह पहल न केवल उनके खुदके, बल्कि पुरे शहर और इकोसिस्टम के लिए फायदेमंद है। हम उम्मीद करतें हैं कि ऐसे मिनी फारेस्ट न सिर्फ उदयपुर बल्कि दुनिया भर के लोगों को अपने आसपास हरियाली और शुद्ध वातावरण स्थापित करने के लिए एक प्रेरणा बनेंगे।

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