Udaipur, the city of lakes is not only well-known for its alluring palaces, traditional food, scenic lakes but also for the scorching heat during summers. Almost everyone is complaining about the quivering heat. But this doesn’t stop the Udaipurites from visiting different places, hanging out with friends or going to work, does it?
As the summers in the state are moving towards its apex, there are some things that we all must make a note of. Keeping our bodies hydrated and healthy is most significant. Most of us head out to work at the peak hours of the day. While there are several ‘Nuskhas’ to safeguard ourselves from the hot spell, one foolproof plan is to gulp down a chilled glass of fruit juice to keep yourself hydrated.
There are various juice shops spread across the city, but we have found the best juice shop in the town to put an end to the summer dehydration woes.
JJ JUICE CORNER:
The famous juice shop near GhantaGhar was started by Lt. Jamiatmal Jagatram Karira in the 1950s. The business started as a fruit retailer where Chikoos and other local fruits were imported from Mumbai.
Lt. Ramesh Chandra, son of Lt. Jamiatmal Jagatram Karira overtook the shop and took the business in his hands. The legacy is still running, keeping the rapport up to the mark.
In our conversation with Mr.Rakesh Karira, the current owner of the JJ Juice Corner, we learned significant things about the shop and its clientele.
The journey started with just Mosambi and Pineapple Juices in 1991. Now, with over 200 varieties of shakes, smoothies, and juices, JJ Juice Corner has always been in news for its delectable taste. Mr. Rakesh believes in innovation and has been trying every permutation and combination with the fruits and dry fruits.
The juices are made according to the client demands, fresh fruits are handpicked to get the best taste. Keeping in mind the current scenario of unhealthy eating habits, honey and dates are used to sweeten the juices which is a very thoughtful initiative taken by the owners. The current staff at JJ Juice Corner has been associated with the business from more than 20 years now.
The Juice corner has been featured in the famous travel and fashion magazine, Femina and the travel website TripAdvisor. As the shop is near the famous City Palace, it receives a great tourist attraction, majorly foreigners. Mr. Rakesh tells that Israelis are the most common customers. The bestseller Mix Fruit Juice with Dates is the favorite amongst the foreign customers, especially Israelis.
Everything served at JJ Juice Corner is filling and must-try.
उदयपुर का इतिहास व्यापक है| इसके कुछ पहलू अब तक अन-छुए हैं| इनमें से एक पहलू ऐसा है जिनके बारे में शायद हम सब ने कभी ना कभी ज़रूर सोचा होगा कि प्राचीन समय में उदयपुर व राजा के महल में शासन प्रबंध किस प्रकार रहा होगा| किस प्रकार उदयपुर के कारखाने व न्यायालय कार्य किया करते होंगे| इसका कुछ हाल महामहोपाध्याय कवि राज श्यामल दास द्वारा रचित मेवाड़ के इतिहास की प्रसिद्ध किताब “वीर विनोद” में मिल जाता है| वह हालकुछ इस प्रकार है-
