मेवाड़ की पावन धरती ने कई महान एवं वीर, पराक्रमी योद्धाओं को जन्म दिया है। गोरा एवं बादल उन्ही वीर योद्धाओं में से एक है ,ये धरती हमेशा उनकी कृतज्ञ रहेगी! तो आइए जानते हैं उन दो महान योद्धाओं के बारे में जिनके लिए यह कहा जाता है कि “जिनका शीश कट जाए फिर भी धड़ दुश्मनों से लड़ता रहे वो राजपूत“ ।
गोरा-बादल
गोरा तत्कालीन चित्तौड़ के सेनापति थे एवं बादल उनके भतीजे थे। दोनो अत्यंत ही वीर एवं पराक्रमी योद्धा थे, उनके साहस, बल एवं पुरुषार्थ से सारे शत्रु डरते थे। गोरा एवं बादल इतिहास के उन गिने चुने लड़ाकों में से एक थे जिनके पास बाहुबल के साथ साथ तीव्र बुद्धि भी थी।
इनकी बुद्धि एवं वीरता ने उस असंभव कार्य को संभव कर दिखाया जिसे कोई और शायद ही कर पाता ।
ये ऐसे योद्धा थे जो दिल्ली जाकर खिलजी की कैद से राणा रतन सिंह को छुड़ा लाये थे । इस युद्ध में जब गोरा ने खिलजी के सेनापति को मारा था तब तक उनका खुद का शीश पहले ही कट चुका था, केवल धड़ शेष रहा था । यह सब कैसे संभव हुआ इसका वर्णन मैं मेवाड़ के राज कवि श्री श्री नरेन्द्र मिश्र की अत्यंत खूबसूरत कविता के छोटे से अंश से करता हूँ ।
बात उस समय की है जब खिलजी ने धोके से राणा रतन सिंह को कैद कर लिया था, जब राणा जी दिल्ली में खिलजी की कैद में थे तब रानी पद्मिनी गोरा के पास गयीं; गोरा सिंह रानी पद्मिनी को वचन देते हुए कहते है कि –
जब तक गोरा के कंधे पर दुर्जय शीश रहेगा ।
महाकाल से भी राणा का मस्तक नही कटेगा ।।
तुम निशिन्त रहो महलो में देखो समर भवानी ।
और खिलजी देखेगा केसरिया तलवारो का पानी ।।
राणा के सकुशल आने तक गोरा नही मरेगा ।
एक पहर तक सर तटने पर भी धड़ युद्ध करेगा।।
एकलिंग की शपथ महाराणा वापस आएंगे ।
महाप्रलय के घोर प्रभंजक भी ना रोक पाएंगे ।।
यह शपथ लेकर महावीर गोरा, राणा जी को वापस चित्तौड़ लेन की योजना बनाने लगे ।
योजना के बन जाने पर वीर गोरा ने आदेश दिया कि –
गोरा का आदेश हुआ सजगये सातसौ डोले ।
और बांकुरे बादल से गोरा सेनापति बोले ।।
खबर भेज दो खिलजी पर पद्मिनी स्वंय आती है ।
अन्य सातसौ सतिया भी वो संग लिए आती है ।।
जब यह खबर खिलजी तक पहुँची तो वो खुशी के मारे नाचने लगा ,उसको लगा कि वो जीत गया है। लेकिन ऐसा नहीं था ,पालकियों में तो सशस्त्र सैनिक बैठे थे । एवं पालकी ढ़ोने वाले भी कुशल सैनिक थे ।।
और सातसौ सैनिक जो कि यम से भी भीड़ सकते थे ।
हर सैनिक सेनापति था लाखो से लड़ सकते थे ।।
एक–एक कर बैठ गए, सज गई डोलियां पल में ।
मर मिटने की हौड़ लगी थी मेवाड़ी दल में ।।
हर डोली में एक वीर , चार उठाने वाले ।
पांचो ही शंकर की तरह समर भत वाले ।।
सैनिकों से भरी पालकियां दिल्ली पहुँच गई ।
जा पहुंची डोलियां एक दिन खिलजी की सरहद में ।
उस पर दूत भी जा पहुँचा खिलजी के रंग महल में।।
बोला शहंशाह पद्मिनी मल्लिका बनने आयी है ।
रानी अपने साथ हुस्न की कालिया भी लायी है ।।
एक मगर फरियाद फ़क़्त उसकी पूरी करवादो ।
राणा रतन सिंह से केवल एक बार मिलवादो ।।
