नाथद्वारा, श्रीनाथ जी के मंदिर की वजह से पुरे विश्वभर में अपनी एक अलग छवि रखता है। हर साल लाखो-करोड़ो लोग श्रीनाथ जी के दर्शन हेतु नाथद्वारा आते है। दर्शन के दौरान श्रद्धालु श्रीनाथ जी की दाढ़ी में लगे हीरे को भी देखना पसंद करते है। लेकिन उस हीरे के दाढ़ी में होने के पीछे की क्या कहानी है?
हम बताते है…
नाथद्वारा में हर साल धुलंडी पर एक सवारी निकलती है, नाम बहुत दिलचस्प है ‘बादशाह की सवारी’। यह सवारी नाथद्वारा के गुर्जरपुरा मोहल्ले के बादशाह गली से निकलती है। यह एक प्राचीन परंपरा है जिसमें एक व्यक्ति को नकली दाढ़ी-मूंछ, मुग़ल पोशाक और आँखों में काजल डालकर दोनों हाथो में श्रीनाथ जी की छवि देकर उसे पालकी में बैठाया जाता है। इस सवारी की अगवानी मंदिर मंडल का बैंड बांसुरी बजाते हुए करता है।
यह सवारी गुर्जरपुरा से होते हुए बड़ा बाज़ार से आगे निकलती है तब बृजवासी सवारी पर बैठे बादशाह को गलियां देते है। सवारी मंदिर की परिक्रमा लगाकर श्रीनाथ जी के मंदिर पंहुचती है, जहां वह बादशाह अपनी दाढ़ी से सूरजपोल की सीढियाँ साफ़ करता है जो कि लम्बे समय से चली आ रही एक प्रथा है। उसके बाद मंदिर के विभाग-प्रमुख बादशाह को पैरावणी भेंट करते है। इसके बाद फिर से गालियों का दौर शुरू होता है, मंदिर में मौजूद लोग बादशाह को खरी-खोटी सुनते है और रसिया गान शुरू होता है। तब आसपास का माहोल ऐसा हो जाता है मानो मथुरा-वृन्दावन में होली खेल रहे हो।
इस सब के पीछे की वजह –
नाथद्वारा में मान्यता है कि जब औरंगजेब श्रीनाथ जी की मूर्ति को खंडित करने मंदिर में आया था तो मंदिर में पंहुचते ही अँधा हो गया था। तब उसने अपनी दाढ़ी से मंदिर की सीढियाँ साफ़ करते हुए श्रीनाथ जी से विनती की और वह ठीक हो गया। उसके बाद औरंगजेब ने बेशकीमती हीरा मंदिर को भेंट किया जिसे हम आज श्रीनाथ जी के दाढ़ी में लगा देखते है।
बस इसी घटना को हर साल धुलंडी पर ‘बादशाह की सवारी’ निकालकर याद किया जाता है। यह सवारी नाथद्वारा के अलावा ब्यावर, पली और अजमेर में भी निकली जाती है।
आचार्य चरण, प्रभुचरण सहित सप्त आचार्य वर्णन- श्रीमद्वल्लभविट्ठलौ गिरिधरं गोविंदरायाभिधम्, श्रीमद् बालकृष्ण गोकुलपतिनाथ रघूणां तथा एवं श्रीयदुनायकं किल घनश्यामं च तद्वंशजान्, कालिन्दीं स्वगुरुं गिरिं गुरुविभूं स्वीयंप्रभुंश्च स्मरेत् ॥
अखिल भारतीय पुष्टिमार्गीय वैष्णव संप्रदाय की प्रधान पीठ श्री नाथद्वारा में आगामी तीन दिनों तक विशेष मनोरथ का आगाज़ आज से होगा. तिलकायत महाराज श्री विशाल बावा के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में ये मनोरथ आयोजित किया जा रहा है| श्रीनाथ मंदिर मंडल से udaipurblog.com को मिली जानकारी के अनुसार पहले दिन आज श्रीजी को छप्पन भोग धराया जायेगा | छप्पन भोग पर श्रीजी को विशेष श्रृंगार और राजभोग दर्शन में अनूठा वागा (वस्त्र) धारण करवा कर लाड लड़ाए जायेंगे. श्रीनाथजी के सभी दर्शन पूर्व नियोजित कार्यक्रम अनुसार ही होंगे. छप्पन भोग के लिए श्रीनाथजी की रसोई में विशेष तैयारियों के साथ पकवान बनाये जा रहे हैं किन्तु उसकी जानकारी गोपनीय रखी गयी है. तर्क दिया जाता है कि श्रीजी का स्वरुप बाल कृष्ण स्वरुप है और किसी बालक को खिलाये जाने वाले भोजन की जानकारी यदि माता किसी को दे तो बालक को “नज़र” लगने का भय होता है.