“कपड़े का भंडार– कुल राज्य में जितना कपड़ा खर्च होता है वह सब इस कारखाने में से ख़रीद कर जमा होता है| कपड़े के मामूली खर्च के सिवा अगर विशेष खर्च हो तो यह अधिकारी के हुक्म से होता है
कपड़े द्वारा– इस कारखाने में खास महाराणा साहिब के धारण करने के वस्त्र रहते हैं|
रोकड़ का भंडार– यह राज्य का मामूली ख़ज़ाना है| कुल राज्य में रोकड़ का खर्च यहां से होता है|
हुक्म खर्च- यह कारखाना खास महाराणा साहिब के जेब खर्च का है| प्रतिदिन जो खर्च महाराणा साहिब के ज़बानी हुक्म होता है, उसके हिसाब पर दूसरे दिन खुद महाराणा साहब अपनी मुहर कर देते हैं|
पांडे की ओरी– (“ओरी” हमारे यहां मेवाड़ी में छोटे कमरे को कहा जाता है|) इस कारखाने में पहले तो बहुत ही प्राचीन चीजें रहती थी लेकिन उसके हिसाब किताब और जमा खर्च में गड़बड़ देखकर महाराणा शंभू सिंह जी ने कुल ख़ज़ाने की मौजूदा चीजों को मुलाहज़ा फरमाने के बाद जो चीज जिस कारखाने के लायक पाई गई उसको वहां पहुंचा दी और जो चीजें नीलामी वह बख़्शीश लायक थी, उन्हें बख़्शीश दे दी गई| महाराणा साहिब के पहने हुए जेवर और तस्वीरें भी इस कारखाने में रहती है|
सेज की ओरी – इस कारखाने में महाराणा साहिब के खास आराम करने के पलंग वगैरह की तैयारी रहती है|
रसोड़ा– इस कारखाने में सभी राजसी जन के लिए भोजन तैयार होता है| पुराने समय में वही पर भोजन किया जाता था| जिसका रिवाज़ इस तरह था की राणा साहब अपने चौकी पर विराजमान होकर भोजन करते थे| रिवाज़ तो बना लेकिन उसके बाद किसी कारण से उस कारखाने में भोजन करना बंद हो गया| वर्तमान समय में महाराणा अपनी इच्छा अनुसार पासवानों को अपने सम्मुख पंक्तियों पर बिठा कर भोजन करने की आज्ञा देते हैं|
पनेरा– इस कारखाने में महाराणा साहिब के पीने का जल, खुश्क, और तर मेवा, नाथद्वारा व एकलिंगेश्वरजी वगैरह देवस्थानों का महाप्रसाद और दवाखाना वगैरह रहता है|
सिलहखाना– इस कारखाने में तलवार, बर्छी और तीर- कमान वगैरह कई प्रकार के शस्त्र रहते है, जिनमे खड्ग भी है। इसके अतिरिक्त, वह तलवार भी है जो बेचरामाता ने शार्दूलगढ़ के राव जशकरन डोडिया को और उन्होंने महाराणा लक्ष्मणसिंह को दी थी। इस तलवार को बाँध कर महाराणा हमीर सिंह ने किला चित्तौडग़ढ़ मुसलमानों से वापिस लिया और इसी तलवार से महाराणा प्रताप अव्वल ने अकबर बादशाह के साथ कई लड़ाइयां लड़ी। उपरोक्त शस्त्रों के अलावा कई प्रकार की ढाले, तोप, कवच वगैरह भी है।
बंदूकों का कारखाना– इस कारखाने में कई प्रकार की तोड़दार बंदूक और जुजावले रहती है, इनके अलावा नए फैशन की कई तरह की टोपीदार व कारतूसी बंदूके और पिस्तौलें वर्तमान महाराणा साहिब (महाराणा सज्जन सिंह जी) ने इकट्ठी करी है। पहले यह कारखाना बाबा चंद्र सिंह के निगरानी में था और अब प्रताप सिंह की संभाल में है।
छुरी कटारी की ओरी– इस कारखाने में कई प्रकार की छुरीव कटारियां रहती है।
देवस्थान की कचहरी– इस कारखाने में कई छोटे-मोटे देव-स्थानों के जमाखर्ची का प्रबंध है, जिनके पुजारियों के लिए कुछ ब्न्धात नियत कर दिया गया है, जो कुछ उनको इस कचहरी के द्वारा मिलता रहता है। जो कुछ बचत जिस मंदिर की आमदनी से होती है वह उसी मंदिर की समझी जाती है। केवल निगरानी मात्र राज्य की ओर से मालिकाना तौर पर रहती है। यह कचहरी महाराणा स्वरूपसिंह जी के समय से जारी है।
शंभूनिवास– महाराणा शम्भुसिंह जी ने शंभूनिवास नामी अंग्रेजी तर्ज़ का एक महल बनवा कर उसकी तैयारी व रौशनी वगैरह का सामान तथा बहुत सी किस्म की प्राचीन चीज़ें इसी महल के दरोगाह रत्नलाल के सुपुर्द कर दी थी, जिससे यह एक बहुत बड़ा कारखाना बन गया।
