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पद्म भूषण श्री अनिल बोर्दिया नहीं रहे!

Anil Bordia

अपने घर के एक कमरे में एक साधारण सा ऑफिस… एक साधारण मेज, कुल जमा तीन लकड़ी की बिलकुल साधारण कुर्सियां, जिसमे से एक पर अपनी रीढ़ को बिलकुल सीधा किये हुए बैठा एक बुज़ुर्ग, जो रिटायर्ड तो लगता था किन्तु “टायर्ड” बिलकुल नहीं…. सामने की दिवार पर एक नोटिस बोर्ड, वैसा ही एक बोर्ड उस बुज़ुर्ग के पीछे. पास के “आलिये” में बेतरतीब पड़े ढेर सारे कागज़- फोल्डर..”

कुछ ऐसा ही पहला और आखिरी परिचय हुआ था मेरा उस इंसान से. “कैसे है मनु जी, कैसे आना हुआ ?” इतना गंभीर होकर बोले थे कि मेरे आत्म-विश्वास ने तो उस वक़्त जवाब ही दे दिया था. उस वक़्त सम्मुख थे भारत सरकार के पूर्व केन्द्रीय शिक्षा सचिव, शैक्षिक चिन्तक, मेवाड़ के प्रसिद्द शिक्षाविद पद्मभूषण श्री अनिल बोर्दिया. इतना उच्चकोटि का व्यक्तित्व कि अच्छे से अच्छा पत्रकार उनके सामने एक बार तो “हिल” जाये. किन्तु वे थे इतने साधारण इंसान कि एक साधारण फिल्ड कार्यकर्ता के साथ दरी पर बैठकर किसी परियोजना की बारीकियां डिस्कस करते थे.

“ ना थाम सके हाथ, ना ही पकड़ सके दामन,

बड़े करीब से उठ कर चला गया कोई…”

आज वे ही श्री अनिल बोर्दिया नहीं रहे. उम्मीद की आखिरी डोर भी टूट गयी. कल रात्रि  11.00 बजे आपने आखिरी साँस ली. इस खबर से शहर में शोक की लहर फ़ैल गयी. कल प्रातः 08 बजे उनका अंतिम संस्कार आदर्श नगर श्मशान गृह में होगा.

स्वर्गीय श्री अनिल बोर्दिया का शिक्षा के क्षैत्र में, विशेषकर वैकल्पिक शिक्षा के क्षैत्र में बहुत योगदान रहा. राजस्थान सरकार की “लोक जुम्बिश परियोजना“ स्व. बोर्दिया की ही देन रही. बोर्दिया जी का जाना हर एक उस व्यक्ति की निजी क्षति है, जिसने कहीं ना कहीं उनके महान जीवन में उनकी एक झलक भी पायी हो. श्री बोर्दिया जीवनभर हर उस अंतिम व्यक्ति तक शिक्षा को पहुँचाने की कोशिशे करते रहे, जो शिक्षा से दूर था. केन्द्रीय शिक्षा सचिव रहते हुए भी वे युवाओं हेतु अनौपचारिक शिक्षा पर काफी ध्यान देते थे. सचिवालय में उनके सानिध्य में काम करने वालों में एक श्री बी. एल. पालीवाल उन दिनों को याद करते हुए बताते है कि उन्होंने बोर्दिया जी जैसा “इजी गोइंग” पर्सन नहीं देखा. पालीवाल का यहाँ तक मानना है कि यदि राजस्थान में शिक्षा का स्तर उपर उठा है, आंकड़े बदले है,तो इसका 100% श्रेय बोर्दिया जी को जाता है.