मनोरथ के दुसरे दिन लालन नवनीतप्रिया जी मंदिरजी से टाटोल गौशाला विहार हेतु पधारेंगे. तीसरे दिन वहीँ लालन को सोने के बंगले की झांकी का मनोरथ होगा. लालन को सोने के बंगले में विराजित करवाया जायेगा. दो दिवस तक लालन श्रीजी के गौओं के बीच विहार करेंगे. टाटोल गौशाला आने जाने के लिए मंदिर मंडल की ओर से बस स्टेंड, नाथद्वारा से सीधी निशुल्क बस सेवा उपलब्ध होगी.
मंदिरजी पर तिलकायत के जन्मोत्सव पर विशेष पंचरंगी ध्वजा चढ़ाई जाएगी. अनूठे श्रृंगार के बीच पुष्प चढ़कर लड़ लड़ाए जायेंगे. लालन को झुला झुलाया जायेगा. तीन दिवस तक श्रीजी के भी विशेष दर्शन होंगे. सप्त दर्शन समय यथावत रहेंगे. मंगला प्रातः 5 – 5.15AM बजे, श्रृंगार 7 – 7.15AM बजे, ग्वाल 8.30 – 8.40AM , राजभोग 11.40-12.15 PM, उत्थापन दर्शन सायं 3.45- 4.00PM बजे, भोग 5- 5.05PM , आरती 6.00-6.15 PM शयन (गुप्त) दर्शनों का समय रहेगा.
आगामी तीन दिनों तक वैष्णव नगरी पूर्ण रूप से श्रीजी के मनोरथ रंग में रंगी नज़र आएगी.
उल्लेखनीय है कि पुष्टि मार्ग में भगवान कृष्ण के उस स्वरूप की आराधना की जाती है जिसमें उन्होंने बाएँ हाथ से गोवर्धन पर्वत उठा रखा है और उनका दायाँ हाथ कमर पर है।
श्रीनाथ जी का बायाँ हाथ 1410 में गोवर्धन पर्वत पर प्रकट हुआ। उनका मुख तब प्रकट हुआ जब श्री वल्लभाचार्यजी का जन्म 1479 में हुआ। अर्थात् कमल के समान मुख का प्राकट्य हुआ।
1493 में श्रीवल्लभाचार्य को अर्धरात्रि में भगवान श्रीनाथ जी के दर्शन हुए।साधू पांडे जो गोवर्धन पर्वत की तलहटी में रहते थे उनकी एक गाय थी। एक दिन गाय ने श्रीनाथ जी को दूध चढ़ाया। शाम को दुहने पर दूध न मिला तो दूसरे दिन साधू पांडे गाय के पीछे गया और पर्वत पर श्रीनाथजी के दर्शन पाकर धन्य हो गया। दूसरी सुबह सब लोग पर्वत पर गए तो देखा कि वहाँ दैवीय बालक भाग रहा था। वल्लभाचार्य को उन्होंने आदेश दिया कि मुझे एक स्थल पर विराजित कर नित्य प्रति मेरी सेवा करो। तभी से श्रीनाथ जी की सेवा मानव दिनचर्या के अनुरूप की जाती है। इसलिए इनके मंगला, श्रृंगार, ग्वाल, राजभोग, उत्थापन, आरती, भोग, शयन के दर्शन होते हैं। कालांतर में मुस्लिम आतातियों के निरंतर आक्रमणों और मीरा बाई को दिए वचन के चलते श्रीजी मेवाड़ पधारे और पहले घसियार और बाद में श्रीनाथद्वारा में पधारे. तभी से श्रीनाथद्वारा वैष्णवों का प्रमुख तीर्थ स्थल है.