जनानी ड्योढ़ी – यह कोई कारखाना नहीं है, बल्कि एक अलग ही सरकार है। सैंकड़ो औरत व मर्द इस ड्योढ़ी से परवरिश पाते है। ड्योढ़ी का कुल काम महता लालचंद व प्यारचंद की निगरानी से होता है और इनके त्तहत में महारानियो के कामदार, मौसल, और दास, दासिया वगैरह सैंकड़ो मनुष्य है|
फ़िलख़ानाह– इस कारखाने के निगरान पहले बाबा चन्द्रसिंह हुए, बाद में महाराणा स्वरुपसिंह जी ने इसकी बागडोर ढीकडियां राधाकृष्ण के हाथों सौंप दी जो उनके बाद उनके बेटो ने बखूबी संभाली। इस कारखाने मैं पैंतीस से लेकर पचास हाथी रहते है।
घुड़शाला– इस कारखाने में ख़ास महाराणा साहिब की सवारी के और सभ्यजनों के घोड़े तथा बग्घियों के घोड़े-घोड़िया रहती है।
फर्राशखानह– इस कारखाने मे राज्य के कुल डेरे, सरायचे, कनाते, परदे, फर्श वगैरह व महलो का सामान रहता है।
छापाखानह– यह कारखाना बैकुण्ठवासी महाराणा सज्जनसिंह जी ने कायम किया था। इसमें “सज्जन कीर्ति सुधारक” नामक अखबार, अदालतों के इश्तिहार, समन वगैरह कागज़ात छपते है। आपको बता दे की यह किताब (वीर विनोद) भी इसी कारखाने में छपी है।
पुस्तकालय– इस राज्य में दो मुख्य पुस्तकालय है, एक नवीन पुस्तकालय जिसका नाम “श्री सज्जनवाणी विलास” है, जिसका महाराणा सज्जनसिंह साहिब ने निर्माण किया है और दूसरी प्राचीन “सरस्वती भण्डार” के नाम से प्रसिद्ध है। इनके अलावा मदरसे व विक्टोरिया हॉल का पुस्तकालय अलग है।
ऊँटो का कारखाना– रियासत में ऊँटो के दो कारखाने है। एक ढिकड़िया नाथूलाल के त्तहत में है जिसमे नौकर ऊंट और हज़ार-बारह सौ सरकारी ऊंट है। और दूसरा मेरे (कविराज श्यामलदास) त्तहत है जिसमे 40 ऊंट और 10 घोड़ियां है। यह चौकी के उन पचास सरदारों की सवारी के लिए है जो मेरे त्तहत में है। इन सरदारों की नौकरी ख़ास महाराणा साहिब के हुक्म से ली जाती है।
विक्टोरिया हॉल– यह कारखाना महाराणा साहिब ने अपनी क़द्रदानी और महारानी क्वीन विक्टोरिया की यादगार ज्युबिली के निमित्त सज्जन निवास बाग में एक बहुत अच्छा महल बनवा कर कायम किया है। इसमें दो और भाग है- एक संग्रहालय और दूसरा पुस्तकालय।
टकशाल– पहले राज्य में दो टकशाले थी- एक चित्तौड़ में और दूसरी उदयपुर में। फिरहाल उदयपुर की टकशाला ही जारी है जिसमे स्वरूपशाही अशर्फिया और स्वरूपशाही, उदयपुरी और चांदोड़ी रुपया बनता है।
जंगी फ़ौज– यह क़वायदी फ़ौज है। इसकी बुनियाद महाराणा शम्भुसिंह जी के समय पड़ी थी। लेकिन महाराणा सज्जनसिंह जी ने इसको बढ़ा कर और भी दुरुस्त कर दिया। इसमें क़वायदी पल्टने, रिसालह, तोपखाना, और बैंड-बाजा वगैरह शामिल है।
मुल्की फ़ौज– इस फ़ौज से मुल्क़ी पुलिस का काम लिया जाता है।
महकमे ख़ास के सभी कारखानों का बयान तो हम ऊपर लिख चुके है, अब दूसरा भाग अदालती रहा। उसका वर्णन कुछ इस प्रकार है-
महद्राज सभा– इसे मेवाड़ की “रॉयल कॉउन्सिल” समझाना चाहिए। दो बैठके मिलकर फैसलानामा बनाती है जो महाराणा साहिब के सामने पेश किया जाता है फिर उनकी मंजूरी के अनुसार ही फैसले जारी किये जाते है।
महकमह स्टाम्प व रजिस्ट्री– इसमें स्टाम्प छप कर जारी होते है। मकानात व ज़मीन जायदाद की खरीद फरोख्त के विषय में रजिस्ट्री की कार्रवाई भी यही होती है।”
गौरतलब है की पुरातन शासन प्रबंध आज के उदयपुर का आधार है। शान्ति और एकता हमेशा से ही यहाँ बसी है और आशा है की उदयपुर युहीं दुनिया में अपनी पहचान बनाये रखेगा।
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