उदयपुर शहर और इसके आस पास ऐसे तो काफी धार्मिक स्थल प्रसिद्ध है लेकिन शहर के बीचों-बीच स्थित प्राचीन जगन्नाथ मंदिर या जगदीश मंदिर की माया अद्भुत और निराली है.
जगदीश मंदिर का निर्माण सन् 1652 में तत्कालीन मेवाड़ के महाराणा जगतसिंह प्रथम ने करवाया था. मंदिर में श्री जगदीश स्वामी जी की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के बाद इसी मंदिर से भगवान जगदीश स्वामी की जगन्नाथ रथ यात्रा तत्कालीन महाराणा जगतसिंह जी प्रथम ने आषाढ़ सुदी द्वितीया पर निकाली. तब से जगन्नाथ रथ यात्रा विगत कई वर्षों से निकाली जा रही है. उसी समय से ठाकुर जी, लालन जी और अन्य देवी देवता नगर भ्रमण पर निकलते है. जगन्नाथ रथ यात्रा केवल एक यात्रा ही नहीं है बल्कि उदयपुर की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को खुद में संजोए हुए है.
इस यात्रा के लिए विशेष रूप से भगवान जगदीश स्वामी, माता महालक्ष्मी, दाणिराय जी(कृष्ण भगवान), लालन जी और जुगल जोड़ी के विग्रह बनवाये है.
जगन्नाथ रथ यात्रा की तैयारियां आषाढ़ मास की सुदी द्वितीया के 15 दिन पहले से शुरू हो जाती है. लालन जी, जगदीश स्वामी और जुगल जोड़ी यानि कृष्ण भगवान और राधा जी अपने शयन कक्ष से मंदिर के गर्भगृह मैं पधारते है. इस समय सभी देवी देवताओं को काढ़ा पिलाया जाता है और वो फिर से अपनी निद्रा अवस्था में चले जाते है.
ठीक 15 दिन बाद आषाण मास की कृष्ण एकम को सभी देवी देवता स्वस्थ होकर वापस से प्रस्थान करते है. उसी के अगले दिन यानि कृष्ण द्वितीया को भगवान जगदीश स्वामी, माता महालक्ष्मी और दाणिराय जी(कृष्ण भगवान) रजत रथ में और लालन जी, जुगल जोड़ी छोटे रथ में सवार होकर नगर भ्रमण पर निकलते है.
रथ यात्रा की सुबह सबसे पहले सभी देवी देवताओं को पंचामृत से स्नान करवाया जाता है और नए श्रृंगार एवं पौशाक धराये जाते है. फिर एक बजे रथ में बिराज कर सभी देवी देवता जगदीश मंदिर की परिक्रमा करते है. इस परिक्रमा में अलग अलग फेरे होते है, इन्हीं फेरों के दौरान मंदिर में रथ विशेष और पारम्परिक कीर्तन एवं भजन गाये जाते है. नार्तिकायें अपने नृत्य से सभी देवगण को प्रसन्न करती हैं. जगदीश मंदिर में स्थित सूर्यनारायण भगवान की देवरी पर रथ रुकता है और भगवान को ऋतुफल जैसे अनार, जामुन, आम, आम की बर्फी और अन्य मिष्ठानो का भोग लगाया जाता है. रथ को खींचने वाले घोड़ो को चने की दाल जिमाई जाती है.
फिर दोपहर 3 बजे सभी देवी देवता मंदिर से प्रस्थान कर अपने रथ में विराजमान होकर नगर भ्रमण पर निकलते है. ठाकुर जी एवं अन्य देवी देवताओं की शोडशो मंत्र उच्चार से आरती होती है और फिर ही भगवान जगदीश स्वामी, माता महालक्ष्मी और दाणिराय जी(कृष्ण भगवान) रजत रथ में और लालन जी एवं जुगल जोड़ी छोटे रथ में सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकलते है.
जगन्नाथ रथ यात्रा एक अकेला ऐसा महोत्सव है, जहाँ पारम्परिक रीतियों के विपरीत भगवान स्वयं अपने भक्तों को दर्शन देने निकलते है. माना जाता है कि रथ यात्रा के दिन भगवान अपने भक्तजनों पर ढेर सारा आशीर्वाद लुटाते है. इस रथ यात्रा की विशेषता यह है की इसके दर्शन करने के लिए केवल उदयपुरवासी, राज्य या देश से नहीं, कही भक्तगण विशेष तौर से इसी महोत्सव में भाग लेने के लिए विदेश से आते है.
जगन्नाथ रथ यात्रा जगदीश मंदिर से होते हुई घंटा घर – बड़ा बाजार – भड़भूजा घाटी – मोची बाजार – भोपालवाड़ी – चौखला बाजार – संतोषी माता मंदिर – धानमंडी – झीणी रेत – मार्शल चौराहा – RMV – गुलाब बाघ – रंग निवास से वापस जगदीश मंदिर आती है.
हर जगह रथ का पारम्परिक भजनों से विशेष स्वागत होता है.
वापस जगदीश मंदिर पहुंचने पर महाआरती एवं शयन आरती होती है पश्चात् सभी देवी देवता फिर मंदिर के गर्भगृह में स्थापित दिए जाते है.
साम्प्रदायिक सद्भाव बनाये रखती है ये विशेष रथ यात्रा:
जगदीश चौक में जन्मे कई संप्रदाय के लोग काफी लम्बे समय से रथयात्रा से जुड़े हुए हैंं जो अपने आप में एक साम्प्रदायिक सद्भाव की एक अलग मिसाल है. सभी संप्रदाय के लोग धर्मोत्सव समिति कार्यकर्ता के रूप में रथयात्रा व्यवस्था संभालने में अपना योगदान देते है इसमें झांकियों को क्रमबद्ध करवाना, रथयात्रा में आये भक्तों को प्रसाद वितरण की व्यवस्था जैसे कार्य शामिल हैं. रथयात्रा किसी व्यक्ति विशेष, एक संगठन का नहीं बल्कि सभी समाजो के लिए बडे़ त्यौहार जैसा आयोजन है. इसमें सभी चाहे वो सनातन धर्म हो या कोई और, सभी इसमें बढ़ चढ़ कर भाग लेते है. सभी समाज के लोगो के साथ साथ सरकारी प्रशासन भी इस महोत्सव को सफल बनाने क लिए अपनी पूरी श्रमता से काम करते है.
भगवान जगन्नाथ के रजत रथ की खासियत:
भगवान जगन्नाथ स्वामी की इस पारम्परिक रथयात्रा में लोगों का उत्साह और भागीदारी बढ़ाने के लिए कुछ वर्ष पूर्ण ही भक्तों के सहयोग और ठाकुरजी के आशीर्वाद से रजत रथ का निर्माण करवाया गया. पहली बार 12 जुलाई 2002 को प्रभु जगन्नाथ एवं देवताओं को रजत रथ में विराजित कर नगर भ्रमण पर निकाला गया था. इस रजत रथ के निर्माण के लिए असम से विशेष तौर से सागवान की लकड़ी मंगवाई गयी. यह रथ 18 फीट ऊंचा है और इसे तैयार करने में 50 किलो चांदी का उपयोग हुआ है. इसमें श्री जगन्नाथ स्वामी की प्रतिमा के साथ बलराम, सुभद्रा और सुदर्शन चक्र भी विराजमान हैं.
तो क्या आप तैयार है 4 जुलाई को होने वाली इस भव्य जगन्नाथ रथ यात्रा के साक्षी बंनने के लिए ?