“फलक बोला खुद के नूर का मैं आशिकाना हूँ..
ज़मीं बोली उन्ही जलवों का मैं भी आस्ताना हूँ..”
नमस्ते जी. आज की बात शुरू करने से पहले तक मुझे हज़ार हिचकियाँ आ चुकी है. इस ख़याल भर से कि आज मुझे इतनी बड़ी शख्सियत की बात करनी है,जिसे देखने को आसमान की तरफ देखना पड़ता है. हाँ जी हां, मैं श्री श्री की बात कर रहा हूँ. श्री श्री रविशंकर साहब की. अजी हुजूरं, हुज़ुरां, आपका हुक्म है, सो उसी को अता फरमा रहा हूँ. वर्ना इतने महान लोगों को याद फरमाने के लिए किसी तारीख के बंधन को मैं नहीं मानता. मगर मन ने न जाने कितनी बार कहा कि मियाँ ! दस मार्च को परवर दिगार झीलों के शहर, हमारे उदयपुर तशरीफ़ ला रहे हैं. सो उनका एहतराम तो करना है. सो लीजिए पेश-ए -खिदमत है.
सोचता हूँ,तो लगता है, हाय ! क्या चीज़ बनायीं है कुदरत ने. अपनी जिंदगी में इस कदर पुरखुलूस और शराफत से लबरेज कि हम जैसो को आप ही अपने गुनाह दिखाई देने लगे. श्री श्री कुछ बोलने को मुह खोले तो लगे घुप्प अँधेरे में चरागाँ हो गया. अकेलेपन का साथी मिल गया. भटकते भटकते रास्ता मिल गया. उदासी को खुशी और दर्द को जुबान मिल गयी. क्या क्या नहीं हुआ और क्या क्या नहीं होता इस एक शफ्फाक, पाक आवाज़ के जादू से. शराफत की हज़ार कहानिया और बेझोड मासूमियत की हज़ार मिसालें. उन्हें याद करो तो एक याद के पीछे हज़ार यादें दौडी चली आती है. सो कोशिश करता हूँ हज़ार हज़ार बार दोहराई गयी बातों से बचते-बचाते हुए बात करूँ…
अब जैसे कि उनकी पैदाइश “आर्ट ऑफ लिविंग” ने हज़ारों-हज़ार की जिंदगियां बदल दी. आवाम गुस्सा भूलकर समाज की तरक्की में शरीक होने लगा. सुदर्शन क्रिया का मिजाज़ देखिये कि अल सुबह बैठकर हर जवान खून “ध्यान” करता है. क्या बंगलुरु और क्या अमेरिका.. सब के सब गुस्सा भूल रहे है. अजी जनाब ! सिर्फ मुस्कुरा ही नहीं रहे, औरों को भी बरकत दे रहे हैं. और श्री श्री … मिजाज़ से अलमस्त ये फकीर..जिसे जब देखो,हँसता रहता है… और कहता है कि तुम भी हँसो… हँसने का कोई पैसा नहीं…कोई किराया नहीं…
आप कह्नेगे भाई ये सारी लप-धप छोडकर पहले ज़रा कायदे से उदयपुर में होने वाले उनके सत्संग की बात भी कर लो.. तो लो जनाब.. आपका हुक्म बजाते हैं. इस बकत उदयपुर का कोई मंदिर-कोई धर्म स्थल नहीं छूटा, जहाँ आर्ट ऑफ लिविंग के भजन न गूंजे हो. “जय गुरुदेव” का शंखनाद सुनाई दे रहा है. गली-मोहल्ले,सड़क-चौराहे के हर कोने में “आशीर्वाद” बरसाते पोस्टर- होर्डिंग शहर की आबो-हवा में प्यार का नशा घोल रहे है. होली की मस्ती दुगुनी लग रही है. “अच्युतम केशवम राम नारायणं , जानकी वल्लभं, गोविन्दम हरीम..” कानों में मिश्री घोल रहे है. घर घर न्योता भिजवाया गया है. तो मियाँ, आपको भी चुपचाप महीने की दस तारीख को सेवाश्रम के बी.एन. मैदान पर हाजिरी देनी है. समझ गए .! तमाम कोशिशों के बाद पूरे आठ साल बाद वो पाक रूह सरज़मीं-ए-मेवाड़ आ रही है. शुरू हो रहा है एक नया रिश्ता. एक क्या रिश्तों का पूरा ज़खीरा मिल रहा है. सो रहने दो… मैदान में जाकर खुद देख लेंगे. अभी श्री श्री की बाताँ करते हैं. वर्ना ये उदयपुर के बाशिंदों की मेहनत की स्टोरी तो इतनी लंबी है कि इसे सुनते-सुनाते ही मेरा आर्टिकल पूरा हो जायेगा और उपर से आवाज़ आएगी, “चलो मियाँ, भोत फैला ली, अब समेट लो” सो यही पे बस.
इसे कहते है इंसान:
अक्सर हम लोग इंसान से गिरती हुई इंसानियत को देख देखकर छाती पिटते रहते है. मगर श्री श्री रविशंकर जैसे इंसान की बातें सुनो तो इंसानियत पर भरोसा लौटने लगता है. इस इंसान ने इतनी कामयाबी के बावजूद न तो घमंड को अपने आस पास आने दिया और न दौलत को अपने दिल पर हुकूमत करने दी. ज़रा सोचकर देखे कि इतना कामयाब इंसान कि देश के बड़े बड़े घराने जिसके सामने निचे बैठते है, और अजी घराने ही क्या, कई सारी कंपनियों के पूरे पूरे कुनबे उनको सुनते है.जब वही श्री श्री किसी 5-7 साल के छोटे बच्चे के साथ बैठते है तो बिलकुल बच्चे बन जाते है. शरारती तत्व. मैंने आस्था चेनल के लिए एक शूटिंग श्री श्री के साथ हिमाचल में की थी. वहीँ उनके उस छुपे तत्व को महसूस किया. जहा कोई आडम्बर नहीं, कोई दिखावा नहीं.. सफेद झक एक धोती में एक साधारण किन्तु पवित्र आत्मा. और मज़े की बात. श्री श्री को खुद गाने और भजनों पर नाचने का बहुत शौक है. कई बार स्वयं झूम उठते है. भक्ति-ध्यान-नृत्य-भजन- आनंद का अद्भुत संगम. माशा अल्लाह गजब के उस्ताद है. उस्तादों के उस्ताद,जिन्होंने लाखो करोडो को जीने की दिशा दे दी.
श्री श्री रविशंकर जनाब. उदयपुर की इस खूबसूरत फिजा में आपका तहे दिल से इस्तकबाल. तशरीफ़ लाइए. आज का नौजवां, जो भटक सा रहा है, उसे रास्ता दिखाईये.. वेलकम है जी आपका पधारो म्हारे देस की इस खूबसूरत सर ज़मी पर. मीरा बाई की पुकार सुनी आपने और यहाँ आये…अब हमारी पुकार भी सुन लीजिए. आनंद भर दीजिए. खम्मा घणी….
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