दूत की यह बात सुनकर मुगल उछल पड़ा , उसने तुरंत ही राणा जी से पद्मिनी को मिलवाने का हुक्म दे दिया । जब ये बात गोरा के दूत ने बाहर आकर बताई तब गोरा ने बादल से कहा कि –
बोले बेटा वक़्त आगया है कट मरने का ।
मातृ भूमि मेवाड़ धारा का दूध सफल करने का ।।
यह लोहार पद्मिनी वेश में बंदीगृह जाएगा ।
केवल दस डोलियां लिए गोरा पीछे ढायेगा ।।
यह बंधन काटेगा हम राणा को मुक्त करेंगे।
घुड़सवार कुछ उधर आड़ में ही तैयार रहेंगे।।
जैसे ही राणा आएं वो सब आंधी बन जाएँ।
और उन्हें चित्तोड़ दुर्ग पर वो सकुशल पहुंचाएं।।
गोरा की बुद्धि का यह उत्कृष्ट उदाहरण था । दिल्ली में जहाँ खिलजी की पूरी सेना खड़ी है, वहाँ ये चंद मेवाड़ी सिपाही अपनी योजना, बुद्धि एवं साहस से राणा को छुड़ाने में कामयाब हो जाते हैं। राणा के वहाँ से प्रस्थान करने से पूर्व वीर गोरा, अपने भतीजे बादल से कहते है कि –
राणा जाएं जिधर शत्रु को उधर न बढ़ने देना।
और एक यवन को भी उस पथ पावँ ना धरने देना।।
मेरे लाल लाडले बादल आन न जाने पाए ।
तिल तिल कट मरना मेवाड़ी मान न जाने पाए ।।
यह सुनकर बादल बोले कि –
ऐसा ही होगा काका राजपूती अमर रहेगी ।
बादल की मिट्टी में भी गौरव की गंध रहेगी ।।
बादल के ये वचन सुनकर गोरा ने उसे अपने हृदय से लगा लिया!!! लेकिन इस पूरी योजना का क्रियान्वय किस प्रकार हुआ इसका वर्णन महा कवि श्री श्री नरेंद्र मिश्र कि निम्न पंक्तिया करती है –
गोरा की चातुरी चली राणा के बंधन काटे ।
छांट छांट कर शाही पहरेदारो के सर काटे ।।
लिपट गए गोरा से राणा गलती पर पछताए ।
सेनापति की नमक हलाली देख नयन भर आये ।।
राणा ने पूर्व में जिस सेनापति का तिरस्कार किया था , संकट की घड़ी में आखिर वो ही काम आया ।यह देख कर राणा के नैन भर आए ।। लेकिन अब तक खिलजी के सेनापति को लग गया था कि कुछ गड़बड़ है ।
जब उसने लिया समझ पद्मिनी नहीँ आयी है।
मेवाड़ी सेना खिलजी की मौत साथ लायी है ।।
तो उसने पहले से तैयार सैनिक दल को बुलाया और रण छेड़ दिया ।
दृष्टि फिरि गोरा की मानी राणा को समझाया ।
रण मतवाले को रोका जबरन चित्तोड़ पठाया ।।
उस समय राणा को सुरक्षित अपने देश पहुचना तथा शत्रु देश से निकलना अधिक महत्वपूर्ण था, राणा ने परिस्थिति को समझा और मेवाड़ की ओर प्रस्थान किया ।।
खिलजी ललकारा दुश्मन को भाग न जाने देना ।
रत्न सिंह का शीश काट कर ही वीरों दम लेना ।।
टूट पड़ों मेवाड़ी शेरों बादल सिंह ललकारा ।
हर हर महादेव का गरजा नभ भेदी जयकारा ।।
निकल डोलियों से मेवाड़ी बिजली लगी चमकने ।
काली का खप्पर भरने तलवारें लगी खटकने ।।
राणा के पथ पर शाही सेनापति तनिक बढ़ा था ।
पर उस पर तो गोरा हिमगिरि सा अड़ा खड़ा था।।
कहा ज़फर से एक कदम भी आगे बढ़ न सकोगे ।
यदि आदेश न माना तो कुत्ते की मौत मरोगे ।।
रत्न सिंह तो दूर न उनकी छाया तुम्हें मिलेगी ।
दिल्ली की भीषण सेना की होली अभी जलेगी ।।
यह कह के महाकाल बन गोरा रण में हुंकारा ।
लगा काटने शीश बही समर में रक्त की धारा ।।
खिलजी की असंख्य सेना से गोरा घिरे हुए थे ।
लेकिन मानो वे रण में मृत्युंजय बने हुए थे ।।