राजसमन्द जिले के स्वयंसेवी सहायता समूह जतन के निदेशक डॉ. कैलाश बृजवासी लोक जुम्बिश परियोजना के दिनों को याद करते हुए कहते है कि उस प्रोजेक्ट में उनके द्वारा तैयार किये गए कार्यकर्ता आज भी शिक्षा के क्षेत्र में अपनी पहचान सर्वथा अलहदा बनाये हुए है और उनके सपनो को साकार करने में लगे हुए है. अपना काम स्वयं करना और किये कार्य में पारदर्शिता रखना, ये दो गाँधीवादी सूत्र बोर्दिया जी ने तमाम उम्र अपनाये रखे. डॉ. बृजवासी का मानना है कि बोर्दिया जी के जाने से लगता है जैसे पूरे शिक्षा जगत के ऊपर से सहारा ही उठ गया हो.  कुछ ऐसे ही विचार “आस्था” की संस्थापक सदस्या अनीता माथुर और आस्था के ही अश्विनी पालीवाल भी रखते है. हमसे बात करते वक़्त बहुत भावुक होते हुए अनीता जी ने बताया कि राजस्थान की ग्रामीण महिलाओं की शिक्षा एवं सशक्तिकरण पर बोर्दिया जी के काम को कौन भुला सकता है. अश्विनी जी का कहना है कि शिक्षा में “नवाचार” की परिभाषा बोर्दिया जी के हाथो ही लिखी गयी. बोर्दिया जी द्वारा शुरू की गयी परियोजनाएं संभवतया पहली ऐसी परियोजनाएं थी, जिन्होंने ग्रामीण और आदिवासी बच्चों को पहली बार शिक्षा से रु-ब-रु करवाया. आदिवासी बाहुल्य कोटडा में उनके साथ काम करने के अपने अनुभव को शेयर करते हुए अश्विनी जी याद करते है कि बोर्दिया जी स्वयं मगरो (पहाड़ियों) पर जाकर बकरी चराने वाले बच्चों, खेतों में काम कर रहे बच्चो- किशोरों को पकड़ पकड़ कर शिक्षा संकुलों तक ले आते थे. कोटडा में पहली बार उन्होंने ही आदिवासी बालिकाओं के लिए आवासीय शिविर का भी आयोजन किया.

प्रसिद्द शिक्षाविद श्री शिव रतन थानवी का कहना है कि बोर्दिया साहब कोचिंग संस्थानों के बहुत खिलाफ थे. वे कोचिंग को शिक्षा का अंग ही नहीं मानते थे.

साथ काम करने वाले बहुत से शिक्षाकर्मी मानते है कि अनिल जी बोर्दिया काम को लेकर बहुत स्पष्ट थे, कार्य क्रियान्वन में उनका रवैया कभी कभी थोड़ा कठोर हो जाता था. फिर भी फिल्ड में काम करने वाले एक साधारण कार्यकर्ता से लेकर ऊँचा से ऊँचा अफसर भी उनके साथ अपनी बात एक जाजम पर बैठकर आसानी से कह देता था. और वे भी उसी आसानी से परियोजनाओं की बारीकियां समझने में व्यस्त हो जाते थे.

“ अनिल जी सर ने एज्युकेशन की धारा को ही बदल दिया. उनके निर्देशन में शुरू हुआ “शिक्षा- कर्मी” प्रोजेक्ट हो, “लोक जुम्बिश” हो या “दूसरा दशक”, हर परियोजना में वे “इनोवेशन” करने वाले योवाओं को आगे लाने में हमेशा तत्पर रहे.” ये कहना था ICICI फाउन्डेशन के प्रोजेक्ट ऑफिसर अरविन्द जी शर्मा का. वे याद करते हुए बताते है कि एक बार किसी कार्यशाला में एक गीत मंडली अपना गीत सुना रही थी और वहाँ उपस्थित 250 युवा उनके सुर में सुर मिला रहे थे. किसी एक पंक्ति पर युवाओं का सुर मण्डली के सुर के साथ फिट  नहीं बैठ रहा था. तब अनिल जी सर ने उस पंक्ति को तब तक युवाओं से दोहराने के लिए कहा, जब तक कि सही सुर ना पकड़ लिया जाये. ऐसी उनकी “परफेक्शन” वाली भावना थी. वे हर काम में परफेक्ट परफेक्शन चाहते थे. अपने अंतिम समय तक वे स्वयं को जवान फील करवाते थे.उनके जाने से लगता है, जैसे एक युगदृष्टा चला गया..

राजस्थान में शिक्षा के प्रचार प्रसार हेतु अपनी तमाम उम्र गुजरने वाले महान शिक्षाविद पद्मभूषण अनिल जी बोर्दिया के निधन पर उदयपुर ब्लॉग विनम्र भाव से शोक प्रकट करता है एवं परम पिता परमेश्वर से अनुनय करता है कि पवित्र आत्मा को शांति प्रदान करें एवं परिवार को इस दुःख की घडी में संबल प्रदान करें.

