कभी कृष्ण की माखनचोरी… “मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो.. !!” तो कभी मीरा का विरह… “मेरे तो गिरधर गोपाल..!!” कभी राधा-कृष्ण का प्रेम… “सखी हे केशी मथनं उदाराम…!!” तो कभी रविन्द्र संगीत पर बादलों को उलाहना… “ऐसो श्यामल सुन्दरो…!!”
मौका था पचासवें महाराणा कुम्भा संगीत समारोह के स्वर्ण जयंती समारोह में पद्म विभूषण डॉ. सोनल मानसिंह के ओडिसी नृत्य प्रस्तुति का.. कल कार्यक्रम के तीसरे दिन टाउन हाल में सोनल मानसिंह ने पूरे तीन घंटे तक किसी दर्शक को कुर्सी से हिलने तक का मौका नहीं दिया. .
ओडिशा के कृष्ण मंदिरों से निकली नृत्य शैली, जिसे आरम्भ में प्रभु को रिझाने के लिए देवदासियां किया करती थी.. और उन्ही की विभिन्न मुद्राओं पर कोणार्क और पुरी के मंदिरों में शिल्प गढ़ा गया. उसी ओडिसी नृत्य शैली का प्रारंभिक परिचय देते हुए सोनल मानसिंह ने सूरदास के पद “मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो” से नृत्य सेवा शुरू की. कृष्ण की विभिन्न नटखट लीलाओं… मटकी तक हाथ न पहुँचने पर लाठी से मटकी भंजन.. यशोदा द्वारा पकडे जाने पर उलाहना… और अंत में “मैया मोरी मैंने ही माखन खायो” कहकर भाग जाना.. सोनल ने पहली ही प्रस्तुति से दर्शकों का मन जीत लिया. तत्पश्चात गीत गोविन्द के अष्ट-पदी में से तीन पद लेकर राधा के प्रेम को वर्णित किया. कार्यक्रम के तीसरे दौर में रविन्द्र नाथ टेगोर के जन्म के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में रविन्द्र संगीत का एक अंश प्रस्तुत किया,जिसमे राधा काले मेघ को उलाहना दे रही है कि वो कब आकर उसे प्रेम के रस में भिगो जायेगा..
अब मौका था मीरा के पद का… मीरा का परिचय देते हुए “मेरे तो गिरधर गोपाल” पर सधी हुयी प्रस्तुति ने दर्शकों को वाह वाह करने पर मजबूर कर दिया. कार्यक्रम के अंत में साथी कलाकारों द्वारा “दशावतार” की प्रस्तुति दी गयी. नौवे अवतार “बुद्ध” के दौरान “बुद्धं शरणम् गच्छामि” के स्वर ने शांति का पाठ पढाया और जय जगदीश हरे…के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ. सोनल के साथ नृत्य में दीनबंधु, लक्ष्मी, अनीता और सुनीता ने नृत्य सेवा की.
इस से पूर्व महाराणा कुम्भा संगीत परिषद् द्वारा सोनल मानसिंह को “एम्.एन. माथुर पुरस्कार” से सम्मानित किया गया. सोनल मानसिंह ने मेवाड़ की पुण्य भूमि को नमन करते हुए सम्मान ग्रहण किया.