बादल की वीरता की हद यहा तक थी कि इसी लड़ाई में उनका पेट फट चुका था । अंतड़िया बाहर आ गई थी तो भी उन्होंने लड़ना बंद नही किया , अपनी पगड़ी पेट पर बांधकर लड़ाई लड़ी ।
रण में दोनों काका-भतीजे और वीर मेवाड़ी सैनिकों के इस रौद्र प्रदर्शन का वर्णन कवि नरेन्द्र मिश्र इस प्रकार करते है-
पुण्य प्रकाशित होता है जैसे अग्रित पापों से ।
फूल खिला रहता असंख्य काटों के संतापों से ।।
वो मेवाड़ी शेर अकेला लाखों से लड़ता था ।
बढ़ा जिस तरफ वीर उधर ही विजय मंत्र पढता था ।।
इस भीषण रण से दहली थी दिल्ली की दीवारें ।
गोरा से टकरा कर टूटी खिलजी की तलवारें ।।
मगर क़यामत देख अंत में छल से काम लिया था ।
गोरा की जंघा पर अरि ने छिप कर वार किया था ।।
वहीँ गिरे वीर वर गोरा जफ़र सामने आया ।
शीश उतार दिया, धोखा देकर मन में हर्षाया ।।
शीश कटने के बाद भी उन्होंने एक ही वार में मुग़ल सेनापति को मार गिराया था । इस अद्भुत दृश्य का वर्णन निम्न पंक्तियों में है ।।
मगर वाह रे मेवाड़ी गोरा का धड़ भी दौड़ा ।
किया जफ़र पर वार की जैसे सर पर गिरा हथौड़ा ।।
एक वार में ही शाही सेना पति चीर दिया था ।
जफ़र मोहम्मद को केवल धड़ ने निर्जीव किया था ।।
ज्यों ही जफ़र कटा शाही सेना का साहस लरज़ा ।
काका का धड़ देख बादल सिंह महारुद्र सा गरजा ।।
अरे कायरो नीच बाँगड़ों छल से रण करते हो ।
किस बुते पर जवान मर्द बनने का दम भरते हो ।।
यह कह कर बादल उस क्षण बिजली बन करके टुटा था ।
मानो धरती पर अम्बर से अग्नि शिरा छुटा था ।।
ज्वाला मुखी फटा हो जैसे दरिया हो तूफानी ।
सदियां दोहराएंगी बादल की रण रंग कहानी ।।
अरि का भाला लगा पेट में आंते निकल पड़ी थीं ।
जख्मी बादल पर लाखो तलवारें खिंची खड़ी थी ।।
कसकर बाँध लिया आँतों को केशरिया पगड़ी से ।
रंचक डिगा न वह प्रलयंकर सम्मुख मृत्यु खड़ी से ।।
अब बादल तूफ़ान बन गया शक्ति बनी फौलादी ।
मानो खप्पर लेकर रण में लड़ती हो आजादी ।।
उधर वीरवर गोरा का धड़ अरिदल काट रहा था ।
और इधर बादल लाशों से भूतल पाट रहा था ।।
आगे पीछे दाएं बाएं जम कर लड़ी लड़ाई ।
उस दिन समर भूमि में लाखों बादल पड़े दिखाई ।।
मगर हुआ परिणाम वही की जो होना था ।
उनको तो कण कण अरियों के शोणित से धोना था ।।
मेवाड़ी सीमा में राणा सकुशल पहुच गए थे ।
गोरा बादल तिल तिल कटकर रण में खेत रहे थे ।।
एक एक कर मिटे सभी मेवाड़ी वीर सिपाही ।
रत्न सिंह पर लेकिन रंचक आँच न आने पायी ।।
गोरा बादल के शव पर भारत माता रोई थी ।
उसने अपनी दो प्यारी ज्वलंत मणियां खोयी थी ।।
धन्य धरा मेवाड़ धन्य गोरा बादल बलिदानी ।
जिनके बल से रहा पद्मिनी का सतीत्व अभिमानी ।।
जिसके कारन मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी |
दोहराता हूँ सुनो रक्त से लिखी हुई क़ुरबानी ||
तो ये थी मेवाड़ के अमर शहीद गोरा एवं बादल की गौरव गाथा ।
ये है हमारे असली नायक जो की हमारे लिए हमेशा प्रेरणा के स्त्रोत है ।।
इनको पढ़ो, इनके बारे में जानो, इनके जैसे बनो । जय मेवाड़।। जय हिंद ।।
स्त्रोत :
श्री श्री नरेन्द्र मिश्र
कवि श्री कुमार विश्वास