“धीरे धीरे हारी दुनिया, धीरे धीरे जीते लोग “

“उनका जाना पूरे राजस्थान के लिए एक अपूरणीय क्षति है. मैं उनका व्यक्तिगत प्रशंसक था. उनके जैसा ना पहले कोई था, ना ही शायद बाद में कोई आये” श्री गुलाबचंद कटारिया, विधायक, उदयपुर शहर

कोटडा में मेरी उनसे पहली मुलाकात हुई थी. तब से मैं उनका अनुचर बन गया. प्रभु उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें. वे आखिरी साँस तक गरीब को उसका मौलिक हक दिलवाने में लगे रहे.”श्री रघुवीर सिंह मीणा, सांसद, उदयपुर

“उनके जैसा व्यक्तित्व खोजे नहीं मिलता. अपनी तमाम उम्र शिक्षा को हर वर्ग तक पहुँचाने में लगा दी बोर्दिया साहब ने”- श्री रियाज़ तहसीन, विद्या भवन सोसायटी, उदयपुर.

“ ड्रॉप आउट किशोर- किशोरियों के लिए शुरू की गयी दूसरा दशक परियोजना के अध्यक्ष रहे सर अपने आखिरी समय तक हर एक प्रोजेक्ट में व्यक्तिगत रूचि लेते रहे. निधन के कुछ दिन पूर्व माउंट आबू में दूसरा दशक की कार्यशाला में भी फोन करके रोज प्रगति की जानकारी लेते रहते थे. उनके जाने से मुझे व्यक्तिगत क्षति हुई है.”श्री कमल जैन, दूसरा दशक, जयपुर

“अनिल जी नहीं रहे, मुझे नहीं लगता. वे हमेशा जिन्दा रहेंगे हमारे बीच..“ राजेश टंडन, प्रिया- नई दिल्ली

“हर Complicated Problem का easyway solution उनके पास हर समय मौजूद रहता था. जब वे केन्द्रीय सचिव थे तब उनके सानिध्य में 1.5 साल रहने का मौका मिला. आज भी उनके साथ बिताया एक एक पल याद है. उनका जाना राजस्थान के लिए एक अपूरणीय क्षति है.”डॉ. बी.एल. पालीवाल, उदयपुर

“ मुझे लोकजुम्बिश में लाने वाले बोर्दिया जी ही थे. आज अगर मैंने जीवन में कुछ सिखा है तो उसका समस्त श्रेय केवल और केवल उन्ही को जाता है. लोगों से किस प्रकार सहभागिता को जोड़ा जाये, ये उनसे सिखा. वे रिटायर होने के बाद और ज्यादा एक्टिव हो गए थे. शिक्षा को जन जन का मुद्दा बनाने वाले अनिल जी बोर्दिया का यूँ रुखसत होना अपने आप में देश के लिए बहुत बड़ी क्षति है, जिसकी भरपाई मुश्किल है.”डॉ. कैलाश बृजवासी, जतन संस्थान, राजसमन्द

I join with so many others who knew Anil Bhai in offering our deepest sympathy on his passing. A visionary, a real loss … but what a legacy he has left behind. He was one of the famous educationists in the world. He initiated women’s empowerment work and made the important contribution to the development of women in the state. A life lived to the full and inspirational to others. I salute to him for his wonderful work.Anita Mathur, Co-Founder Astha Sansthan, Udaipur

“मेरे आंसू नहीं थम रहे. मुझे लगता है जैसे शिक्षा का सर्वेसर्वा ही चला गया. ईश्वर उनकी पवित्र आत्मा को शांति प्रदान करें”ममता जेटली, विविधा, जयपुर

“हम उन्हें बहुत मिस करेंगे. युवाओं की शिक्षा के लिए उनके द्वारा किये गए काम को कौन भूला सकता है. उनके जैसा कमिटेड इंसान मैंने अपनी जिंदगी में दूसरा नहीं देखा.सुनीता धर, जागोरी , नई दिल्ली

“वो जीवन भर गरीब आदमी को शिक्षित करने में लगे रहे. उनके जाने से समाज के उस निर्धन अंतिम व्यक्ति को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है. शिक्षा के लिए सरकार के साथ NGOs  को जोड़ने की अभूतपूर्व पहल आपही कर सकते थे.”अश्विनी पालीवाल, आस्था, उदयपुर

मैं उनका इस तरह से आकस्मिक जाना सहन नहीं कर पा रही. वे जहाँ भी रहेंगे, सदा हमें प्रेरणा देते रहेंगे- शबनम खलीज, पूर्व स्टेट डाइरेक्टर, लोक जुम्बिश “एक ऐसा भागीरथ धरती से रुखसत हो गया, जिसने अपने सतत परिश्रम से पूरी धारा को ही मार्ग बदलने पर मजबूर कर दिया था.अरविन्द जी शर्मा (ICICI फाउन्डेशन)