आजकल हमें आये दिन उदयपुर की पहाड़ियों या मंगरों पर तेज़ आग लगते हुए दिखती है। पर क्या आपने कभी सोचा है, अभी तो ढंग से गर्मिया आयी भी नहीं और इतनी तेज़ आग अलग-अलग पहाड़ों पर क्यों दिखाई दे रही है? आग लग भी रही है तो सारे पहाड़ों पर क्यों नहीं लेकिन कुछ पहाड़ों पर ही क्यों?
आग एक प्राकृतिक रूप से लगती है – ज्यों की अक्सर गर्मियों के दिनों में तेज़ हवा चलती है तो पेड़ों के आपस में टकराने से घर्षण उत्पन्न होता है जिसके कारण लगती है। लेकिन ये बात हमें समझ में आती उस से पहले किसी ने हमें इंस्टाग्राम पर एक मेसेज किया – जिसमें पहाड़ों पर लगी आग के चित्र के साथ हमें लिखा – “अंधविश्वास की आग” जब हमने उन महाशय से पूछा तो हम हैरान हो गए यह बात जानकार की आग मानवीय भी हो सकती है।
हमने जाना की आदिवासियों में जब कोई मनोकामना माँगता है तो वह यह भी घोषणा करता है की जब उनकी मनोकामना पूरी हो जाएगी तो वह ‘मगरा नहलाएगा’। मगरा नहलाने का अर्थ है, छोटी पहाड़ी/मगरा/मगरी के एक क्षेत्र को चुनकर, उस जगह आग लगाना।
हमारी उत्सुकता और बढ़ी तो हमने कुछ और बुजुर्ग गाँव के लोगों से पूछा कि किस तरह की मनोकामना पूरी होने पर यह किया जाता है, तो पता लगा की मनोकामना में डकैती, चोरी या बच्चा माँगने की मन्नत पूरी होना शामिल है। वैसे अब लोगों ने डकैती या चोरिया कम कर दी है।
हमें यह भी जानने को मिला कि इसे चूंदड़ ओढ़ाना भी कहते हैं क्योंकि जब आग की लपटे लाल निकलती तब इसे चूंदड़ ओढ़ाना कहा जाता है, इस दौरान कई जानवर भी मर जाते है जिसे यही आदिवासी लोग बलि चढ़ाना भी मानते है।
हाँ अब अंधविश्वास कहो या विश्वास, लेकिन आदिवासियों के लिए ये विश्वास है। ……. हाँ हमारे लिए ये अंधविश्वास हो सकता है।
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With Inputs from – Shubham Ameta